ईसाई धर्म अपनाने वाले एक व्यक्ति के शव को गांव के लोगों ने गांव के कब्रिस्तान में दफनाने से रोक दिया। इससे पहले भी इसी तरह की घटना सामने आई थी, जब कांकेर जिले के एक गांव में धर्म परिवर्तन कर चुके एक व्यक्ति के शव के दफनाने पर आपत्ति जताई गई थी।

प्रतीकात्मक तस्वीर (हिंदुस्तान टाइ्म्स)
छत्तीसगढ़ के बलौद जिले के जवारतला गांव में कुछ साल पहले ईसाई धर्म अपनाने वाले एक व्यक्ति के शव को गांव के लोगों ने गांव के कब्रिस्तान में ही दफनाने से रोक दिया। शव को अस्थायी रूप से मॉर्चरी में रखा गया और बाद में पास के एक अन्य गांव के कब्रिस्तान में दफनाया गया।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, रमन साहू और उनके परिवार ने कुछ साल पहले ईसाई धर्म अपना लिया था। हाल ही में रमन साहू की तबीयत बिगड़ने पर उन्हें रायपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनका निधन हो गया। जब उनका शव पैतृक गांव जवारतला (रायपुर से करीब 90 किलोमीटर दूर) लाया गया, तो गांववालों ने शव को गांव में प्रवेश करने से रोक दिया।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, ग्रामीणों ने शव को गांव की सीमा पर ही रोक दिया और शर्त रखी कि अंतिम संस्कार केवल गांव के पारंपरिक (हिंदू) रीति-रिवाजों से ही किया जा सकता है।
स्थिति बिगड़ने की आशंका को देखते हुए मौके पर पुलिस बल तैनात किया गया। प्रशासन की लगातार कोशिशों के बावजूद गांव वाले अपनी जिद पर अड़े रहे। आखिरकार, रविवार 9 नवंबर को शव को गांव से दूर संकरा गांव के कब्रिस्तान में दफनाया गया।
गांव के लोगों के अड़े रहने के कारण प्रशासन ने शव को अस्थायी रूप से मॉर्चरी में रखवाया था।
बलौद जिले के पुलिस अधीक्षक योगेश पटेल ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “गांववालों ने रमन साहू के परिवार को ईसाई धर्म अपनाने के कारण दफनाने की जगह देने से इनकार कर दिया। अंततः रविवार को परिवार को मजबूरन जवारतला गांव से दूर संकरा कब्रिस्तान में शव को दफनाना पड़ा।”
‘संवैधानिक अधिकारों का हनन’
छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फोरम के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल ने प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा, “ईसाइयों से उनके अपने गांवों में सम्मानजनक अंतिम संस्कार का संवैधानिक अधिकार छीना जा रहा है। प्रशासन भीड़ के सामने असहाय नजर आया, जबकि कानून के अनुसार उस क्षेत्र में दफनाने की जमीन पहले से निर्धारित है। संविधान का अनुच्छेद 19 भेदभाव और हिंसा को बढ़ावा देने पर रोक लगाता है।”
कांकेर में भी हुई ऐसी ही घटना
इससे पहले, कांकेर जिले के कोडेकुर्से गांव में भी धर्म परिवर्तन कर चुके एक व्यक्ति के शव को दफनाने से रोक दिया गया था। 25 वर्षीय मनोज निषाद की 5 नवंबर को रायपुर में इलाज के दौरान मौत हो गई थी। मनोज ने कुछ महीने पहले ही ईसाई धर्म अपनाया था।
गांववालों ने रमन साहू के परिवार को निजी जमीन पर भी दफनाने की अनुमति नहीं दी। इसके विरोध में ईसाई समुदाय के सदस्यों ने स्थानीय थाने के बाहर प्रदर्शन किया और मांग की कि शव को गांव में ही दफनाने की अनुमति दी जाए।
स्थिति बिगड़ने पर कोडेकुर्से गांव के ग्रामीणों ने ऐलान किया कि यदि निषाद परिवार ‘धर्म त्याग’ कर अपने पुराने धर्म में लौट आए, तो उन्हें अंतिम संस्कार की अनुमति दी जाएगी।
