वर्दीधारियों का कोटा कांड ' दलितों को औकात में रहने का ' संदेश है !

Written by भंवर मेघवंशी | Published on: February 23, 2017
राजस्थान के कोटा शहर में स्थित महावीर नगर थाने में दलित महिला विधायक चंद्रकांता मेघवाल के साथ हुई निर्मम मारपीट और जातिगत अपमान वर्दीधारियों की गुंडागर्दी का जीता जागता उदाहरण है. यह कांड साबित करता है कि सुरक्षा दस्तों में किस तरह की जातिवादी तथा दलित विरोधी मानसिकता के लोगों का वर्चस्व है.

Meghwal

रोज आम जनता पर लाठियां बजाने वाली ,डंडे फटकारने वाली और लाते, घूसे बरसाने वाली पुलिस पर अगर आम जनता का एक थप्पड़ भी उठ जाता है, तो इसे 'वर्दी का अपमान' कहकर पुलिस लामबंद होने लग जाती है .मैस के खाने का बहिष्कार किया जाने लगता है. यहाँ तक कि अनुशासन में होने का दिखावा करने वाला पुलिस तंत्र खुलेआम बगावत पर उतर आता है.

 रामगंज मंडी की दलित विधायक चंद्रकांता मेघवाल के पति नरेंद्र मेघवाल पर थाने की सीआई पर हाथ उठाने का आरोप है, सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में भी कुछ ऐसा ही अस्पष्ट सा ऐसा दिखता भी है .चलो मान भी लें कि नरेंद्र मेघवाल ने कानून हाथ में ले लिया था तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती थी .लेकिन कानून के रखवालों ने जिन्हें कानूनों की जानकारी है ,उन्होंने कैसे कानून हाथ में ले लिया ? वे क्यों खुलेआम गुंडागर्दी पर उतर आए ? या वे भी वर्दीधारी गुंडे ही थे !

दलित महिला विधायक चंद्रकांता मेघवाल को धक्का मारकर नीचे  गिरा देना, उनके कपड़े खींच लेना और चेंबर में ले जाकर लातों ,घूसों और लाठियों से पीटना यह कौनसे कानून का पालन है ?  अगर विधायक पति ने पुलिस पर हाथ उठाया भी था तो उन्हें कानून के दायरे में सजा मिल सकती है ,लेकिन पति की कथित गलती की सजा विधायक पत्नी को देने के  कुकृत्य को कानून की कौन सी धारा में जायज ठहराया जा सकता है ?

कुल मिलाकर जातिवादी और दलित विरोधी पुलिस तंत्र को एक निडर ,दबंग तथा अन्याय एवं अत्याचार के खिलाफ सदैव मुखर होकर बोलने वाली दलित महिला विधायक शायद बर्दाश्त नहीं है ,इसलिए उन्हें हर हाल में " दलितों को सबक सिखा देने "की मनुवादी मानसिकता के मनोविकार से ग्रसित तत्वों ने तुरन्त सबक सिखाने की कोशिश की है ।

यह महज सत्ता और नौकरशाही के बीच की दबंगई नहीं है ,जैसा कुछ लोग मान रहे है और ना ही इसे सत्ता का दुरूपयोग कह कर ख़ारिज करने की जरूरत है ।यह जातिवादी वर्चस्व और पुलिस तंत्र में बैठे मनुवादी तत्वों की निर्ल्लज गुंडागर्दी का मामला है ।

 जिन्हें कानून की रक्षा करनी थी उन्होंने ही कानून व्यवस्था को कोटा में तार-तार किया है और अब अपनी इस गुंडागर्दी को सही ठहराने के लिए वह पुलिस तंत्र में अनुशासनहीनता कर रहे हैं ।अपनी अपनी जातियों के जातिवादी संगठनों को सड़कों पर अपने पक्ष में उतार रहे हैं और वह यह संदेश दे रहे हैं कि दलितों को हर हाल में सबक सिखाया जाएगा ।पुलिस तंत्र का यह कोटा कांड दलितों को उनकी औकात दिखाने की साजिश का भयानक सूत्रपात है।

वे यह संदेश देना चाहते हैं कि दलित चाहे बड़े अधिकारी बन जाए या जनप्रतिनिधि उनकी सामाजिक हैसियत गैर दलितों के मुकाबले में सदैव मामूली ही बनी रहती है उनकी नजर में दलित अब भी निम्नतर स्थिति में रखे जाते हैं और शायद इसीलिए उन्होंने महावीर नगर थाने में दलित महिला विधायक चंद्रकांता मेघवाल को के साथ गुंडागर्दी करने से पहले एक क्षण भी सोचने की जरूरत नहीं समझी ,क्योंकि वे दलितों के साथ मारपीट करने तथा उनका अपमान करने को  अपना विशेषाधिकार समझते है।

