सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों एक मजलिस की तीन तलाक पर अपना अहम फैसला दिया है. बेबाक कलेक्टिव इस मामले में केस लड़ रही महिलाओं के पक्ष में खड़ा था. बेबाक कलेक्टिव की नींव रखने हसीना खान ने रखी है. इससे पहले वे सालों तक आवाज-ए-निस्वां नाम के संगठन के जरिए मुसलमान महिलाओं के हक में काम कर रही थीं. हमने इसी पसमंजर में हसीना खान से बात की. यह बातचीत उनके काम, सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उनकी राय, फैसले के बाद आगे की योजना, मुसमलान महिलाओं की जिंदगी के दूसरे मसायल पर फोकस करती है. यह वीडियो इंटरव्यू है. इसे देखें. सुनें. बेहतर लगे तो साझा करना नहीं भूलें.
इंटरव्यू की कुछ खास बातें हम यहां पेश कर रहे हैं. बकौल हसीना खान,
‘एक मजलिस की तीन तलाक बंद होना, बहुत बड़ी बात है.’
पहली बार महिलाओं का इतना बड़ा समूह कोर्ट गया. यह संघर्ष काफी अहम है. ऐतिहासिक लड़ाई है. ऐतिहासिक जीत है. बेबाक कलेक्टिव का मानना था कि मुसलमान महिलाओं को संविधान के मुताबिक हक मिलना चाहिए. हम यह उस स्तर पर कोर्ट के अंदर बहस को ले जा पाने में कामयाब हुए. हम बहस को शरीअत बनाम गैर शरीअत नहीं बनाना चाहते थे. इस पूरी बहस के पीछे मुसलमान महिलाओं का लम्बा आंदोलन रहा है.
हालांकि, कोर्ट ने इस मामले में सरकार के दखल का रास्ता भी खोला है. हम देखेंगे कि सरकार क्या करती है.
हालांकि कोर्ट के पास बेहतर मौके थे. कोर्ट अगर और कुछ कहता तो शायद आगे के लिए रास्ते खुल जाते. कोर्ट ने अपने को सिर्फ तीन तलाक तक सीमित रखा है. इसीलिए यह फैसला कई मायनों में परेशान करने वाला भी है. कोर्ट के लिए धर्म ही काफी अहम रहा है. कोर्ट अगर निजता के अधिकार की तरह कोई फैसला देता तो शायद यह ऐतिहासिक फैसला होता.
वैसे इसके बाद भी महिलाओं में खुशी है. एक मजलिस के तलाक का खौफ खत्म हुआ है. लोगों को जागरूक करना होगा. महिलाओं को बताना होगा. सरकारी एजेंसियों को इसके बारे में बताना होगा. उन्हें जिम्मेदार बनाना होगा. महिला आयोगों को बताना होगा. सरकार ने मुसलमान महिलाओं के साथ काफी हमदर्दी जतायी है. अब उनकी जिम्मेदारी है कि वे मुसलमान महिलाओं के लिए वे क्या कर रही हैं.
अगर कोई कानून बनाने का प्रस्ताव है तो उसमें हमारा हस्तक्षेप बहुत जरूरी है. हमें जेण्डर समानता की बात करनी होगी.’
हसीना खान से और जिन मुद्दों पर बात हुई, उसके जवाब वीडियो में देखे जा सकते हैं.
इंटरव्यू की कुछ खास बातें हम यहां पेश कर रहे हैं. बकौल हसीना खान,
‘एक मजलिस की तीन तलाक बंद होना, बहुत बड़ी बात है.’
पहली बार महिलाओं का इतना बड़ा समूह कोर्ट गया. यह संघर्ष काफी अहम है. ऐतिहासिक लड़ाई है. ऐतिहासिक जीत है. बेबाक कलेक्टिव का मानना था कि मुसलमान महिलाओं को संविधान के मुताबिक हक मिलना चाहिए. हम यह उस स्तर पर कोर्ट के अंदर बहस को ले जा पाने में कामयाब हुए. हम बहस को शरीअत बनाम गैर शरीअत नहीं बनाना चाहते थे. इस पूरी बहस के पीछे मुसलमान महिलाओं का लम्बा आंदोलन रहा है.
हालांकि, कोर्ट ने इस मामले में सरकार के दखल का रास्ता भी खोला है. हम देखेंगे कि सरकार क्या करती है.
हालांकि कोर्ट के पास बेहतर मौके थे. कोर्ट अगर और कुछ कहता तो शायद आगे के लिए रास्ते खुल जाते. कोर्ट ने अपने को सिर्फ तीन तलाक तक सीमित रखा है. इसीलिए यह फैसला कई मायनों में परेशान करने वाला भी है. कोर्ट के लिए धर्म ही काफी अहम रहा है. कोर्ट अगर निजता के अधिकार की तरह कोई फैसला देता तो शायद यह ऐतिहासिक फैसला होता.
वैसे इसके बाद भी महिलाओं में खुशी है. एक मजलिस के तलाक का खौफ खत्म हुआ है. लोगों को जागरूक करना होगा. महिलाओं को बताना होगा. सरकारी एजेंसियों को इसके बारे में बताना होगा. उन्हें जिम्मेदार बनाना होगा. महिला आयोगों को बताना होगा. सरकार ने मुसलमान महिलाओं के साथ काफी हमदर्दी जतायी है. अब उनकी जिम्मेदारी है कि वे मुसलमान महिलाओं के लिए वे क्या कर रही हैं.
अगर कोई कानून बनाने का प्रस्ताव है तो उसमें हमारा हस्तक्षेप बहुत जरूरी है. हमें जेण्डर समानता की बात करनी होगी.’
हसीना खान से और जिन मुद्दों पर बात हुई, उसके जवाब वीडियो में देखे जा सकते हैं.
- बेबाक कलेक्टिव क्या है? सुप्रीम कोर्ट में एक मजलिस की तलाक, बहुविवाह, हलाला के मुकदमे से जुड़ाव कैसे हुआ?
- मुसलमान महिलाओं के मुद्दे से जुड़ाव कैसे हुआ? उनके लिए यह राह कितनी मुश्किल/कितनी आसान थी? आपने मुसलमान महिलाओं की जिंदगी की हकीकत क्या देखी?
- कभी कोई हमला या चुप कराने की कोशिश का सामना करना पड़ा?
- सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या राय है? मुसलमान महिलाओं के लिए यह फैसला कितना अहम है? महिलाओं की तहरीक के लिहाज से यह फैसला कितना अहम है?
- इस फैसले को अमलीजामा पहनाने के लिए क्या करना चाहिए?
- एक मजलिस की तीन तलाक पर तो फैसला हुआ लेकिन एक से ज्यादा शादी, हलाला या जेण्डर गैरबराबरी के मुददे का क्या होगा? क्या फिर से कोर्ट जाएंगी या कुछ ओर रास्ता है?
- क्या महिला संगठन सरकार को वैकल्पिक कोड या कानून का कोई प्रस्ताव देने जा रहे हैं?