काशी विश्वनाथ मंदिर में सुरक्षाकर्मियों को पहना दिया भगवा ड्रेस, चुनाव आयोग में शिकायत

Written by विजय विनीत | Published on: April 13, 2024


वाराणसी। उत्तर प्रदेश के बनारस स्थित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में पुलिस अब तमाशा बनकर रह गई है। बनारस की सरकार ने पहरुओं को खाकी की जगह भगवा ड्रेस पहनाकर खड़ा कर दिया है। सिर्फ पुरुष ही नहीं, महिला पुलिसकर्मी भी भगवा परिधान में ड्यूटी कर रही हैं। पुलिस के जवान धोती-कुर्ता और महिला पुलिसकर्मी भगवा रंग के सलवार सूट में नजर आ रही हैं। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में पहरुओं का नया ड्रेस कोड इसलिए चर्चा में है क्योंकि ऐसा करने के लिए अफसरों को न तो चुनाव आयोग ने कोई निर्देश जारी किया है और न ही शासन से उन्हें कोई आदेश मिला है। आनन-फानन में पुलिस का ड्रेस कोड बदले जाने को लेकर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और चुनाव आयोग के यहां शिकायत दर्ज कराई है।

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह से लेकर समूचे परिसर में पुलिस के जवान अर्चक और पुजारियों की तरह भगवा रंग का ड्रेस पहनकर ड्यूटी कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि बनारस के पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल के निर्देश पर पुलिस के कई जवान अचानक भगवा ड्रेस में मंदिर में पहुंचे। कुछ पुलिसकर्मी गर्भगृह में तैनात किए गए और कुछ गेट पर ड्यूटी करते नजर आए। पहरुओं को बदले परिधान में जिसने देखा वो अवाक रह गया। कुछ श्रद्धालु तो समझ ही नहीं पाए कि वो सुरक्षा कर्मचारी हैं अथवा मंदिर के पुजारी?

 सवालों के घेरे में सीपी

09 अप्रैल, 2024 को पुलिस कमिश्नर (सीपी) मोहित अग्रवाल ने श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में भक्तों को नियंत्रित करने के लिए बैठक आहूत की थी, जिसमें उन्होंने मंदिर के गर्भगृह में सुरक्षाकर्मियों को अर्चकों की वेशभूषा में तैनात करने की बात कही थी। यह भी कहा था कि अब नए ड्रेस में पुलिस के जवान श्रद्धालुओं की भीड़ नियंत्रित करेंगे। दर्शनार्थियों के साथ अच्छा व्यवहार उनकी तैनाती की कसौटी होगी। तैनाती के पहले उन्हें धार्मिक पुलिसिंग का प्रशिक्षण दिया जाएगा।

पुलिस के पुरुष जवान धोती-कुर्ता और अंगवस्त्रम पहनेंगे और महिला पुलिसकर्मी सलवार-कमीज में रहेंगी। इनकी सहायता के लिए गर्भगृह के बाहर दो पुरुष और महिला पुलिसकर्मी सादे वेश में तैनात किए जाएंगे। बैठक के अगले दिन 10 अप्रैल 2024 को पुलिस आयुक्त का निर्देश लागू कर दिया गया। बगैर प्रशिक्षण दिए भगवा ड्रेस में पुलिसकर्मियों की तैनाती को लेकर बनारस के पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल पर कई गंभीर सवाल खड़े हुए हैं।

दरअसल, बुधवार की सुबह दर्शन करने श्रद्धालु जब काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचे तो उन्हें गर्भगृह में कोई भी पुलिसकर्मी नजर नहीं आया। पुलिस की जगह भगवा ड्रेस में धोती-कुर्ते में तैनात लोग भीड़ को नियंत्रित करते हुए नजर आए। इनके भगवा परिधान को देखकर हर कोई हक्का-बक्का था। दर्शन-पूजन करने पहुंचे श्रद्धालुओं ने जब सिपाहियों को भगवा रंग के धोती-कुर्ता और सलवार-समीज को देखा तो उन्होंने भी हैरानी जताई। इनकी तस्वीरें जब सोशल मीडिया में आईं तो कुछ ही घंटों पर वह वायरल हो गईं। इस बीच यह चर्चा शुरू हो गई कि अब मंदिर परिसर से पुलिसकर्मियों को हटा लिया गया है? बाद में लोगों को जब पता चला कि धोती-कुर्ते और दुपट्टे में मौजूद भगवाधारी लोग कोई पंडे-पुरोहित नहीं, बल्कि पुलिसकर्मी हैं। अचानक उनका ड्रेस कोड बदल दिया गया है।

