'तुझसे भी दिलफरेब हैं गम रोज़गार के'

Written by Girish Malviya | Published on: October 9, 2018
आपको याद होगा जब 2014 में मोदीजी अपनी चुनावी सभाओं में रोजगार के मुद्दे को बहुत जोर शोर से उठाया करते थे और पूछते थे कि मनमोहन सिंह जवाब दें कि कितने रोजगार अर्थव्यवस्था में पैदा हुए हैं आज वो सवाल बूमरैंग की भांति पलट कर उनकी तरफ ही आ रहा है.



सरकार की हिम्मत नही पड़ रही है कि वो उन रोजगार के तिमाही आंकड़ों की घोषणा कर दे जिन्हें पहले वह आसानी से जारी कर दिया करती थी लेकिन अन्य संस्थाओं ने इस पर काम किया है, अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सस्टेनेबल इम्प्लॉयमेंट ने जो हालिया रिपोर्ट जारी की है,  उसके मुताबिक, 2015 से पहले तीन साल के दौरान लगभग 70 लाख नौकरियां खत्म हो गई है, देश के 60% बेरोजगार 15-25 साल आयु वर्ग के हैं, जिनके पास छह महीने से कोई रोजगार नहीं है. इस वर्ग में 2015 में बेरोजगारी की दर 5% थी, जो कि बीते 20 साल में सबसे ज्यादा है. रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान करीब ढाई करोड़ लोग ऐसे थे, जो छह महीने से नौकरी की तलाश में थे. इनमें से 90 लाख लोग ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और उससे ऊपर की शिक्षा हासिल किए हुए थे.

खास तौर पर शिक्षित लोगो की बेरोजगारी का आंकड़े आश्चर्य में डाल देते है आप कह सकते हैं कि यह आंकड़े थोड़े पुराने है लेकिन आज कुछ बड़ी भर्तियां के दौरान जो आंकड़े आ रहे हैं वह हैरतअंगेज हैं. रेलवे भर्ती बोर्ड ने करीब 1.9 लाख पद भरने के लिए परीक्षाएं आयोजित कीं, तो 4.25 करोड़ से अधिक आवेदन आए. ग्रुप डी पदों के लिए पीएच.डी. धारियों ने आवेदन किया, उत्तर प्रदेश में 62 पुलिस मैसेंजर पदों के लिए 93,000 से अधिक उम्मीदवार थे, जबकि राजस्थान में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के मात्र पांच पदों के लिए 23,000 से ज्यादा उम्मीदवार थे. सितंबर 2015 में, चपरासी के 368 पदों के लिए 23 लाख से अधिक आवेदन आए थे, जिनमें से 250 से अधिक डॉक्टरेट और करीब 25,000 स्नातकोत्तर थे. छत्तीसगढ़ में आर्थिक और सांख्यिकी निदेशालय को अगस्त, 2015 में चपरासी के 30 पदों के लिए 75,000 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए.

इसका नतीजा यह हुआ है कि एजुकेशन लोन में एनपीए बढ़ा है. 2016-17 में एजुकेशन लोन का 7.67 प्रतिशत लोन डूब गया था. इससे दो साल पहले यह 5.7 फीसदी था. बच्चों ने महंगे कर्ज लेकर पढ़ाई की है फिर नौकरी नहीं मिली तो कर्ज चुकाने की क्षमता नहीं है.

नोटबंदी के दौरान ही करीब 35 लाख नौकरियां खत्म हुईं थीं. एसएमई सेक्टर में 35% से 50% तक नौकरियां घटीं हैं.

तीन चार दिनों से जारी गुजरात से भगाए जा रहे उत्तर भारतीयों के पीछे भी गुजरात के स्थानीय लोगों की बेरोजगारी मुद्दा अहम है लेकिन इस बात को कोई मानना नही चाहता.

कुल मिलाकर कहा जाए तो शिक्षित युवाओं की बेरोजगारी दर अब बेहद खतरनाक स्तर है लेकिन इन लोगो को भावनात्मक मुद्दों की तरफ धकेल कर सत्ताधारी दल सिर्फ अपना उल्लू सीधा कर रहा है.

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