इस बात का आश्चर्य है कि मीडिया गुजरात मे बड़े पैमाने पर यूपी बिहार के लोगो पर हुए हमले की घटनाओं को मोब लिंचिंग से क्यो नही जोड़ रहा है, साफ दिख रहा है कि मीडिया गुजरात सरकार को कटघरे में खड़ा करने से डर रहा है, यही घटनाएं यदि किसी गैर बीजेपी शासित राज्य में हुई होती तो मीडिया के जलवे देखने लायक होते, जंगलराज , गुंडाराज जैसी सुर्खियां बनाई जा रही होती.
सालों से गुजरात में रह रहे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के यह लोग भीड़ के डर से भाग रहे हैं, गांधीनगर, अहमदाबाद, सबरकांठा, पाटन और मेहसाणा जैसे संपन्न जिले में यह घटनाएं हो रही हैं, यह गुस्साई भीड़ 14 महीने की बच्ची से दुष्कर्म के बाद, 'गैर-गुजरातियों' पर हमले कर रही है, गुजरात के कुल 7 जिलों में यह हिंसा हो रही रही है आठ हजार से ज्यादा लोग यहाँ से पलायन कर चुके है.
आपको याद होगा कि कुछ दिनों पहले अमित शाह राजस्थान के एक सोशल मीडिया कार्यकर्ता सम्मेलन में जिस तरह का बयान देते हैं कि 'झूठ हो या सच बस उसे वायरल कर दो' लगभग उसी तरह से इस घटना से जुड़ी खबर फेसबुक और व्हाट्सएप के जरिए जंगल में आग की तरह फैली हैं. दरअसल अफवाह फैलाना भारत का नया राजनीतिक उद्योग है. राजनीतिक दल का कार्यकर्ता अब इस अफवाह को फैलाने वाला वेंडर बन गया है ओर यही वेंडर भीड़ को भड़का रहा है.
इनके बयानों से प्रभावित भीड़ बहुसंख्यक लोकतंत्र के एक हिस्से के तौर पर दिखती है जहां वह ख़ुद ही क़ानून का काम करती है, खाने से लेकर पहनने तक सब पर उसका नियंत्रण होता, आउटसाइडर पर हमला करने को वह अपना पहला हक समझते है.
जब आप कहते हैं हमे यहाँ से घुसपैठिया को भगाना होगा हमे शरणार्थियों को भगाना होगा तो जो संदेश एक आम आदमी तक जाता है वह यही संदेश है, हम सब कही न कही शरणार्थी भी है और घुसपैठिये भी, भारत के पिछड़े राज्यों से आने वाले लोग जो रोजगार की तलाश में सम्पन्न राज्यों का रुख कर लेते है उन सम्पन्न राज्य के निवासियों की नजर में हम घुसपैठिया ओर शरणार्थी की ही हैसियत रखते हैं.
यह घटना उसी माहौल का परिणाम है जहां बात बात में आप पाकिस्तान चले जाने की बात उछाल देते हैं, NRC के मुद्दे देश मे तूफ़ान खड़ा कर देते हैं, ओर मोब लिंचिंग करने वाले आरोपियों को मालाए पहनाकर केन्द्रीय मंत्री स्वागत तक कर देते हैं, आप बबुल का पेड़ बो रहे हैं तो उसमें से आम नही निकलेंगे बबूल के कांटे ही आपको छलनी करेंगे, यह जो गुजरात मॉडल है न वह यही मॉडल है.
सालों से गुजरात में रह रहे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के यह लोग भीड़ के डर से भाग रहे हैं, गांधीनगर, अहमदाबाद, सबरकांठा, पाटन और मेहसाणा जैसे संपन्न जिले में यह घटनाएं हो रही हैं, यह गुस्साई भीड़ 14 महीने की बच्ची से दुष्कर्म के बाद, 'गैर-गुजरातियों' पर हमले कर रही है, गुजरात के कुल 7 जिलों में यह हिंसा हो रही रही है आठ हजार से ज्यादा लोग यहाँ से पलायन कर चुके है.
आपको याद होगा कि कुछ दिनों पहले अमित शाह राजस्थान के एक सोशल मीडिया कार्यकर्ता सम्मेलन में जिस तरह का बयान देते हैं कि 'झूठ हो या सच बस उसे वायरल कर दो' लगभग उसी तरह से इस घटना से जुड़ी खबर फेसबुक और व्हाट्सएप के जरिए जंगल में आग की तरह फैली हैं. दरअसल अफवाह फैलाना भारत का नया राजनीतिक उद्योग है. राजनीतिक दल का कार्यकर्ता अब इस अफवाह को फैलाने वाला वेंडर बन गया है ओर यही वेंडर भीड़ को भड़का रहा है.
इनके बयानों से प्रभावित भीड़ बहुसंख्यक लोकतंत्र के एक हिस्से के तौर पर दिखती है जहां वह ख़ुद ही क़ानून का काम करती है, खाने से लेकर पहनने तक सब पर उसका नियंत्रण होता, आउटसाइडर पर हमला करने को वह अपना पहला हक समझते है.
जब आप कहते हैं हमे यहाँ से घुसपैठिया को भगाना होगा हमे शरणार्थियों को भगाना होगा तो जो संदेश एक आम आदमी तक जाता है वह यही संदेश है, हम सब कही न कही शरणार्थी भी है और घुसपैठिये भी, भारत के पिछड़े राज्यों से आने वाले लोग जो रोजगार की तलाश में सम्पन्न राज्यों का रुख कर लेते है उन सम्पन्न राज्य के निवासियों की नजर में हम घुसपैठिया ओर शरणार्थी की ही हैसियत रखते हैं.
यह घटना उसी माहौल का परिणाम है जहां बात बात में आप पाकिस्तान चले जाने की बात उछाल देते हैं, NRC के मुद्दे देश मे तूफ़ान खड़ा कर देते हैं, ओर मोब लिंचिंग करने वाले आरोपियों को मालाए पहनाकर केन्द्रीय मंत्री स्वागत तक कर देते हैं, आप बबुल का पेड़ बो रहे हैं तो उसमें से आम नही निकलेंगे बबूल के कांटे ही आपको छलनी करेंगे, यह जो गुजरात मॉडल है न वह यही मॉडल है.