सरकार और सरकारी अधिकारी छत्तीसगढ़ के आदिवासी ग्रामीणों के साथ अजब व्यवहार करने पर उतारू हैं। पिछले 6-7 दिनों से अंबिकापुर और सरगुजा ज़िले के 20 से भी ज़्यादा गाँवों के लोग परसा कोल खनन परियोजना के लिए सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण किए जाने का विरोध करते हुए धरने पर बैठे हैं। लेकिन इस सारे विरोध और ग्रामीणों कि मांग को अनदेखा करते हुए छत्तीसगढ़ की सरकार अडानी को ज़मीन देने कि कार्रवाई तेज़ करती जा रही है।
छत्तीसगढ़ सरकार का दोहरा रवैया इस तरह सामने आ रहा है कि एक तरफ तो राहुल गांधी धरना स्थल पर आकार इन ग्रामीणों के आंदोलन का समर्थन करते हुए मंच से इन्हें आश्वासन देते हैं और दूसरी तरफ़ प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल आदिवासियों कि ज़मीनें गैर कानूनी तरीके से अडानी सौंप रहे हैं।
पंचायतों को पता नहीं, इधर खदानों को सरकारी ज़मीन देने की प्रक्रिया तेज़
राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को आवंटित परसा कॉल ब्लाक के लिए प्रभावित गाँव की ज़मीनों के आवंटन की प्रक्रिया तेज़ हो गई है। अधिसूचित आदिवासी क्षेत्र में ग्राम सभाओं की सहमति की अनिवार्यता को देखते हुए पूरी कार्रवाई चुपचाप की जा रही है।
सरगुजा ज़िले के उदयपुर तहसीलदार ने 20 नवंबर की तारीख में ग्राम पंचायत साल्ही, फतेपुर आदि को नोटिस जारी कर गाँव मे मौजूद सरकारी भूमि को परसा कॉल परियोजना के लिए आवंटित का देने बाबत सहमति का प्रस्ताव मंगाया था। नोटिस के मुताबिक यह प्रस्ताव 9 दिसंबर तक तहसील न्यायालय में पहुंचाने को गया था। एक तो जब ग्रामीण खुले तौर पर धरना प्रदर्शन कर के अपनी ज़मीन न देने की बात कह रहे रहे हैं तो नोटिस जारी करके उनसे अपनी सहमति भेजने की बात कहना वैसे भी गलत है और दूसरी बात ये कि तहसीलदार द्वारा जारी किया गया ये नोटिस गाँव वालों तक पहुंचाया ही नहीं गया और न्यायालयीन प्रक्रिया आगे बढ़ा दी गई। ग्रामीणों को इस सरकारी प्रक्रिया की जानकारी दो दिन पहले पिछले शुक्रवार को हुई।
नोटिस की बात सामने आने के बाद ग्रामीणों ने कागजों में फ़र्जी ग्रामसभा की सहमति लिए जाने की आशंका जताई है। ग्रामीणों का कहना है कि परसा कोल ब्लॉक की पर्यावरणीय अनुमति के लिए भी अडानी कंपनी ने ग्रामसभा की सहमति के दस्तावेज़ लगाए हैं लेकिन ऐसी कोई ग्रामसभा हुई ही नहीं है। सरपंचों ने कलेक्टर से इसकी शिकायत भी की लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।
पत्रिका में प्रकाशित खबर के मुताबिक, प्रभावित गाँव साल्ही के रामलाल करियाम ने बताया कि गाँव वालों को सरकार के द्वारा कोई सूचना नहीं मिली, दूसरे लोगों द्वारा अभी ये जानकारी मिली है। सरपंच ननिया बाई के प्रतिनिधि सेवाराम पोर्ते ने गाँवभर के सामने ऐसे किसी नोटिस की जानकारी से इंकार किया। इसको लेकर गाँव में हंगामा मचा हुआ है। नोटिस के मुताबिक साल्ही पंचायत में साल्ही गाँव की 14.130 हेक्टेयर और हरिहरपुर गाँव की 7.289 हेक्टेयर सरकारी ज़मीन राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम को आवंटित की जानी है। ज्ञात हो कि इस खदान को विकसित