पश्चिम बंगाल में वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर विरोध प्रदर्शन हिंसक होने के बाद कलकत्ता हाई कोर्ट का दखल

Written by sabrang india | Published on: April 15, 2025
मुर्शिदाबाद में हुई झड़पों में तीन लोगों की मौत की खबर और कोर्ट ने दखल देते हुए अधिकारियों को शांति बनाए रखने और हिंसा की जांच करने का निर्देश दिया। राजनीतिक दलों द्वारा आरोप-प्रत्यारोप के बीच स्थानीय लोगों ने अज्ञात बाहरी लोगों की संलिप्तता का आरोप लगाया जिससे संकट और गहरा गया। दोस्तों और पड़ोसियों ने दावा किया मृतकों - छात्र एजाज अहमद और दास परिवार के पिता और बेटे, हरगोविंदा और चंदन- में से कोई भी सक्रिय रूप से हिंसा भड़काने या किसी राजनीतिक संगठन का हिस्सा नहीं थे फिर भी वे मारे गए।



वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2024 को लेकर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में अप्रैल 2025 की शुरुआत में हिंसा भड़की थी। इसने राज्य के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शनों को बढ़ावा दिया। इस कानून के खिलाफ शुरू में शांतिपूर्ण प्रदर्शन हुए। कानून बारे में आलोचकों का कहना है कि यह मुस्लिम धार्मिक बंदोबस्त की स्वायत्तता को कमजोर करता है। हालांकि, 8 अप्रैल, 2025 को स्थिति बिगड़ गई और खासकर सुती, धुलियान और जंगीपुर जिलों में विरोध प्रदर्शन तेजी से हिंसक हो गए। कथित तौर पर 11 अप्रैल को जुमे की नमाज के बाद तनाव चरम पर पहुंच गया, जब प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा बलों से झड़प हुई, जिसके कारण पथराव, तोड़फोड़ और सार्वजनिक संपत्ति को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा।

हिंसा के परिणामस्वरूप तीन लोगों की दुखद मौत हो गई, जिसमें बाप-बेटे भी शामिल थे। इन्हें उनके घर में बेरहमी से चाकू घोंप दिया गया था और वहीं एक युवा प्रदर्शनकारी की पुलिस के साथ झड़प के दौरान गोली लगने से मौत हो गई। दोस्तों और पड़ोसियों ने दावा किया मृतकों - छात्र एजाज अहमद और दास परिवार के पिता और पुत्र, हरगोविंदा और चंदन - में से कोई भी सक्रिय रूप से हिंसा भड़काने या किसी राजनीतिक संगठन का हिस्सा नहीं थे फिर भी उन्हें मार दिया गया। हिंसा बढ़ने से लोगों में नाराजगी देखने को मिली। प्रदर्शनकारियों ने सड़कें जाम कर दीं, पुलिस वाहनों पर हमला किया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा यह स्पष्ट आश्वासन देने के बावजूद कि इस कानून को राज्य में लागू नहीं किया जाएगा, हालात पर उसका कोई खास असर नहीं पड़ा। अशांति राज्य के विभिन्न हिस्सों में फैलती रही, जिससे न केवल सामाजिक तनाव बढ़ा, बल्कि पहले से ही तनावपूर्ण राजनीतिक माहौल और भी ज्यादा खराब हो गया।

बिगड़ती कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी द्वारा दायर याचिका के बाद कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 12 अप्रैल, 2025 को दखल दिया। कोर्ट ने मुर्शिदाबाद और अन्य प्रभावित क्षेत्रों में व्यवस्था बहाल करने के लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) की तैनाती का निर्देश दिया। न्यायालय के हस्तक्षेप ने स्थानीय अधिकारियों की हिंसक विरोध प्रदर्शनों को प्रभावी ढंग से संभालने में असमर्थता को उजागर किया, जिससे वक्फ संशोधन अधिनियम के निहितार्थ और क्षेत्र के सांप्रदायिक सद्भाव पर हिंसा के संभावित दीर्घकालिक परिणामों को लेकर चिंताएं बढ़ गईं। मुर्शिदाबाद की घटना और उसके बाद विभिन्न जिलों में हुई अशांति भारत में धर्म, राजनीति और कानून के जटिल अंतर्संबंध को उजागर करती है, जिससे राज्य की जनता में अनिश्चितता की भावना और बढ़ गई है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने मुर्शिदाबाद में केंद्रीय बलों की तैनाती का आदेश दिया

