किसान मोर्चा व इंटरनेट बंदी पर ग्लोबल और लोकल हस्तियों में घमासान

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: February 4, 2021
दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में हो रहे किसान आन्दोलन को समर्थन क्या मिला भारत सरकार सहित कई भारतीय हस्तियाँ एकजुटता और आंतरिक मामलों का राग आलापने लगे. दीगर बात यह है कि देश के हजारों लाखों किसानों को 71 दिनों से सड़कों पर लाकर, उन्हें आतंकवादी, खालिस्तानी बताकर, अपने ही देश की जनता पर तानाशाही रवैया अपनाकर, कटीली तार और मजबूत दीवार बनाकर अपने ही देश की राजधानी में प्रवेश करने से रोका जा रहा है. यह लोकतंत्र का अपमान और संवैधानिक अधिकारों की हत्या का परिचायक भी है. 



ग़ौरतलब है कि दिल्ली की सीमाओं पर बैठे लाखों किसानों के साथ भारत सरकार की सख्ती बढती जा रही है. बिजली पानी बंद करने सहित आन्दोलन स्थल पर इंटरनेट बंद करने जैसी अमानवीय हरकतें सरकारी तंत्र द्वारा की गयीं. भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाएं जितनी चाक चौबंद नहीं हैं उतनी मजबूती के साथ कंक्रीट की दीवार, सड़कों पर नुकीली छड़ और कटीली तार की रूकावट से देश के अन्नदाता को अपने ही देश के अन्दर आने की अनुमति नहीं है. 

अब किसानों का यह सवाल ग्लोबल रूप ले चुका है और संयुक्त किसान मोर्चा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसान आन्दोलन को मिल रहे अपार समर्थन को स्वीकार कर इसे गौरव की बात बताया है. उन्होंने कहा है कि “दुनिया की प्रख्यात हस्तियाँ किसानों के प्रति संवेदनशीलता प्रकट कर रही हैं वहीं दूसरी तरफ़ यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत सरकार किसानों के दर्द को समझ नहीं पा रही है और कुछ लोग तो शांतिपूर्ण किसान आन्दोलन कर रहे किसानों को आतंकवादी भी कह रहे हैं.”

किसान आन्दोलन पर भारत सरकार के गृहमंत्री सहित केन्द्रीय मंत्रालय अंतरराष्ट्रीय हस्तियों को जिम्मेदारियों का पाठ पढ़ा रहे हैं. वैश्विक स्तर पर किसान आन्दोलन के समर्थन में पॉप सिंगर रिहाना, अमेरिकी उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस, पर्यावरणविद ग्रेटा थनबर्ग, पूर्व पोर्न स्टार मियां ख़लीफा, समेत तापसी पन्नू, विशाल ददलानी जैसे भारतीय फिल्म हस्तियों ने भी ट्वीट किया है. पॉप सिंगर रिहाना के 10 शब्द के ट्वीट जिसमें उसनें कहा है कि “इस बारे में कोई बात क्यूँ नहीं कर रहा है” ने भारत के गृह मंत्री और फ़िल्मी सितारों को देश की एकता अखंडता को बचाने की जिम्मेदारी दे डाली. भारत के विदेश मंत्रालय द्वारा कहा गया है कि सोशल मीडिया पर बड़ी हस्तियों को जिम्मेदारीपूर्वक व्यवहार करनी चाहिए. 

अमेरिकी उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस अमेरिकी और भारतीय लोकतंत्र में हो रहे लगातार हमले को जोड़ कर देखती हैं. मीना हैरिस ने लिखा है कि “यह कोई संयोग नहीं है कि एक महीने से भी कम समय में दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र पर हमला हुआ है और अब हम सबसे बड़ी आबादी वाले लोकतंत्र पर हमले होते देख रहे हैं. यह एक दुसरे से जुड़ा हुआ है. हम सभी को भारत में इंटरनेट शटडाउन और किसान प्रदर्शनकारियों पर सुरक्षा बालों की हिंसा को लेकर नाराजगी जतानी चाहिए”. मीना हैरिस ने अमेरिका के कैपिटल हिल में हुई हिंसा और भारत में किसान आन्दोलन का जिक्र करते हुए भविष्य की चेतावनी के साथ कहा कि दुनिया में हर जगह पर लोकतंत्र को ख़तरा है. 