ज्ञात हो कि इसी साल जनवरी महीने में एक ईसाई व्यक्ति को अपने पिता की मौत के बाद शव को दफनाने के लिए दर-दर भटकना पड़ा था। आखिर में उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट ने 20 जनवरी को कहा कि उसे यह देखकर दुख हुआ कि छत्तीसगढ़ के एक व्यक्ति को अपने पिता, जो एक ईसाई पादरी थे, को छिंदवाड़ा गांव के कब्रिस्तान में दफनाने की गुहार लेकर सुप्रीम कोर्ट आना पड़ा, क्योंकि राज्य और उच्च न्यायालय इस मुद्दे को सुलझा नहीं पाए।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में याचिकाकर्ता एक आदिवासी ईसाई था और उसके पिता का 7 जनवरी को लंबी बीमारी के कारण निधन हो गया था। हालांकि, जब परिवार ने उन्हें गांव के ईसाइयों के लिए बने कब्रिस्तान में दफनाने की कोशिश की, तो कुछ ग्रामीणों ने इसका कड़ा विरोध किया और परिवार को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका में कहा गया। लाइव लॉ ने इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया।
याचिका में कहा गया था कि जब परिवार ने पुलिस से मदद मांगी, तो पुलिस ने उन पर शव को गांव से बाहर ले जाने का दबाव डाला, जिसके परिणामस्वरूप शव मुर्दाघर में रखा गया।
मामला उच्च न्यायालय में पहुंचने पर, न्यायालय ने पाया कि छिंदावाला गांव में ईसाइयों के लिए अलग से कोई कब्रिस्तान नहीं है, जबकि लगभग 20-25 किलोमीटर दूर एक अन्य गांव में एक अलग कब्रिस्तान है।
उच्च न्यायालय ने कहा था, "इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि ईसाई समुदाय का कब्रिस्तान पास के क्षेत्र में उपलब्ध है, इस रिट याचिका में याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई राहत प्रदान करना उचित नहीं होगा, जिससे आम जनता में अशांति और असामंजस्य पैदा हो सकता है।”
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प्रतीकात्मक तस्वीर (हिंदुस्तान टाइ्म्स)
छत्तीसगढ़ के बलौद जिले के जवारतला गांव में कुछ साल पहले ईसाई धर्म अपनाने वाले एक व्यक्ति के शव को गांव के लोगों ने गांव के कब्रिस्तान में ही दफनाने से रोक दिया। शव को अस्थायी रूप से मॉर्चरी में रखा गया और बाद में पास के एक अन्य गांव के कब्रिस्तान में दफनाया गया।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, रमन साहू और उनके परिवार ने कुछ साल पहले ईसाई धर्म अपना लिया था। हाल ही में रमन साहू की तबीयत बिगड़ने पर उन्हें रायपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनका निधन हो गया। जब उनका शव पैतृक गांव जवारतला (रायपुर से करीब 90 किलोमीटर दूर) लाया गया, तो गांववालों ने शव को गांव में प्रवेश करने से रोक दिया।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, ग्रामीणों ने शव को गांव की सीमा पर ही रोक दिया और शर्त रखी कि अंतिम संस्कार केवल गांव के पारंपरिक (हिंदू) रीति-रिवाजों से ही किया जा सकता है।
स्थिति बिगड़ने की आशंका को देखते हुए मौके पर पुलिस बल तैनात किया गया। प्रशासन की लगातार कोशिशों के बावजूद गांव वाले अपनी जिद पर अड़े रहे। आखिरकार, रविवार 9 नवंबर को शव को गांव से दूर संकरा गांव के कब्रिस्तान में दफनाया गया।
गांव के लोगों के अड़े रहने के कारण प्रशासन ने शव को अस्थायी रूप से मॉर्चरी में रखवाया था।
