दिल्ली कोर्ट ने नाबालिग से यौन शोषण मामले में बृजभूषण सिंह के खिलाफ केस बंद किया

Written by sabrang india | Published on: May 27, 2025
शिकायत करने वाली लड़की ने कोई आपत्ति नहीं जताई और दिल्ली पुलिस को भी POCSO कानून के तहत आगे की कार्रवाई के लिए कोई ठोस वजह नहीं मिली। कोर्ट ने पुलिस की 550 पन्नों की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया और मामला समाप्त कर दिया।



दिल्ली की एक अदालत ने बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ बच्चों से यौन शोषण (POCSO) का मामला बंद कर दिया है। बीजेपी सांसद और कुश्ती संघ (WFI) के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण सिंह के खिलाफ यह मामला एक नाबालिग लड़की की शिकायत पर दर्ज हुआ था। दिल्ली पुलिस ने अदालत में एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें कहा गया कि उनके पास इस मामले में कोई पुख्ता सबूत नहीं है, इसलिए केस को बंद किया जाए। अदालत ने यह रिपोर्ट स्वीकार कर ली और केस समाप्त कर दिया।

यह मामला एक नाबालिग लड़की की शिकायत पर दर्ज किया गया था, जो खुद एक पहलवान है। उसने बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण जैसे गंभीर आरोप लगाए थे। इस शिकायत के आधार पर 28 अप्रैल 2023 को कनॉट प्लेस थाने में दूसरी FIR दर्ज की गई थी। FIR में कई गंभीर धाराएं लगाई गई थीं—जैसे कि 354 (महिला के साथ गलत इरादे से छेड़छाड़), 354A (यौन उत्पीड़न), 354D (पीछा करना) और 34 (साझा इरादा)। साथ ही, बच्चों से जुड़े सुरक्षा कानून POCSO की एक धारा भी जोड़ी गई थी।

कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट को मंजूरी दी

26 मई 2025 को पटियाला हाउस कोर्ट की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश गोमती मनोचा ने दिल्ली पुलिस द्वारा 15 जून 2023 को दाखिल की गई क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया। यह रिपोर्ट 550 पन्नों की थी और इसमें बताया गया कि यौन उत्पीड़न के आरोपों को साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं मिला। न्यायाधीश ने नाबालिग शिकायतकर्ता को अदालत में बुलाया, जहां उसने मामले को बंद करने पर कोई आपत्ति नहीं जताई और पुलिस की जांच से संतुष्टि भी जाहिर की। ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायाधीश ने औपचारिक रूप से “कैंसिलेशन एक्सेप्टेड” कहकर रिकॉर्ड में दर्ज किया।

इस मामले को बंद करने का फैसला 1 अगस्त 2023 को एक इन-कैमरा सुनवाई के बाद लिया गया था, जिसमें नाबालिग ने यह कहा था कि उसे क्लोजर रिपोर्ट पर कोई आपत्ति नहीं है। इस सुनवाई को बहुत ही संवेदनशीलता से अंजाम दिया गया था, क्योंकि शिकायतकर्ता की पहचान और POCSO एक्ट के तहत लगे आरोपों की गंभीरता को ध्यान में रखा गया था।

पृष्ठभूमि: शिकायत वापसी के पीछे कथित डराने-धमकाने के आरोप

हालांकि, मामले को बंद करने की प्रक्रिया के दौरान कई विवाद भी सामने आए, खासकर शिकायतकर्ता द्वारा आरोप वापस लेने को लेकर। FIR में शिकायतकर्ता नाबालिग पहलवान के पिता ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि उन्होंने अपने बयान को दबाव और परिवार की सुरक्षा की चिंता के चलते बदला।

‘द हिंदू’ की रिपोर्ट के अनुसार, नाबालिग पहलवान के पिता ने कहा, “मैंने कोर्ट में अपना बयान इसलिए बदला क्योंकि मैं डर गया था... अपने परिवार, बेटी और खुद के लिए डर था... मेरा परिवार लगातार खतरे में जी रहा है।”

उन्होंने आगे कहा कि उन्हें अज्ञात लोगों द्वारा धमकाया जा रहा है और उनका पूरा परिवार भय के माहौल में जी रहा है। इन धमकियों के बावजूद, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उन्होंने शिकायत के सभी हिस्से वापस नहीं लिए हैं—खासकर वह हिस्सा जिसमें सिंह पर उनकी बेटी के साथ भेदभाव करने का आरोप था।

यह सफाई उस समय आई जब मीडिया में यह खबर चलने लगी कि नाबालिग ने पूरी शिकायत वापस ले ली है, जिससे काफी भ्रम फैल गया था। इसके कुछ ही समय बाद पिता ने एक "कन्फेशन" जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा कि अपनी बेटी के U-17 एशियन चैंपियनशिप से बाहर हो जाने पर उन्होंने गुस्से और निराशा में यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे।

पीटीआई से बात करते हुए, पिता ने स्वीकार किया, “मुझे बहुत गुस्सा आया क्योंकि मेरी बेटी की एक साल की मेहनत उस रेफरी के फैसले की वजह से बेकार हो गई थी। इसलिए मैंने बदला लेने का फैसला किया।”

उन्होंने अपनी नाराज़गी WFI के नेतृत्व पर जताई और कहा कि उस विवादित मैच में जो रेफरी था, उसे बृजभूषण सिंह ने नियुक्त किया था। “फेडरेशन ने रेफरी नियुक्त किया था। फेडरेशन की अगुवाई कौन करता है? मुझे और किस पर गुस्सा होना चाहिए?”

