गांधी जयंती: आज वो गांधी के साथ खड़े होकर कल से गोडसे समर्थकों के साथ नजर आएंगे

Written by गिरीश मालवीय | Published on: October 2, 2019
महात्मा गांधी की 150वीं जयंती स्वच्छ भारत दिवस के तौर पर मनाई जा रही है. इस अवसर पर राष्ट्रपिता की धरती से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित करेंगे. लेकिन मोदी जी अपनी पार्टी के नेताओं पर रोक नही लगाएंगे जो सरेआम मुँह से शौच करते दिखाई देते हैं...



आज दिन भर मोदी जी गाँधी इतने महान हैं, गाँधी तो महात्मा हैं जैसी बातें करेंगे और कल से फिर वही गोड़से के समर्थकों के साथ खड़े हो जायेंगे !

क्या यह सच नही है कि कई बीजेपी नेता खुलकर गोडसे के पक्ष में खड़े होते हैं. याद कीजिए भोपाल की सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने चुनाव प्रचार के दौरान गाँधी के हत्यारे के बारे में कहा था कि गोडसे देशभक्त थे, देशभक्त हैं और देशभक्त रहेंगे...

दरअसल सच तो यह है कि बीजेपी के कई नेता गोडसे के प्रति अपने प्रेम को दबा नहीं पाते .......बीजेपी के सांसद साक्षी महाराज ने मोदी सरकार बनने के कुछ ही महीने बाद संसद भवन के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए कहा था कि अगर गाँधी देशभक्त थे तो गोडसे भी देशभक्त थे...

बीजेपी सरकार में मंत्री अनिल विज ने कहा था कि अभी गाँधी को खादी ग्रामोद्योग के कैलेंडर से हटाया गया है, धीरे धीरे करेंसी नोट से भी हटा दिया जाएगा...

मध्य प्रदेश के बीजेपी के प्रवक्ता अनिल सौमित्र ने नाथूराम गोडसे-महात्मा गांधी विवाद को लेकर बयान देते हुए महात्मा गांधी को पाकिस्तान का राष्ट्रपिता बताया था और भी सेकड़ो छोटे मोटे उदाहरण मिल जाएंगे...

महात्मा गांधी का साफ मानना था कि "धर्म एक निजी विषय है, जिसका राजनीति में कोई स्थान नहीं होना चाहिए...

अमित शाह जो देश के गृहमंत्री है वह कह रहे हैं कि देश मे धर्म के आधार पर नागरिकता दी जाएगी NRC के नाम पर नागरिकता संशोधन विधेयक पास करवाया जाएगा जिसमे केवल मुस्लिमों को छोड़कर बाकी धर्म के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी...

जबकि हरिजन में गांधी जी ने लिखा, ''देश जितना हिंदुओं का है उतना ही पारसियों, यहूदियों, हिंदुस्तानी ईसाइयों, मुसलमानों और दूसरे गैर-हिंदुओं का भी है. आज़ाद हिंदुस्तान में राज हिंदुओं का नहीं, बल्कि हिंदुस्तानियों का होगा, और वह किसी धार्मिक पंथ या संप्रदाय के बहुमत पर नहीं, बिना किसी धार्मिक भेदभाव के निर्वाचित समूची जनता के प्रतिनिधियों पर आधारित होगा."...

महात्मा गांधी ने एक बार कहा था, ‘मैं सनातनी हिंदू हूं. इसलिए मैं मुसलमान, ईसाई, बौद्ध हूं. इसी विचार को समन्वयवादी अध्यात्म-विज्ञानी विनोबा ने ऐसे कहा था - 'मैं हिंदू हूं' यह कहना सही है, लेकिन 'मैं मुसलमान नहीं हूं' यह कहना गलत है. मैं हिंदुस्तान में रहता हूं, यह सही है. तो भी इसका अर्थ यह नहीं हो सकता कि 'मैं तुर्किस्तान में नहीं रहता'. मैं जिस जगत में रहता हूं, तुर्किस्तान भी उसी का एक अंग है. इसलिए मैं तुर्किस्तान में भी रहता हूं. लेकिन मेरी जिम्मेदारी उठाने की शक्ति अल्प है, इसलिए मैं अपने आप को हिंदुस्तानी कहता हूं, केवल इतनी सी बात है. क्योंकि वैसे देखा जाये तो मैं हिंदुस्तान में भी कहां रहता हूं? हिंदुस्तान के किसी एक प्रांत के, किसी एक गांव में, किसी एक घर में, किसी एक शरीर के छोटे से हृदय में या कहो कि 'स्व' में रहता हूं. इसका अर्थ यह है कि मनुष्य की मर्यादित शक्ति के अनुसार वह अपने लिए जो धर्म स्वीकार करता है, उस धर्म का पालन करते हुए उसमें दूसरे धर्मों के लिए भी गुंजाइश रखने की सहिष्णुता होनी चाहिए. उसे दर्शनकारों ने 'समन्वय' कहा है...

गांधी जी ने कहा है, "मुझे हिंदू होने का गर्व अवश्य है लेकिन मेरा हिंदू धर्म न तो असहिष्णु है और न बहिष्कारवादी. हिंदू धर्म की विशिष्टता, जैसा मैंने उसे समझा है, यह है कि उसने सब धर्मों की उत्तम बातों को आत्मसात कर लिया है' इसका साफ मतलब है कि महात्मा गांधी एक ऐसे हिन्दुत्व में विश्वास रखते थे जो बराबरी की बात करता है, जो प्रेम की बात करता है, जो समानता की बात करता है. उनका हिन्दुत्व असहिष्णु और बहिष्कारवादी नहीं था.

लेकिन अब कहा का प्रेम समानता और समन्वय!.. अब तो 'मुँह में राम और बगल में छुरी' रखने वाले लोग सत्तासीन है...

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