डिविजन बेंच ने नागपुर नगर निगम को मामला हाई कोर्ट के समक्ष होने के बावजूद कार्रवाई करने के लिए फटकार लगाई।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को नागपुर नगर निगम (एनएमसी) को शहर में हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा में आरोपी के घरों को ध्वस्त करने के लिए उसके सख्त रूख को लेकर कड़ी फटकार लगाई। इसके अलावा न्यायमूर्ति नितिन साम्ब्रे और वृषाली जोशी की खंडपीठ ने अगले आदेश तक नागपुर में किए गए तोड़ फोड़ पर रोक लगा दी। न्यायालय मुख्य आरोपी फहीम खान की मां जेहरुनिसा शमीम खान द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसने पीठ को इस तथ्य से अवगत कराया कि 21 मार्च को उसे नागपुर के यशोधरा नगर क्षेत्र में संजय बाग कॉलोनी में स्थित अपने 2 मंजिला घर को गिराने के लिए एनएमसी से एक नोटिस मिला था।
चौंकाने वाली बात ये है कि बेंच ने पाया कि खान द्वारा उक्त नोटिस को चुनौती देने और सोमवार (24 मार्च) सुबह को इसके बारे में बताने के बावजूद, अधिकारियों ने सोमवार दोपहर को पूरे इलाके में भारी सुरक्षा और ड्रोन निगरानी के बीच घर को गिरा दिया। एनएमसी के वकील ने तर्क दिया कि ये तोड़ फोड़ पहले से ही तय था!
हाई कोर्ट में खान का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील अश्विन इंगोले ने कहा, "इसलिए, हमने दोपहर 2:30 बजे फिर से मामले का उल्लेख किया और बेंच ने हमारी बात सुनी। हमने बेंच को मामले के तथ्यों से अवगत कराया और बताया कि कैसे एनएमसी ने जल्दबाजी में मेरे मुवक्किल के घर को ध्वस्त कर दिया। बेंच एनएमसी से बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हुई। वास्तव में, बेंच ने अधिकारियों से उनके आचरण के बारे में सवाल किए और उनकी मनमानी के लिए उन्हें फटकार भी लगाई।"
इन दलीलों के बाद, पीठ ने प्रथम दृष्टया पाया कि यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के रिट याचिका (सिविल) संख्या 295/2022 में संरचनाओं के विध्वंस के मामले में निर्देशों के संबंध में दिए गए फैसले का घोर उल्लंघन है, जिसमें न्यायमूर्ति भूषण गवई की अगुवाई वाली पीठ ने माना था कि कार्यपालिका केवल इस आधार पर लोगों के घरों/संपत्तियों को नहीं गिरा सकती कि वे किसी अपराध में आरोपी या दोषी हैं।
न्यायाधीशों ने आदेश में कहा, “लेकिन महाराष्ट्र स्लम क्षेत्र (सुधार, निकासी और पुनर्विकास) अधिनियम, 1971 के प्रावधानों के लिए, आगे तथ्यात्मक मैट्रिक्स समान प्रतीत होता है और प्रथम दृष्टया हम संतुष्ट हैं कि प्रतिवादी-अधिकारी रिट याचिका (सिविल) संख्या 295/2022 में संरचनाओं के विध्वंस के मामले में निर्देशों के संबंध में दिए गए फैसले के उल्लंघन में विध्वंस कर रहे हैं।”
पीठ ने कहा कि एक अन्य आरोपी अब्दुल हाफिज को भी इसी तरह का नोटिस मिला था और अधिकारियों ने उसके घर को भी आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया था। इसलिए, उसने विध्वंस नोटिस पर रोक लगा दी।
पीठ ने आदेश दिया, "ऐसा होने पर, याचिकाकर्ताओं को जारी किए गए 21 मार्च, 2025 के नोटिस के अनुसार पूरी कार्रवाई अगले आदेश तक स्थगित रहेगी।"
इसके अलावा पीठ ने कहा कि, "हालांकि, हम नोटिस की वैधता और याचिकाकर्ता के खिलाफ इस तरह के नोटिस के अनुसार की गई कार्रवाई पर विचार करेंगे, जब नगर आयुक्त और कार्यकारी अभियंता का हलफनामा रिकॉर्ड में रखा जाएगा।"
दूसरी ओर, एनएमसी का प्रतिनिधित्व करने वाली वकील जैमिनी कासट ने न्यायाधीशों को बताया कि विध्वंस की कार्रवाई पहले ही पूरी हो चुकी है। पीठ ने बयान दर्ज किया। न्यायाधीशों ने सुनवाई 15 अप्रैल तक स्थगित करते हुए कहा, "हालांकि, हम नोटिस की वैधता और याचिकाकर्ता के खिलाफ इस तरह के नोटिस के तहत की गई कार्रवाई पर विचार करेंगे, जब नगर आयुक्त और कार्यकारी अभियंता का हलफनामा रिकॉर्ड में आ जाएगा।"
याचिकाकर्ता के वकील ए.आर. इंगोले हैं। वहीं प्रतिवादियों के वकील जे.बी. कासट और अमित प्रसाद हैं।
हाई कोर्ट का आदेश यहां पढ़ा जा सकता है

बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को नागपुर नगर निगम (एनएमसी) को शहर में हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा में आरोपी के घरों को ध्वस्त करने के लिए उसके सख्त रूख को लेकर कड़ी फटकार लगाई। इसके अलावा न्यायमूर्ति नितिन साम्ब्रे और वृषाली जोशी की खंडपीठ ने अगले आदेश तक नागपुर में किए गए तोड़ फोड़ पर रोक लगा दी। न्यायालय मुख्य आरोपी फहीम खान की मां जेहरुनिसा शमीम खान द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसने पीठ को इस तथ्य से अवगत कराया कि 21 मार्च को उसे नागपुर के यशोधरा नगर क्षेत्र में संजय बाग कॉलोनी में स्थित अपने 2 मंजिला घर को गिराने के लिए एनएमसी से एक नोटिस मिला था।
चौंकाने वाली बात ये है कि बेंच ने पाया कि खान द्वारा उक्त नोटिस को चुनौती देने और सोमवार (24 मार्च) सुबह को इसके बारे में बताने के बावजूद, अधिकारियों ने सोमवार दोपहर को पूरे इलाके में भारी सुरक्षा और ड्रोन निगरानी के बीच घर को गिरा दिया। एनएमसी के वकील ने तर्क दिया कि ये तोड़ फोड़ पहले से ही तय था!
