फैकल्टी ने यह भी आरोप लगाया है कि जाति से संबंधित मुद्दों पर शोध को संस्थान के भीतर से प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है।

प्रतिकात्मक तस्वीर; साभार : इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी दिल्ली में 642 संकाय सदस्यों में से केवल 3.1% (20) अनुसूचित जाति (एससी) श्रेणी से हैं, और केवल 1.2% (8) अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी से हैं। 76 एससी और 40 एसटी संकाय सदस्यों यानी क्रमशः 11.9% और 6.3% की कमी सामने आई है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में ये बात सामने आई है।
केंद्र सरकार के आरक्षण नियमों के अनुसार, आईआईटी जैसे संस्थानों में अनुसूचित जाति (SC) वर्ग के लिए 15% और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के लिए 7.5% आरक्षण अनिवार्य है।
यह जानकारी सामने आई है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण से जुड़ी संसदीय समिति की 11 अप्रैल को होने वाली समीक्षा यात्रा से पहले, पिछले महीने संस्थान में SC/ST प्रतिनिधित्व से जुड़े आंकड़े जिसमें शिक्षक, छात्र और गैर-शिक्षक कर्मचारी शामिल हैं, समिति को सौंपे गए थे।
समिति को सौंपे गए अपने ज्ञापनों में छात्रों और शिक्षकों के प्रतिनिधियों ने कई मुद्दों पर चिंता जताई जिनमें शोध कार्य में बाधाएं, प्लेसमेंट से जुड़ी चिंताएं और अन्य समस्याएं प्रमुख थीं।
पिछले एक दशक में आईआईटी में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के छात्र प्रतिनिधित्व में धीरे-धीरे बढ़ोतरी देखी गई है। संसदीय समिति को सौंपे गए आंकड़ों के मुताबिक, 2015-16 में स्नातक स्तर पर SC छात्रों का दाखिला 13.85% था, जो 2024-25 में बढ़कर 14.92% हो गया। वहीं, एसटी वर्ग का प्रतिनिधित्व इसी अवधि में 6.92% से बढ़कर 7.46% पहुंचा। स्नातकोत्तर प्रोग्रामों की बात करें तो SC छात्र 2015-16 में 11.27% थे, जो 2024-25 तक बढ़कर 13.11% हो गई। ST छात्रों की संख्या भी इसी दौरान 3.54% से बढ़कर 4.31% तक पहुंची।
आईआईटी में पीएचडी प्रोग्रामों में भी अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्रों की भागीदारी में मामूली बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 2015-16 में जहां SC छात्रों का दाखिला 8.88% था, वहीं 2024-25 में यह बढ़कर 9.69% हो गया। ST वर्ग के लिए यह आंकड़ा 0.97% से बढ़कर 3.28% पहुंचा।
संसदीय समिति का दौरा प्रमुख संस्थानों द्वारा हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन की व्यापक समीक्षा का हिस्सा था।
लोकसभा सचिवालय द्वारा 26 मार्च को जारी एक आधिकारिक ज्ञापन में बताया गया कि संसदीय समिति की यह "ऑन स्पॉट लोकल विजिट" आईआईटी जैसे प्रमुख संस्थानों में आरक्षण नीति के लागू होने की वास्तविक स्थिति की जांच के उद्देश्य से की जा रही है। इस दौरे के तहत छात्रों के दाखिले, फैकल्टी और नॉन-फैकल्टी पदों पर आरक्षण के साथ-साथ SC/ST शिक्षकों, अतिथि शिक्षकों और प्रोग्रामों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों की भी समीक्षा की गई।
सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते की अध्यक्षता में गठित संसदीय समिति ने संस्थान के दौरे के दौरान फैकल्टी और छात्रों से बातचीत की। समिति ने विशेष रूप से SC और ST वर्ग के फैकल्टी सदस्यों व छात्र प्रतिनिधियों से मुलाकात की और उनकी समस्याओं व शिकायतों को सुना।
अखबार ने सूत्रों के हवाले से लिखा, आईआईटी दिल्ली ने फैकल्टी प्रतिनिधित्व से जुड़े सवालों के जवाब में कहा, “संस्थान सभी श्रेणियों से पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाता है।” संस्थान ने यह भी बताया कि SC/ST, OBC, EWS श्रेणियों और दिव्यांग छात्रों को आवेदन के लिए विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाता है।
