आज लगभग सभी अखबारों में तीन तलाक विधेयक (‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2019’) राज्य सभा में पास हो जाने की खबर लीड है। राज्य सभा में सरकार का बहुमत नहीं होने के बावजूद इस विधेयक के पास हो जाने का कारण यह बताया गया है कि विपक्ष के 20 सांसद मतदान के मौके पर गैरहाजिर रहे। हालांकि, अमर उजाला ने लिखा है कि 50 से ज्यादा सांसद गैरहाजिर रहे। राज्य सभा में सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है। इस समय 245 सदस्य हैं। 233 निर्वाचित और 12 नामांकित। पक्ष विपक्ष मिलाकर कुल 183 वोट पड़े। एक वोट नहीं गिने जाने का भी चक्कर है। संजय सिंह जैसे कुछ लोगों की संख्या घटाकर आप अनुपस्थित सदस्यों का अनुमान लगा सकते हैं। हि्दुस्तान टाइम्स ने पार्टी वार अनुपस्थित सदस्यों की संख्या लिखी है और टेलीग्राफ की खबर में पार्टी की लाचारी बताई गई है।
कुछ अखबारों ने राज्यसभा में विधेयक पास होने का श्रेय भाजपा की प्रबंध क्षमता को भी दिया है। इसमें इंडियन एक्सप्रेस की स्पष्टता या जर्नलिज्म ऑफ करेज का जवाब नहीं है। आप जानते हैं कि इस विधेयक के पक्ष में 99 वोट पड़े और 84 इसके खिलाफ। इस तरह विधेयक पास हो गया। अगर 20 गैरहाजिर सांसद उपस्थित रहते तो स्थिति कुछ और होती पर नहीं रहने से अगर विधेयक पास हो गया है तो उनसे पूछा जाना चाहिए था कि वे क्यों अनुपस्थित थे और अनुपस्थित रहकर क्या उन्होंने विधेयक को राज्य सभा में पास होने और कानून बनाने में सहयोग नहीं किया। विधेयक पास हो गया और कैसे पास हो गया यह खबर तो कल ही सबको पता थी। आज अखबारों में यह नई चीज हो सकती थी। यह भाजपा या सरकार के खिलाफ भी नहीं है। पर किसी अखबार ने ऐसा किया क्या?
अगर नहीं किया तो इसका कारण नालायकी के सिवा और कुछ नहीं है। हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस को मैं इतना नालायक नहीं मानता। पर उसने भाजपा को श्रेय दिया है तो सांसदों से बात जरूर करनी चाहिए थी कि वे अनुपस्थित क्यों हुए? हालांकि, इसके लिए अभी समय है। कभी भी पूछा जा सकता है। मैं इस तथ्य को रेखांकित करने के सिवा और कुछ नहीं कर सकता। इसलिए आज मैं आपको इस महत्वपूर्ण मुद्दे की खास बातें बताता हूं जो अलग-अलग अखबारों में इस खबर की प्रस्तुति में नजर आ रही है। अपनी तरह के इस अकेले और पहले कानून से संबंधित सारी बातें अखबारों को बतानी चाहिए और जहां तक इस कानून की लोकप्रियता, जरूरत और स्वरूप का सवाल है, दैनिक भास्कर ने इस बड़ी सूचना को प्रमुखता से छापा है कि भाजपा के मुख्तार अब्बास नकवी को छोड़ सभी 26 मुस्लिम सांसदों ने इस विधेयक का विरोध किया है। यानी मुसलमानों के लिए कानून बना और 27 में सिर्फ एक (3.70 प्रतिशत) उसका समर्थक है (और यह पार्टी लाइन पर ही होगा, मुस्लिम होने के कारण शायद न हो)। इससे पता चलता है कि मुसलमानों के लिए यह विधेयक कितना अच्छा या बुरा है। इसके बावजूद वाराणसी में भाजपा ने जश्न मनाया जिसकी तस्वीरें अखबारों में छपी है (दैनिक भास्कर, नवोदय टाइम्स)।
इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को सात कॉलम में छापा है और दो अलग खबरों के शीर्षक उपशीर्षक के रूप में हैं। पहली खबर या शीर्षक है, राज्यसभा के विपक्षियों में दरार, वॉकआउट से विधेयक पास हो गया, प्रधानमंत्री ने कहा कि एक मध्यकालीन कुप्रथा को इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया गया है। दूसरी खबर है, कैसे मोदी 2.0 ने विपक्ष को वहां पछाड़ा जहां वह मजबूत थी। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खबर को पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर छापा है और हिन्दुस्तान टाइम्स में चार कॉलम की लीड है। अखबार ने राज्य सभा में सदस्यों की पार्टीवार उपस्थिति को हाईलाइट किया है। आप जानते हैं कि इस तलाक कानून का विरोध पारिवारिक और वैवाहिक मामले को आपराधिक बनाने के लिए भी किया जा रहा था। दैनिक हिन्दुस्तान ने अपनी खबर में इसपर केंद्रीय कानून मंत्री का पक्ष छापा है। दहेज रोधी कानून में भी जेल का प्रावधान: आपराधिक प्रावधान पर कानून मंत्री ने कहा कि शादी और पारिवारिक मामलों में आपराधिक प्रावधान का (यह) पहला मामला नहीं है। कांग्रेस सरकार ने 1956 में हिंदू मैरिज एक्ट में दूसरा विवाह करने पर सात साल जेल का प्रावधान किया था। (पहली पत्नी के रहते, उससे अलग हुए बिना) दूसरी शादी पर सात साल जेल और तलाक देने पर (बिना दिए भागने पर नहीं) तीन साल की जेल।
मुझे नहीं लगता कि दोनों में कोई मुकाबला है। पर मंत्री ने कहा है तो खबर है ही। दरअसल तीन बार तलाक कह कर तलाक देने को संज्ञेय अपराध बना दिया गया है और जाने-अनजाने, धार्मिक कारण से (इसमें पिछड़ापन, अशिक्षा और अज्ञानता शामिल हो सकता है) तलाक के पुराने तरीका उपयोग करना सीधे संज्ञेय अपराध बना दिया गया है और मुस्लिम पत्नी की शिकायत पर पुलिस बिना वारंट आरोपी पति को गिरफ्तार कर सकती है। कहने की जरूरत नहीं है कि पारिवारिक झगड़े की स्थिति में इस कानून का दुरुपयोग किया जा सकेगा और पति के पास बचाव के साधन सीमित हैं और कार्रवाई सख्त। नवभारत टाइम्स ने भी इस खबर को विस्तार में प्रकाशित किया है अपने हिसाब से खास बातें हाईलाइट की हैं पर एक ही मुस्लिम सांसद द्वारा इसका समर्थन किए जाने की बात इनमें नहीं है।
अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ में प्रकाशित खबर के अनुसार विधेयक को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने के पक्ष में 84 वोट पड़े जबकि इसके खिलाफ 100 वोट पड़े। राज्य सभा में एनडीए के 106 सदस्य हैं और विपक्ष के 102 जबकि अन्य संबद्ध हैं। चर्चा शुरू होते ही जनता दल (एकीकृत) वॉक आउट कर गया जबकि एआईएडीएमके ने विधेयक को असंवैधानिक और अवैध कहते हुए चर्चा बीच में ही छोड़ दी। असंबद्ध टीआरएस ने चर्चा में हिस्सा ही नहीं लिया। बसपा और तेलुगू देशम पार्टी विधेयक के खिलाफ हैं और विपक्ष के भाग पर वोटिंग के लिए सदन में मौजूद नहीं थे। विपक्षी एनसीपी के दो मुख्य नेता शरद पवार और प्रभुल पटेल भी मौजूद नहीं थे। असंबद्ध, वाईएसआरसीपी के दो सदस्यों में से एक ने ही विधेयक का विरोध किया और मतदान के लिए मौजूद थे। विपक्षी दलों में से कुछ, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और तृणमूल ने व्हिप जारी किया था और अपने सदस्यों से मौजूद रहने के लिए कहा था पर इनमें से किसी की भी उपस्थिति पूरी नहीं थी।