बलौद जिले के पुलिस अधीक्षक योगेश पटेल ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “गांववालों ने रमन साहू के परिवार को ईसाई धर्म अपनाने के कारण दफनाने की जगह देने से इनकार कर दिया। अंततः रविवार को परिवार को मजबूरन जवारतला गांव से दूर संकरा कब्रिस्तान में शव को दफनाना पड़ा।”
‘संवैधानिक अधिकारों का हनन’
छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फोरम के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल ने प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा, “ईसाइयों से उनके अपने गांवों में सम्मानजनक अंतिम संस्कार का संवैधानिक अधिकार छीना जा रहा है। प्रशासन भीड़ के सामने असहाय नजर आया, जबकि कानून के अनुसार उस क्षेत्र में दफनाने की जमीन पहले से निर्धारित है। संविधान का अनुच्छेद 19 भेदभाव और हिंसा को बढ़ावा देने पर रोक लगाता है।”
कांकेर में भी हुई ऐसी ही घटना
इससे पहले, कांकेर जिले के कोडेकुर्से गांव में भी धर्म परिवर्तन कर चुके एक व्यक्ति के शव को दफनाने से रोक दिया गया था। 25 वर्षीय मनोज निषाद की 5 नवंबर को रायपुर में इलाज के दौरान मौत हो गई थी। मनोज ने कुछ महीने पहले ही ईसाई धर्म अपनाया था।
गांववालों ने रमन साहू के परिवार को निजी जमीन पर भी दफनाने की अनुमति नहीं दी। इसके विरोध में ईसाई समुदाय के सदस्यों ने स्थानीय थाने के बाहर प्रदर्शन किया और मांग की कि शव को गांव में ही दफनाने की अनुमति दी जाए।
स्थिति बिगड़ने पर कोडेकुर्से गांव के ग्रामीणों ने ऐलान किया कि यदि निषाद परिवार ‘धर्म त्याग’ कर अपने पुराने धर्म में लौट आए, तो उन्हें अंतिम संस्कार की अनुमति दी जाएगी।
ज्ञात हो कि इसी साल जनवरी महीने में एक ईसाई व्यक्ति को अपने पिता की मौत के बाद शव को दफनाने के लिए दर-दर भटकना पड़ा था। आखिर में उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट ने 20 जनवरी को कहा कि उसे यह देखकर दुख हुआ कि छत्तीसगढ़ के एक व्यक्ति को अपने पिता, जो एक ईसाई पादरी थे, को छिंदवाड़ा गांव के कब्रिस्तान में दफनाने की गुहार लेकर सुप्रीम कोर्ट आना पड़ा, क्योंकि राज्य और उच्च न्यायालय इस मुद्दे को सुलझा नहीं पाए।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में याचिकाकर्ता एक आदिवासी ईसाई था और उसके पिता का 7 जनवरी को लंबी बीमारी के कारण निधन हो गया था। हालांकि, जब परिवार ने उन्हें गांव के ईसाइयों के लिए बने कब्रिस्तान में दफनाने की कोशिश की, तो कुछ ग्रामीणों ने इसका कड़ा विरोध किया और परिवार को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका में कहा गया। लाइव लॉ ने इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया।
याचिका में कहा गया था कि जब परिवार ने पुलिस से मदद मांगी, तो पुलिस ने उन पर शव को गांव से बाहर ले जाने का दबाव डाला, जिसके परिणामस्वरूप शव मुर्दाघर में रखा गया।
मामला उच्च न्यायालय में पहुंचने पर, न्यायालय ने पाया कि छिंदावाला गांव में ईसाइयों के लिए अलग से कोई कब्रिस्तान नहीं है, जबकि लगभग 20-25 किलोमीटर दूर एक अन्य गांव में एक अलग कब्रिस्तान है।
उच्च न्यायालय ने कहा था, "इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि ईसाई समुदाय का कब्रिस्तान पास के क्षेत्र में उपलब्ध है, इस रिट याचिका में याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई राहत प्रदान करना उचित नहीं होगा, जिससे आम जनता में अशांति और असामंजस्य पैदा हो सकता है।”
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