संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत प्रकाशित होने वाली मैगजीन ‘अंतिम जन’ को इस बार विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) को समर्पित किया गया है.
अंतिम जन को संस्कृति मंत्रालय के अधीन काम करने वाली गांधी स्मृति और दर्शन स्मृति (GSDS) प्रकाशित करते हैं. जिसके चेयरपर्सन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. इस मैगजीन में सावरकर की तुलना महात्मा गांधी से भी की गई है. इसमें कहा गया है, ‘स्वतंत्रता आंदोलन में उनका सम्मान महात्मा गांधी से कम नहीं है. अंतिम जन के ताजा अंक में सावरकर की बराबरी गाँधी से करने की कोशिश हुई है. यह और बात है कि सावरकर हिंदुत्व दर्शन के सूत्रधार और वर्तमान कट्टर हिंदूवादी नेताओं के हीरो रहे हैं वहीं, गाँधी सर्वधर्म समभाव और धार्मिक सहिष्णुता में विश्वास करने वाले महापुरुष रहे हैं. दोनों की तुलना सावरकर को स्वतंत्रता सेनानी स्थापित करने की तैयारी है. गांधी मेमोरियल की पत्रिका द्वारा सावरकर पर विशेषांक निकलना गाँधी की तौहीन है. महात्मा गांधी के परपोते तुषार गाँधी का कहना है, “सरकार की यह नीति गांधीवादी विचारधारा को भ्रष्ट करने की सुनियोजित रणनीति है.”
इंडियन एक्सप्रेस ने इसे लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. इसके मुताबिक, जीएसडीएस के उपाध्यक्ष और बीजेपी नेता विजय गोयल ने अंक की प्रस्तावना में सावरकर को महान देशभक्त बताया है. उन्होंने इसमें खेद जताते हुए लिखा है कि जिन लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में एक दिन भी जेल में नहीं बिताया और समाज में कोई योगदान नहीं दिया, वे सावरकर जैसे देश भक्तों की आलोचना करते हैं. सावरकर का इतिहास में स्थान और स्वतंत्रता आंदोलन में उनका सम्मान महात्मा गांधी से कम नहीं है.
गोयल ने लिखा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनके योगदान के बावजूद सावरकर को कई वर्षों तक स्वतंत्रता के इतिहास में उचित स्थान नहीं मिला. जीएसडीएस के अधिकारियों के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया है कि 28 मई को सावरकर की जयंती है. इसे देखते हुए जून का अंक सावरकर पर समर्पित किया गया है. जीएसडीएस स्वतंत्रता के 75 साल के उपलक्ष्य में पत्रिका के आगामी अंकों को स्वतंत्रता सेनानियों पर समर्पित करना जारी रखेगी.
क्या है जीएसडीएस?
गाँधी स्मृति और दर्शन समिति (जीएसडीएस) की स्थापना 1984 में हुई थी जिसका मकसद महात्मा गाँधी के जीवन उनके विचार और उद्देश्यों को अलग-अलग सामाजिक, शैक्षिक व् सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिये प्रचारित करना है. गांधीवादियों का मनोनीत निकाय और विभिन्न सरकारी विभागों के प्रतिनिधि इसकी गतिविधियों का मार्गदर्शन करते हैं. मैगजीन का ताजा अंक 68 पन्नों का है. लगभग एक तिहाई अंक हिंदुत्व विचारक को समर्पित है. इसमें सावरकर पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, मराठी रंगमंच और फिल्म लेखक श्रीरंग गोडबोले, राजनीतिक टिप्पणीकार उमेश चतुर्वेदी और लेखक कन्हैया त्रिपाठी सहित कई नामचीन हस्तियों के लेख हैं. वाजपेयी का निबंध सावरकर को 'व्यक्तित्व नहीं बल्कि एक विचार' बताता है. यह कहता है कि सावरकर ने गांधी से पहले 'हरिजन' समुदाय के लोगों के उत्थान की बात की थी. गोडबोले ने सावरकर और गांधी की हत्या के मुकदमे (वीर सावरकर और महात्मा गांधी हत्या अभियोग) के बारे में लिखा है. लेखक मधुसूदन चेरेकर ने गांधी और सावरकर के बीच संबंधों के बारे में लिखा.
सावरकर एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कालापानी की सजा सुनाई गयी थी. जेल से रिहाई के लिए सावरकर द्वारा अंग्रेजी हुकूमत को 6 बार माफीनामा भेज कर याचिका की गयी जो स्वतंत्रता सेनानी और देश के लिए कुर्बान होने वाले लोगों के लिए शर्मनाक कार्य था. कायरता की इस मूरत को क्रन्तिकारी बताने की तैयारी हो चुकी है. आज कट्टर हिंदूवादी नेता और एक बड़ा वर्ग सावरकर द्वारा लिखे गए माफीनामा को दया याचिका नाम देते हैं और इस हरकत को रणनीति का हिस्सा बताते हैं.