हालांकि, आईआईटी दिल्ली ने स्वीकार किया कि कई बार इन श्रेणियों से आवेदन करने वाले उम्मीदवारों में से कुछ ही शॉर्टलिस्ट होते हैं और अंतिम रूप से चयन में और भी कमी देखी जाती है। इसके कारण, स्वीकृत पदों के मुकाबले फैकल्टी सदस्यों की संख्या अपेक्षाकृत कम रहती है।
छात्रों के दाखिले को लेकर आईआईटी दिल्ली ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, “सभी पाठ्यक्रम-आधारित प्रोग्रामों में कोई भी सीट खाली नहीं है।” स्नातकोत्तर और पीएचडी प्रोग्रामों को लेकर संस्थान ने बताया, “कुछ छात्र व्यक्तिगत कारणों, इलाज से जुड़े मामलों, बेहतर नौकरी के मौकों या बेहतर भविष्य की संभावनाओं के कारण छोड़ कर चले जाते हैं।”
छात्रों और संकाय सदस्यों ने भी पैनल को ज्ञापन सौंपे। 11 अप्रैल को शिक्षकों के प्रतिनिधियों द्वारा सौंपे गए ज्ञापन में कहा गया, "कई विभागों में एक भी एससी/एसटी फैकल्टी नहीं है।"
उन्होंने लिखा, "प्रतिनिधित्व की कमी गंभीर है।" उन्होंने बताया कि भर्ती सलाहकार समिति (आरएसी) जैसे प्रमुख नियुक्ति पैनल ने "एससी/एसटी समुदाय के कार्यभार को बढ़ा दिया है और उन्हें विभागीय स्तर पर और अधिक संघर्ष और दबाव का सामना करना पड़ रहा है।"
फैकल्टी के मेमोरंडम में कहा गया, "अभी तक, किसी भी एससी/एसटी फैकल्टी को डीन या एसोसिएट डीन के स्तर पर कोई महत्वपूर्ण प्रशासनिक पद नहीं दिया गया है।"
फैकल्टी ने यह भी आरोप लगाया कि जाति से संबंधित मुद्दों पर शोध को संस्थान के भीतर से प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। ज्ञापन में कहा गया, "इथिक्स कमेटी अक्सर शोध उद्देश्यों का मजाक उड़ाती है और फैकल्टी को पूरी योजना को समझाने के लिए अपने टाइटल स्लाइड से आगे बढ़ने की भी अनुमति नहीं देती है।" इसमें कहा गया, "कभी-कभी एससी/एसटी समुदाय और शोधकर्ता के बारे में अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया जाता है।"
संकाय सदस्यों ने कहा, यहां तक कि जब परियोजनाओं को मंजूरी दी जाती है और उन्हें फंडिंग की जाती है, तब भी “एससी/एसटी फैकल्टी को अपने शोध परियोजनाओं के लिए बहुत कम सहायता मिलती है… संस्थान इन चुनौतियों को मान्यता नहीं देता है।”
छात्रों ने अपने ज्ञापन में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं, छात्रवृत्ति से संबंधित मुद्दे, जातिगत संवेदनशीलता की आवश्यकता और “प्लेसमेंट में जातिगत भेदभाव के प्रति जीरो टॉलेरेंस सुनिश्चित करने की आवश्यकता” को उजागर किया। छात्रों ने लिखा, "वर्तमान काउंसलर न तो प्रशिक्षित हैं और न ही वे बहिष्कार, उत्पीड़न और जाति आधारित भेदभाव से पैदा होने वाली जटिलताओं को समझने के लिए सक्षम हैं।" छात्रों का कहना है, "इस असंवेदनशीलता के कारण छात्र सामान्य रूप से इन सेवाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।"
ज्ञापन में लिखा है, “संकाय सदस्यों के बीच एससी/एसटी समुदाय का प्रतिनिधित्व न होने से छात्र खुद को अलग-थलग और उनसे कम जुड़ा हुआ महसूस करते हैं…।”
“पारदर्शी प्लेसमेंट” का आह्वान करते हुए उन्होंने लिखा, “यह सुनिश्चित करने के लिए उपाय किए जाने चाहिए कि प्लेसमेंट के लिए बैठने के दौरान छात्रों से रैंक/श्रेणी के बारे में न पूछा जाए… अगर कोई कंपनी ऐसे मामलों में शामिल पाई जाती है, तो उसे प्लेसमेंट ड्राइव में हिस्सा लेने से रोक दिया जाना चाहिए।”
इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा, कुलसते को किए गए कॉल और मैसेज का कोई जवाब नहीं मिल पाया है। प्रेस रिलेशन्स ऑफिसर शिव यादव और डायरेक्टर रंगन बनर्जी से इस संबंध में संपर्क किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
