मामला फ़र्ज़ी है, चीन से एक पैसा नहीं आया: प्रबीर पुरकायस्थ ने दिल्ली हाई कोर्ट से कहा

Written by sabrang india | Published on: October 10, 2023
न्यायमूर्ति तुषार राव गडेला ने पुरकायस्थ और न्यूज़ पोर्टल के ह्यूमन रिसोर्स (एचआर) विभाग के प्रमुख अमित चक्रवर्ती की याचिकाओं पर आदेश सुरक्षित रख लिया।



नई दिल्ली: यूएपीए के तहत दर्ज एक मामले में गिरफ़्तार समाचार पोर्टल ‘न्यूजक्लिक’ के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा कि उनके ख़िलाफ़ आरोप ‘झूठे’ व ‘फ़र्ज़ी’ हैं, और ‘‘चीन से एक पैसा तक नहीं आया है।’’

न्यायमूर्ति तुषार राव गडेला ने पुरकायस्थ और न्यूज पोर्टल के ह्युमन रिसोर्स (एचआर) विभाग के प्रमुख अमित चक्रवर्ती की याचिकाओं पर आदेश सुरक्षित रख लिया। पुरकायस्थ और चक्रवर्ती ने इन याचिकाओं में, अपनी गिरफ़्तारी और सात दिन की पुलिस रिमांड को चुनौती दी है। इससे पहले, जांच एजेंसी ने अपनी कार्रवाई का बचाव करते हुए दावा किया था कि ‘न्यूजक्लिक’ ने देश की स्थिरता और अखंडता के लिए संकट की स्थिति पैदा करने के मकसद से चीन में रह रहे एक व्यक्ति से 75 करोड़ रुपये प्राप्त किये थे।

न्यायमूर्ति गडेला ने दोनों पक्षों को करीब दो घंटे सुनने के बाद कहा, ‘‘दलीलें सुन ली गई हैं। फैसला सुरक्षित रखा जाता है।’’

अदालत ने कहा कि आरोपियों की आगे कोई भी हिरासत समाचार पोर्टल के दोनों व्यक्तियों की याचिकाओं पर उसके आदेश पर निर्भर करेगी।

प्रबीर पुरकायस्थ और चक्रवर्ती को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने तीन अक्टूबर को गिरफ़्तार किया था। उन्होंने पिछले हफ्ते उच्च न्यायालय का रुख कर अपनी गिरफ़्तारी और उसके बाद की पुलिस हिरासत को चुनौती दी थी तथा अंतरिम राहत के तौर पर तत्काल रिहाई का अनुरोध किया था।

जांच एजेंसी की ओर से पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मामला ‘गंभीर अपराधों’ से जुड़ा हुआ है और जांच अब तक जारी है। उन्होंने कहा, ‘‘करीब 75 करोड़ रुपये हैं…जांच जारी है और मैं इसे केस डायरी से दिखा सकता हूं…यह चीन में रह रहे एक व्यक्ति से आया तथा मकसद यह सुनिश्चित करना था कि स्थिरता और खासतौर पर इस देश की अखंडता को संकट में डाला जाए।’’

मेहता ने अदालत से कहा, ‘‘चीन में मौजूद किसी व्यक्ति के साथ आरोपियों द्वारा किये गए ई-मेल के आदान-प्रदान में पाये गए सबसे गंभीर आरोपों में एक यह है कि हम (वे) एक नक्शा तैयार करेंगे, जहां हम (वे) जम्मू-कश्मीर को दिखाएंगे तथा जिसे हम अरुणाचल प्रदेश कहते हैं…उसके लिए उन्होंने ‘भारत की उत्तरी सीमा’ शब्दावली का इस्तेमाल किया(जो चीन करता है), और उसे (अरुणाचल को) भारत का हिस्सा नहीं दिखाएंगे।’’

मामले में पुरकायस्थ की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इस दावे का खंडन किया। उन्होंने कहा, ‘‘सभी तथ्य झूठे हैं। चीन से एक पैसा तक नहीं आया…पूरा मामला फ़र्ज़ी है।’’

सिब्बल ने वरिष्ठ अधिवक्ता डी. कृष्णन के साथ, मौजूदा मामले में उनकी गिरफ़्तारी और रिमांड का विरोध किया। उन्होंने दलील दी कि यह मामला कानून की कई कसौटियों पर खरा नहीं उतर सकता है, इनमें यह भी शामिल है कि उन्हें गिरफ़्तारी के वक़्त या यहां तक कि आज की तारीख तक गिरफ़्तारी का कारण नहीं बताया गया। उन्होंने कहा कि निचली अदालत द्वारा जारी रिमांड आदेश उनके वकीलों की अनुपस्थिति में बगैर सोच-विचार किए जारी किया गया।

पुरकायस्थ के वकीलों ने दलील दी कि गिरफ्तारियां उच्चतम न्यायालय के हालिया फैसले का उल्लंघन है, जिसने पुलिस के लिए यह अनिवार्य किया है कि वह गिरफ़्तारी के वक़्त आरोपी को लिखित में उसका आधार बताए।

सिब्बल ने कहा कि निचली अदालत के हिरासत आदेश में ‘स्पष्ट विसंगति’ थी क्योंकि आदेश में इसे सुनाने का समय सुबह 6 बजे दर्ज था जबकि, उच्च न्यायालय के नियमों के अनुसार, पुरकायस्थ के वकील को सुबह 7 बजे व्हाट्सएप के माध्यम से हिरासत अर्जी भेजी गई।

कृष्णन ने कहा कि गिरफ़्तारी का आधार बताना और अपनी पसंद का वकील रखना संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत एक ‘संवैधानिक आवश्यकता’ है, जो किसी आरोपी को हिरासत पर आपत्ति करने की शक्ति देता है।

वहीं, मेहता ने कहा कि गिरफ़्तारी कानूनी है क्योंकि आरोपियों को गिरफ़्तारी के आधार के बारे में बताया गया था। उन्होंने कहा कि जब अदालत में हिरासत अर्जी सुनवाई के लिए ली गई थी तब वहां एक वकील मौजूद थे।

मेहता ने कहा कि महज़ हिरासत आदेश रद्द कर देने से आरोपी रिहा नहीं हो जाएंगे और कहा कि चूंकि पुलिस हिरासत खत्म होने वाली है, ऐसे में आरोपियों को न्यायिक हिरासत में भेजा जा सकता है, जिसके बाद वे नियमित ज़मानत के लिए अर्जियां दायर कर सकते हैं। मेहता ने दलील दी कि हिरासत आदेश में सुबह छह बजे का उल्लेख आरोपी की पेशी के संदर्भ में है, न कि आदेश सुनाने के संदर्भ में है।

अमित चक्रवर्ती के वकील ने कहा कि वह पोलियो से ग्रसित हैं और उनकी गिरफ़्तारी की ज़रूरत नहीं थी क्योंकि वह न तो पत्रकार हैं, न ही संपादक, जो पोर्टल की सामग्री के लिए ज़िम्मेदार रहे होंगे।

दोनों आरोपियों ने अपनी गिरफ़्तारी को चुनौती देने के अलावा, मामले में प्राथमिकी रद्द करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया।

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