मणिपुर हिंसा के पीछे नस्लीय सफाया!

Written by Navnish Kumar | Published on: May 11, 2023
"मणिपुर में हुई हिंसा के बाद मणिपुर से भाजपा के विधायक पाओलिनलाल हाओकिप ने कहा कि ‘मणिपुर में जो हो रहा है वो स्पष्ट तौर पर निशाना बनाकर किया जा रहा नस्लीय सफाया (एथनिक क्लींज़िंग) है।’ हाओकिप ने कहा कि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह कुकी समुदाय को बदनाम कर रहे हैं। उन्होंने जोड़ा कि ऐसा लगता है कि हालिया हिंसा में सरकारी तत्वों ने खुले तौर पर दंगाइयों की मदद की। उधर, दो दिन पहले मामले में सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपनी मौखिक टिप्पणी में कहा कि हाईकोर्ट के पास अनुसूचित जनजाति की लिस्ट में संशोधन का अधिकार नहीं है। ये अधिकार राष्ट्रपति के पास है कि वो किसे अनुसूचित जाति या जनजाति का दर्जा दे। इसी से सवाल है कि मणिपुर जलने के पीछे वजह नस्लीय ज्यादा है या हाईकोर्ट का असंवैधानिक आदेश एक बड़ा कारण है?"



मणिपुर में हुई हिंसा के बाद द वायर के लिए करण थापर को दिए इंटरव्यू में मणिपुर से भाजपा के विधायक पाओलिनलाल हाओकिप ने कहा कि ‘मणिपुर में जो हो रहा है वो स्पष्ट तौर पर निशाना बनाकर किया जा रहा नस्लीय सफाया (एथनिक क्लींज़िंग) है।’ चूड़ाचांदपुर जिले की सइकोट सीट से विधायक ने यह भी जोड़ा कि उनका मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह (मुख्यमंत्री) से भरोसा उठ गया है। वे कुकी जनजाति विरोधी हैं और कई मैतेई लोग इस बात की पुष्टि कर सकते हैं। हालांकि, उन्होंने भी जोड़ा कि उन्हें भाजपा पर पूरा विश्वास है।

द वायर के अनुसार, यह पूछे जाने पर कि हालिया तनाव और हिंसा की स्थिति को सरकार ने कितनी अच्छी तरह संभाला, हाओकिप ने जवाब दिया, ‘यह अनाड़ी तरीके से चीजों को कैसे संभाला जाता है, का सबसे अच्छा उदाहरण है। ऐसा लगता है कि सरकारी तत्व खुले तौर पर दंगाइयों की मदद कर रहे हैं।’ यह पूछे जाने पर कि क्या वे सोचते हैं कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लाने की जरूरत है, हाओकिप ने कहा, ‘मैं नेतृत्व परिवर्तन को प्राथमिकता दूंगा, अन्यथा राष्ट्रपति शासन। यह केंद्र को तय करना है। मैं केवल यह चाहता हूं कि मामलों को संभालने के तरीके में बदलाव हो।’ हाओकिप ने स्पष्ट रूप से कहा, ‘एन. बीरेन के सत्ता में रहते हुए कुकी समुदाय के किसी भी वार्ता को स्वीकार करने की संभावना नहीं है।’

खास है कि मुख्यमंत्री एन. बीरेन द्वारा कुकी समुदाय को विदेशी और यहां तक कि अवैध अप्रवासी बताने, उन पर ड्रग्स के कारोबार में संलिप्तता, अफीम की खेती के साथ-साथ वन भूमि पर अतिक्रमण के आरोप पर हाओकिप ने पुष्टि करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री का कहा हुआ सब ‘यह ऑन रिकॉर्ड’ है। उन्होंने जोड़ा कि सिंह ‘पूरे कुकी समुदाय को बदनाम कर रहे हैं।’ हालांकि इसकी वजह के बारे में कई बार पूछने पर भी उन्होंने जवाब नहीं दिया कि मुख्यमंत्री कुकी को क्यों निशाना बना रहे हैं और ऐसा करने में मुख्यमंत्री का मकसद या एजेंडा क्या है। उन्होंने कहा, ‘आपको यह उनसे पूछना चाहिए।’

