कन्हैया की छाती पर झंडा गाड़ने की बात करने वाली खुशबू चौहान को उसके साथी से मिला करारा जवाब

Written by sabrang india | Published on: October 9, 2019
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा 27 सितंबर को आयोजित किए गए मानवाधिकार पर आयोजित वाद-विवाद प्रतियोगिता में दिए गए CRPF कॉन्स्टेबल खुशबू चौहान के भाषण ने काफी सुर्खियां बटोरीं। उनके भाषण पर एक बहस भी हुई, खुश्बू चौहान का एक तिरंगा कन्हैया के सीने में भी गाड़ दो वाला स्लोगन कथित हिंदुत्ववादी लोगों को काफी पसंद आया। हालांकि इस विवाद बढ़ने के बाद में CRPF को सफाई भी देनी पड़ी। अब इसी प्रतियोगिता में दिया गए एक और भाषण का वीडियो सामने आया है, जिसमें असम रायफल्स में रायफलमैन बलवान सिंह भी इसी मुद्दे पर बोल रहे हैं। लेकिन उनके तर्क पूरी तरह से अलग हैं और अपने संबोधन में कहा कि बहादुरी किसी को मारने में नहीं बल्कि बचाने में है।



अब सोशल मीडिया पर बलवान सिंह का ये वीडियो वायरल हो रहा है, इस भाषण में उन्होंने मानवाधिकार नियमों का पालन किए जाने की वकालत की। अपने संबोधन में बलवान सिंह कहते हैं कि कहा जाता है कि मानवाधिकारों का अनुपालन कर पाना असंभव है, लेकिन आम लोगों के अधिकारों की रक्षा आखिर करेगा कौन?

इस प्रतियोगिता में हर कोई अपने तर्कों से सामने वाले को हराने में लगा था, ऐसे में उनके इस बयान को खुशबू चौहान के तर्कों का जवाब माना जा सकता है।’

बलवान सिंह ने कहा, ‘मानवाधिकार वो अधिकार हैं जो प्रत्येक व्यक्ति को मिलते हैं, अलग से भारत का संविधान भी नागरिकों को मौलिक अधिकार देता है। आतंकवाद-नक्सलवाद वाले स्थानों पर शांति स्थापित करने के लिए सुरक्षाबलों को तैनात किया जाता है, लेकिन ये भी सच है कि मानवाधिकार आयोग आवाज़ वहीं उठाता है जहां पर इनकी अनदेखी होती है।’

असम रायफल्स के जवान ने कहा कि साल 2000 से 2012 तक मणिपुर में पुलिस-सुरक्षाबलों में 1000 फर्जी मुठभेड़ दर्ज हुईं। देश में 2016 में पुलिस फायरिंग में 92 नागरिक मारे गए, लाठीचार्ज में भी कई लोगों की मौत। बहादुरी किसी को मारने में नहीं बचाने में होती है, अगर बम-बंदूक के दम पर शांति स्थापित होती तो कश्मीर-छत्तीसगढ़ में शांति हो गई होती।

जवान बलवान सिंह ने अपनी स्पीच में कहा कि क्रोध को क्रोध से नहीं प्यार से जीता जाता है, अब्राहम लिंकन ने भी गृह युद्ध खत्म करने के लिए दुश्मन को प्यार से जीतने की बात कही थी। असली जंग लोगों के दिल में लड़ी जाती है, इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन कर नहीं बल्कि इनका सम्मान करके जीता जा सकता है। क्योंकि जहां मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है वहां ही पान सिंह तोमर को डाकू बनना पड़ता है।

बलवान सिंह की पूरी स्पीच यहां सुन सकते हैं...

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