झारखंड-बिहार: न्यूज़क्लिक और इससे जुड़े पत्रकारों पर की गई कार्रवाई का व्यापक विरोध

Written by अनिल अंशुमन | Published on: October 7, 2023
“केंद्र सरकार ‘बोलने की आज़ादी’ पर रोक लगाना चाहती है। जो भी सरकार के ख़िलाफ़ बोलने का प्रयास करेगा उसे सीधे जेल में डाल दिया जाएगा। इसीलिए समय आ गया है कि लोकतंत्र के तमाम प्रहरी एकजुट हों”



बीते 3 अक्टूबर को न्यूज़क्लिक और इससे जुड़े सीनियर पत्रकारों, कर्मचारियों और फ्रीलान्सर्स के ख़िलाफ़ की गई कार्रवाई के विरोध में बिहार और झारखंड में कई वरिष्ठ पत्रकार एकजुट हुए जिन्होंने वर्षों पूर्व भी देश पर आपातकाल थोपे जाने का कड़ा विरोध किया था। इन पत्रकारों ने कार्रवाई को असंवैधानिक कहते हुए इसे ‘अघोषित आपातकाल’ बताया और अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया।

कार्रवाई के दौरान जिस तरीके से सार्वजनिक जीवन में रह रहे पत्रकारों को बिना किसी पूर्व सूचना और वॉरंट के उनके घरों पर पुलिस छापेमारी की गई, ये निंदनीय है। इसके अलावा सभी के मोबाइल-लैपटॉप ज़ब्त किए गए, न्यूज़क्लिक के दफ़तर को भी सील किया गया, फाउंडर प्रबीर पुरकायस्थ व दिव्यांग एचआर हेड पर ‘यूएपीए’ थोप कर गिरफ़्तार किया गया...इस घटना के दूसरे ही दिन 4 अक्टूबर को झारखंड की राजधानी रांची में 'झारखंड श्रमजीवी पत्रकार यूनियन' के आह्वान पर कड़ा विरोध दर्ज कराया गया, जिसमें वरिष्ट स्वतंत्र पत्रकारों और मीडियाकर्मियों के अलावा कई सामाजिक संगठनों के सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए।

‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ के समर्थन में कई नारों के साथ मार्च निकालकर पत्रकारों के ख़िलाफ़ इस दमनात्मक रवैये के विरोध में पोस्टर लहराते हुए ‘प्रतिवाद सभा’ भी की गई। इस सभा को संबोधित करते हुए 'श्रमजीवी पत्रकार यूनियन झारखंड' के प्रदेश अध्यक्ष सुरुन सोरेन ने आरोप लगाया कि "पत्रकारों की गिरफ्तारी लोकतंत्र की हत्या है। इस पूरे प्रकरण की न्यायिक जांच होनी चाहिए। दिल्ली में जिस तरीके से ये कार्रवाई हुई है उससे साफ़ ज़ाहिर होता है मानो ये किसी बदले की भावना से की गई कार्रवाई है।"

वरिष्ठ एक्टिविस्ट व पत्रकार फैसल अनुराग ने कहा कि "मौजूदा शासन में देश का लोकतंत्र सुरक्षित नहीं रह गया है। समाज के सभी जागरूक तबकों को गंभीरता के साथ इस पर विचार करना होगा।"

वरिष्ठ मीडियाकर्मी किसलय ने कहा कि "केंद्र सरकार ‘बोलने की आज़ादी’ पर रोक लगाना चाहती है। सभी लोग मौन होकर इसे सह रहे हैं लेकिन एक-एक करके सबकी बारी आएगी कि जो भी इस सरकार के ख़िलाफ़ बोलने का प्रयास करेगा उसे सीधे जेल में डाल दिया जाएगा। इसीलिए समय आ गया है कि लोकतंत्र के तमाम प्रहरी एकजुट हों।"

इसके अलावा 4 अक्टूबर को राजधानी रांची के मोरहाबादी स्थित बापू वाटिका परिसर में 'झारखंड जर्नलिस्ट एसोशिएशन' ने प्रतिवाद-धरना दिया गया। ‘लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला बंद करो’, ‘पत्रकारों की आवाज़ दबाना बंद करो’ जैसे नारे के तहत इस प्रतिवाद कार्यक्रम के माध्यम से संयुक्त रूप से कहा गया कि "जो पत्रकार कड़ी मेहनत कर सच्ची ख़बरें जनता तक पहुंचाते हैं, ऐसे दर्जनों पत्रकारों पर दिल्ली में किसी ख़तरनाक अपराधी जैसा सलूक किया जाना और बेबुनियाद धाराएं थोपकर गिरफ़्तार किया जाना साबित करता है कि देश में स्वतंत्र मीडिया को दबाने-डराने के लिए यह सरकार कुछ भी करने पर तुली हुई है।"