 सत्तारूढ़ दल की विधायक चंद्रकांता के साथ मारपीट के जरिए वे एक मजबूत और स्पष्ट संदेश देना चाह रहे हैं कि "दलितों को हर हाल में अपनी औकात में ही रहना होगा " भले ही वो विधायक ,सांसद ,मंत्री या आइएस ,आईपीएस ही क्यों न बन जाए ? उन्हें अपनी सामाजिक हैसियत में रहना होगा वरना स्वर्ण राजनेताओं  के रोज तलवे चाटनेवाला जातिवादी पुलिस और प्रशासन तंत्र उन्हें सबक सिखा देगा ।

इससे ज्यादा शर्मनाक बात और क्या हो सकती है कि जिस भारतीय जनता पार्टी की चंद्रकांता मेघवाल विधायक है ,उसके प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी और प्रदेश की मुख्यमंत्री एवं विधायक दल की नेता श्रीमती वसुंधरा राजे ने इस मारपीट की शर्मनाक घटना के बाद अपनी घायल विधायक की कुशलक्षेम पूछने के लिए एक फोन तक करना उचित नहीं समझा ! क्या ऐसा दुर्व्यवहार और मारपीट किसी गैर दलित सवर्ण विधायक के साथ हो जाती, तब भी मुख्यमंत्री इतनी ही निरपेक्ष बनी रहती है ?  शायद नहीं ,क्योंकि यह विशुद्ध रूप से सामाजिक हैसियत का प्रश्न है .यह साबित करता है कि राजस्थान में अभी दलितों की कोई सामाजिक हैसियत नहीं बन पाई है ।

 राजस्थान में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट का बयान भी इसी बात को रेखांकित करता है कि कांग्रेस को अपने परंपरागत समर्थक दलितों अब की कोई चिंता नहीं है, वे भी कोटा के मामले में अपने गैरजिम्मेदाराना बयानों के ज़रिये अपनी दलित विरोधी मानसिकता का ही परिचय दे रहे हैं. उन्हें एक दलित महिला विधायक का थाने में पिटना नहीं दिखता, उन्हें विधायक पति की थप्पड़ की गूंज ज्यादा सुनाई देती है. क्योंकि किसी दलित के द्वारा किसी गैर दलित को थप्पड़ मारा जाना उनके लिए भी संभवत कल्पना से बहार की बात है ,जिसे वो भी सहन नहीं कर पा रहे है ।

कई लोग इस पूरे घटना क्रम को नागौर जिले में हुए डांगावास गांव के दलित जन संघर्ष से जोड़कर भी देख रहे हैं क्योंकि जब डांगावास कांड हुआ था तब चंद्रकांता मेघवाल ही एकमात्र विधायक थी जिसने अपनी पार्टी और सरकार की परवाह किए बगैर पीड़ित दलितों के साथ खड़े होने का साहस दिखाया था ,तब से उनके प्रति सरकार में तथा एक जाति विशेष के अधिकारियों में विशेष रोष देखा जा सकता है ।राजनीतिक एवं सामाजिक विश्लेषकों का कहना है कि जब से चंद्रकांता मेघवाल दलितों के मामलों में मुखर हुई है तब से वह निशाने पर है और उनको निरंतर नीचा दिखाने और दबाने की कोशिश की जा रही है यह मारपीट भी उसी का एक हिस्सा है ।

हालांकि राज्य भर के अनुसूचित जाति व जनजाति के दलित, बहुजन, मूलनिवासी संगठन वर्दीधारियों कि इस गुंडागर्दी के खिलाफ उठ खड़े हुए हैं तथा वे चंद्रकांता मेघवाल का पक्ष ले रहे हैं ,जगह-जगह पर ज्ञापन भी दिए गए हैं और दलित विधायक की थाने में हुई इस मारपीट की कड़ी निंदा भी की है लेकिन यह सारा संघर्ष इस बात पर निर्भर करेगा कि भाजपा की दलित विधायक चंद्रकांता मेघवाल अपने स्वभाव के मुताबिक संघर्ष के पथ पर डटी रहती है या दबाव में आकर बैकफुट पर आ जाती है ?

अगर वह अपने बयानों पर डटी रहती है तो आने वाले समय में निश्चित रूप से वे राजस्थान के दलित बहुजन समाज की  एक नायिका बन कर उभर सकती है, जो की जातिवादी मानसिकता से ग्रस्त राजस्थान के शासनिक व प्रशासनिक तंत्र की चूलें हिला देने का दम रखेगी । देखना होगा उनका यह संघर्ष कौन सी दिशा लेता है .

(सामाजिक कार्यकर्ता एवं स्वतंत्र पत्रकार ,संपर्क -bhanwarmeghwanshi@gmail.com व्हाट्सएप -09571047777 )

बाकी ख़बरें