सावरकर का नाम महात्मा गांधी की हत्या में भी आया था. वह जेल भी गए लेकिन, 1949 में वह बरी हो गए थे. अब बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) सावरकर को लेकर आक्रामक हैं. वे वामपंथी इतिहासकारों पर सावरकर के चरित्र हनन का आरोप लगाते रहे हैं.
सालों से चल रही है गाँधी व सावरकर को बराबर करने की तैयारी
विनायक दामोदर सावरकर और कट्टर हिंदुत्व की राजनीति के सूत्रधार सावरकर को महात्मा गाँधी के बराबर खड़े करने की तैयारी वर्षों से चल रही थी जो अब सामने आना शुरू हो चुका है. साल 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी उस समय सावरकर को भारत रत्न देने की मांग की गयी थी जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन ने ठुकरा दिया था. हाल में एक पुस्तक विमोचन में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने ऐलान किया था कि “सावरकर युग आ चुका है. इतिहास में सावकर के बलिदान पर शायद ही किसी को शक हो. लेकिन, हिंदुत्ववादी विचारधारा के कारण वह एक बड़े तबके के लिए अछूत रहे हैं. देश के बदले माहौल में बीजेपी इस धारणा को बदलना चाहती है. पार्टी सावरकर को वह सम्मान दिलाना चाहती है जिसके वह असल में हकदार हैं. इसकी कोशिश वह करती रही है.” आज नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में है. बीजेपी ने 2020 के महाराष्ट्रब विधानसभा चुनाव में भी सावरकर को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने का वादा किया था.
‘गाँधी और सावरकर’ नामक पुस्तक के लेखक डॉ. राकेश कुमार आर्य के अनुसार “समय ने सिद्ध किया है कि गांधी जी का सत्यमेव जयते तभी संभव है जब सावरकर के शस्त्रमेव जयते को प्राथमिकता दी जाएगी. बुद्ध तभी उपयोगी हो सकते हैं जब अपने सम्मान के लिए युद्ध की परिकल्पना को भी आवश्यक माना जाएगा. सत्याग्रह भी तभी सफल होगा जब उसके साथ सावरकर का शस्त्रग्रह जुड़ जाएगा. गाँधी जी सत्याग्रह की बात करते रहे, बुद्ध की बात करते रहे पर सावरकर सत्यमेव जयते से आगे बढ़ कर बुद्ध की रक्षार्थ युद्ध को और सत्याग्रह से अधिक शस्त्रग्रह को उपयोगी मानते रहे. इन दोनों महापुरुषों में ये ही एक मौलिक अंतर था.” डॉ. राकेश कुमार आर्य को संस्कृति मंत्रालय समेत कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है. इनके शोध को वर्तमान सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.
आहिस्ता आहिस्ता सरकारी दस्तावेजों में बदलाव और ऐतिहासिक शोध से छेड़खानी भविष्य के भारत की तस्वीर को बदल रहा है. इतिहास का पुनर्लेखन और नए अतार्किक शोध को बढ़ावा देकर देश भर में भ्रम की स्थिति को गहराया जा रहा है जिससे पहले लिखा गया इतिहास सवालों के घेरे में बना रहे. राजनीतिक एजेंडे को साधने के लिए ऐतिहासिक बदलाव देश के भविष्य पर आमूल चूल प्रभाव डाल सकता है.
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इंडियन एक्सप्रेस ने इसे लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. इसके मुताबिक, जीएसडीएस के उपाध्यक्ष और बीजेपी नेता विजय गोयल ने अंक की प्रस्तावना में सावरकर को महान देशभक्त बताया है. उन्होंने इसमें खेद जताते हुए लिखा है कि जिन लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में एक दिन भी जेल में नहीं बिताया और समाज में कोई योगदान नहीं दिया, वे सावरकर जैसे देश भक्तों की आलोचना करते हैं. सावरकर का इतिहास में स्थान और स्वतंत्रता आंदोलन में उनका सम्मान महात्मा गांधी से कम नहीं है.
गोयल ने लिखा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनके योगदान के बावजूद सावरकर को कई वर्षों तक स्वतंत्रता के इतिहास में उचित स्थान नहीं मिला. जीएसडीएस के अधिकारियों के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया है कि 28 मई को सावरकर की जयंती है. इसे देखते हुए जून का अंक सावरकर पर समर्पित किया गया है. जीएसडीएस स्वतंत्रता के 75 साल के उपलक्ष्य में पत्रिका के आगामी अंकों को स्वतंत्रता सेनानियों पर समर्पित करना जारी रखेगी.
क्या है जीएसडीएस?