'झारखंड जर्नलिस्ट एसोशिएशन' के इस कार्यक्रम के माध्यम से ‘पत्रकार सुरक्षा कानून’ बनाने की भी मांग की गई ताकि स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता क़ायम रहे।

वहीं 5 अक्टूबर को झुमरी तिलैया में भी विभिन्न सामाजिक जन संगठनों और कई राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने ‘विरोध मार्च’ निकाल कर प्रतिवाद सभा की जिसमें आरोप लगाया गया कि- "अभी देश में आम जनता, महंगाई-बेरोज़गारी जैसे कई दूसरे संकटों जूझ रही है। इससे ध्यान भटकाने के लिए सरकार पत्रकारों के साथ ऐसा कर रही है।"

इसके अलावा बिहार में दिल्ली में हुई घटना के दिन ही ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम के तत्वाधान में ‘प्रतिवाद मार्च’ निकाला गया जिसका नेतृत्व ‘इंडिया गठबंधन’ से जुड़े कई दलों ने किया, जिस्मने सामाजिक कार्यकर्ता, छात्र, युवा, संस्कृतिकर्मी व स्वतंत्र मीडियाकर्मी शामिल हुए। नागरिक प्रतिवाद मार्च पटना के विधान सभा परिसर के सामने स्थित शहीद स्मारक पर पहुंचकर विरोध सभा में तब्दील हो गया।

जदयू प्रवक्ता नीरज सिंह ने आरोप लगाया कि "दिल्ली में पत्रकारों के साथ हुई इस घटना के कारण प्रेस स्वतंत्रता को लेकर कई सवाल उठेंगे। ज़मीनी धरातल पर सरकार के असली सच को सामने लाने वाली मीडिया पर कार्रवाई करने के बजाय मोदी सरकार को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए।"

माले महासचिव ने कहा कि "मोदी सरकार द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता पर लगातार हमला जारी है। जिन पत्रकारों के घरों पर दिल्ली पुलिस ने छापा मारा है, वे दशकों से निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए जाने जाते हैं और हमेशा से ही सत्ता को आईना दिखाने का काम करते रहें हैं। ऐसे पत्रकारों के घरों पर छापे की कार्रवाई करके गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाली दिल्ली पुलिस न केवल इन पत्रकारों को बल्कि इनसे इतर जो भी पत्रकार जनसरोकारों से जुड़े हुए हैं, उन्हें धमकाने की कोशिश कर रही है।"

वक्ताओं ने कहा कि "यही वह बिहार की धरती है जहां लोकतंत्र पर सत्ता द्वारा किये जाने वाले हमलों का कारगर और निर्णायक जवाब दिया गया है, आने वाले समय में भी सरकार के लोकतंत्र विरोधी हर क़दम का करारा जवाब दिया जाएगा।"

इसके साथ ही 5 अक्टूबर को 'जन संस्कृति मंच दरभंगा' के संयोजकत्व में कई छात्र-युवा और जन संगठनों ने मार्च निकलकर ‘नागरिक-प्रतिवाद’ किया।

उक्त संदर्भों में, वर्षों पूर्व लगाए गए आपातकाल के विरोध में चली मुहीम का हिस्सा रहे रांची के वरिष्ठ पत्रकार श्रीनिवास जी का कथन काफी महत्वपूर्ण है। वे कहते है, “दिल्ली में न्यूज़क्लिक से जुड़े पत्रकारों समेत वरिष्ठ एक्टिविस्ट्स के ख़िलाफ़ केंद्र सरकार साफ़ ‘मनमानी’ कर रही है। अमेरिका में छपी एक खबर को बहाना बनाकर जो काम किया जा रहा, वो खुलेआम स्वतंत्र मीडिया की आवाज़ को डराने-दबाने कि सोची समझी योजना है। इसका विरोध बेहद ज़रूरी है।”

श्रीनिवास कहते हैं, “कितनी भारी विडंबना है, बताया जा रहा है कि न्यूज़क्लिक के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ जी इमरजेंसी के दौर में भाजपा नेता नेताओं के साथ ही जेल में डाले गए थे। लेकिन आज उसी भाजपा की केंद्र सरकार द्वारा उन्हें यूएपीए के तहत जेल में डाला जाना, साबित करता है कि अब देश में 'अघोषित आपातकाल' है।”

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