वर्ष 2014 से भारत में ईसाइयों के खिलाफ अत्याचारों में 500% की वृद्धि हुई: ईसाई अधिकार कार्यकर्ताओं का दावा

Written by sabrang india | Published on: November 7, 2025
ईसाई अधिकार से जुड़े कार्यकर्ताओं ने कहा कि वर्ष 2014 के बाद से ईसाइयों को निशाना बनाने वाले नफरत भरे अपराधों में 500% की बढ़ोतरी हुई है। पिछले दशक में ऐसे सबसे अधिक अपराध उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए। वर्ष 2025 के पहले नौ महीनों में ही ईसाइयों के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न की 579 घटनाएं दर्ज की गई हैं।


फोटो साभार : द वायर

ईसाई अधिकार से जुड़े कार्यकर्ताओं ने 4 नवंबर को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक रिपोर्ट जारी करते हुए भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा पर चिंता जताई। प्रेस कॉन्फ्रेंस में जारी बयान में दावा किया गया कि वर्ष 2014 के बाद से ईसाइयों को निशाना बनाने वाले नफरत भरे अपराधों (हेट क्राइम) में 500% की बढ़ोतरी हुई है।

बयान में कहा गया है, “वर्ष 2014 से 2024 के बीच ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं 139 से बढ़कर 834 तक पहुंच गईं यानी सिर्फ दस वर्षों में 500% की वृद्धि हुई है। इन 12 वर्षों में कुल 4,959 घटनाएं दर्ज की गईं, जिनसे देशभर में ईसाई व्यक्ति, परिवार और संस्थाएं प्रभावित हुईं। यह हर साल औसतन 69.5 घटनाओं की बढ़ोतरी दर्शाता है, जो किसी आकस्मिक प्रवृत्ति का नहीं, बल्कि एक निरंतर और संगठित पैटर्न का संकेत है।”

कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए सिस्टर मीनाक्षी ने हिंदुत्व समूहों द्वारा ईसाइयों पर किए गए हमलों के कई उदाहरण प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा, “लोगों को धर्म के आधार पर बांटने की एक संगठित कोशिश चल रही है।”

मानवाधिकार कार्यकर्ता माइकल विलियम्स ने भी चिंता जताते हुए कहा कि “‘धर्मांतरण’ का मुद्दा हर चुनाव से पहले सरकार द्वारा एक ‘राजनीतिक हथियार’ के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।”

वकील तहमीना अरोड़ा ने आदिवासी ईसाइयों पर हो रहे अत्याचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्हें ईसाई धर्म अपनाने के कारण “अत्याचार और सामाजिक बहिष्कार” का सामना करना पड़ रहा है।

उन्होंने बताया, “भारत में लगभग 70 लाख जनजातीय ईसाई हैं। ये लोग देश के सबसे दूरदराज़ इलाकों में रहते हैं और बेहद असुरक्षित स्थिति में हैं। इसी कारण इन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है।”

अरोड़ा ने छत्तीसगढ़ का उदाहरण देते हुए कहा कि “वहां जनजातीय समुदाय से आने वाले ईसाइयों को सताने की एक सुनियोजित कोशिश चल रही है।”

उन्होंने बताया, “जनवरी 2025 में बस्तर की एक महिला, कनिका कश्यप, पर इसलिए हमला किया गया क्योंकि उन्होंने धर्म परिवर्तन किया था। वह उस समय गर्भवती थीं और हमले के परिणामस्वरूप उनका गर्भपात हो गया। उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसके बाद जुलाई 2025 में जमशेदपुर में एक घर पर हमला हुआ, जहां कुछ लोग केवल खाना खाने के लिए इकट्ठा हुए थे। किसी ने अफवाह फैलाई कि वहां धर्मांतरण किया जा रहा है, जिसके बाद भीड़ ने घर पर हमला कर दिया। बाद में पुलिस जांच में स्पष्ट हुआ कि वह तो सिर्फ एक साधारण रात्रिभोज का आयोजन था।”

अरोड़ा ने कहा, “आज हालात इतने खराब हो गए हैं कि ट्रेन में सफर करना, साथ भोजन करना या सिर्फ ‘नन’ होना भी धर्मांतरण के आरोप का कारण बन सकता है। यही वजह है कि हमने आज यहां चाय तक नहीं रखी ताकि कोई यह न सोच ले कि हम धर्मांतरण करवा रहे हैं।”

उन्होंने कहा कि जनजातीय ईसाइयों को सामाजिक बहिष्कार का सामना भी करना पड़ता है, जो एक बेहद प्रभावी भेदभाव का तरीका है।