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में पुलिस के जवानों को भगवा पहनाने की कवायद कई साल पहले शुरू की गई थी। पुलिस प्रशासन ने मार्च 2018 में यह तय किया था कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह की सुरक्षा व्यवस्था की कमान धोती-कुर्ताधारी पुलिसकर्मी संभालेंगे। उस समय भी मंदिर के गर्भगृह में तैनात पुलिसकर्मी धोती और कुर्ते में ड्यूटी करते हुए नजर आए। उस समय दलील दी गई थी कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में शुद्धता बनाए रखने के लिए पुलिसकर्मियों का ड्रेस कोड बदला गया।

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में तैनात एक पुलिस अफसर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर जनचौक से कहा, “श्रद्धालुओं के फीडबैक के आधार पर पुलिसकर्मियों के ड्रेस कोड में बदलाव किया गया है। शहर के प्रबुद्धजन यदि इस संबंध में कोई सुझाव देना चाहें तो उनका स्वागत है। सुरक्षाकर्मियों के लिए ड्रेस कोड में बदलाव बेहद सराहनीय पहल है।

इसको आने वाले दर्शनार्थियों ने भी बेहद सराहा है। ड्रेस कोड परिवर्तन से सुरक्षाकर्मियों को थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा। धोती संभालने के कारण भीड़ का दबाव ज्यादा बढ़ गया और श्रद्धालुओं की कतार काफी दूर तक चली गई। देर शाम तक लाइन बांसफाटक से छत्ताद्वार तक लगी रही। श्रद्धालु भी दर्शन के बाद देरी से निकल रहे थे।” भगवा ड्रेस पहने पुलिस के एक जवान ने कहा कि अगर उनके कपड़े अशुद्ध हो गए तो उसे दूसरा जवान कैसे पहनेगा? विवशता में अशुद्ध कपड़े ही पहनने होंगे। इस पर अफसरों को ध्यान देना चाहिए।

 चुनाव आयोग से शिकायत

 समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मनोज राय धूपचंडी ने पुलिस के नए ड्रेस कोड पर आपत्ति जताते हुए चुनाव आयोग को शिकायत भेजी है। वह कहते हैं, “पुलिस का ड्रेस कोड बदलने का अधिकार न पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल को है और न ही मंदिर प्रशासन को। चुनाव के वक्त पुलिस के जवानों को भगवा ड्रेस में उतारना आदर्श चुनाव संहिता का खुला-उल्लंघन है। वैसे भी पुलिस के जवान धोती-कुर्ता अथवा पाजामा पहनने के लिए भर्ती नहीं होते। अर्चक और पुलिस कर्मियों में अंतर तो दिखना ही चाहिए। पुलिस कमिश्नर ने मंदिर की पहरेदारी करने वालों का व्यवहार बदलने की बजाय उनका ड्रेस ही बदल डाला।”

सपा प्रवक्ता मनोज यह भी कहते हैं, “बनारस पीएम नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के अंदर और बाहर सिपाहियों के भगवा ड्रेस में ड्यूटी पर तैनात कर देना अनुचित और गैरकानूनी है। यह चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है। पुलिस पुलिस कमिश्नर का यह बयान काफी अचरज में डालता है कि धोती कुर्ता से अलग फीलिंग आती है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर प्रबंधन और सरकार को चाहिए कि वो तत्काल नए ड्रेस कोड पर रोक लगाए। पुलिस कमिश्नर के मनमाने फैसले के चलते एक बड़ा सवाल यह भी उठा है कि क्या खाकी ड्रेस दर्शनार्थियों में खौफ पैदा करता है। अगर ऐसा नहीं है तो पुलिस के जवानों का व्यवहार बदलने के बजाय इनका परिधान बदलना कितना जायज है?”