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प्रतिकात्मक तस्वीर; साभार : इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी दिल्ली में 642 संकाय सदस्यों में से केवल 3.1% (20) अनुसूचित जाति (एससी) श्रेणी से हैं, और केवल 1.2% (8) अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी से हैं। 76 एससी और 40 एसटी संकाय सदस्यों यानी क्रमशः 11.9% और 6.3% की कमी सामने आई है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में ये बात सामने आई है।
केंद्र सरकार के आरक्षण नियमों के अनुसार, आईआईटी जैसे संस्थानों में अनुसूचित जाति (SC) वर्ग के लिए 15% और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के लिए 7.5% आरक्षण अनिवार्य है।
यह जानकारी सामने आई है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण से जुड़ी संसदीय समिति की 11 अप्रैल को होने वाली समीक्षा यात्रा से पहले, पिछले महीने संस्थान में SC/ST प्रतिनिधित्व से जुड़े आंकड़े जिसमें शिक्षक, छात्र और गैर-शिक्षक कर्मचारी शामिल हैं, समिति को सौंपे गए थे।
समिति को सौंपे गए अपने ज्ञापनों में छात्रों और शिक्षकों के प्रतिनिधियों ने कई मुद्दों पर चिंता जताई जिनमें शोध कार्य में बाधाएं, प्लेसमेंट से जुड़ी चिंताएं और अन्य समस्याएं प्रमुख थीं।
पिछले एक दशक में आईआईटी में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के छात्र प्रतिनिधित्व में धीरे-धीरे बढ़ोतरी देखी गई है। संसदीय समिति को सौंपे गए आंकड़ों के मुताबिक, 2015-16 में स्नातक स्तर पर SC छात्रों का दाखिला 13.85% था, जो 2024-25 में बढ़कर 14.92% हो गया। वहीं, एसटी वर्ग का प्रतिनिधित्व इसी अवधि में 6.92% से बढ़कर 7.46% पहुंचा। स्नातकोत्तर प्रोग्रामों की बात करें तो SC छात्र 2015-16 में 11.27% थे, जो 2024-25 तक बढ़कर 13.11% हो गई। ST छात्रों की संख्या भी इसी दौरान 3.54% से बढ़कर 4.31% तक पहुंची।
आईआईटी में पीएचडी प्रोग्रामों में भी अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्रों की भागीदारी में मामूली बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 2015-16 में जहां SC छात्रों का दाखिला 8.88% था, वहीं 2024-25 में यह बढ़कर 9.69% हो गया। ST वर्ग के लिए यह आंकड़ा 0.97% से बढ़कर 3.28% पहुंचा।
संसदीय समिति का दौरा प्रमुख संस्थानों द्वारा हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन की व्यापक समीक्षा का हिस्सा था।
लोकसभा सचिवालय द्वारा 26 मार्च को जारी एक आधिकारिक ज्ञापन में बताया गया कि संसदीय समिति की यह "ऑन स्पॉट लोकल विजिट" आईआईटी जैसे प्रमुख संस्थानों में आरक्षण नीति के लागू होने की वास्तविक स्थिति की जांच के उद्देश्य से की जा रही है। इस दौरे के तहत छात्रों के दाखिले, फैकल्टी और नॉन-फैकल्टी पदों पर आरक्षण के साथ-साथ SC/ST शिक्षकों, अतिथि शिक्षकों और प्रोग्रामों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों की भी समीक्षा की गई।
सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते की अध्यक्षता में गठित संसदीय समिति ने संस्थान के दौरे के दौरान फैकल्टी और छात्रों से बातचीत की। समिति ने विशेष रूप से SC और ST वर्ग के फैकल्टी सदस्यों व छात्र प्रतिनिधियों से मुलाकात की और उनकी समस्याओं व शिकायतों को सुना।
अखबार ने सूत्रों के हवाले से लिखा, आईआईटी दिल्ली ने फैकल्टी प्रतिनिधित्व से जुड़े सवालों के जवाब में कहा, “संस्थान सभी श्रेणियों से पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाता है।” संस्थान ने यह भी बताया कि SC/ST, OBC, EWS श्रेणियों और दिव्यांग छात्रों को आवेदन के लिए विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाता है।
