संविधान की परीक्षा पर सवाल: कुछ छोड़ा है क्या?

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: December 18, 2019
हर कोई एक दूसरे से पूछ रहा है, क्या होगा। उसमें दिल्ली में छात्रों पर पुलिस और सरकार की ज्यादती तथा बर्बरता के बारे में जामिया मिलिया की 19 साल की छात्रा अनुज्ञा झा ने देश को जो बताया वैसा किसी ने नहीं कहा। दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में बीए एलएलबी की छात्रा ने सोमवार को टेलीविजन कैमरों के सामने कहा, "आज मुझे संविधान पर परीक्षा में बैठना था। अब कुछ बचा नहीं रह गया है।" द टेलीग्राफ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार उसने यह भी कहा, “मैं संविधान क्या पढूंगी? कुछ छोड़ा है क्या? नागरिकता कानून पर देश भर में हो रहे विरोध से बिहार और झारखंड अछूता है क्योंकि बिहार और झारखंड में शिक्षा का कोई बड़ा और अच्छा केंद्र ही नहीं है। जो कॉलेज और विश्वविद्यालय है वहां पढ़ाई कम राजनीति ज्यादा होती है। इसलिए वहां के बच्चे दूसरे शहरों में पढ़ते हैं और पुलिस अगर हॉस्टल के कमरों में टीयरगैस के गोले मारे, लाइब्रेरी में घुसकर तोड़फोड़ कर सकें तो कौन अपने बच्चों को पढ़ने भेज पाएगा। और ये वो बच्चे नहीं है जो सस्ती शिक्षा के लिए दिल्ली आते हैं। दिल्ली आते हैं क्योंकि उनके शहर / राज्य में शिक्षा की अच्छी व्यवस्था ही नहीं है।



एक तरफ तो सरकार अपने देश के नागरिकों के लिए अच्छी और पर्याप्त व्यवस्था नहीं कर पा रही है और प्रधानमंत्री ट्वीट कर रहे हैं, संशोधित नागरिकता कानून स्वीकार्यता, सौहार्द्र, करुणा और भाईचारे की भारत की सदियों पुरानी संस्कृति की व्याख्या करता है।" इस संस्कृति का यह मतलब नहीं होगा कि हम बेरोजगार, अशिक्षित और बेइलाज रहकर दुनिया भर के लोगों को आमंत्रित करेंगे कि आओ हमारे साथ रहो। देशभर में चल रहे विरोध-प्रदर्शन को प्रधानमंत्री ने निहित स्वार्थ वालों की करतूत बताया है। पर वे इसे रोक नहीं पाए। उन्हें अंदाजा होना चाहिए था कि कानून का कैसा विरोध होगा और उससे कैसे निपटना है। विरोध को दुखद और निराशाजनक बताना एक बात है पर उससे पीड़ितों का हुआ नुकसान बिल्कुल अलग। जब आप खुद कह रहे हैं कि विरोध करने वाले कपड़ों से पहचाने जा सकते हैं (जबकि दूसरे लोग भी विरोध कर रहे हैं) तो इस आश्वासन का कोई मतलब नहीं है कि इससे किसी भी धर्म का नागरिक प्रभावित नहीं होगा और किसी को गड़बड़ी करने की इजाजत नहीं दी जाएगी। गड़बड़ी तो हो चुकी।

यह कहना पर्याप्त नहीं है कि संशोधित नागरिकता कानून को लेकर किसी भी भारतीय को चिन्तित होने की जरूरत नहीं है। जब सरकार हमारे लिए ही सुविधाएं नहीं दे पा रही है तो जिन्हें नागरिकता दी जाएगी वो हमारा ही हिस्सा लेंगे ना। यह भारतीय संस्कृति हो पर इससे परेशानी कैसे नहीं होगी और चिन्ता कैसे नहीं की जाए? और वैसे भी आप पांच-दस साल प्रधानमंत्री रह लेंगे उसके बाद? और समस्या या चिन्ता पांच-दस साल की नहीं है उससे आगे की है। आज अंग्रेजी अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स में हिन्दी अखबार हिन्दुस्तान के संपादक, शशि शेखर का एक लेख है और यह हिन्दी में नहीं है। इसमें उन्होंने कहा है कि वर्षों पूर्व एक विदेशी (संभवतः पाकिस्तानी) लड़की से ब्याह करने वाले उनके एक परिचित परेशान हैं कि आगे क्या होगा। इस कानून से यही हुआ है। वर्षों पर पूर्व शादी कर चुका एक आदमी जो शशिशेखर जैसे प्रभावशाली व्यक्ति को जानता है, परेशान है। शादी जैसे बिल्कुल निजी मामले में बच्चे, नाती पोता होने के बाद।

इसके बावजूद प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि यह किसी भी धर्म से जुड़े किसी भी नागरिक को प्रभावित नहीं करता है। हो सकता है उपरोक्त चिन्ता एनआरसी की घोषणा के कारण हो। तकनीकी रूप से एनआरसी और सीएबी भले अलग हैं पर गृहमंत्री ने इनके बारे में जो और जैसे कहा है उससे शायद ही कोई इसे अलग समझ रहा हो। ट्वीट में प्रधानमंत्री ने यह भी कहा है (जो अखबारों में छपा है), यह सिर्फ ऐसे लोगों के लिए है जो बाहर वर्षों से प्रताड़ना के शिकार थे और उनके लिए भारत के अलावा कोई स्थान नहीं था। यह सवाल अनुत्तरित है कि सीएबी और एनआरसी एक दूसरे से जुड़े हुए नहीं हैं? किसे पहले लागू किया जाएगा, सीएबी को या फिर एनआरसी को? अगर सीएबी और एनआरसी दोनों लागू हो जाएंगे तो एनआरसी के तहत बाहर किए गए गैर-मुसलिम सीएबी के तहत शामिल नहीं कर लिए जाएंगे? अगर ऐसा हुआ तो नतीजा यह नहीं होगा कि सिर्फ मुसलमान ही अवैध प्रवासियों के तौर पर पहचाने जाएंगे और उन्हें बाहर किया जाएगा। या देश में दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया जाएगा।

यही नहीं, सरकार ने किस आधार पर इस विशेष व्यवहार के लिए सिर्फ तीन देशों को चुना है। यह उदारता सभी देशों के लिए नहीं तो कम से कम सभी पड़ोसी देशों के लिए क्यों नहीं? इस विशेष रियायत के लिए सिर्फ छह अल्पसंख्यक समुदायों को ही क्यों चुना गया और किस आधार पर चुना और छोड़ा गया। इसमें मनमानी की बू नहीं आती है? मुझे नहीं पता अनुज्ञा ने जो कहा, कुछ छोड़ा है क्या में ये सब शामिल है या उसके लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन की ही बात है। पर स्थिति इतनी अच्छी नहीं है। अच्छे दिन का वादा और यह डरावना माहौल। पहले तो सिर्फ मुसलमानों के लिए था, कुछ खास किस्म के कारोबारियों के लिए था अब तो सबके लिए है और यह शशि शेखर के लेख से साबित है। प्रधानमंत्री जी दीवारों पर लिखा पढ़िए। और कुछ कीजिए नहीं तो देश बिना विपक्षा के ही रहेगा। आप पहले नहीं थे। आप फिर नहीं रहेंगे। बने रहना आपके या किसी के हाथ में नहीं है।

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