छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जीवन रेखा कही जाने वाली संजीवनी एक्सप्रेस मौत का सामान बन गई है। अंबेडकर अस्पताल के गेट पर ही एंबुलेंस का दरवाजा लॉक हो जाने के कारण एक शिशु की मौत हो चुकी है। उसके बाद जांच में सामने आया है कि शहर में चलने वाली सारी संजीवनी एक्सप्रेस 108 की गाड़ियों की यही हालत है और वे मरीजों को जीवन देने के बजाय जीवन लेने वाली साबित हो सकती हैं।

बच्चे का शव गोद में रखकर रोती मां। Image Courtesy: https://www.bhaskar.com
राज्य में जब एंबुलेंस सेवा की शुरुआत हुई थी तो वे सारी सुविधाओं से युक्त थीं, लेकिन धीरे-धीरे मशीनें खराब होकर हटाई जाती रहीं, और अब ये साधारण कारें बनकर रह गई हैं, जिनके कभी लॉक खराब होते हैं तो कभी कोई और खराबी आ जाती है।
यह भी खुलासा हुआ है कि सरकार से हर महीने एक एंबुलेंस की मेंटेनेंस के लिए ढाई लाख रुपए मिलते हैं और प्रदेश भर में ऐसी 238 एंबुलेंसें हैं, लेकिन इनमें से अधिकतर खटारा हो चुकी हैं।
दैनिक भास्कर की टीम ने संजीवनी एक्सप्रेस के रूप में चलने वाली गाड़ियों की जांच की तो ये तथ्य सामने आया कि टिकरापारा और जिला अस्पताल की एंबुलेंस को छोड़कर किसी गाड़ी में ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं है। इनमें ज़रूर सक्शन मशीन भी नहीं है और न ही कृत्रिम सांस देने में उपयोगी अंबू बैग भी नहीं है।
गले में कफ फंसने के मरीजों के गले को इस सक्शन मशीन से साफ किया जाता है और इमरजेंसी सेवा का ये जरूरी उपकरण माना जाता है, लेकिन रायपुर की संजीवनी एक्सप्रेस के नाम पर चल रही गाड़ियों में ऐसी कोई सुविधा नहीं है। दरअसल ये मशीनें काफी समय से खराब थीं जिसके बाद इन्हें गाड़ियों से हटा ही दिया गया। अधिकतर गाड़ियों में ऑक्सीजन सप्लाई का सिस्टम ही खराब पड़ा हुआ है।
एंबुलेंस में लगी शॉक मशीनें भी मरीजों के काम नहीं आ सकतीं क्योंकि उनमें पैड नहीं है। जांच में पता चला है कि एंबुलेंस गाड़ियों में ब्लड प्रेशर नापने का उपकरण भी हटा दिया गया है। एयर कंडीशनिंग सिस्टम तो लंबे समय से बंद है ही। मरीजों को संक्रमण से बचाने के लिए जरूरी निडिल डिस्ट्रॉयर भी नहीं है। गाड़ियों में पोर्टेबल ऑक्सीजन सिस्टम भी हटाया जा चुका है।
एंबुलेंस सेवा में कर्मचारियों की भी कमी है और अक्सर कॉल करने के बाद किसी न किसी कमी के बहाने से एंबुलेंस भेजने से मना कर दिया जाता है।