इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि सरकार अब इन गलियारों (कॉरिडोरों) को आगे बढ़ाने के लिए पूरी ताकत से काम कर रही है, जबकि इन परियोजनाओं से गोवा या कर्नाटक के आम लोगों को कोई सीधा लाभ नहीं दिखता। गोवा जैसे छोटे राज्य के लिए अपने प्राकृतिक संसाधन खोकर सिर्फ “एक रास्ता” या “कॉरिडोर” बन जाना एक बड़ी तबाही साबित होगा।

नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट्स (एनएपीएम) ने गोवा के लोगों और समुदायों के साथ अपनी पूर्ण एकजुटता व्यक्त की है, जो इस छोटे से राज्य में कोयला प्रबंधन, परिवहन और उससे जुड़े विशाल बुनियादी ढांचे के खिलाफ खड़े हैं।
एनएपीएम का कहना है कि भारत सरकार की हालिया घोषणाओं से लोगों की चिंता वाजिब है — इलेक्ट्रिकल ट्रांसमिशन, सड़कों के चौड़ीकरण, रेलवे की दोहरी पटरी बिछाने की परियोजनाएं और सागरमाला कार्यक्रम उन गलियारों को सुगम बनाने के लिए तैयार किए जा रहे हैं जो मोरमुगाओ बंदरगाह से कर्नाटक के होस्पेट तक कोयले के परिवहन को आगे बढ़ाएंगे। यह कर्नाटक में स्टील कॉरिडोर और देश भर में स्थापित किए जा रहे विकास कॉरिडोरों की व्यापक पहल का हिस्सा है।
इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि सरकार अब इन गलियारों (कॉरिडोरों) को आगे बढ़ाने के लिए पूरी ताकत से काम कर रही है, जबकि इन परियोजनाओं से गोवा या कर्नाटक के आम लोगों को कोई सीधा लाभ नहीं दिखता। गोवा जैसे छोटे राज्य के लिए अपने प्राकृतिक संसाधन खोकर सिर्फ “एक रास्ता” या “कॉरिडोर” बन जाना एक बड़ी तबाही साबित होगा।
कोयले के कण और उससे जुड़ी अवसंरचना के कारण गोवा की हवा, पानी, नदियां, खेती, मछली पकड़ने और मछली सुखाने के स्थान, जंगल, और वहां के लोगों का स्वास्थ्य व आजीविका — सब खतरे में हैं। यह सब सिर्फ इसलिए हो रहा है ताकि गोवा के बंदरगाहों, सड़कों, रेलमार्गों और जलमार्गों से कोयले का परिवहन आसान बनाया जा सके।
एनएपीएम ने कॉर्पोरेट विस्तारवाद को बढ़ावा देने वाली इन योजनाओं को सुगम बनाने के लिए व्यवस्थित रूप से लागू किए गए संदिग्ध कानूनी ढांचे की भी निंदा की है, जबकि पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक प्रभाव, भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास से संबंधित मौजूदा कानूनों और नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है।
कल जारी एक बयान में, एनएपीएम ने गोवा और कर्नाटक के सक्रिय जन आंदोलनों के साथ मिलकर इस क्षेत्र को कोयला परिवहन और औद्योगिक गलियारों के केंद्र में बदले जाने का विरोध किया है, और वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों के लिए पारिस्थितिकी, आजीविका और जनकल्याण की रक्षा के उनके संघर्षों का समर्थन किया है।
गोवा के लोग गोवा की नदियों को “गैर-अधिसूचित” (डि-नोटिफाई) करने की मांग कर रहे हैं, जिन्हें राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम, 2016 के तहत राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया है। इसी तरह, प्रदर्शनकारी रेलवे दोहरीकरण परियोजना को रोकने और कठोर कानून के तहत अधिग्रहित भूमि को वापस करने की मांग कर रहे हैं।
एनएपीएम ने मोरमुगाओ तालुका में आयोजित जन सुनवाई में व्यक्त जनता की इच्छा का सम्मान करते हुए बंदरगाह विस्तार पर तत्काल रोक लगाने का आह्वान किया है।