द वायर ने अरोड़ा के हवाले से लिखा, ‘उनका बहिष्कार करने के लिए लोगों को उनसे बात करने से मना कर दिया जाता है। जो लोग ईसाइयों से बात करते हैं या उन्हें सामाजिक कार्यक्रमों में बुलाते हैं, उन पर जुर्माना लगाया जाता है। ईसाइयों के घर जला दिए जाते हैं, खेत नष्ट किए जाते हैं, पशु छीन लिए जाते हैं, रोजगार से वंचित किया जाता है, यहां तक कि उन्हें अपने मृतकों को दफनाने की अनुमति भी नहीं दी जाती।’

उन्होंने बताया कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, लेकिन अदालत ने कहा कि ‘उसके हाथ बंधे हैं’ और समाज को खुद आगे आने को कहा।

अरोड़ा ने कहा, “आज सामाजिक बहिष्कार एक गंभीर संकट का रूप ले चुका है। लोगों पर ‘घर वापसी’ के जरिए अपने पुराने धर्म में लौटने का दबाव डाला जा रहा है। लेकिन आस्था कोई हल्की चीज नहीं होती- यह एक गहरी निष्ठा है। असली ‘बलपूर्वक धर्मांतरण’ तो वही है, जब किसी व्यक्ति को अपनी चुनी हुई आस्था छोड़ने पर मजबूर किया जाए।”

प्रेस बयान के अनुसार, वर्ष 2025 के पहले नौ महीनों में ईसाइयों के खिलाफ 579 घटनाएं दर्ज की गईं, लेकिन इनमें से केवल 39 मामलों में ही एफआईआर दर्ज की गई। इन घटनाओं में 71 डराने-धमकाने के मामले, 51 प्रार्थना करने से रोकने की घटनाएं, 9 शारीरिक हमले और 7 संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामले शामिल हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दशक में हर साल औसतन 69.5 नए नफरती अपराध बढ़े हैं, जिनमें से 76% मामले सिर्फ पांच राज्यों से सामने आए हैं। इनमें उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक घटनाएं दर्ज की गईं- कुल मामलों का 31.6% हिस्सा इसी राज्य से संबंधित है।

कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि पुलिस अधिकारी ईसाई पीड़ितों की शिकायतें दर्ज करने से इनकार कर रहे हैं, जिससे अपराधियों में दंडहीनता का माहौल पनप रहा है। उन्होंने बताया कि 2016 से 2020 के बीच कम से कम 21 ईसाइयों की हत्या नफरत-आधारित अपराधों में की गई, जिनमें एक मामला राजस्थान का भी है जहां एक व्यक्ति की जानबूझकर बिजली का झटका देकर हत्या की गई।

कई ईसाई अधिकार संगठनों ने इन मुद्दों को केंद्र सरकार के समक्ष उठाने के लिए राष्ट्रीय ईसाई सम्मेलन (National Christian Convention) आयोजित करने का निर्णय लिया है। यह सम्मेलन 29 नवंबर को दिल्ली के जंतर मंतर पर आयोजित किया जाएगा।

सम्मेलन के बयान में कहा गया है, “यह कोई राजनीतिक आंदोलन नहीं, बल्कि ईसाई नागरिकों के बीच एक संवैधानिक संवाद है जहां वे अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। लगातार बढ़ती हिंसा, पुलिस की निष्क्रियता और न्याय की अनुपलब्धता के बीच अब समाधान खोजना अत्यंत आवश्यक हो गया है।”

ज्ञात हो कि सितंबर 2025 में भारत के ईसाई समुदाय के खिलाफ लक्षित उत्पीड़न और नफरत-आधारित हमलों में तेजी आई है। ये घटनाएं विशेष रूप से राजस्थान में ज्यादा देखी गईं। जो कुछ छापों और पुलिस चेतावनियों के रूप में शुरू हुआ था, वह जल्द ही एक संगठित उत्पीड़न अभियान में बदल गया, जिसे “धर्मांतरण-विरोधी निगरानी” के रूप में पेश किया गया। यह कोई संयोग नहीं था।

हाल ही में पेश किए गए राजस्थान धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2025 के बाद, विश्व हिंदू परिषद (विहिप), बजरंग दल और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) जैसे दक्षिणपंथी संगठन बेहद सक्रिय हो गए। कई बार ये संगठन पुलिस से पहले या उसके साथ मिलकर कार्रवाई करते देखे गए।