12 अप्रैल को बुलाई गई एक तत्काल सुनवाई में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने हाल ही में लागू किए गए वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसक झड़पों के बाद पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) की तैनाती का निर्देश दिया। इस अशांति में कम से कम तीन लोगों की मौत हो गई, जिसके बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता सुवेंदु अधिकारी द्वारा दायर याचिका के बाद जल्द अदालत कार्रवाई की।

मुख्य न्यायाधीश टी.एस. शिवगनम ने मामले की सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति सौमेन सेन और न्यायमूर्ति राजा बसु चौधरी की एक विशेष खंडपीठ का गठन किया। अधिकारी और वकील तरुण ज्योति द्वारा दायर याचिका में इलाके में बढ़ती हिंसा और बिगड़ती कानून व्यवस्था के मद्देनजर केंद्रीय बलों की तत्काल तैनाती की मांग की गई थी।

सुनवाई के दौरान, अदालत को बताया गया कि मुर्शिदाबाद में विरोध प्रदर्शन - विशेष रूप से जंगीपुर और धुलियान जैसे क्षेत्रों में - अराजकता में बदल गया था, हिंसक भीड़ ने पुलिस के साथ झड़प की, पथराव किया, पुलिस वाहनों को आग लगा दी और कई कर्मियों को घायल कर दिया। हिंसा ने रेलवे सेवाओं को भी बाधित किया, क्योंकि प्रदर्शनकारियों ने बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाया और पटरियों पर रूकावट पैदा कर दिया, जिससे कई ट्रेनों को रद्द करना पड़ा और उनका मार्ग बदलना पड़ा। धुलियानगंगा और निमतिता के बीच एक रेलवे क्रॉसिंग गेट को भी तोड़ दिया गया।

स्थिति की गंभीरता को स्वीकार करते हुए पीठ ने राज्य सरकार की अपर्याप्त प्रतिक्रिया की आलोचना की जिसमें कहा गया कि अब तक किए गए उपाय हिंसा को रोकने के लिए अपर्याप्त थे। स्क्रॉल के अनुसार, अदालत ने कहा, "दंगाइयों को गिरफ्तार करने के लिए युद्ध स्तर पर कार्रवाई की जानी चाहिए।" इसने कहा कि अगर केंद्रीय बलों को पहले तैनात किया गया होता तो हिंसा को बढ़ने से रोका जा सकता था।

हाई कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि संवैधानिक अदालतें ऐसी आंतरिक गड़बड़ियों के सामने निष्क्रिय पर्यवेक्षक नहीं रह सकतीं। पीठ के हवाले से बार एंड बेंच ने लिखा, "जब लोगों की सुरक्षा खतरे में हो, तो संवैधानिक अदालतें मूकदर्शक नहीं रह सकतीं और तकनीकी बचाव में खुद को उलझा नहीं सकतीं।"

इस प्रकार अदालत ने मुर्शिदाबाद जिले में सीएपीएफ की तैनाती का निर्देश दिया, साथ ही निर्देश दिया कि फोर्स शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए राज्य के नागरिक प्रशासन के साथ मिलकर काम करें। गौरतलब है कि पीठ ने स्पष्ट किया कि यह निर्देश केवल मुर्शिदाबाद तक सीमित नहीं है बल्कि अगर अन्य जिलों में भी ऐसी ही स्थिति पैदा होती है तो वहां भी केंद्रीय बलों को तुरंत तैनात किया जाना चाहिए।

इसके अलावा, उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र सरकार दोनों को स्थिति को संभालने के लिए उठाए गए कदमों की रूपरेखा वाली विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई 17 अप्रैल, 2025 को तय की गई है।