गोवा के लोगों ने रविवार, 9 नवंबर को “चलो लोहिया मैदान” में जन विरोध प्रदर्शन किया।
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नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट्स (एनएपीएम) ने गोवा के लोगों और समुदायों के साथ अपनी पूर्ण एकजुटता व्यक्त की है, जो इस छोटे से राज्य में कोयला प्रबंधन, परिवहन और उससे जुड़े विशाल बुनियादी ढांचे के खिलाफ खड़े हैं।
एनएपीएम का कहना है कि भारत सरकार की हालिया घोषणाओं से लोगों की चिंता वाजिब है — इलेक्ट्रिकल ट्रांसमिशन, सड़कों के चौड़ीकरण, रेलवे की दोहरी पटरी बिछाने की परियोजनाएं और सागरमाला कार्यक्रम उन गलियारों को सुगम बनाने के लिए तैयार किए जा रहे हैं जो मोरमुगाओ बंदरगाह से कर्नाटक के होस्पेट तक कोयले के परिवहन को आगे बढ़ाएंगे। यह कर्नाटक में स्टील कॉरिडोर और देश भर में स्थापित किए जा रहे विकास कॉरिडोरों की व्यापक पहल का हिस्सा है।
इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि सरकार अब इन गलियारों (कॉरिडोरों) को आगे बढ़ाने के लिए पूरी ताकत से काम कर रही है, जबकि इन परियोजनाओं से गोवा या कर्नाटक के आम लोगों को कोई सीधा लाभ नहीं दिखता। गोवा जैसे छोटे राज्य के लिए अपने प्राकृतिक संसाधन खोकर सिर्फ “एक रास्ता” या “कॉरिडोर” बन जाना एक बड़ी तबाही साबित होगा।
कोयले के कण और उससे जुड़ी अवसंरचना के कारण गोवा की हवा, पानी, नदियां, खेती, मछली पकड़ने और मछली सुखाने के स्थान, जंगल, और वहां के लोगों का स्वास्थ्य व आजीविका — सब खतरे में हैं। यह सब सिर्फ इसलिए हो रहा है ताकि गोवा के बंदरगाहों, सड़कों, रेलमार्गों और जलमार्गों से कोयले का परिवहन आसान बनाया जा सके।
एनएपीएम ने कॉर्पोरेट विस्तारवाद को बढ़ावा देने वाली इन योजनाओं को सुगम बनाने के लिए व्यवस्थित रूप से लागू किए गए संदिग्ध कानूनी ढांचे की भी निंदा की है, जबकि पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक प्रभाव, भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास से संबंधित मौजूदा कानूनों और नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है।
कल जारी एक बयान में, एनएपीएम ने गोवा और कर्नाटक के सक्रिय जन आंदोलनों के साथ मिलकर इस क्षेत्र को कोयला परिवहन और औद्योगिक गलियारों के केंद्र में बदले जाने का विरोध किया है, और वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों के लिए पारिस्थितिकी, आजीविका और जनकल्याण की रक्षा के उनके संघर्षों का समर्थन किया है।
गोवा के लोग गोवा की नदियों को “गैर-अधिसूचित” (डि-नोटिफाई) करने की मांग कर रहे हैं, जिन्हें राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम, 2016 के तहत राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया है। इसी तरह, प्रदर्शनकारी रेलवे दोहरीकरण परियोजना को रोकने और कठोर कानून के तहत अधिग्रहित भूमि को वापस करने की मांग कर रहे हैं।
एनएपीएम ने मोरमुगाओ तालुका में आयोजित जन सुनवाई में व्यक्त जनता की इच्छा का सम्मान करते हुए बंदरगाह विस्तार पर तत्काल रोक लगाने का आह्वान किया है।
गोवा के लोगों ने रविवार, 9 नवंबर को “चलो लोहिया मैदान” में जन विरोध प्रदर्शन किया।
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