वैसे तो यह असामान्य नहीं है पर विपक्षी सांसद जानते हैं कि अनुपस्थित रहने पर उनके खिलाफ अनुशासन की कोई कार्रवाई नहीं होगी क्योंकि कोई भी विपक्षी दल सदनकी सदस्यता खोने का जोखिम नहीं उठाएगा। क्योंकि राज्यों की विधानसभाओं में भाजपा के प्रभाव के कारण संभावना है कि सीट भाजपा को चली जाएगी। विपक्ष के दो सांसदों - समाजवादी पार्टी के नीरज शेखर और कांग्रेस के संजय सिंह (अमेठी वाले) के कल ही दल छोड़ने से राज्य सभा में दो रिक्तियां हो गई हैं और यह भाजपा के लिए पहले से ही लाभ की स्थिति है। यह सही है कि तिहरे तलाक को खत्म किया जाना चाहिए और इसपर आम सहमति थी लेकिन इसे अपराध बनाने वाले विधेयक पर मतभेद है। और यह साफ नहीं हुआ कि कौन इसे अपराध बनाने या विधेयक के मौजूदा प्रावधानों से सहमत है। राजनीतिक कारणों से अगर खुलकर इस विधेयक का विरोध करने की हिम्मत नहीं थी तो इसे सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने का स्टैंड लिया जा सकता था और यह कोई फैसला नहीं था। सेलेक्ट कमेटी को इसपर विचार ही करना था पर लोगों ने जिन लोगों ने यह भी नहीं किया उनसे पूछा नहीं गया कि उन्होंने अनुपस्थित रहकर या वॉकआउट कर विधेयक को पास कराने में मदद क्यों की? अखबार ने इस खबर का सही शीर्षक लगाया है,“विपक्ष ने राज्य सभा में एकता को तलाक दिया”।
दैनिक जागरण की खासियत वाराणसी की तस्वीर को तीन कॉलम में छापना है। इसके अलावा, मुस्लिम महिलाओं के लिए अभिशाप, सामाजिक बदलाव की दिशा में इतिहास रच दिया, बाधा पार, ऐतिहासिक विधेयक, सरकार ने दिखाया कुशल सदन प्रबंधन आदि गुणगान हैं और इसलिए मैं खबर पढ़ नहीं पाया। अखबार ने सिंगल कॉलम में एक खबर छापी है, सदन में दूसरी बार टूटा विपक्ष का वर्चस्व। कायदे से अखबारों को तब भी बताना चाहिए था विधेयक को राज्यसभा में पास कराने में किनका योगदान है और इस बारे में सीधे सवाल का जवाब वे क्या देते हैं। इस तरह के प्रश्न आम लोगों के मन में उठते हैं पर वे सांसदों से पूछ नहीं सकते। अखबार यह काम कर सकते हैं पर करते नहीं हैं और जागरण के अनुसार यह दूसरा मौका था जब विपक्षी एकता टूटने का कारण बताया जाना चाहिए था।
