रिमोट कंट्रोल: 'वीर' सावरकर के सच का विश्लेषण

Written by Sakshi Mishra | Published on: June 19, 2019

यह हमारी श्रृंखला “रिमोट कंट्रोल” का दूसरा लेख है। हमारा प्रयास है कि टीवी और फिल्म द्वारा समाज में फैलाए जा रहे गलत धारणाओं और अफ़वाहों को उजागर कर सकें। जिससे एक द्वेषहीन व विकारमुक्त समाज की स्थापना की जा सके।



देश में इतिहास के साथ छेड़छाड़ करना मानो आम बात हो गई है। कभी गांधीजी के ‘हत्यारे गोडसे’ को ‘पूजनीय बना दिया जाता है,तो कभी  विनायक दामोदर सावरकर को अखंड भारत की परिकल्पना करने वाला बताया जाता है। इतिहास के साथ हो रहे तोड़-मरोड़ के इस खेल में मीडिया बहुत ही अहम भूमिका निभा रही है।


हाल ही में काँग्रेस नेता भूपेश बघेल की टिप्पणी के बाद प्रसिद्ध न्यूज़ चैनल ‘ज़ी न्यूज़ के शो DNA’ पर सावरकर का बचाव किया गया। बता दें कि भूपेश बघेल ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा था कि “विनायक दामोदर सावरकर ने प्रस्ताव रखा था कि हिंदुस्तान आज़ाद हो तो दो राष्ट्र के रूप में हो। धार्मिक आधार पर उन्होंने दो राष्ट्र की मांग रखी और जिन्नाह ने उसे इम्प्लीमेंट किया था।“ नेता बघेल के इस बयान को लेकर ज़ी न्यूज़ पर तकरीबन 21 मिनट का शो चलाया गया। शो में सावरकर को ‘वीर’ कहकर संबोधित करते हुए उनके प्रस्तावित ‘टू नेशन थिओरी’ को सर सैयद अहमद खान के सिर मढ़ दिया गया। इसके बाद ज़ी न्यूज़ के शो में उल्लिखित तथ्यों और अपने पूर्व ज्ञान पर हमने थोड़ा चिंतन करना शुरू कर दिया। जिसमें हमने शो के एंकर के दावों से जुड़े सम्पूर्ण सच को खोज निकालने के साथ सावरकर पर चल रहे विवाद पर भी अध्ययन किया। सावरकर, सर सैयद, आज़ादी, विभाजन इत्यादि इतना  पुराना इतिहास नहीं है, कि जिनपर किसी भी प्रकार के संदेह की गुंजाईश हो, इनपर लिखित दस्तावेज़ मौजूद हैं, जिन्हें पढ़ा जा सकता है।  

इस अध्ययन में सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि कौन हैं सर सैयद अहमद खान और ‘वीर’ विनायक दामोदर सावरकर, जिन्हें लेकर ‘टू नेशन थियोरी’ की बात की जा रही है।  

सर सैयद अहमद खान का जीवन काल 17 अक्टूबर 1817 से 27 मार्च 1898 तक था। वे सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, दार्शनिक होने के साथ शिक्षक भी थे। सर सैयद ने हमेशा से ही यूरोप की शिक्षा प्रणाली का समर्थन किया और दरिद्रता से मुक्ति पाने के लिए रूढ़िवादी मुस्लिम समुदायों पर आधुनिक शिक्षा को अपनाने का दबाव डाला। सर सैयद का प्रेम व समर्पण शिक्षा को लेकर इतना गहरा था कि उन्होंने ‘मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज’ की स्थापना वर्ष 1875 में की, जिसे हम अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के नाम से जानते हैं। इतना ही नहीं सर सैयद ने कुछ हिन्दू और मुस्लिमों के साथ मिलकर मुरादाबाद में वर्ष 1858 और गाज़ीपुर में वर्ष 1863 में कई शिक्षा संस्थानों को स्थापित किया, जहां हिन्दू-मुस्लिम सभी शिक्षा प्राप्त कर सकते थे। अपने जीवन काल में सर सैयद ने हमेशा हिन्दू-मुस्लिम की एकता को बनाए रखने पर ज़ोर दिया। साथ ही हमेशा किसी भी धार्मिक विवाद पर दोनों समुदायों को आपस में बातचीत कर हल निकालने का सुझाव दिया।

सर सैयद अहमद खान ने हमेशा ही शिक्षा के विषय को सर्वोपरि रखा। उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य ऑक्सफ़ोर्ड और कैंब्रिज की तरह भारत में भी विशाल विश्वविद्यालय की स्थापना करना था, जिसे AMU के साथ उन्होंने पूरा किया। उनके समय में विलियम मुइर की किताब ‘द लाइफ ऑफ महोमेट’ में प्रोफेट मोहम्मद के जीवन के आपत्तिजनक विवारण पर एक विवाद पैदा हो गया था, जिसके जवाब में सर सैयद ने स्वयं किताब लिखकर अपना मत रखा और उदाहरण दिया कि किस तरह विवाद भी तथ्य और तर्क से सुलझाया जा सकता है। इसके बाद यह मानना बेहद मुश्किल है कि सर सैयद जैसे अमन परास्त इंसान ने उस दौर में कभी दो राष्ट्र का स्वप्न भी देखा होगा, उनके जीवनकाल में विभाजन और दो राष्ट्र जैसे शब्दों का कोई अस्तित्व ही नहीं था।