करके संचालित करने का ठेका अडानी समूह के पास है। परसा कोल ब्लॉक सहित हसदेव अरण्य क्षेत्र की दूसरी खनन परियोजनाओं के विरोध में पिछले 67 दिनों से सरगुजा के फतेपुर गाँव में कई गाँव के लोग धरने पर बैठे हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार का दोहरा रवैया इस तरह सामने आ रहा है कि एक तरफ तो राहुल गांधी धरना स्थल पर आकार इन ग्रामीणों के आंदोलन का समर्थन करते हुए मंच से इन्हें आश्वासन देते हैं और दूसरी तरफ़ प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल आदिवासियों कि ज़मीनें गैर कानूनी तरीके से अडानी सौंप रहे हैं।
पंचायतों को पता नहीं, इधर खदानों को सरकारी ज़मीन देने की प्रक्रिया तेज़
राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को आवंटित परसा कॉल ब्लाक के लिए प्रभावित गाँव की ज़मीनों के आवंटन की प्रक्रिया तेज़ हो गई है। अधिसूचित आदिवासी क्षेत्र में ग्राम सभाओं की सहमति की अनिवार्यता को देखते हुए पूरी कार्रवाई चुपचाप की जा रही है।
सरगुजा ज़िले के उदयपुर तहसीलदार ने 20 नवंबर की तारीख में ग्राम पंचायत साल्ही, फतेपुर आदि को नोटिस जारी कर गाँव मे मौजूद सरकारी भूमि को परसा कॉल परियोजना के लिए आवंटित का देने बाबत सहमति का प्रस्ताव मंगाया था। नोटिस के मुताबिक यह प्रस्ताव 9 दिसंबर तक तहसील न्यायालय में पहुंचाने को गया था। एक तो जब ग्रामीण खुले तौर पर धरना प्रदर्शन कर के अपनी ज़मीन न देने की बात कह रहे रहे हैं तो नोटिस जारी करके उनसे अपनी सहमति भेजने की बात कहना वैसे भी गलत है और दूसरी बात ये कि तहसीलदार द्वारा जारी किया गया ये नोटिस गाँव वालों तक पहुंचाया ही नहीं गया और न्यायालयीन प्रक्रिया आगे बढ़ा दी गई। ग्रामीणों को इस सरकारी प्रक्रिया की जानकारी दो दिन पहले पिछले शुक्रवार को हुई।
नोटिस की बात सामने आने के बाद ग्रामीणों ने कागजों में फ़र्जी ग्रामसभा की सहमति लिए जाने की आशंका जताई है। ग्रामीणों का कहना है कि परसा कोल ब्लॉक की पर्यावरणीय अनुमति के लिए भी अडानी कंपनी ने ग्रामसभा की सहमति के दस्तावेज़ लगाए हैं लेकिन ऐसी कोई ग्रामसभा हुई ही नहीं है। सरपंचों ने कलेक्टर से इसकी शिकायत भी की लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।
पत्रिका में प्रकाशित खबर के मुताबिक, प्रभावित गाँव साल्ही के रामलाल करियाम ने बताया कि गाँव वालों को सरकार के द्वारा कोई सूचना नहीं मिली, दूसरे लोगों द्वारा अभी ये जानकारी मिली है। सरपंच ननिया बाई के प्रतिनिधि सेवाराम पोर्ते ने गाँवभर के सामने ऐसे किसी नोटिस की जानकारी से इंकार किया। इसको लेकर गाँव में हंगामा मचा हुआ है। नोटिस के मुताबिक साल्ही पंचायत में साल्ही गाँव की 14.130 हेक्टेयर और हरिहरपुर गाँव की 7.289 हेक्टेयर सरकारी ज़मीन राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम को आवंटित की जानी है। ज्ञात हो कि इस खदान को विकसित करके संचालित करने का ठेका अडानी समूह के पास है। परसा कोल ब्लॉक सहित हसदेव अरण्य क्षेत्र की दूसरी खनन परियोजनाओं के विरोध में पिछले 67 दिनों से सरगुजा के फतेपुर गाँव में कई गाँव के लोग धरने पर बैठे हैं।