यह विरोध वक्फ संशोधन अधिनियम, 2024 के प्रति व्यापक असंतोष से उपजा है जिसे 4 अप्रैल को संसद ने पारित किया था और 5 अप्रैल को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई थी। यह कानून 8 अप्रैल से प्रभावी हो गया। यह कानून 1995 के मूल वक्फ अधिनियम में बड़े पैमाने पर बदलाव करता है, जिसमें 44 धाराओं में संशोधन शामिल हैं। इसके विवादास्पद प्रावधानों में वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना, संपत्ति दान पर प्रतिबंध और वक्फ न्यायाधिकरणों के कामकाज में बदलाव शामिल हैं - ऐसे उपाय जिनके बारे में कई आलोचकों का तर्क है कि ये मुस्लिम धार्मिक बंदोबस्तों की स्वायत्तता को काफी हद तक कमजोर करते हैं और सरकारी नियंत्रण बढ़ाते हैं।

राज्य सरकार के इस दावे के बावजूद कि याचिका राजनीति से प्रेरित थी और कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने पहले ही पर्याप्त उपाय किए थे जिसमें सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की छह कंपनियों की तैनाती भी शामिल है ऐसे में उच्च न्यायालय ने पाया कि जमीनी हकीकत कुछ और ही संकेत देती है। इसने कई जिलों में अशांति का जिक्र किया और तत्काल और समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित किया।

पूरा आदेश यहां देखा जा सकता है।



ज्ञात हो कि 2011 की जनगणना के अनुसार मुर्शिदाबाद में 66 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम आबादी है, और टीएमसी ने 2024 में सभी तीन संसदीय सीटें जीतीं, जिसमें सप्ताहांत की हिंसा का केंद्र जंगीपुर भी शामिल है। जिले की 22 विधानसभा सीटों में से टीएमसी के पास 20 हैं; पार्टी का सभी 26 पंचायत समितियों और लगभग सभी 250 ग्राम पंचायतों पर नियंत्रण है। जिले की आठ नगर पालिकाओं में से, टीएमसी के पास सात हैं और जो एक बची हुई नागरपालिका 'डोमकल' है वह टीएमसी द्वारा नियुक्त प्रशासक द्वारा संचालित है। इतनी भारी पुलिस मौजूदगी के बावजूद हालात नहीं संभाले जा सके, ऐसे में राज्य की सत्ताधारी पार्टी के प्रतिनिधियों को कुछ अहम सवालों के जवाब देने होंगे।

कांग्रेस, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) और अन्य दलों ने संशोधित कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इस बीच, पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। मुर्शिदाबाद विरोध प्रदर्शनों और उससे जुड़ी हिंसा का केंद्र बनकर उभरा है।

तनाव जारी रहने के बीच गिरफ्तारियां बढ़ीं

विवादास्पद वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ कई दिनों तक चले हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद 13 अप्रैल को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में स्थिति तनावपूर्ण लेकिन अपेक्षाकृत शांत रही। पीटीआई के अनुसार, पश्चिम बंगाल पुलिस ने पुष्टि की है कि अशांति के सिलसिले में रात भर में 12 और लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिससे गिरफ्तारियों की कुल संख्या 150 हो गई। अधिकारियों ने कहा कि निषेधाज्ञा अभी भी प्रभावी है और प्रभावित क्षेत्रों में इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गई हैं।

पुलिस अधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि सुती, धुलियान, समसेरगंज और जंगीपुर जैसे इलाके जो पहले अशांति के केंद्र में थे वहां पर अब कड़ी निगरानी रखी जा रही है और हिंसा की कोई नई घटना नहीं हुई है। हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार एक अधिकारी ने कहा, "रात भर छापेमारी जारी रही और 12 और लोगों को हिरासत में लिया गया। स्थिति फिलहाल शांतिपूर्ण है।"

विरोध प्रदर्शन 8 अप्रैल को शुरू हुआ और 11 अप्रैल को जुमे की नमाज के बाद और तेज हो गया। 10 अप्रैल को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि संशोधित वक्फ अधिनियम पश्चिम बंगाल में लागू नहीं किया जाएगा फिर भी राज्य में हिंसा भड़क उठी। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, सीएम बनर्जी ने कहा, "मुझे पता है कि वक्फ अधिनियम के लागू होने से आप दुखी हैं। विश्वास रखें, बंगाल में ऐसा कुछ नहीं होगा जिससे कोई बांटकर राज कर सके।"

