मंदिर बनाना इंसानी जान बचाने से ज्यादा जरुरी !

Written by Amrita pathak | Published on: August 5, 2020
जल्द ही भारत में कोरोना के 20 लाख मरीज हो जाएँगे. कोरोना के काल में राम मंदिर के भूमि पूजन की भव्य तैयारी सरकार की कोरोना से मरते लोगों के प्रति गैरजिम्मेदाराना रवैये को दर्शाता है. कोरोना महामारी से उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा तमाम तरह की घोषणाएं की जा रही है वैसे भी जब काम को धरातल पर पूरी तरह से लागू नहीं करना हो तो घोषणाएं आसान हो जाती हैं. इंसानों को राशन उपलब्ध नहीं हो पा रहा है और सरकार बेशर्मी के साथ राम मंदिर के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई से करोड़ों खर्च कर रही है. 



वर्षों से चल रही सांप्रदायिक संघर्ष की परिणति यह है कि देश के संवैधानिक मूल्यों पर खतरा मडराने लगा है. कोरोना के गंभीर समय में देश भर में एक भी सरकारी अस्पतालों की नीव नहीं रखने वाली सरकार चांदी की ईट, 1 लाख लड्डू के भोग, 1500 स्थानों से 10 नदियों का पवित्र जल, 2000 स्थानों से जमा की गयी मिटटी को मंगवाकर राम मंदिर के भूमि पूजन को प्राथमिकता दे रहे हैं. अस्पतालों में एम्बुलेंस और कोरोना टेस्ट के कमी की वजह से लोगों की जान जा रही है लेकिन प्राथमिकता मंदिर को दी जा रही है. 
 “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखि तिन तैसी” लिख कर तुलसीदास ने राम की अनंत महिमा और उनकी छवियों का वर्णन किया है लेकिन संघ सम्प्रदाय जिसकी लालसाएं कहने को तो  धार्मिक व् सांस्कृतिक है और असलियत में सांप्रदायिक व् राजनितिक है राम को इन्होने महज एक शत्रुहंता के रूप में दिखा कर अपने हिंसक रवैये को जनता के सामने सही साबित करने की कोशिश वर्षों से की है. राम राजा के रूप में जनप्रिय और देवता के रूप में सर्वप्रिय रहे हैं जिसको ढाल बना कर कट्टरतावादी ताकतों ने देश में सांप्रदायिक जहर का बीज बोया है. तुलसी के उदार राम को आज अगर नहीं बचाया गया, तो कल की पीढ़ियों के लिए संघ के संकीर्ण राम ही बच रहेंगे। 

वायदों और घोषणाओं के बादशाह नरेंद्र मोदी जब दूसरी बार सत्ता में आए तो उन्होंने संविधान की पवित्र किताब को चूम कर देशहित में काम करने की कसमे खायी थी लेकिन हो ये रहा है कि जनता को राम मंदिर के भावावेश में रख कर बड़े बड़े जनविरोधी फैसले अध्यादेशों के जरिये लिए जा रहे हैं.  

कोरोना के समय में भूमिपूजन के अविवेकपूर्ण फैसले पर देश में अलग अलग प्रतिक्रियाएं आई है:
शरद पवार ने कहा कि किस समय कौन सी बात को महत्व देना है इसके बारे में सभी को हमेशा विचार करना चाहिए. हमारे लिए प्राथमिकता यह है कि कॉरोना से इन्फेक्टेड लोगों को कैसे ठीक करना है. कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि मंदिर बनेगा उसी दिन कोरोना जाएगा. इसलिए शायद उन्होंने यह कार्यक्रम रखा होगा. वैसे इसके बारे में मुझे मालूम नहीं, हमारे लिए फिलहाल कोरोना वायरस सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है. 

पवार ने कहा कि “कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन जैसी चीज़ें हुई हैं. इसकी वजह से जो आर्थिक संकट पैदा हुआ और जो छोटे व्यवसाय प्रभावित हुए हैं, उसकी हमे चिंता है. इसलिए मेरा आग्रह है राज्य और केंद्र सरकार इस ओर अधिक ध्यान दे” 
गौरतलब है कि शनिवार को श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखने के लिए आज 5 अगस्त की तारीख तय की है जिसमे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शिलान्यास करने के लिए आमंत्रित किया है.

राम मंदिर शिलान्यास से ठीक पहले BJP की सहयोगी पार्टी अपना दल एस के विधायक चौधरी अमर सिंह में इस कार्यक्रम में से पिछड़े और अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों को वंचित रखने का आरोप लगाते हुए कहा है कि ऐसा लगता है कि भगवान राम सिर्फ BJP के ही हैं. सिद्धार्थनगर जिले की शोहरतगढ सीट से अपना दल-एस के विधायक चौधरी अमर सिंह ने कहा "मुझे एक चीज सोचने पर विवश होना पड़ा है कि राम जन्मभूमि के आंदोलन में जिन लोगों ने संघर्ष किया, उनका चेहरा नहीं दिख रहा है. उनको वंचित किया जा रहा है." उन्होंने आरोप लगाया है कि राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट में भी पिछड़े वर्गों को दरकिनार किया गया है. ऐसा लगता है प्रभु राम सनातन धर्म के नहीं बल्कि सिर्फ सत्तारूढ़ भाजपा के ही हो चुके हैं. 

अपना दल विधायक ने तंज करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जितनी जल्दबाजी मंदिर निर्माण के शिलान्यास की है, उतनी तेजी गरीबों को रोजगार आवास और पेंशन देने में भी दिखानी चाहिए थी. ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब लोग पिछले साढे 3 साल से आवास के लिए भटक रहे हैं. गरीबों को पेंशन नहीं मिल रही है और बेरोजगार लोग सड़कों पर घूम रहे हैं.

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के अयोध्या में आज 5 अगस्त को रामजन्मभूमि मंदिर के लिए भूमि-पूजन किया जाना है. उससे पहले एक परेशान कर देने वाली खबर सामने आई थी. रामजन्मभूमि मंदिर के पुजारी प्रदीप दास और अंदर मंदिर की सुरक्षा में लगे 14 पुलिस वालों को कोरोना पॉजिटिव पाया गया है जिसकी चिंता करना तो दूर भूमि पूजन के आवेश में इंसानी जान की कद्र तक नहीं रह गयी है. 
राम जन्म भूमि के लिए अयोध्या को ऐसे सजाया गया है जैसे भारत ने कोरोना महामारी से जंग जीत ली हो. धर्म किसी भी इन्सान का निजी मसला है लेकिन धर्म को ढाल बना कर देश के अलग अलग हिस्सों में बढ़ की त्रासदी झेलते लोगों और कोरोना महामारी से त्रस्त जनता को अयोध्या की जगमगाती रौशनी नहीं लुभा सकती है. कोरोना की वजह हो रही मौत किसी भी परिवार के सदस्यों के लिए लम्बे समय के अन्धकार का सबब है जिसे दूर करने के बजाय देश की सरकार अयोध्या शहर को रौशनी से सराबोर कर रही है. बाढ़ और कोरोना से त्राहिमाम होती जनता के लिए राम मंदिर का भूमि पूजन उत्साह का नहीं असंतोष का विषय है. देश का दुर्भाग्य है कि सरकार के लिए मंदिर बनाना इंसानी जान बचाने से ज्यादा जरुरी है. 

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