उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा कई स्थानों पर ईवीएम पकड़े जाने के बाद इसकी विश्वसनीयता पर बहस तेज हो गई है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बीजेपी पर ईवीएम में हेराफेरी कर चुनाव परिणाम प्रभावित करने की शिकायतें की हैं। लेकिन, यह पहली बार नहीं है जब ईवीएम पर सवाल उठाए गए हों। ईवीएम पर सबसे पहले भारतीय जनता पार्टी ने ही सवाल उठाए थे।
बात है 2009 की। तब भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने ईवीएम से छेड़छाड़ को लेकर पूरी एक किताब लिख डाली। उस दौरान लालकृष्ण आडवाणी, सुब्रमण्यम स्वामी जैसे वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने विशेषज्ञों की सहायता से ईवीएम मशीन के साथ होने वाले छेड़छाड़ और धोखाधड़ी को लेकर पूरे देश में सघन अभियान चलाया था। यानी भाजपा ईवीएम का विरोध करने वाली सबसे पहली राजनीतिक पार्टी थी।
दरअसल, साल 2009 में भाजपा ने चुनावी हार का सामना किया था, तब पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने सबसे पहले ईवीएम पर सवाल उठाए थे। तब 2010 में जीवीएल नरसिम्हा राव ने ‘डेमोक्रेसी एट रिस्क: कैन वी ट्रस्ट ऑर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन’ नामक एक किताब भी लिखी थी। मजेदार बात यह है कि इस किताब की प्रस्तावना लाल कृष्ण आडवाणी ने लिखी थी। इस पुस्तक पर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्राबाबू नायडू का भी संदेश छपा हुआ है।
इस किताब में क्या है?
इस पुस्तक के कवर पर ही लिखा है – चुनाव आयोग द्वारा भारत के इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम की अक्षमता को आश्वस्त करने में नाकामी का चौंकाने वाला खुलासा।
भाजपा नेता राव ने इस किताब की शुरुआत में लिखा है कि मशीनों के साथ छेड़छाड़ हो सकती है, भारत में उपयोग होने वाली इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) इसका अपवाद नहीं है। ऐसे कई उदाहरण हैं जब एक प्रत्याशी को दिया वोट दूसरे प्रत्याशी को मिल गया है या फिर प्रत्याशियों को वो मत भी मिले हैं जो कभी डाले ही नहीं गए।
इस किताब के जरिए ईवीएम प्रणाली के विशेषज्ञ और स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेविड डिल ने बताया है कि ईवीएम का उपयोग पूरी तरह से सुरक्षित तो बिल्कुल भी नहीं है।
जीवीएल नरसिम्हाराव ने इस पुस्तक में 2010 के ही उस मामले की भी चर्चा की है जिसमें हैदराबाद के तकनीकी विशेषज्ञ हरि प्रसाद ने मिशिगन यूनिवर्सिटी के दो शोधार्थियों के साथ मिलकर ईवीएम को हैक करने का दावा किया था।
अब ईवीएम का समर्थन क्यों
विपक्षी दल अब भाजपा पर आरोप लगाते हैं कि जिन लोगों ने सबसे ज्यादा विरोध किया है वो आज चुप हैं। अपनी सुविधा के हिसाब से भाजपा ने इसका विरोध किया और अब दूसरों के विरोध को खारिज कर रहे हैं। अब भाजपा के नेता ही ईवीएम पर सवाल उठाने को लेकर अखिलेश यादव पर निशाना साध रहे हैं।
2009 में कांग्रेस ने भी उठाया था सवाल