11 अप्रैल को जुमे की नमाज के बाद पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए, जो मुख्य रूप से वक्फ (संशोधन) अधिनियम के विरोध पर केंद्रित थे। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इस अधिनियम को समुदाय की सामाजिक-आर्थिक प्राथमिकताओं, जैसे कि रोजगार और स्वास्थ्य सेवा, पर पर्याप्त परामर्श या विचार किए बिना लागू किया गया है। तनाव तब बढ़ गया जब बड़ी संख्या में लोगों ने निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया और शमशेरगंज में डाकबंगलो मोड़ से लेकर सुति में सजुर मोड़ तक राष्ट्रीय राजमार्ग-12 को रोक दिया। पुलिस रिपोर्ट से पता चलता है कि पुलिस वैन पर पत्थर फेंके जाने के बाद स्थिति हिंसक हो गई, जिसके नतीजे में कम से कम दस पुलिसकर्मियों को चोटें आईं। सुरक्षा बलों ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज किया और बाद में आंसू गैस का इस्तेमाल किया। कुछ मामलों में अधिकारियों को पास की मस्जिदों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।

12 अप्रैल को समसेरगंज ब्लॉक के अंतर्गत धुलियान में फिर से हिंसा भड़क उठी। पुलिस ने पुष्टि की कि झड़प के दौरान एक व्यक्ति को गोली लगी, हालांकि वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि वे अभी भी पूरी जानकारी की पुष्टि कर रहे हैं। इस विरोध प्रदर्शन ने सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को भी बाधित किया। पूर्वी रेलवे के अधिकारियों के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने धुलियानगंगा और निमतिता के बीच एक रेलवे क्रॉसिंग गेट को क्षतिग्रस्त कर दिया, जिससे कई ट्रेनों को रद्द करना पड़ा और उनका मार्ग बदलना पड़ा।

कुल मिलाकर, कम से कम 18 पुलिस कर्मी घायल हुए और महिलाओं और बच्चों सहित कई नागरिक विस्थापित हुए हैं। जिला प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया और सीआरपीसी की धारा 144 जैसी बीएनएसएस की धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी।

जवाब में, राज्य प्रशासन ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की छह कंपनियों को तैनात किया था।

राजनीतिक प्रभाव और सरकार की प्रतिक्रिया

राजनीतिक प्रभाव बहुत तेजी से सामने आए हैं। सुवेंदु अधिकारी और प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार सहित भाजपा नेताओं ने कथित तौर पर "अल्पसंख्यकों के एक वर्ग" द्वारा हिंसा को लेकर नरम रूख अपनाने के लिए तृणमूल कांग्रेस सरकार की आलोचना की। मजूमदार ने जोर देकर कहा कि भविष्य की भाजपा सरकार मिनटों में इस तरह की "बर्बरता" को कुचल देगी और मौजूदा शासन पर तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाया।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जवाब देते हुए कहा कि पश्चिम बंगाल में वक्फ (संशोधन) अधिनियम लागू नहीं किया जाएगा, उन्होंने कहा कि राज्य सरकार "फूट डालो और राज करो" के किसी भी प्रयास की अनुमति नहीं देगी। उन्होंने एकता और शांति का आग्रह किया लेकिन उनकी टिप्पणियों ने जमीनी स्तर पर स्थिति को शांत करने में कोई मदद नहीं की।

विपक्षी दलों, विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अशांति का फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अधिकारी ने यह भी आरोप लगाया कि 400 से ज्यादा हिंदू विस्थापित हो गए और डर के मारे मालदा जिले में भागने को मजबूर हो गए। उन्होंने हिंसा को "जिहादी आतंक" बताया और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सरकार पर "तुष्टिकरण की राजनीति" करने का आरोप लगाया जिससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिला।

मौजूदा स्थिति और दृष्टिकोण

मुर्शिदाबाद की हिंसा एक कड़वी याद दिलाती है कि कैसे राजनीतिक ध्रुवीकरण और सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन से जूझते इलाकों में सांप्रदायिक सौहार्द कभी भी टूट सकता है। ये प्रदर्शन मुस्लिम समुदाय के कुछ वर्गों के भीतर बढ़ती असंतोष को उजागर करते हैं, जिन्हें लगता है कि राष्ट्रीय नीतियों के निर्माण में उनकी आवाज को नजरअंदाज किया जा रहा है। साथ ही, भाजपा की तीखी बयानबाजी और कार्रवाई के लिए जोरदार आह्वान सांप्रदायिक प्रोफाइलिंग और विभाजन को गहरा करने के खतरे के बारे में चिंताएं बढ़ाते हैं।