पिछले कुछ दिनों में मणिपुर में हुई हिंसा को लेकर हाओकिप ने कहा, ‘इंफाल घाटी में सभी कुकी बस्तियों को आग लगा दी गई, मैतेई जिलों की सीमा से लगे सभी कुकी बस्तियों को निशाना बनाया गया है और गांवों को जला दिया गया है… मणिपुर पुलिस कमांडो कुकी के खिलाफ रहे।’

उधर, पूरे मामले में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपनी मौखिक टिप्पणी में कहा कि हाईकोर्ट के पास अनुसूचित जनजाति की लिस्ट में संशोधन का अधिकार नहीं है। ये अधिकार राष्ट्रपति के पास है कि वो किसे अनुसूचित जाति या जनजाति का दर्जा दे। जनचौक न्यूज पोर्टल के अनुसार, मणिपुर हाईकोर्ट के एक एकल न्यायाधीश द्वारा अनुसूचित जनजाति के संबंध में इस एक संविधान विरोधी आदेश देने के कारण पूरा मणिपुर जल उठा और हजारों घर तहस-नहस कर दिए गए। इसमें कम से कम 54 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। यह हकीकत है और 8 मई को सुप्रीम कोर्ट में जब इस मामले की सुनवाई हुई तो यह सत्य उजागर हुआ कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने वर्ष 2000 में ही महाराष्ट्र के मामले में इसी तरह के विवाद का निस्तारण कर दिया था और कहा था कि अनुसूचित जनजाति की सूची में नाम जोड़ने या घटाने का अधिकार किसी अदालत को नहीं है बल्कि यह राष्ट्रपति में निहित है।

अब जब एक ओर मणिपुर और केंद्र सरकार ने दावा किया है कि राज्य सामान्य स्थिति में लौट रहा है वहीं चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को इस तथ्य पर आश्चर्य जताया कि 23 साल पुराने संविधान पीठ के फैसले में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी भी अदालत या राज्य के पास अनुसूचित जनजाति की सूची में जोड़ने, घटाने या संशोधित करने की शक्ति नहीं है। उनका सवाल था कि क्या मणिपुर हाईकोर्ट को अनुसूचित जनजातियों की सूची “दिखाई” नहीं गई थी।

'जनचौक' के अनुसार, चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से कहा कि एक उच्च न्यायालय के पास अनुसूचित जनजाति सूची में बदलाव का निर्देश देने की शक्ति नहीं है। यह एक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति को नामित करने के लिए राष्ट्रपति की शक्ति है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर सवाल उठाए। सुनवाई के दौरान, पीठ ने मैतेई समुदाय के लिए एसटी दर्जे के संबंध में हाईकोर्ट के निर्देश के बारे में कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां भी कीं। हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े को संबोधित करते हुए पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय हैं, जो मानते हैं कि हाईकोर्ट किसी समुदाय को एसटी का दर्जा देने का निर्देश नहीं दे सकता है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि याचिकाकर्ता उन निर्णयों को हाईकोर्ट के संज्ञान में लाने के लिए बाध्य था। मुख्य न्यायाधीश ने हेगड़े से कहा, “आपने हाईकोर्ट को कभी नहीं बताया कि यह शक्ति हाईकोर्ट के पास नहीं है, यह राष्ट्रपति की शक्ति है।”

27 मार्च को मणिपुर उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश खंडपीठ के बाद के दिनों में हिंसक झड़पें और मौतें हुईं, निर्देश दिया गया कि राज्य सरकार “अनुसूचित जनजाति सूची में मैतेई समुदाय को शामिल करने के लिए याचिकाकर्ताओं के मामले पर शीघ्रता से, अधिमानतः इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से चार सप्ताह की अवधि के भीतर इस पर विचार करेगी। खास है कि महाराष्ट्र बनाम मिलिंद मामले में नवंबर 2000 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने व्यवस्था दिया था कि संविधान का अनुच्छेद 342(1) स्पष्ट है। शक्ति पूरी तरह से राष्ट्रपति की है। अनुच्छेद 342 के खंड (1) के तहत जारी अधिसूचना में निर्दिष्ट अनुसूचित जनजातियों की सूची को संशोधित, संशोधित या बदलने के लिए यह राज्य सरकारों या अदालतों या न्यायाधिकरणों या किसी अन्य प्राधिकरण के लिए खुला नहीं है।