चर्चों, हॉस्टलों और प्रार्थना सभाओं पर छापे मारे गए; पादरियों को हिरासत में लिया गया; अनुयायियों को यह लिखने के लिए मजबूर किया गया कि वे न तो प्रार्थना सभाओं में शामिल होंगे और न किसी प्रकार की धार्मिक गतिविधि में भाग लेंगे और यह सब “धर्मांतरण की जांच” के नाम पर हुआ।

छात्रावास पर पुलिस का छापा

3 सितंबर को अलवर जिले के गेलोटा (उद्योग नगर क्षेत्र) में बच्चों के एक छात्रावास पर पुलिस ने छापा मारा। यह छात्रावास एक मिशनरी द्वारा संचालित बताया गया, जहां लगभग 25 गरीब बच्चे रह रहे थे। कार्रवाई विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के एक कार्यकर्ता की शिकायत पर की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वहां “धर्मांतरण” गतिविधि चल रही है।

बाहरी लोगों को शामिल न करें

9 सितंबर को, विधानसभा में धर्मांतरण-विरोधी विधेयक पेश होने के लगभग एक घंटे बाद, पुलिस अधिकारी खेतोलाई गांव में विक्रम और राजेंद्र कनव के घर पहुंचे। दोनों भाई नियमित रूप से अपने घर पर सत्संग और प्रार्थना सभाओं का आयोजन करते हैं। पुलिस ने उन्हें चेतावनी दी कि वे अपने सत्संग में बाहरी लोगों को शामिल न करें। इसके बाद दोनों को थाने ले जाकर पूछताछ की गई और एक लिखित प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर कराए गए, जिसमें यह सुनिश्चित करने को कहा गया कि वे आगे सत्संग नहीं करेंगे।

प्रार्थना सभा या भोजन आयोजन पर रोक

9 सितंबर को पाओटा में भी इसी तरह की घटना हुई। अनुयायी गजानंद कुलदीप ने बताया कि बिल पारित होने के अगले दिन सुबह थानेदार ने उन्हें बुलाकर चेतावनी दी कि यदि उन्होंने फिर से प्रार्थना सभा या भोजन आयोजन किया, या बाहर के लोगों को बुलाया, तो उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा। उन्हें एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने के लिए भी मजबूर किया गया।

चर्च के बाहर विरोध प्रदर्शन

10 सितंबर को स्थानीय हिंदू संगठनों और एक “संत समाज” समूह ने एक अल्पसंख्यक संचालित स्कूल और उसके चर्च के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। आरोप लगाया गया कि यह स्कूल आदिवासी छात्रों और उनके अभिभावकों का धर्मांतरण कर रहा है। पुलिस बड़ी संख्या में मौके पर पहुंची, लेकिन किसी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई।

हॉस्टल पर हमला

16 सितंबर की रात को अनाथ बच्चों के लिए संचालित एक हॉस्टल पर हमला हुआ। छात्र और शिक्षक इस अचानक हुए हमले से भयभीत हो गए। इसे जिले में ईसाई संस्थानों पर बढ़ते हमलों की श्रृंखला का हिस्सा माना जा रहा है।

पुलिस में शिकायत

17 सितंबर को एक व्यक्ति ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि इलाके में “मिशनरी गतिविधियों” के तहत उसका धर्म परिवर्तन कराया गया है। विश्व हिंदू परिषद ने इस शिकायत का समर्थन किया। पुलिस ने मिशनरी समूह से जुड़े पोलस बरजाओ और आर्यन नामक दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया और मामले की जांच शुरू की। तीसरा व्यक्ति (मकान मालिक) फरार बताया गया। दोनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

एक निजी घर में घुसे बजरंग दल कार्यकर्ता

21 सितंबर को लगभग 40–50 बजरंग दल कार्यकर्ता एक निजी घर में घुस गए, जहाँ पादरी बोबास डैनियल लगभग 15–26 लोगों के साथ प्रार्थना कर रहे थे। हमलावरों ने दरवाज़े बंद कर दिए, सामान तोड़ दिया और श्रद्धालुओं पर हमला किया। एक गर्भवती महिला और मकान मालकिन सहित पड़ोसियों ने बचाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें भी पीटा गया। आठ लोग घायल हुए। पुलिस ने प्राथमिकी तभी दर्ज की जब समुदाय के लोगों ने कड़ा विरोध किया। पुलिस की देरी और हमलावरों की गिरफ्तारी न होने पर स्थानीय लोगों ने चिंता जताई।

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