गाँधी स्मृति और दर्शन समिति (जीएसडीएस) की स्थापना 1984 में हुई थी जिसका मकसद महात्मा गाँधी के जीवन उनके विचार और उद्देश्यों को अलग-अलग सामाजिक, शैक्षिक व् सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिये प्रचारित करना है. गांधीवादियों का मनोनीत निकाय और विभिन्न सरकारी विभागों के प्रतिनिधि इसकी गतिविधियों का मार्गदर्शन करते हैं. मैगजीन का ताजा अंक 68 पन्नों का है. लगभग एक तिहाई अंक हिंदुत्व विचारक को समर्पित है. इसमें सावरकर पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, मराठी रंगमंच और फिल्म लेखक श्रीरंग गोडबोले, राजनीतिक टिप्पणीकार उमेश चतुर्वेदी और लेखक कन्हैया त्रिपाठी सहित कई नामचीन हस्तियों के लेख हैं. वाजपेयी का निबंध सावरकर को 'व्यक्तित्व नहीं बल्कि एक विचार' बताता है. यह कहता है कि सावरकर ने गांधी से पहले 'हरिजन' समुदाय के लोगों के उत्थान की बात की थी. गोडबोले ने सावरकर और गांधी की हत्या के मुकदमे (वीर सावरकर और महात्मा गांधी हत्या अभियोग) के बारे में लिखा है. लेखक मधुसूदन चेरेकर ने गांधी और सावरकर के बीच संबंधों के बारे में लिखा.
सावरकर एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कालापानी की सजा सुनाई गयी थी. जेल से रिहाई के लिए सावरकर द्वारा अंग्रेजी हुकूमत को 6 बार माफीनामा भेज कर याचिका की गयी जो स्वतंत्रता सेनानी और देश के लिए कुर्बान होने वाले लोगों के लिए शर्मनाक कार्य था. कायरता की इस मूरत को क्रन्तिकारी बताने की तैयारी हो चुकी है. आज कट्टर हिंदूवादी नेता और एक बड़ा वर्ग सावरकर द्वारा लिखे गए माफीनामा को दया याचिका नाम देते हैं और इस हरकत को रणनीति का हिस्सा बताते हैं.
सावरकर का नाम महात्मा गांधी की हत्या में भी आया था. वह जेल भी गए लेकिन, 1949 में वह बरी हो गए थे. अब बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) सावरकर को लेकर आक्रामक हैं. वे वामपंथी इतिहासकारों पर सावरकर के चरित्र हनन का आरोप लगाते रहे हैं.
सालों से चल रही है गाँधी व सावरकर को बराबर करने की तैयारी
विनायक दामोदर सावरकर और कट्टर हिंदुत्व की राजनीति के सूत्रधार सावरकर को महात्मा गाँधी के बराबर खड़े करने की तैयारी वर्षों से चल रही थी जो अब सामने आना शुरू हो चुका है. साल 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी उस समय सावरकर को भारत रत्न देने की मांग की गयी थी जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन ने ठुकरा दिया था. हाल में एक पुस्तक विमोचन में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने ऐलान किया था कि “सावरकर युग आ चुका है. इतिहास में सावकर के बलिदान पर शायद ही किसी को शक हो. लेकिन, हिंदुत्ववादी विचारधारा के कारण वह एक बड़े तबके के लिए अछूत रहे हैं. देश के बदले माहौल में बीजेपी इस धारणा को बदलना चाहती है. पार्टी सावरकर को वह सम्मान दिलाना चाहती है जिसके वह असल में हकदार हैं. इसकी कोशिश वह करती रही है.” आज नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में है. बीजेपी ने 2020 के महाराष्ट्रब विधानसभा चुनाव में भी सावरकर को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने का वादा किया था.
‘गाँधी और सावरकर’ नामक पुस्तक के लेखक डॉ. राकेश कुमार आर्य के अनुसार “समय ने सिद्ध किया है कि गांधी जी का सत्यमेव जयते तभी संभव है जब सावरकर के शस्त्रमेव जयते को प्राथमिकता दी जाएगी. बुद्ध तभी उपयोगी हो सकते हैं जब अपने सम्मान के लिए युद्ध की परिकल्पना को भी आवश्यक माना जाएगा. सत्याग्रह भी तभी सफल होगा जब उसके साथ सावरकर का शस्त्रग्रह जुड़ जाएगा. गाँधी जी सत्याग्रह की बात करते रहे, बुद्ध की बात करते रहे पर सावरकर सत्यमेव जयते से आगे बढ़ कर बुद्ध की रक्षार्थ युद्ध को और सत्याग्रह से अधिक शस्त्रग्रह को उपयोगी मानते रहे. इन दोनों महापुरुषों में ये ही एक मौलिक अंतर था.” डॉ. राकेश कुमार आर्य को संस्कृति मंत्रालय समेत कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है. इनके शोध को वर्तमान सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.
आहिस्ता आहिस्ता सरकारी दस्तावेजों में बदलाव और ऐतिहासिक शोध से छेड़खानी भविष्य के भारत की तस्वीर को बदल रहा है. इतिहास का पुनर्लेखन और नए अतार्किक शोध को बढ़ावा देकर देश भर में भ्रम की स्थिति को गहराया जा रहा है जिससे पहले लिखा गया इतिहास सवालों के घेरे में बना रहे. राजनीतिक एजेंडे को साधने के लिए ऐतिहासिक बदलाव देश के भविष्य पर आमूल चूल प्रभाव डाल सकता है.
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