13 अप्रैल तक करीब 150 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और कोई नई घटना सामने नहीं आई है। पुलिस लगातार छापेमारी कर रही है और सुरक्षाकर्मी प्रभावित क्षेत्रों में कड़ी निगरानी रख रहे हैं। हालांकि, नुकसान पहले ही हो चुका है। बाजारों को लूट लिया गया, घरों में तोड़फोड़ की गई और परिवारों को विस्थापित कर दिया गया। पीड़ितों के वीडियो सामने आए हैं, जिसमें वे बता रहे हैं कि कैसे भीड़ ने उनके घरों में घुसकर संपत्ति को नष्ट कर दिया क्योंकि अब लोग इन संवेदनशील क्षेत्रों में बीएसएफ की स्थायी उपस्थिति की मांग कर रहे हैं।


राज्य की प्रतिक्रिया सक्रिय होने के बजाय केवल प्रतिक्रियात्मक रही है। मुख्यमंत्री द्वारा कानून को लागू करने से इनकार करना सैद्धांतिक रुख से ज्यादा राजनीतिक चाल लगता है। इस बीच, उच्च न्यायालय का हस्तक्षेप स्थानीय कानून प्रवर्तन की विफलता की न्यायिक स्वीकृति को रेखांकित करता है।

आखिरकार यह घटना इस बात को उजागर करती है कि कैसे विधायी पारदर्शिता की कमी, प्रशासनिक लापरवाही और राजनीतिक अवसरवाद एक साथ मिलकर स्थिति को और भी जटिल बना देते हैं। यहां यह भी बताना जरूरी है कि पश्चिम बंगाल में 2026 में लोकसभा चुनाव होने हैं ऐसे में मुर्शिदाबाद न केवल कानून-व्यवस्था का मुद्दा हो सकता है बल्कि भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने में एक बड़े संकट का प्रतीक भी हो सकता है।

यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा को लेकर एक अलग दृष्टिकोण भी सामने आया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि हिंसा के दौरान अज्ञात युवक मौजूद थे जो इलाके के नहीं थे। कई लोगों ने बताया कि 15 से 18 वर्ष की उम्र के लड़कों का एक समूह, काली हुडी पहने और रॉड और डंडों से लैस होकर अशांति फैलने से ठीक पहले दिखाई दिया। एक व्यक्ति ने कहा, “ये हमारे लड़के नहीं थे,” उन्होंने कहा कि इलाके के हिंदू और मुस्लिम दोनों युवा पास के मंदिरों की सुरक्षा के लिए मिलकर काम कर रहे थे। इस बयान ने इस बात की चिंता को और बढ़ा दिया है कि हिंसा पूरी तरह से प्राकृतिक नहीं थी बल्कि सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने वाले स्वार्थी बाहरी तत्वों द्वारा भड़काई गई थी। हिंसा के इस पहलू को कम रिपोर्ट किया गया जिस पर अब इस इलाके के लोगों द्वारा बताया जा रहा है। अब सवाल उठ रहे हैं कि ये युवक कौन थे, उन्हें इस क्षेत्र में किसने लाया और उनके इरादे क्या थे। यह एक ऐसा पहलू है जिस पर घटना को सांप्रदायिक रंग देने की होड़ के बीच गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है।



एक राजनीतिक दरार उजागर

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में संशोधित वक्फ अधिनियम को लेकर हाल ही में भड़की हिंसा ने धर्म, कानून और राजनीति के उस अस्थिर अंतर्संबंध को उजागर कर दिया है जो भारत के सांप्रदायिक परिदृश्य को परिभाषित करता है। 11 अप्रैल की अशांति में तीन लोगों की जान चली गई और कई लोग घायल हो गए। इस अशांति ने 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक तनाव को फिर से भड़का दिया है। संघर्ष के केंद्र में केंद्र सरकार द्वारा पारित विवादास्पद वक्फ (संशोधन) अधिनियम है। यह एक ऐसा कानून जिसकी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित आलोचकों ने विभाजन पैदा करने और धार्मिक संवेदनाओं को भड़काने के लिए जानबूझकर की गई कोशिश के रूप में निंदा की है।