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी ने भी सुरक्षा कर्मियों को भगवा ड्रेस में तैनात किए जाने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास और पुलिस प्रशासन की नीयत पर सवाल खड़ा करते हुए वह कहते हैं, “यह धर्म के खिलाफ अन्याय और सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है। लोकसभा चुनाव से प्रोपेगेंडा किया जा रहा है। इससे श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाएं आहत होंगी। पुलिस की खाकी वर्दी की अपनी एक अलग मर्यादा होती है और भगवा ड्रेस की अलग।

भगवा परिधान साधु-संतों की पहचान है। ऐन चुनाव के वक्त ड्रेस कोड बदलते समय पुलिस और प्रशासनिक अफसरों ने चुनाव आयोग से कोई अनुमति क्यों नहीं ली? अगर ऐसी कोई अनुमति ली गई है तो उसे मीडिया के सामने पेश करना चाहिए। पुलिस वालों की वर्दी न सिर्फ उनका सम्मान होता है बल्कि उसे देखकर ही कोई भी अराजकता करने की कोशिश नहीं करता है। वर्दी को लेकर एक डर भी बना रहता है। ऐसे में पुलिस वालों को खाकी वर्दी की जगह भगवा पहनाना गैर-कानूनी और न्यायसंगत नहीं है।

पूर्व महंत राजेंद्र यह भी कहते हैं, “हमें लगता है कि पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ता की तरह काम कर रहे हैं। दो रोज पहले मंदिर के सामने आपत्तिजनक धार्मिक नारेबाजी करने और कराने वालों के खिलाफ उन्होंने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? आखिर वो किसे खुश करना चाहते हैं और किसकी नजर में अपनी इमेज भक्त सरीखा बनाना चाहते हैं।


गर्भगृह के भीतर भगवा ड्रेस में पुलिसकर्मी।

केंद्रीय चुनाव आयोग से गुजारिश है कि वो इस मामले को गंभीरता से ले और नई व्यवस्था को तत्काल समाप्त कराए। साथ ही बीजेपी के इशारे पर उनके पक्ष में फिजा बनाने वाले अफसरों पर सख्त एक्शन ले। बनारस के कमिश्नर कौशलराज शर्मा कई सालों से बनारस में तैनात हैं। आखिर वो कौन सी वजह है कि चुनाव आयोग ने आज तक इनका तबादला नहीं किया। हमें लगता है कि आयोग में बैठे अफसर निष्पक्ष नहीं हैं अन्यथा ड्रेस कोड का खेल बनारस में कतई नहीं होता।”

प्राइवेट कंपनी नहीं है बाबा का मंदिर

काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव पुलिस के नए ड्रेस कोड पर बड़ा सवाल खड़ा करते हैं। वह कहते हैं, “पुलिस के जवान किसी खुफिया एजेंसी के कर्मचारी नहीं हैं। चुनाव के वक्त आनन-फानन में निर्देश जारी करके पहरुओं का ड्रेस बदलवा देना अनुचित और असंवैधानिक है। इससे पुलिस का खुफिया मकसद भी पूरा नहीं होता है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का संचालन सरकार करती है। यह कोई प्राइवेट कंपनी नहीं है जो अपने यहां बाउंसर तैनात करे और उन्हें कोई भी ड्रेस पहना दे।

फोर्स को मजाक बनाना ठीक नहीं है। पुलिस परिधान की एक अलग मर्यादा होती है। खाकी वर्दी की आचार संहिता होती है, जिसकी गरिमा का पालन जवानों को समूचे नौकरी के दौरान करना पड़ता है। भगवाधारी भेष में देखकर पहली नजर में कोई श्रद्धालु उन्हें सुरक्षा कर्मचारी मानेगा ही नहीं।”

