केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि 2020 से अब तक देश में 99,000 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि को गैर-वनीय कार्यों के लिए उपयोग किया गया है, जिसमें सड़क, खनन, हाइड्रोइलेक्ट्रिक और सिंचाई परियोजनाओं का सबसे बड़ा हिस्सा शामिल है। हालांकि, सरकार ने जंगल के डायवर्जन या क्लियरेंस से प्रभावित लोगों की जानकारी साझा नहीं की।

साभार : नेशनल हेराल्ड
केंद्र सरकार ने गुरुवार 4 दिसंबर को संसद में बताया कि वर्ष 2020 से अब तक देश में 99,000 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि को गैर-वनीय उपयोगों के लिए अनुमति दी गई है, जिनमें सड़क निर्माण, खनन, हाइड्रोइलेक्ट्रिक और सिंचाई परियोजनाओं का सबसे बड़ा हिस्सा शामिल है।
न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार, केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने राज्यसभा में बताया कि 2020-21 से 2024-25 के बीच केवल सड़क परियोजनाओं के लिए 22,233 हेक्टेयर वन भूमि डायवर्ट की गई। इसके बाद खनन और खनिज परियोजनाओं के लिए 18,914 हेक्टेयर और जलविद्युत व सिंचाई कार्यों के लिए 17,434 हेक्टेयर भूमि का डायवर्ज़न हुआ।
सरकार के अनुसार, पावर ट्रांसमिशन लाइनों के लिए 13,859 हेक्टेयर और रेलवे परियोजनाओं के लिए 5,957 हेक्टेयर वन भूमि का डायवर्ज़न किया गया।
दूसरी बड़ी श्रेणियों में जंगल गांवों का स्थानांतरण, पेयजल परियोजनाएं, पुनर्वास कार्य, नहरें, रक्षा परियोजनाएं, ऑप्टिकल फाइबर केबल, औद्योगिक गतिविधियां और नए पेट्रोल पंप शामिल हैं।
सोलर और पवन ऊर्जा, स्कूल, अस्पताल और कम्युनिकेशन पोस्ट के लिए छोटे डायवर्जन रिकॉर्ड किए गए।
आंकड़े बताते हैं कि 2024-25 में कुछ श्रेणियों में तेजी से वृद्धि हुई, जिनमें पेयजल परियोजनाएं, पेट्रोल पंप और पावर ट्रांसमिशन लाइनें शामिल हैं। इस अवधि में री-डायवर्जन/लैंड यूज़ चेंज श्रेणी में भी 180 नए मामले दर्ज हुए।
द वायर ने लिखा, मंत्रालय ने बताया कि 2020 से अब तक कुल 3,826 सड़क परियोजनाओं को फॉरेस्ट क्लियरेंस दी गई है, जो सभी सेक्टर्स में सबसे अधिक है।
पाइपलाइन, पेयजल परियोजनाएं, ऑप्टिकल फाइबर केबल, जलविद्युत और सिंचाई, खनन/खनिज और रेलवे परियोजनाएं अगली बड़ी श्रेणियों में आती हैं।
छोटी लेकिन महत्वपूर्ण श्रेणियों में रक्षा, उद्योग, गांवों में बिजली, स्कूल और शैक्षणिक संस्थान, तथा गैर-पारंपरिक ऊर्जा शामिल हैं। इस पांच साल की अवधि में सोलर और पनबिजली परियोजनाओं को क्रमशः केवल आठ और एक फॉरेस्ट क्लियरेंस मिली।
जवाब में जंगल के डाइवर्जन या क्लीयरेंस से प्रभावित लोगों की जानकारी नहीं दी गई।
मंत्री ने बताया कि इस प्रकार की जानकारी ज़मीन अधिग्रहण कानून के तहत संकलित की जाती है और पर्यावरण मंज़ूरी की प्रक्रिया के दौरान इसकी समीक्षा की जाती है।
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साभार : नेशनल हेराल्ड
केंद्र सरकार ने गुरुवार 4 दिसंबर को संसद में बताया कि वर्ष 2020 से अब तक देश में 99,000 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि को गैर-वनीय उपयोगों के लिए अनुमति दी गई है, जिनमें सड़क निर्माण, खनन, हाइड्रोइलेक्ट्रिक और सिंचाई परियोजनाओं का सबसे बड़ा हिस्सा शामिल है।
न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार, केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने राज्यसभा में बताया कि 2020-21 से 2024-25 के बीच केवल सड़क परियोजनाओं के लिए 22,233 हेक्टेयर वन भूमि डायवर्ट की गई। इसके बाद खनन और खनिज परियोजनाओं के लिए 18,914 हेक्टेयर और जलविद्युत व सिंचाई कार्यों के लिए 17,434 हेक्टेयर भूमि का डायवर्ज़न हुआ।
सरकार के अनुसार, पावर ट्रांसमिशन लाइनों के लिए 13,859 हेक्टेयर और रेलवे परियोजनाओं के लिए 5,957 हेक्टेयर वन भूमि का डायवर्ज़न किया गया।
दूसरी बड़ी श्रेणियों में जंगल गांवों का स्थानांतरण, पेयजल परियोजनाएं, पुनर्वास कार्य, नहरें, रक्षा परियोजनाएं, ऑप्टिकल फाइबर केबल, औद्योगिक गतिविधियां और नए पेट्रोल पंप शामिल हैं।
सोलर और पवन ऊर्जा, स्कूल, अस्पताल और कम्युनिकेशन पोस्ट के लिए छोटे डायवर्जन रिकॉर्ड किए गए।
आंकड़े बताते हैं कि 2024-25 में कुछ श्रेणियों में तेजी से वृद्धि हुई, जिनमें पेयजल परियोजनाएं, पेट्रोल पंप और पावर ट्रांसमिशन लाइनें शामिल हैं। इस अवधि में री-डायवर्जन/लैंड यूज़ चेंज श्रेणी में भी 180 नए मामले दर्ज हुए।
द वायर ने लिखा, मंत्रालय ने बताया कि 2020 से अब तक कुल 3,826 सड़क परियोजनाओं को फॉरेस्ट क्लियरेंस दी गई है, जो सभी सेक्टर्स में सबसे अधिक है।
पाइपलाइन, पेयजल परियोजनाएं, ऑप्टिकल फाइबर केबल, जलविद्युत और सिंचाई, खनन/खनिज और रेलवे परियोजनाएं अगली बड़ी श्रेणियों में आती हैं।
छोटी लेकिन महत्वपूर्ण श्रेणियों में रक्षा, उद्योग, गांवों में बिजली, स्कूल और शैक्षणिक संस्थान, तथा गैर-पारंपरिक ऊर्जा शामिल हैं। इस पांच साल की अवधि में सोलर और पनबिजली परियोजनाओं को क्रमशः केवल आठ और एक फॉरेस्ट क्लियरेंस मिली।
जवाब में जंगल के डाइवर्जन या क्लीयरेंस से प्रभावित लोगों की जानकारी नहीं दी गई।
मंत्री ने बताया कि इस प्रकार की जानकारी ज़मीन अधिग्रहण कानून के तहत संकलित की जाती है और पर्यावरण मंज़ूरी की प्रक्रिया के दौरान इसकी समीक्षा की जाती है।
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