बनर्जी ने कड़े शब्दों में बयान देते हुए फिर से पुष्टि की कि बंगाल संशोधित कानून को लागू नहीं करेगा। शांति की अपील करते हुए उन्होंने "धर्म के नाम पर अधार्मिक व्यवहार" के खिलाफ चेतावनी दी और अज्ञात राजनीतिक नेताओं पर चुनावी फायदे के लिए आस्था को हथियार बनाने का आरोप लगाया। इस बात पर जोर देते हुए कि कानून को राज्य ने नहीं बल्कि यूनियन ने पारित किया है, ऐसे में उन्होंने अपनी सरकार को हिंसा से दूर रखा और गलत सूचना फैलाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी। उनका संदेश स्पष्ट था: वक्फ संशोधन न केवल असंवैधानिक है बल्कि खतरनाक रूप से भड़काऊ है और केंद्र सरकार को इसके नतीजों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

हालांकि, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने एक अलग ही नैरेटिव पेश की। राज्य के नेताओं ने आरोप लगाया कि मुर्शिदाबाद के धुलियान इलाके से हिंदू परिवारों को “धार्मिक उत्पीड़न” का हवाला देते हुए बाहर निकाला जा रहा है और टीएमसी पर “तुष्टिकरण की राजनीति” करने का आरोप लगाया। विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने दावा किया कि 400 से ज्यादा हिंदू गंगा पार भाग गए हैं, जबकि राज्य भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने संकट के समय चुप रहने के लिए टीएमसी सांसदों की आलोचना की। इस घटना को टीएमसी के तथाकथित अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का नतीजा बताते हुए उनकी बयानबाजी बंगाल में भाजपा के व्यापक चुनावी संदेश के अनुरूप थी।



इस बढ़ते आरोप-प्रत्यारोप के बीच कांग्रेस और वाम दलों ने टीएमसी और भाजपा की तीखी आलोचना की और उन पर राजनीतिक लाभ के लिए अशांति का फायदा उठाने का आरोप लगाया। कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने राज्य प्रशासन पर “नींद में” रहने का आरोप लगाया, जबकि सीपीआई(एम) ने पुलिस की “मूकदर्शक” बने रहने की निंदा की और सेना की तैनाती की मांग की।

इन राजनीतिक टकरावों के बीच मुर्शिदाबाद के लोग फंसे हुए हैं जिनकी जिंदगी में उथल पुथल आ चुका है। भले ही सामूहिक पलायन के दावों की पुष्टि न हो, लेकिन जमीनी स्तर पर तबाही से इनकार नहीं किया जा सकता। घरों में तोड़फोड़ की गई, दुकानों को लूटा गया, संपत्ति नष्ट की गई और लोगों का भरोसा टूटा। तीन लोगों की मौत हो गई, नागरिक और पुलिसकर्मी घायल हो गए और जिले के कई हिस्सों में रोजमर्रा की जिंदगी ठहर सी गई। बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया, स्थानीय व्यवसायों को नुकसान हुआ और समुदायों में डर फैल गया है। जैसे-जैसे राजनेता नैरेटिव पर बहस करते हैं, आम नागरिक ही सबसे ज्यादा कीमत चुकाते हैं।

मुर्शिदाबाद में हिंसा सिर्फ कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं है बल्कि यह इस बात की याद दिलाता है कि बंगाल के राजनीतिक गलियारे में धार्मिक पहचान का किस तरह से दुरुपयोग किया जा रहा है। जैसे-जैसे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल नैरेटिव को नियंत्रित करने की होड़ में लगे हैं, वैसे-वैसे न्याय, जवाबदेही और कानून के तहत समान सुरक्षा का संवैधानिक वादा खोता जा रहा है चाहे वह किसी भी धर्म का हो।

मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा की पिछली घटना की डिटेल्ड स्टोरी यहां पढ़ी जा सकती है।

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