2009 में चुनाव हारने के बाद भारतीय जनता पार्टी जब पूरे देश में ईवीएम पर सवाल उठा रही थी, ठीक उसी वक्त उड़ीसा कांग्रेस के नेता जेबी पटनायक ने ईवीएम पर सवाल खड़े कर दिए। दरअसल उड़ीसा में कांग्रेस चुनाव हार चुकी थी और वहां पर बीजू जनता दल सरकार बना रही थी। चुनाव हारने पर कांग्रेस ने सबसे पहले ठीकरा ईवीएम पर ही फोड़ा था। एक और मजेदार वाकिया 2014 का भी है। जब भारतीय जनता पार्टी 2014 में रिकॉर्ड मतों से चुनाव जीती, तो असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने सबसे पहले ईवीएम पर सवाल उठाए और कहा कि भाजपा की जीत ईवीएम की वजह से हुई है।
आम आदमी पार्टी ने दिया था ईवीएम हैकिंग का डेमो
ईवीएम पर सवाल उठाने वालों का सिलसिला यहीं नहीं रुका। देश की बड़ी-बड़ी पार्टियां जब चुनाव हारती रहीं तो सबसे पहले उन्होंने खुद का आत्ममंथन करने की बजाय ईवीएम पर ही सवाल दागने शुरू किए। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने तो 2017 में चुनाव आयोग के खिलाफ ऐसा बिगुल फूंका कि केजरीवाल के विधायक सौरभ भारद्वाज ने खुलेआम ईवीएम को हैक करने का डेमो तक कर डाला। भारद्वाज ने सदन में बताया कैसे 5-स्टेप में ईवीएम को हैक किया जा सकता है।
इसके अलावा यूपी में 2017 के चुनावों के दौरान बीजेपी की बंपर जीत के बाद बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने भी ईवीएम पर सवाल उठाए थे। उन्होंने अपनी हार का ठीकरा ईवीएम पर ही फोड़ा था। क्योंकि, उस समय 11 तारीख को मतगणना हुई थी और बीएसपी की हार हुई थी, इसलिए बसपा चीफ ने हर महीने की 11 तारीख को ईवीएम के विरोध में काला दिवस मनाने का ऐलान किया था। लेकिन यह अभियान सुचारू रूप से चल नहीं सका।
ऐसे समय में ईवीएम एक बार फिर से सवालों के घेरे में आ गई है। दरअसल, इस बार कई जगहों पर ईवीएम मशीनें मतगणना से पहले ही पकड़ी गई हैं। अखिलेश यादव के सवाल भी स्वाभाविक प्रतीत होते हैं। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि 2014 में बंपर जीत के बाद बीजेपी के लिए ईवीएम क्यों इतनी सुरक्षित हो गई कि चुनावी सीजन में कोई भी इस पर सवाल कर दे तो वह उसे खारिज कर आईटी सेल को मीम्स बनाने के लिए एक्टिव कर देती है।
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बात है 2009 की। तब भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने ईवीएम से छेड़छाड़ को लेकर पूरी एक किताब लिख डाली। उस दौरान लालकृष्ण आडवाणी, सुब्रमण्यम स्वामी जैसे वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने विशेषज्ञों की सहायता से ईवीएम मशीन के साथ होने वाले छेड़छाड़ और धोखाधड़ी को लेकर पूरे देश में सघन अभियान चलाया था। यानी भाजपा ईवीएम का विरोध करने वाली सबसे पहली राजनीतिक पार्टी थी।
दरअसल, साल 2009 में भाजपा ने चुनावी हार का सामना किया था, तब पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने सबसे पहले ईवीएम पर सवाल उठाए थे। तब 2010 में जीवीएल नरसिम्हा राव ने ‘डेमोक्रेसी एट रिस्क: कैन वी ट्रस्ट ऑर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन’ नामक एक किताब भी लिखी थी। मजेदार बात यह है कि इस किताब की प्रस्तावना लाल कृष्ण आडवाणी ने लिखी थी। इस पुस्तक पर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्राबाबू नायडू का भी संदेश छपा हुआ है।
इस किताब में क्या है?
