सरकारी आंकड़ों में यूपी में 'एससी के खिलाफ', जबकि मध्य प्रदेश में 'एसटी के खिलाफ' सबसे ज्यादा अत्याचार

Written by sabrang india | Published on: September 23, 2024
रिपोर्ट के मुताबिक, एससी के खिलाफ अत्याचार के सभी मामलों में से 97.7 प्रतिशत 13 राज्यों में दर्ज किए गए हैं।


फोटो साभार : हिंदुस्तान टाइम्स

एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में 2022 में अनुसूचित जातियों (एससी) के खिलाफ सबसे ज्यादा अत्याचार हुए हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, एससी के खिलाफ अत्याचार के सभी मामलों में से 97.7 प्रतिशत 13 राज्यों में दर्ज किए गए हैं।

उत्तर प्रदेश में 12,287 मामले (23.78 प्रतिशत), राजस्थान में 8,651 मामले (16.75 प्रतिशत) और मध्य प्रदेश में 7,732 मामले (14.97 प्रतिशत) दर्ज किए गए।

अन्य राज्यों में अधिक मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें बिहार में 6,799 मामले (13.16 प्रतिशत), ओडिशा में 3,576 मामले (6.93 प्रतिशत) और महाराष्ट्र में 2,706 मामले (5.24 प्रतिशत) शामिल हैं। 2022 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज किए गए कुल मामलों में से लगभग 81 प्रतिशत केवल इन छह राज्यों में दर्ज किए गए।

इस अधिनियम के तहत 2022 में अनुसूचित जातियों के खिलाफ कुल 51,656 मामले दर्ज किए गए। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि ये मामले भारतीय दंड संहिता के तहत भी दर्ज किए गए थे।

रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि एसटी के खिलाफ अत्याचार के अधिकांश मामले भी 13 राज्यों में हुए। एसटी से जुड़े 9,735 मामलों में से मध्य प्रदेश में 2,979 मामले (30.61 प्रतिशत), राजस्थान में 2,498 मामले (25.66 प्रतिशत) और ओडिशा में 773 मामले (7.94 प्रतिशत) दर्ज किए गए।

एसटी से संबंधित अन्य मामलों में महाराष्ट्र में 691 मामले (7.10 प्रतिशत) और आंध्र प्रदेश में 499 मामले (5.13 प्रतिशत) शामिल हैं।

इस रिपोर्ट में जांच और चार्जशीट से संबंधित डेटा भी प्रस्तुत किया गया है। अनुसूचित जाति से संबंधित मामलों में 60.38 प्रतिशत मामलों में आरोप पत्र दाखिल किए गए, जबकि झूठे दावों या सबूतों की कमी के कारण 14.78 प्रतिशत मामलों में अंतिम रिपोर्ट दी गई। 2022 के अंत तक 17,166 मामलों की जांच अभी भी लंबित थी।

अनुसूचित जनजाति से संबंधित मामलों में 63.32 प्रतिशत मामलों में आरोप पत्र दाखिल किए गए, जबकि 14.71 प्रतिशत मामलों में अंतिम रिपोर्ट दी गई। 2022 के अंत तक 2,702 मामलों की जांच जारी थी।

रिपोर्ट में एक प्रमुख चिंता अधिनियम के तहत दोषसिद्धि दर में गिरावट है; साल 2022 में यह दर 2020 के 39.2 प्रतिशत से घटकर 32.4 प्रतिशत हो गई।

रिपोर्ट में इन मामलों के निपटारे के लिए विशेष अदालतों की अपर्याप्त संख्या पर भी चिंता व्यक्त की गई है। 14 राज्यों के 498 जिलों में से केवल 194 जिलों ने विशेष अदालतें स्थापित की हैं ताकि मामलों की तेजी से सुनवाई हो सके।

रिपोर्ट में ऐसे विशिष्ट जिलों की पहचान की गई है जहां अत्याचार की घटनाएं काफी अधिक हैं, लेकिन केवल 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने ऐसे जिलों की घोषणा की है। उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में, जहां अनुसूचित जाति से संबंधित मामलों की अधिक संख्या दर्ज की गई, वहां कोई अत्याचार-ग्रस्त जिला नहीं बताया गया।

रिपोर्ट में जाति आधारित हिंसा को रोकने और कमजोर समुदायों के लिए मजबूत सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इन जिलों में हस्तक्षेप करने का आह्वान किया गया है।

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