अहमदाबाद: एनआईडी में विभाग के प्रमुखों के फेरबदल के खिलाफ प्रदर्शन

Written by sabrang india | Published on: October 18, 2024
छात्रों और संकाय सदस्यों ने बदलावों का विरोध करते हुए कहा कि इनमें पारदर्शिता की कमी है और मौजूदा सेमेस्टर के अंत से पहले रुकावट पैदा हुई है।

 
साभार : आधिकारिक वेबसाइट एनआईडी

अहमदाबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन (एनआईडी) में नए निदेशक अशोक मोंडल द्वारा महत्वपूर्ण विभाग के प्रमुखों के फेरबदल और छह महिलाओं को उनके पदों से हटाने के खिलाफ बुधवार को तीसरे दिन भी विरोध प्रदर्शन जारी रहा।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, छात्रों और संकाय सदस्यों ने बदलावों का विरोध करते हुए कहा कि इनमें पारदर्शिता की कमी है और मौजूदा सेमेस्टर के अंत से पहले रुकावट पैदा हुई है। एनआईडी ने पिछले शुक्रवार को मोंडल के पदभार ग्रहण करने के दो दिन बाद ईमेल के जरिए विभाग प्रमुखों को नई जिम्मेदारियां सौंपी थीं। सोमवार को काले कपड़े पहने छात्रों ने उनके कार्यालय के बाहर अपना विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।

मोंडल ने बातचीत से प्रदर्शनकारियों को शांत करने की कोशिश की, लेकिन इससे तनाव और बढ़ गया। इस बातचीत में शामिल दो छात्रों और एक संकाय सदस्य ने मोंडल के हवाले से कहा कि उनका मानना है कि महिलाएं “पढ़ाने में अच्छी हैं, लेकिन प्रशासनिक भूमिकाओं में नहीं”। यह टिप्पणी छह महिला विभाग प्रमुखों को हटाने के उनके फैसले के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में आई। छात्रों ने विरोध किया और मोंडल से पूछा कि क्या उन्हें लगता है कि महिलाएं मल्टीटास्किंग में असमर्थ हैं। जवाब में, मोंडल ने कथित तौर पर छात्रों पर "विषय को भटकाने" का आरोप लगाया और कहा कि फेरबदल में कोई लैंगिक पक्षपात नहीं था।

रिपोर्ट के अनुसार, एक छात्र ने कहा कि विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा क्योंकि मोंडल अपने गलत समय पर लिए गए और विनाशकारी फैसले को वापस लेने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। "कैंपस में लगभग 800 छात्र हैं जो उनके खिलाफ हैं। यह फेरबदल ऐसा है जैसे किसी ने अचानक गणित के शिक्षक से पेंटिंग पढ़ाने को कह दिया हो। और यह सब तब हो रहा है जब सेमेस्टर-एंड एग्जाम को करीब एक सप्ताह बचे हैं।"

छात्रों ने बुधवार को मोंडल के निर्णयों के खिलाफ पोस्टर लगाने की योजना बनाई। एक अन्य छात्र ने कहा, "पोस्टर हमारी चिंताओं को दर्शाएंगे, जिसमें बताया जाएगा कि कैसे ये बदलाव हमारी पढ़ाई और समग्र शैक्षणिक माहौल को बाधित कर सकते हैं।"

मंगलवार को एनआईडी कम्युनिटी को भेजे गए एक ईमेल में मोंडल ने कहा कि प्रशासनिक भूमिकाओं और जिम्मेदारियों का रोटेशन समय-समय पर संकाय के कार्यभार को फिर से बांटने के लिए किया जाता है ताकि कुछ पर अधिक बोझ न पड़े जिससे उनकी पढ़ाई-लिखाई प्रभावित न हो। मोंडल ने लिखा, "संकाय प्रतिभा की विविधता का सम्मान करना भी आवश्यक है, जिससे युवा संकाय को आगे बढ़ने और संस्थागत विकास में योगदान करने का अवसर मिले। हालांकि यह आमतौर पर अकादमिक अवकाश के दौरान किया जाता है, लेकिन जिम्मेदारियों का वर्तमान रोटेशन संक्रमण अवधि के दौरान अंतरिम व्यवस्था के कारण लंबे समय से लंबित था।"

मोंडल को भेजे गए ईमेल में, एनआईडी अहमदाबाद की छात्र मामलों की परिषद ने लिखा कि बिना किसी पूर्व सूचना या परामर्श के संकाय सदस्यों के अचानक पुनर्नियुक्ति ने इन निर्णयों के पीछे के मानदंडों और प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

छात्रों ने कहा कि वे अनुभवी सलाहकारों और संकाय तक निरंतर पहुंच पर भरोसा करते हैं, जो उनके विषयों की विशिष्ट आवश्यकताओं को समझते हैं।

विभागों और संकाय की छह महिला प्रमुखों को हटाने और उनकी विशेषज्ञता से असंबंधित पदों को सौंपने से विशेष रूप से छात्र नाराज हैं। छात्रों ने कहा कि विषय विशेषज्ञता की परवाह किए बिना अचानक नेतृत्व परिवर्तन से सेमेस्टर के अंत में होने वाले प्रोजेक्ट की उनकी तैयारी पर गंभीर असर पड़ेगा। फर्नीचर डिजाइन विभाग के प्रमुख प्रवीण सोलंकी को प्रदर्शनी डिजाइन विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया है, जबकि पूर्व प्रदर्शनी डिजाइन प्रमुख तनिष्का काचरू को उनके पद से हटा दिया गया है। छात्रों को डर है कि इन बदलावों से दोनों विभागों में अकादमिक मेंटरशिप की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा।

एनआईडी में हर छोटे बड़े फैसले लेने के लिए कंसल्टेटिव फॉरम (विचार विमर्श की सभा) का आयोजन किया जाता था। जहां छात्र और शिक्षक खुल कर अपनी अपनी बात रखते थे, और मिलजुल कर हर समस्या का समाधान ढूंढते थे।

लोगों में बड़े छोटे का भेदभाव न हो, इसलिए किसी को भी सर या मैडम भी बोलने की परंपरा नहीं थी। लोग एक दूसरे को उनके नाम से ही संबोधित करते थे। ऐसा इसलिए किया गया था कि एनआई़डी के संस्थापक डेमोक्रेटिक वैल्यू को मानने वाले थे और उन्होंने जर्मनी के डिज़ाइन स्कूल Bauhaus (जो विश्व का सबसे पहला डिज़ाइन स्कूल था 1919–1933) को हिटलर की तानाशाही से बंद होते हुए देखा था।

ऐसे में एनआई़डी द्वारा महिलाओं को उनके पद से हटा देने का फ़रमान और भी अधिक चौंकाने वाला है। और नाज़ी जर्मनी की तानाशाही को याद दिला रहा है।

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