संविधान पीठ ने कहा था कि अनुच्छेद 342 के खंड (1) के तहत अनुसूचित जनजातियों को निर्दिष्ट करने वाली अधिसूचना को केवल संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा संशोधित किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, किसी भी जनजाति या जनजातीय समुदाय या किसी जनजाति के हिस्से या समूह को अनुच्छेद 342 के खंड (1) के तहत जारी अनुसूचित जनजातियों की सूची से केवल कानून द्वारा और किसी अन्य प्राधिकरण द्वारा शामिल या बाहर नहीं किया जा सकता है। संविधान पीठ ने कहा था कि अनुसूचित जनजाति के आदेश को “जैसा है वैसा ही पढ़ा जाना चाहिए”। यह कहने की भी अनुमति नहीं है कि एक जनजाति, उप-जनजाति, किसी जनजाति या आदिवासी समुदाय का हिस्सा या समूह अनुसूचित जनजाति के आदेश में उल्लिखित पर्यायवाची है, यदि वे विशेष रूप से इसमें उल्लिखित नहीं हैं। मिलिंद के फैसले में स्थापित कानून को जुलाई 2017 में जस्टिस चंद्रचूड़ (जैसा कि वह तब थे) द्वारा सीएमडी, एफसीआई बनाम जगदीश बलराम बहिरा में सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की बेंच के लिए राष्ट्रपति के आदेश पर ध्यान देने के लिए संदर्भित किया गया था। अनुसूचित जनजातियों के संबंध में अनुच्छेद 342 के तहत हमेशा “अंतिम” था।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने सोमवार को केंद्र सरकार को मणिपुर में हुई ‌हिंसा के पीड़ितों के लिए बनाए गए राहत शिविरों में भोजन और दवाओं की उचित व्यवस्था सुनिश्‍चित करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि विस्थापितों के पुनर्वास और पूजा स्थलों की सुरक्षा के लिए उचित कदम उठाए जाएं। कोर्ट के समक्ष केंद्र सरकार ने बयान दर्ज किया पिछले दो दिनों में मणिपुर राज्य में कोई हिंसा नहीं हुई है और स्थिति सामान्य हो रही है।

खास है कि मैतेई समुदाय को एसटी दर्जा देने के मुद्दे पर पिछले हफ्ते राज्य में दंगे भड़क गए थे। मैतेई के एसटी दर्जे से संबंधित हाईकोर्ट के आदेश के संबंध में एसजी ने कहा कि राज्य सरकार सक्षम फोरम के समक्ष उचित कार्रवाई कर रही है। पीठ ने एसजी से राहत शिविरों की संख्या और उनमें रखे गए लोगों की संख्या के बारे में पूछा। पीठ ने राहत शिविरों में भोजन और दवाओं की व्यवस्था के बारे में भी पूछा। पीठ का दूसरा सवाल उन लोगों के बारे में था जो हिंसा के कारण विस्थापित हुए हैं और उनकी सुचारू वापसी सुनिश्चित करने के लिए किए गए उपायों के बारे में पूछा। इसके अलावा पीठ ने कहा कि पूजा स्थलों की सुरक्षा के लिए कुछ कदम उठाए जाने चाहिए। एसजी ने कहा कि धर्म की परवाह किए बिना हर व्यक्ति की संपत्ति की रक्षा की जाएगी। पीठ ने निर्देश दिया कि वह नियुक्ति की अगली तिथि 17 मई तक इन पहलुओं पर एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करे।