हालांकि, मूल FIR में पिता ने बृजभूषण सिंह पर कई तरह के अनुचित व्यवहार के आरोप लगाए थे। उन्होंने बताया था कि WFI प्रमुख ने नाबालिग को अनुचित ढंग से छुआ, कहा कि वह उसकी मदद करेगा अगर वह भी उसका साथ दे, और जबरदस्ती उसे अपनी ओर खींचा। उन्होंने यह भी कहा कि इस कथित उत्पीड़न से नाबालिग बहुत परेशान हो गई थी और यह घटना उसे आज भी मानसिक रूप से परेशान करती है।

हालांकि यौन उत्पीड़न संबंधी आरोप वापस ले लिए गए हैं, लेकिन शिकायतकर्ता के पिता ने ‘द हिंदू’ से स्पष्ट किया कि उन्होंने अपनी शिकायत का वह हिस्सा वापस नहीं लिया है जिसमें आरोप था कि बृजभूषण सिंह की अगुवाई में उनकी बेटी के साथ भेदभाव हुआ। (पूरी डिटेल यहां पढ़ी जा सकती है।)

राजनीतिक और सामाजिक परिणाम

बृजभूषण शरण सिंह ने इन सभी आरोपों को लगातार खारिज किया है। उनका कहना है कि यह सब एक राजनीतिक साजिश है, जिसका मकसद उनकी छवि को खराब करना है। उन्होंने दावा किया कि ये शिकायतें उन्हें बदनाम करने और उनकी साख को नुकसान पहुंचाने के लिए एक बड़े अभियान का हिस्सा हैं।

हालांकि अब POCSO मामला बंद हो चुका है, लेकिन सिंह को अब भी एक अलग यौन उत्पीड़न मामले में कानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ रहा है, जिसे छह महिला पहलवानों ने दर्ज कराया था। यह विवाद 2023 में एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन का कारण बना, जिसमें भारत की शीर्ष पहलवानों जैसे साक्षी मलिक, विनेश फोगाट, बजरंग पुनिया और संगीता फोगाट ने नई दिल्ली के जंतर मंतर पर लंबे समय तक विरोध प्रदर्शन किया। एथलीटों ने आरोप लगाया कि सिंह ने 2016 से 2019 के बीच विभिन्न स्थानों—जैसे WFI कार्यालय, आधिकारिक आवास और विदेश दौरे—के दौरान महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न किया था। (डिटेल यहां पढ़ी जा सकती है।)

अंततः जन आक्रोश के चलते युवा मामलों और खेल मंत्रालय को इन आरोपों की जांच के लिए एक निगरानी समिति गठित करनी पड़ी। मई 2023 में जब सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया, तभी दिल्ली पुलिस ने दो एफआईआर दर्ज कीं—एक नाबालिग से संबंधित और दूसरी छह महिला पहलवानों की शिकायतों पर आधारित। (डिटेल यहां पढ़ी जा सकती हैं।)

POCSO मामले का बंद होना दूसरे मामले में जारी अभियोजन को प्रभावित नहीं करता। जून 2023 में दिल्ली पुलिस ने वयस्क महिला शिकायतकर्ताओं से जुड़े मामले में राउज़ एवेन्यू कोर्ट में 1,000 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की थी। (डिटेल यहां पढ़ी जा सकती है।)

कानूनी प्रभाव

POCSO कानून नाबालिगों से संबंधित यौन अपराधों के लिए कड़े दंड का प्रावधान करता है, जिसमें न्यूनतम सजा तीन साल की कैद होती है, जो आरोपों की गंभीरता पर निर्भर करती है। अदालत द्वारा पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार किए जाने के साथ ही, POCSO कानून के तहत सिंह के खिलाफ कानूनी कार्यवाही औपचारिक रूप से समाप्त हो गई है। हालांकि, शिकायत वापसी के पीछे के हालातों को लेकर गंभीर सवाल अब भी कायम हैं।

यह घटनाक्रम भारतीय खेल इतिहास के सबसे चर्चित यौन उत्पीड़न मामलों में से एक में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, लेकिन इसके साथ ही यह गवाहों को डराने-धमकाने, संस्थागत जवाबदेही और ऐसे मामलों में सामने आने वाली शिकायतकर्ताओं की सुरक्षा जैसे अनसुलझे मुद्दों को भी उजागर करता है—खासतौर पर तब, जब आरोपी एक प्रभावशाली व्यक्ति हो।

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