इंडियन एक्सप्रेस और दैनिक जागरण के साथ राजस्थान पत्रिका ने भी इस खबर को सात कॉलम में छापा है। जागरण में भाजपा के फ्लोर मैनेजमेंट पर ज्यादा जोर नहीं है पर राजस्थान पत्रिका का शीर्षक है, राज्यसभा में भी विपक्ष का किला (चौकीदार के महल जैसा यह विचित्र प्रयोग है) ध्वस्त। पत्रिका ने अपनी खबरों में एक अलग जानकारी प्रमुखता से दी है, अब .... तलाक के विकल्प क्या हैं। इसके मुताबिक वरिष्ठ पत्रकार और इस्लामी जानकार ने मुमताज आलम रिज्वी ने बताया कि कानून के बनने के बाद सिर्फ इंस्टैंट यानी एक साथ तीन तलाक दिए जाने पर प्रतिबंध लगेगा। तलाक के बाकी तरीके कायम रहेंगे और इनमें एक-एक महीने के अंतराल पर तीन तलाक देने के लिए कोई भी व्यक्ति अभी भी स्वतंत्र होगा। शिया मुसलमानों में एक साथ तीन तलाक नहीं अपनाया जाता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)
कुछ अखबारों ने राज्यसभा में विधेयक पास होने का श्रेय भाजपा की प्रबंध क्षमता को भी दिया है। इसमें इंडियन एक्सप्रेस की स्पष्टता या जर्नलिज्म ऑफ करेज का जवाब नहीं है। आप जानते हैं कि इस विधेयक के पक्ष में 99 वोट पड़े और 84 इसके खिलाफ। इस तरह विधेयक पास हो गया। अगर 20 गैरहाजिर सांसद उपस्थित रहते तो स्थिति कुछ और होती पर नहीं रहने से अगर विधेयक पास हो गया है तो उनसे पूछा जाना चाहिए था कि वे क्यों अनुपस्थित थे और अनुपस्थित रहकर क्या उन्होंने विधेयक को राज्य सभा में पास होने और कानून बनाने में सहयोग नहीं किया। विधेयक पास हो गया और कैसे पास हो गया यह खबर तो कल ही सबको पता थी। आज अखबारों में यह नई चीज हो सकती थी। यह भाजपा या सरकार के खिलाफ भी नहीं है। पर किसी अखबार ने ऐसा किया क्या?
अगर नहीं किया तो इसका कारण नालायकी के सिवा और कुछ नहीं है। हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस को मैं इतना नालायक नहीं मानता। पर उसने भाजपा को श्रेय दिया है तो सांसदों से बात जरूर करनी चाहिए थी कि वे अनुपस्थित क्यों हुए? हालांकि, इसके लिए अभी समय है। कभी भी पूछा जा सकता है। मैं इस तथ्य को रेखांकित करने के सिवा और कुछ नहीं कर सकता। इसलिए आज मैं आपको इस महत्वपूर्ण मुद्दे की खास बातें बताता हूं जो अलग-अलग अखबारों में इस खबर की प्रस्तुति में नजर आ रही है। अपनी तरह के इस अकेले और पहले कानून से संबंधित सारी बातें अखबारों को बतानी चाहिए और जहां तक इस कानून की लोकप्रियता, जरूरत और स्वरूप का सवाल है, दैनिक भास्कर ने इस बड़ी सूचना को प्रमुखता से छापा है कि भाजपा के मुख्तार अब्बास नकवी को छोड़ सभी 26 मुस्लिम सांसदों ने इस विधेयक का विरोध किया है। यानी मुसलमानों के लिए कानून बना और 27 में सिर्फ एक (3.70 प्रतिशत) उसका समर्थक है (और यह पार्टी लाइन पर ही होगा, मुस्लिम होने के कारण शायद न हो)। इससे पता चलता है कि मुसलमानों के लिए यह विधेयक कितना अच्छा या बुरा है। इसके बावजूद वाराणसी में भाजपा ने जश्न मनाया जिसकी तस्वीरें अखबारों में छपी है (दैनिक भास्कर, नवोदय टाइम्स)।
इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को सात कॉलम में छापा है और दो अलग खबरों के शीर्षक उपशीर्षक के रूप में हैं। पहली खबर या शीर्षक है, राज्यसभा के विपक्षियों में दरार, वॉकआउट से विधेयक पास हो गया, प्रधानमंत्री ने कहा कि एक मध्यकालीन कुप्रथा को इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया गया है। दूसरी खबर है, कैसे मोदी 2.0 ने विपक्ष को वहां पछाड़ा जहां वह मजबूत थी। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खबर को पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर छापा है और हिन्दुस्तान टाइम्स में चार कॉलम की लीड है। अखबार ने राज्य सभा में सदस्यों की पार्टीवार उपस्थिति को हाईलाइट किया है। आप जानते हैं कि इस तलाक कानून का विरोध पारिवारिक और वैवाहिक मामले को आपराधिक बनाने के लिए भी किया जा रहा था। दैनिक हिन्दुस्तान ने अपनी खबर में इसपर केंद्रीय कानून मंत्री का पक्ष छापा है। दहेज रोधी कानून में भी जेल का प्रावधान: आपराधिक प्रावधान पर कानून मंत्री ने कहा कि शादी और पारिवारिक मामलों में आपराधिक प्रावधान का (यह) पहला मामला नहीं है। कांग्रेस सरकार ने 1956 में हिंदू मैरिज एक्ट में दूसरा विवाह करने पर सात साल जेल का प्रावधान किया था। (पहली पत्नी के रहते, उससे अलग हुए बिना) दूसरी शादी पर सात साल जेल और तलाक देने पर (बिना दिए भागने पर नहीं) तीन साल की जेल।
मुझे नहीं लगता कि दोनों में कोई मुकाबला है। पर मंत्री ने कहा है तो खबर है ही। दरअसल तीन बार तलाक कह कर तलाक देने को संज्ञेय अपराध बना दिया गया है और जाने-अनजाने, धार्मिक कारण से (इसमें पिछड़ापन, अशिक्षा और अज्ञानता शामिल हो सकता है) तलाक के पुराने तरीका उपयोग करना सीधे संज्ञेय अपराध बना दिया गया है और मुस्लिम पत्नी की शिकायत पर पुलिस बिना वारंट आरोपी पति को गिरफ्तार कर सकती है। कहने की जरूरत नहीं है कि पारिवारिक झगड़े की स्थिति में इस कानून का दुरुपयोग किया जा सकेगा और पति के पास बचाव के साधन सीमित हैं और कार्रवाई सख्त। नवभारत टाइम्स ने भी इस खबर को विस्तार में प्रकाशित किया है अपने हिसाब से खास बातें हाईलाइट की हैं पर एक ही मुस्लिम सांसद द्वारा इसका समर्थन किए जाने की बात इनमें नहीं है।
अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ में प्रकाशित खबर के अनुसार विधेयक को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने के पक्ष में 84 वोट पड़े जबकि इसके खिलाफ 100 वोट पड़े। राज्य सभा में एनडीए के 106 सदस्य हैं और विपक्ष के 102 जबकि अन्य संबद्ध हैं। चर्चा शुरू होते ही जनता दल (एकीकृत) वॉक आउट कर गया जबकि एआईएडीएमके ने विधेयक को असंवैधानिक और अवैध कहते हुए चर्चा बीच में ही छोड़ दी। असंबद्ध टीआरएस ने चर्चा में हिस्सा ही नहीं लिया। बसपा और तेलुगू देशम पार्टी विधेयक के खिलाफ हैं और विपक्ष के भाग पर वोटिंग के लिए सदन में मौजूद नहीं थे। विपक्षी एनसीपी के दो मुख्य नेता शरद पवार और प्रभुल पटेल भी मौजूद नहीं थे। असंबद्ध, वाईएसआरसीपी के दो सदस्यों में से एक ने ही विधेयक का विरोध किया और मतदान के लिए मौजूद थे। विपक्षी दलों में से कुछ, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और तृणमूल ने व्हिप जारी किया था और अपने सदस्यों से मौजूद रहने के लिए कहा था पर इनमें से किसी की भी उपस्थिति पूरी नहीं थी।
