राजस्थान के खराब और बदहाल अस्पतालों का नतीजा ये है कि जनता झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे बनी हुई है। जैसे ही बीमारियों का मौसम शुरू होता है, वैसे ही झोलाछाप डॉक्टरों की पूछ बढ़ जाती है। ग्रामीण इलाकों में तो झोलाछाप डॉक्टर ही इलाज करते पाए जाते हैं।
राजस्थान के गांवों में अस्पताल या तो हैं नहीं, या हैं तो उनमें सुविधाएं नहीं हैं, ऐसे में मरीजों के पास झोलाछाप डॉक्टरों का ही सहारा रह जाता है, जिनके पास न तो काबिलियत होती है और न ही दवाएं।
झोलाछाप डॉक्टरों की खूबी बस इतनी है कि वे हर जगह मिल जाते हैं और कम पैसों में इलाज करने को तैयार हो जाते हैं। हालांकि, इसका दुष्परिणाम लोगों को अपनी जान गंवाकर भी भुगतना पड़ जाता है, लेकिन जब राज्य सरकार को ही जनता की फिक्र न हो, तो दूसरा विकल्प ही नहीं बचता।
राजस्थान की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था का नतीजा ये है कि हर इलाके में झोलाछाप डॉक्टरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हाईकोर्ट ने ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप नीम हकीमों के इलाज पर रोक लगाने के लिए राज्य शासन को निर्देश दिए थे लेकिन उससके बाद भी क्षेत्र में खुलेआम झोलाछाप डॉक्टर अपनी दुकानदारी चला रहे हैं। इन झोलाछाप डॉक्टरों के पास न तो कोई डिग्री है न कोई इलाज करने का लाइसेंस।
जब किसी मरीज की मौत हो जाती है तब प्रशासन और स्वास्थ विभाग नाम के लिए कार्रवाई करता है और कुछ समय बाद फिर सुस्त हो जाता है।
शर्तिया इलाज का दावा करने वाले झोलाछाप डॉक्टरों के पास चिकित्सा और दवाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं होती, लेकिन ये हर मर्ज का शर्तिया इलाज करने का दावा करते हैं। इनसे इलाज कराने वाले लोगों को नुकसान इतना होता है कि कि कई बार तो उनकी जान पर भी बन आती है। कुछ ऐसे झोलाछाप डॉक्टर तो नर्सिंग होम में कुछ दिन कंपाउंडरी करने के बाद अपना खुद का क्लीनिक तक चलाने लगते हैं।
राजस्थान के गांवों में अस्पताल या तो हैं नहीं, या हैं तो उनमें सुविधाएं नहीं हैं, ऐसे में मरीजों के पास झोलाछाप डॉक्टरों का ही सहारा रह जाता है, जिनके पास न तो काबिलियत होती है और न ही दवाएं।
झोलाछाप डॉक्टरों की खूबी बस इतनी है कि वे हर जगह मिल जाते हैं और कम पैसों में इलाज करने को तैयार हो जाते हैं। हालांकि, इसका दुष्परिणाम लोगों को अपनी जान गंवाकर भी भुगतना पड़ जाता है, लेकिन जब राज्य सरकार को ही जनता की फिक्र न हो, तो दूसरा विकल्प ही नहीं बचता।
राजस्थान की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था का नतीजा ये है कि हर इलाके में झोलाछाप डॉक्टरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हाईकोर्ट ने ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप नीम हकीमों के इलाज पर रोक लगाने के लिए राज्य शासन को निर्देश दिए थे लेकिन उससके बाद भी क्षेत्र में खुलेआम झोलाछाप डॉक्टर अपनी दुकानदारी चला रहे हैं। इन झोलाछाप डॉक्टरों के पास न तो कोई डिग्री है न कोई इलाज करने का लाइसेंस।
जब किसी मरीज की मौत हो जाती है तब प्रशासन और स्वास्थ विभाग नाम के लिए कार्रवाई करता है और कुछ समय बाद फिर सुस्त हो जाता है।
शर्तिया इलाज का दावा करने वाले झोलाछाप डॉक्टरों के पास चिकित्सा और दवाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं होती, लेकिन ये हर मर्ज का शर्तिया इलाज करने का दावा करते हैं। इनसे इलाज कराने वाले लोगों को नुकसान इतना होता है कि कि कई बार तो उनकी जान पर भी बन आती है। कुछ ऐसे झोलाछाप डॉक्टर तो नर्सिंग होम में कुछ दिन कंपाउंडरी करने के बाद अपना खुद का क्लीनिक तक चलाने लगते हैं।