“पुलिस के ड्रेस को बदल देना कोई मामूली बात नहीं है। ड्रेस कोड बदलने का अधिकार संसद और विधानसभा को है, किसी पुलिस अफसर को नहीं। लोकसभा चुनाव के वक्त जब सरकार की सभी शक्तियां चुनाव आयोग में निहित हो गई हैं तो बनारस के पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल ने आखिर ये मनमानी क्यों और कैसे कर डाली? चुनाव के वक्त सिपाहियों को भगवा पहनवाने का अधिकार उन्हें किसने दिया? ड्रेस कोड बदलना असंवैधानिक है।

बुनियादी सवाल यह है कि खाकी वर्दी की जगह सिपाहियों को कुर्ता-पैजामा पहनाना कहां तक उचित है। किसी प्रशासनिक अफसर के पास यह पावर नहीं है कि वो अपने अधिकारों  का दुरुपयोग करते हुए अचानक पुलिस का ड्रेस ही बदलवा डाले। ऐसा करने से पहले चुनाव आयोग और सरकार से अधिकार-पत्र लेना चाहिए था। मनमानी करने वाले पुलिस अफसरों से चुनाव आयोग को स्पष्टीकरण मांगना चाहिए और सख्त कार्रवाई भी करनी चाहिए।”

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कहते हैं, “किसी विशेष खुफिया प्रयोजन के लिए पुलिस अपनी ड्रेस बदल सकती है। ऐसा उन स्थितियों में किया जाता है जब जवानों को अपनी पहचान छिपाना जरूरी हो। आप खुलेआम ड्रेस कोड बदल सकते ही नहीं। ऐसा होने लगेगा तो हर कोई मनमानी करने पर उतर जाएगा। अफसर अपने मनपसंद से पुलिस का ड्रेस और उनका रंग बदलने लगेंगे तो पुलिस का तो बेड़ा गर्क हो जाएगा। फिर फोर्स-फोर्स नहीं रह जाएगी। फिर वो सिविलियन बन जाएंगे।

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर किसी निजी कंपनी का दफ्तर नहीं है कि किसी को कुछ भी पहना दो। जो बदलने का आदेश दे रहे हैं, उनके लिए खुद ड्रेस कोड निर्धारित है। उसकी परिधि से वो भी बाहर नहीं जा सकते।”

“देश में कई बार ऐसी घटनाएं हुई हैं जब पुलिस अफसर अदालतों में सिविल ड्रेस में गए हैं और उन्हें न्यायाधीशों की फटकार सुननी पड़ी है। कइयों को जजों ने अदालतों से बाहर भी किया है। कोई पुलिसकर्मी टी-शर्ट और जींस पहनकर कोर्ट में नहीं जा सकता तो बाबा के दरबार में ड्यूटी कैसे कर सकता है? 

पुलिस को तो मुख्यमंत्री ही नहीं, मंत्रियों को जींस और टी-शर्ट में रिसीव करने का अधिकार नहीं है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में सिपाहियों को भगवा परिधान पहनाने वाले अफसरों पर सख्त एक्शन होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया गया तो फोर्स तमाशा बनकर रह जाएगी। इसका कलंक बनारस के पुलिस अफसरों के माथे पर ही मढ़ा जाएगा।”

उल्लेखनीय है कि कुछ साल पहले यूपी के तत्कालीन पर्यटन एवं धर्मार्थ कार्य राज्यमंत्री डॉ. नीलकंठ तिवारी की अध्यक्षता में मंदिर प्रशासन और काशी विद्वत परिषद के विद्वानों की बैठक के बाद बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में उज्जैन के महाकाल मंदिर की तर्ज पर गर्भगृह में स्पर्श दर्शन के लिए ड्रेस कोड लागू करने की तैयारी की गई थी।

उस समय यह तय किया गया था कि मंदिर में दर्शन करने के लिए पुरुषों को धोती-कुर्ता और महिलाओं को साड़ी पहनना होगी। ‘जींस, पैंट, शर्ट, सूट, टाई कोट’ पहनकर कोई व्यक्ति मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकेगा। जो लोग ड्रेस में नहीं होंगे उन्हें दूर से ही हाथ जोड़ कर बाबा का दर्शन की अनुमति मिल पाएगी। श्रद्धालुओं के कड़े विरोध के चलते मंदिर प्रशासन की यह योजना भी धराशायी हो गई थी।

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Courtesy: Janchowk

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