इस पुस्तक के कवर पर ही लिखा है – चुनाव आयोग द्वारा भारत के इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम की अक्षमता को आश्वस्त करने में नाकामी का चौंकाने वाला खुलासा।
भाजपा नेता राव ने इस किताब की शुरुआत में लिखा है कि मशीनों के साथ छेड़छाड़ हो सकती है, भारत में उपयोग होने वाली इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) इसका अपवाद नहीं है। ऐसे कई उदाहरण हैं जब एक प्रत्याशी को दिया वोट दूसरे प्रत्याशी को मिल गया है या फिर प्रत्याशियों को वो मत भी मिले हैं जो कभी डाले ही नहीं गए।
इस किताब के जरिए ईवीएम प्रणाली के विशेषज्ञ और स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेविड डिल ने बताया है कि ईवीएम का उपयोग पूरी तरह से सुरक्षित तो बिल्कुल भी नहीं है।
जीवीएल नरसिम्हाराव ने इस पुस्तक में 2010 के ही उस मामले की भी चर्चा की है जिसमें हैदराबाद के तकनीकी विशेषज्ञ हरि प्रसाद ने मिशिगन यूनिवर्सिटी के दो शोधार्थियों के साथ मिलकर ईवीएम को हैक करने का दावा किया था।
अब ईवीएम का समर्थन क्यों
विपक्षी दल अब भाजपा पर आरोप लगाते हैं कि जिन लोगों ने सबसे ज्यादा विरोध किया है वो आज चुप हैं। अपनी सुविधा के हिसाब से भाजपा ने इसका विरोध किया और अब दूसरों के विरोध को खारिज कर रहे हैं। अब भाजपा के नेता ही ईवीएम पर सवाल उठाने को लेकर अखिलेश यादव पर निशाना साध रहे हैं।
2009 में कांग्रेस ने भी उठाया था सवाल
2009 में चुनाव हारने के बाद भारतीय जनता पार्टी जब पूरे देश में ईवीएम पर सवाल उठा रही थी, ठीक उसी वक्त उड़ीसा कांग्रेस के नेता जेबी पटनायक ने ईवीएम पर सवाल खड़े कर दिए। दरअसल उड़ीसा में कांग्रेस चुनाव हार चुकी थी और वहां पर बीजू जनता दल सरकार बना रही थी। चुनाव हारने पर कांग्रेस ने सबसे पहले ठीकरा ईवीएम पर ही फोड़ा था। एक और मजेदार वाकिया 2014 का भी है। जब भारतीय जनता पार्टी 2014 में रिकॉर्ड मतों से चुनाव जीती, तो असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने सबसे पहले ईवीएम पर सवाल उठाए और कहा कि भाजपा की जीत ईवीएम की वजह से हुई है।
आम आदमी पार्टी ने दिया था ईवीएम हैकिंग का डेमो
ईवीएम पर सवाल उठाने वालों का सिलसिला यहीं नहीं रुका। देश की बड़ी-बड़ी पार्टियां जब चुनाव हारती रहीं तो सबसे पहले उन्होंने खुद का आत्ममंथन करने की बजाय ईवीएम पर ही सवाल दागने शुरू किए। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने तो 2017 में चुनाव आयोग के खिलाफ ऐसा बिगुल फूंका कि केजरीवाल के विधायक सौरभ भारद्वाज ने खुलेआम ईवीएम को हैक करने का डेमो तक कर डाला। भारद्वाज ने सदन में बताया कैसे 5-स्टेप में ईवीएम को हैक किया जा सकता है।
इसके अलावा यूपी में 2017 के चुनावों के दौरान बीजेपी की बंपर जीत के बाद बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने भी ईवीएम पर सवाल उठाए थे। उन्होंने अपनी हार का ठीकरा ईवीएम पर ही फोड़ा था। क्योंकि, उस समय 11 तारीख को मतगणना हुई थी और बीएसपी की हार हुई थी, इसलिए बसपा चीफ ने हर महीने की 11 तारीख को ईवीएम के विरोध में काला दिवस मनाने का ऐलान किया था। लेकिन यह अभियान सुचारू रूप से चल नहीं सका।
ऐसे समय में ईवीएम एक बार फिर से सवालों के घेरे में आ गई है। दरअसल, इस बार कई जगहों पर ईवीएम मशीनें मतगणना से पहले ही पकड़ी गई हैं। अखिलेश यादव के सवाल भी स्वाभाविक प्रतीत होते हैं। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि 2014 में बंपर जीत के बाद बीजेपी के लिए ईवीएम क्यों इतनी सुरक्षित हो गई कि चुनावी सीजन में कोई भी इस पर सवाल कर दे तो वह उसे खारिज कर आईटी सेल को मीम्स बनाने के लिए एक्टिव कर देती है।
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