वैसे तो यह असामान्य नहीं है पर विपक्षी सांसद जानते हैं कि अनुपस्थित रहने पर उनके खिलाफ अनुशासन की कोई कार्रवाई नहीं होगी क्योंकि कोई भी विपक्षी दल सदनकी सदस्यता खोने का जोखिम नहीं उठाएगा। क्योंकि राज्यों की विधानसभाओं में भाजपा के प्रभाव के कारण संभावना है कि सीट भाजपा को चली जाएगी। विपक्ष के दो सांसदों - समाजवादी पार्टी के नीरज शेखर और कांग्रेस के संजय सिंह (अमेठी वाले) के कल ही दल छोड़ने से राज्य सभा में दो रिक्तियां हो गई हैं और यह भाजपा के लिए पहले से ही लाभ की स्थिति है। यह सही है कि तिहरे तलाक को खत्म किया जाना चाहिए और इसपर आम सहमति थी लेकिन इसे अपराध बनाने वाले विधेयक पर मतभेद है। और यह साफ नहीं हुआ कि कौन इसे अपराध बनाने या विधेयक के मौजूदा प्रावधानों से सहमत है। राजनीतिक कारणों से अगर खुलकर इस विधेयक का विरोध करने की हिम्मत नहीं थी तो इसे सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने का स्टैंड लिया जा सकता था और यह कोई फैसला नहीं था। सेलेक्ट कमेटी को इसपर विचार ही करना था पर लोगों ने जिन लोगों ने यह भी नहीं किया उनसे पूछा नहीं गया कि उन्होंने अनुपस्थित रहकर या वॉकआउट कर विधेयक को पास कराने में मदद क्यों की? अखबार ने इस खबर का सही शीर्षक लगाया है,“विपक्ष ने राज्य सभा में एकता को तलाक दिया”।
दैनिक जागरण की खासियत वाराणसी की तस्वीर को तीन कॉलम में छापना है। इसके अलावा, मुस्लिम महिलाओं के लिए अभिशाप, सामाजिक बदलाव की दिशा में इतिहास रच दिया, बाधा पार, ऐतिहासिक विधेयक, सरकार ने दिखाया कुशल सदन प्रबंधन आदि गुणगान हैं और इसलिए मैं खबर पढ़ नहीं पाया। अखबार ने सिंगल कॉलम में एक खबर छापी है, सदन में दूसरी बार टूटा विपक्ष का वर्चस्व। कायदे से अखबारों को तब भी बताना चाहिए था विधेयक को राज्यसभा में पास कराने में किनका योगदान है और इस बारे में सीधे सवाल का जवाब वे क्या देते हैं। इस तरह के प्रश्न आम लोगों के मन में उठते हैं पर वे सांसदों से पूछ नहीं सकते। अखबार यह काम कर सकते हैं पर करते नहीं हैं और जागरण के अनुसार यह दूसरा मौका था जब विपक्षी एकता टूटने का कारण बताया जाना चाहिए था।
इंडियन एक्सप्रेस और दैनिक जागरण के साथ राजस्थान पत्रिका ने भी इस खबर को सात कॉलम में छापा है। जागरण में भाजपा के फ्लोर मैनेजमेंट पर ज्यादा जोर नहीं है पर राजस्थान पत्रिका का शीर्षक है, राज्यसभा में भी विपक्ष का किला (चौकीदार के महल जैसा यह विचित्र प्रयोग है) ध्वस्त। पत्रिका ने अपनी खबरों में एक अलग जानकारी प्रमुखता से दी है, अब .... तलाक के विकल्प क्या हैं। इसके मुताबिक वरिष्ठ पत्रकार और इस्लामी जानकार ने मुमताज आलम रिज्वी ने बताया कि कानून के बनने के बाद सिर्फ इंस्टैंट यानी एक साथ तीन तलाक दिए जाने पर प्रतिबंध लगेगा। तलाक के बाकी तरीके कायम रहेंगे और इनमें एक-एक महीने के अंतराल पर तीन तलाक देने के लिए कोई भी व्यक्ति अभी भी स्वतंत्र होगा। शिया मुसलमानों में एक साथ तीन तलाक नहीं अपनाया जाता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)