ज़ाहिर है कि ज़ी न्यूज़ ने अपने विश्लेषण में इतिहास और तथ्यों के इन पहलू को शामिल किया ही नहीं है। उन्होंने तो बस अपने प्रोपेगेंडा के अनुसार सीधे आरोप ही मढ़ दिया।    

आगे इस लेख में हम ‘वीर’ विनायक दामोदर सावरकर के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में आपको बताने जा रहे हैं। साथ ही भारत की अखंडता के विषय में उनकी क्या विचारधारा थी, इस पर भी प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे।

विनायक दामोदर सावरकर का जन्म महाराष्ट्र के नासिक शहर के पास भागुर गांव में 28 मई 1883 में हुआ था। वह पेशे से वकील होने के साथ लेखक व कवि भी थे। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाने पर उन्हें ‘काला-पानी’ की सज़ा हो गई थी। जहां कारावास के संघर्ष के दौरान उन्होंने ‘हिन्दुत्व- हिन्दू कौन है?’ नाम की किताब लिखी। इस किताब में उन्होंने ‘हिन्दू’ धर्म से ज़्यादा हिन्दुत्व के राजनीतिकरण पर चर्चा की है। ‘वीर’ सावरकर की किताब के अनुसार ‘हिन्दू, जैन, सिख व बौद्ध’ धर्म के लोगों को एकजुट होकर अखंड भारत का निर्माण करना चाहिए। परंतु ‘मुस्लिम व ईसाई’ धर्म लोगों के अस्तित्व को उन्होंने भारत में अनुपयुक्त बताया है। उनका मानना था कि ये दोनों, हिन्दुओं के साथ में नहीं रह सकते, इसलिए इन्हें (हिन्दू व अन्य और मुस्लिम व अन्य) अलग-अलग रहना चाहिए। ‘वीर’ सावरकर की किताब से यह बात स्पष्ट रूप से सत्यापित की जा सकती है। हिन्दू महासभा का अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिंदुओं को ब्रिटिश सरकार का समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित किया था, जिससे युद्ध की विविधता का उन्हें भी अनुभव हो सके।

साथ ही, जिस समय मुहम्मद अली जिन्नाह ने ‘कॉंग्रेस के शासन’ की ‘हिन्दू राज’ से तुलना की थी, उसी दौरान ‘वीर’ सावरकर ने ‘हिन्दू राष्ट्र’ का प्रस्ताव रखा था। मुहम्मद अली जिन्ना ने वर्ष 1940 में मुस्लिम लीग की ओर से ‘पाकिस्तान’ का प्रस्ताव पारित किया था। परंतु वर्ष 1937 में अहमदाबाद में 19 वें सत्र के दौरान हिंदू महासभा के अध्यक्ष के रूप में 'दो राष्ट्र' के प्रस्ताव को पारित करते हुए दो राष्ट्र बनवाने की घोषणा कर दी थी। 15 अगस्त 1943 में जिन्नाह के दो राष्ट्र की मांग का समर्थन करते हुए, ‘वीर’ सावरकर ने कहा था कि “मुझे जिन्नाह की ‘दो राष्ट्र’ की मांग से कोई आपत्ति नहीं है। हम हिन्दू खुद में ही एक राष्ट्र हैं और यह ऐतिहासिक सत्य है कि हिन्दू-मुस्लिम दो अलग राष्ट्र हैं।         

सावरकर देश में मुस्लिमों के अस्तित्व का ज़रा भी समर्थन नहीं करते थे। जब वह 12 वर्ष के थे तब उनके गांव में किसी बात को लेकर हिन्दू-मुस्लिम समुदायों के बीच हिंसात्मक विवाद हो गया था। जिस के बाद उन्होंने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर मुस्लिम समुदाय के लोगों को गांव छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था। इतना ही नहीं, गांधीजी की हत्या के षडयंत्र में शामिल होने के आरोप में ‘वीर’ सावरकर को भी हिरासत में लिया गया था। जिसके बाद नाराज़ लोगों ने इनके घर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था। हालांकि पर्याप्त सबूत न होने के कारण उन्हों बरी कर दिया गया। परंतु कपूर कमीशन की रिपोर्ट में आज भी इन्हें संदेह के घेरे में रखा गया है।

भारत का बंटवारा एक ओर अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ नीति का अत्यंत भयावह परिणाम है। तो दूसरी ओर यह मानव सभ्यता का आज तक का सबसे बड़ा विस्थापन है। इस विभाजन से केवल नक्शे  रेखाएं ही नहीं बनी बल्कि लाखों गांव, परिवार दोस्तों और समाज के बीच दरार पड़ गई। पूरा भारतीय उपमहाद्वीप में हत्या, बलात्कार, उजड़े घर व धधकती आग से भरा मंज़र आम हो गया था। अतीत की गलतियों से कुछ सीखने के स्थान पर आज भी समाज को तोड़ने की स्थिति उत्पन्न की जा रही है। जिसमें मीडिया का भी विकृत रूप देखने को मिल रहा है। 
 

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