उन्होंने एक अलग ट्वीट करके कहा कि “युद्धप्रिय राष्ट्रवाद अमेरिकी राजनीति में एक प्रबल ताक़त है जैसा की भारत में देखा जा रहा है इसको तभी रोका जा सकता है अगर लोग इस हक़ीकत को लेकर जागरूक हो जाएँ कि फ़ासीवादी तानाशाह कहीं जाने वाले नहीं हैं”. 



इन अंतरराष्ट्रीय हस्तियों को किसानों के मुद्दे पर ट्वीट करने के बाद भारत से समर्थन के साथ-साथ भारी विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है. विरोधियों द्वारा इसे आंतरिक मामला बता कर बाहरी लोगों को हस्तक्षेप न करने तक की सलाह दे दी गयी है. इंसान के सम्मानपूर्वक जिन्दगी जीने को लेकर कर रहे आन्दोलन को दुनिया भर से नैतिक समर्थन दिया जाता रहा है. यह कोई नई बात नहीं है. दुनिया भर के सजग, सचेत व् जन सरोकार को समझने वाले लोगों द्वारा किसान आन्दोलन को समर्थन दिया जा रहा है जिसका स्वागत होना चाहिए. विदेशी हस्तियों से मिल रहे समर्थन से देश की संप्रभुता को कोई चुनौती नहीं है और न ही सरकार के ख़िलाफ़ कोई विदेशी हस्तक्षेप है. 

दुनिया भर के किसी भी देश में हो रहे नागरिक अधिकारों के हनन या मानवाधिकारों के उलंघन पर सभी लोकतान्त्रिक देशों से समय-समय पर आवाजें उठाई जाती रही है. अमेरिका द्वारा साठ-सत्तर के दशक में वियतनाम पर किए गए हमले के बाद भारत में वियतनाम के पक्ष में जगह-जगह से आवाजें उठाई गईं. पूर्वी पकिस्तान के नाम से जाना जाने वाले देश बांग्लादेश में 1970-71 में जनता के अधिकारों और उनकी जीवन रक्षा के लिए भारत सरकार द्वारा सभी जरुरी कदम उठाए गए थे. अमेरिका में हाल ही में हुए ब्लैक लाइव्स मैटर्स आन्दोलन, फ़्रांस में इस्लामी उग्रवादी तत्वों द्वारा चार्ली हेब्दो द्वारा बनाए गए कार्टून के बाद भड़काई गई हिंसा का विरोध भी दुनिया के लगभग सभी लोकतान्त्रिक देशों के द्वारा किया गया. इसी प्रकार चीन के थ्येन एन मेंन स्क्वायर पर हजारों छात्रों को मार देने के विरोध में आवाजें उठी लेकिन चीन अमेरिका या फ़्रांस ने इसे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं बताया. ऐसे हजारों उदाहरण दुनिया भर में देखे जा सकते हैं, जहाँ मानव अधिकारों की बात आती है वहां तमाम लोकतान्त्रिक देशों से एकजुटता और मजबूती के साथ समर्थन में आवाजें उठती रही है. 

ग़ौर करने की बात यह है कि भारतीय संसद में पारित किए गए तीन कृषि कानूनों का विरोध दुनिया के किसी भी देश से नहीं हो रहा है. किसानों द्वारा किए जा रहे कृषि कानून के शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन को सरकार द्वारा अलोकतांत्रिक व् अमानवीय तरीके से कुचलने की कोशिश की जा रही है. शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर सरकार द्वारा किए जा रहे उत्पीडन व् नागरिक अधिकारों के हनन के ख़िलाफ़ यह वैश्विक एकजुटता है. 

सरकार किसानों को वार्ता, अदालत और संशोधन के जाल में फंसाकर प्रताड़ित कर रही है. इससे जनता का अविश्वास दिन-प्रतिदिन सरकार व् उनके फ़ैसलों की तरफ़ गहराता जा रहा है. सरकार को किसानों से वार्ता करके शीघ्र ही किसी तार्किक समाधान पर पहुंचना चाहिए. तेज़ी से ग्लोबल होते इस मामले को महज़ अतार्किक बयानबाजी से नहीं रोका जा सकता है इससे महज़ देश की छवि ख़राब होगी जिसे सँभालने की जरुरत है.

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