मणिपुर हाईकोर्ट का निर्देश

दरअसल, मणिपुर हाई कोर्ट ने 27 मार्च को राज्य सरकार को ये निर्देश दिया था कि वो मैतेई को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने के लिए अपनी सिफारिश दे। कोर्ट ने राज्य सरकार को चार हफ्ते में इस प्रस्ताव पर विचार कर लेने को कहा था। हालांकि अंतिम फैसला केंद्र का होगा। लेकिन मणिपुर की मौजूदा 34 अनुसूचित जनजातियों ने कोर्ट के इस प्रस्ताव का विरोध किया। राज्य में इन जनजातियों की 41 फीसदी आबादी है और ये पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। कोर्ट के इस निर्देश के बाद तीन मई को चुराचांदपुर में एक ट्राइबल ‘सॉलिडेरिटी रैली’ निकाली गई।

इसके बाद राज्य में हिंसा भड़क उठी। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के मुताबिक़ इस हिंसा में 60 लोग मारे गए हैं। सिंह ने बताया कि 60 ‘बेकसूर’ लोगों की मौत हुई। 231 लोग घायल हुए हैं और 1700 घरों को जला दिया गया है। उन्होंने बताया कि हिंसा भड़काने वाले लोगों का पता करने के लिए एक हाईलेवल कमिटी बनाई जाएगी। साथ ही अपना कर्तव्य निभाने में नाकाम रहे अधिकारियों की भी पहचान की जाएगी।

क्या है मामला

दरअसल, मणिपुर में मैतई समुदाय बहुसंख्यक है। राज्य की आबादी का करीब 65 फीसदी। इस विरोध की सबसे बड़ी वजह बताई जाती है राज्य की आबादी और राजनीति दोनों में मैतेई का प्रभुत्व है। मैतेई समुदाय को ओबीसी और अनुसूचित जाति यानी एससी कैटेगरी में सब कैटेगराइज भी किया गया है और इसके तहत आने वाले लोगों को कैटेगरी के हिसाब से रिजर्वेशन भी मिलता है। कुकी और नागा समुदायों के पास आजादी के बाद से ही आदिवासी का दर्जा है। अब मैतेई समुदाय भी इस दर्जे की मांग कर रहा है जिसका विरोध कुकी और नागा समुदाय के लोग कर रहे हैं। कुकी और नागा समुदाय का कहना है कि मैतेई समुदाय तो बहुसंख्यक समुदाय है उसे ये दर्जा कैसे दिया जा सकता है।

कोर्ट के फैसले के विरोध में ‘ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर’ ने 3 मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ का आयोजित किया था। इसी दौरान चुरचांदपुर जिले के तोरबंग क्षेत्र में हिंसा भड़क गई थी। इसके बाद हिंसा की आग बाकी जिलों में भी फैली। 4 मई को जगह-जगह पर गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया। 5 मई को जब हालात खराब हुए तो वहां पर सेना पहुंची।

किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की प्रक्रिया क्या है

किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने की प्रक्रिया काफी लंबी और पेचीदा है। साल 1999 में इस संबंध में कुछ हद तक प्रक्रिया को स्थापित करने का प्रयास किया गया था। इसके अनुसार किसी राज्य में किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने के लिए सबसे पहली शर्त है कि राज्य सरकार उस समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने की सिफ़ारिश का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजे।

राज्य सरकार का प्रस्ताव जनजातीय कार्य मंत्रालय में पहुंचने के बाद अगर मंत्रालय को लगता है कि प्रस्ताव में उचित सिफ़ारिश की गई है तो फिर इस प्रस्ताव को रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया को भेजा जाता है। यहां से प्रस्ताव अगर अनुमोदित हो जाता है तो फिर यह प्रस्ताव राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग भेजा जाता है। अनुसूचित जनजाति आयोग भी अगर इस प्रस्ताव को सहमति दे देता है तो फिर वहां से किसी समुदायों के अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का यह प्रस्ताव कैबिनेट को भेजा जाता है। अंत में इस प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी के बाद संसद में लाया जाता है। संसद के दोनों सदनों से बिल पास होने के बाद ही राष्ट्रपति की तरफ से किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की अधिसूचना जारी की जाती है।

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