हाई कोर्ट में खान का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील अश्विन इंगोले ने कहा, "इसलिए, हमने दोपहर 2:30 बजे फिर से मामले का उल्लेख किया और बेंच ने हमारी बात सुनी। हमने बेंच को मामले के तथ्यों से अवगत कराया और बताया कि कैसे एनएमसी ने जल्दबाजी में मेरे मुवक्किल के घर को ध्वस्त कर दिया। बेंच एनएमसी से बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हुई। वास्तव में, बेंच ने अधिकारियों से उनके आचरण के बारे में सवाल किए और उनकी मनमानी के लिए उन्हें फटकार भी लगाई।"
इन दलीलों के बाद, पीठ ने प्रथम दृष्टया पाया कि यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के रिट याचिका (सिविल) संख्या 295/2022 में संरचनाओं के विध्वंस के मामले में निर्देशों के संबंध में दिए गए फैसले का घोर उल्लंघन है, जिसमें न्यायमूर्ति भूषण गवई की अगुवाई वाली पीठ ने माना था कि कार्यपालिका केवल इस आधार पर लोगों के घरों/संपत्तियों को नहीं गिरा सकती कि वे किसी अपराध में आरोपी या दोषी हैं।
न्यायाधीशों ने आदेश में कहा, “लेकिन महाराष्ट्र स्लम क्षेत्र (सुधार, निकासी और पुनर्विकास) अधिनियम, 1971 के प्रावधानों के लिए, आगे तथ्यात्मक मैट्रिक्स समान प्रतीत होता है और प्रथम दृष्टया हम संतुष्ट हैं कि प्रतिवादी-अधिकारी रिट याचिका (सिविल) संख्या 295/2022 में संरचनाओं के विध्वंस के मामले में निर्देशों के संबंध में दिए गए फैसले के उल्लंघन में विध्वंस कर रहे हैं।”
पीठ ने कहा कि एक अन्य आरोपी अब्दुल हाफिज को भी इसी तरह का नोटिस मिला था और अधिकारियों ने उसके घर को भी आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया था। इसलिए, उसने विध्वंस नोटिस पर रोक लगा दी।
पीठ ने आदेश दिया, "ऐसा होने पर, याचिकाकर्ताओं को जारी किए गए 21 मार्च, 2025 के नोटिस के अनुसार पूरी कार्रवाई अगले आदेश तक स्थगित रहेगी।"
इसके अलावा पीठ ने कहा कि, "हालांकि, हम नोटिस की वैधता और याचिकाकर्ता के खिलाफ इस तरह के नोटिस के अनुसार की गई कार्रवाई पर विचार करेंगे, जब नगर आयुक्त और कार्यकारी अभियंता का हलफनामा रिकॉर्ड में रखा जाएगा।"
दूसरी ओर, एनएमसी का प्रतिनिधित्व करने वाली वकील जैमिनी कासट ने न्यायाधीशों को बताया कि विध्वंस की कार्रवाई पहले ही पूरी हो चुकी है। पीठ ने बयान दर्ज किया। न्यायाधीशों ने सुनवाई 15 अप्रैल तक स्थगित करते हुए कहा, "हालांकि, हम नोटिस की वैधता और याचिकाकर्ता के खिलाफ इस तरह के नोटिस के तहत की गई कार्रवाई पर विचार करेंगे, जब नगर आयुक्त और कार्यकारी अभियंता का हलफनामा रिकॉर्ड में आ जाएगा।"
याचिकाकर्ता के वकील ए.आर. इंगोले हैं। वहीं प्रतिवादियों के वकील जे.बी. कासट और अमित प्रसाद हैं।
हाई कोर्ट का आदेश यहां पढ़ा जा सकता है