हालांकि, आईआईटी दिल्ली ने स्वीकार किया कि कई बार इन श्रेणियों से आवेदन करने वाले उम्मीदवारों में से कुछ ही शॉर्टलिस्ट होते हैं और अंतिम रूप से चयन में और भी कमी देखी जाती है। इसके कारण, स्वीकृत पदों के मुकाबले फैकल्टी सदस्यों की संख्या अपेक्षाकृत कम रहती है।
छात्रों के दाखिले को लेकर आईआईटी दिल्ली ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, “सभी पाठ्यक्रम-आधारित प्रोग्रामों में कोई भी सीट खाली नहीं है।” स्नातकोत्तर और पीएचडी प्रोग्रामों को लेकर संस्थान ने बताया, “कुछ छात्र व्यक्तिगत कारणों, इलाज से जुड़े मामलों, बेहतर नौकरी के मौकों या बेहतर भविष्य की संभावनाओं के कारण छोड़ कर चले जाते हैं।”
छात्रों और संकाय सदस्यों ने भी पैनल को ज्ञापन सौंपे। 11 अप्रैल को शिक्षकों के प्रतिनिधियों द्वारा सौंपे गए ज्ञापन में कहा गया, "कई विभागों में एक भी एससी/एसटी फैकल्टी नहीं है।"
उन्होंने लिखा, "प्रतिनिधित्व की कमी गंभीर है।" उन्होंने बताया कि भर्ती सलाहकार समिति (आरएसी) जैसे प्रमुख नियुक्ति पैनल ने "एससी/एसटी समुदाय के कार्यभार को बढ़ा दिया है और उन्हें विभागीय स्तर पर और अधिक संघर्ष और दबाव का सामना करना पड़ रहा है।"
फैकल्टी के मेमोरंडम में कहा गया, "अभी तक, किसी भी एससी/एसटी फैकल्टी को डीन या एसोसिएट डीन के स्तर पर कोई महत्वपूर्ण प्रशासनिक पद नहीं दिया गया है।"
फैकल्टी ने यह भी आरोप लगाया कि जाति से संबंधित मुद्दों पर शोध को संस्थान के भीतर से प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। ज्ञापन में कहा गया, "इथिक्स कमेटी अक्सर शोध उद्देश्यों का मजाक उड़ाती है और फैकल्टी को पूरी योजना को समझाने के लिए अपने टाइटल स्लाइड से आगे बढ़ने की भी अनुमति नहीं देती है।" इसमें कहा गया, "कभी-कभी एससी/एसटी समुदाय और शोधकर्ता के बारे में अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया जाता है।"
संकाय सदस्यों ने कहा, यहां तक कि जब परियोजनाओं को मंजूरी दी जाती है और उन्हें फंडिंग की जाती है, तब भी “एससी/एसटी फैकल्टी को अपने शोध परियोजनाओं के लिए बहुत कम सहायता मिलती है… संस्थान इन चुनौतियों को मान्यता नहीं देता है।”
छात्रों ने अपने ज्ञापन में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं, छात्रवृत्ति से संबंधित मुद्दे, जातिगत संवेदनशीलता की आवश्यकता और “प्लेसमेंट में जातिगत भेदभाव के प्रति जीरो टॉलेरेंस सुनिश्चित करने की आवश्यकता” को उजागर किया। छात्रों ने लिखा, "वर्तमान काउंसलर न तो प्रशिक्षित हैं और न ही वे बहिष्कार, उत्पीड़न और जाति आधारित भेदभाव से पैदा होने वाली जटिलताओं को समझने के लिए सक्षम हैं।" छात्रों का कहना है, "इस असंवेदनशीलता के कारण छात्र सामान्य रूप से इन सेवाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।"
ज्ञापन में लिखा है, “संकाय सदस्यों के बीच एससी/एसटी समुदाय का प्रतिनिधित्व न होने से छात्र खुद को अलग-थलग और उनसे कम जुड़ा हुआ महसूस करते हैं…।”
“पारदर्शी प्लेसमेंट” का आह्वान करते हुए उन्होंने लिखा, “यह सुनिश्चित करने के लिए उपाय किए जाने चाहिए कि प्लेसमेंट के लिए बैठने के दौरान छात्रों से रैंक/श्रेणी के बारे में न पूछा जाए… अगर कोई कंपनी ऐसे मामलों में शामिल पाई जाती है, तो उसे प्लेसमेंट ड्राइव में हिस्सा लेने से रोक दिया जाना चाहिए।”
इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा, कुलसते को किए गए कॉल और मैसेज का कोई जवाब नहीं मिल पाया है। प्रेस रिलेशन्स ऑफिसर शिव यादव और डायरेक्टर रंगन बनर्जी से इस संबंध में संपर्क किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
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