शोधकर्ता और डिजिटल प्राइवेसी अधिकारों के समर्थक श्रीनिवास कोडाली ने तेलंगाना के मुख्य निर्वाचन अधिकारी से शिकायत की है कि राज्य सरकार ने सरकारी सेवाएं ऑनलाइन देने के लिए निर्वाचन फोटो पहचान पत्र (EPIC) के डेटा का उपयोग चेहरे की पहचान (फेशियल रिकग्निशन) के लिए किया है।

तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार पर मतदाता सूची में मौजूद तस्वीरों का फेशियल रिकग्निशन के लिए कथित दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया है। हैदराबाद के शोधकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता श्रीनिवास कोडाली ने इस संबंध में तेलंगाना के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) से शिकायत दर्ज कराई है। उनकी मांग है कि यदि निर्वाचन फोटो पहचान पत्र (EPIC) की तस्वीरें मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय के अलावा किसी अन्य एजेंसी के पास हैं, तो उन्हें तुरंत हटाया जाए।
द न्यूज मिनट की रिपोर्ट के अनुसार, डिजिटलीकरण पर शोध करने वाले और डिजिटल गोपनीयता अधिकारों के पक्षधर श्रीनिवास कोडाली ने सरकारी दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा है कि तेलंगाना सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने चेहरे की पहचान के लिए EPIC तस्वीरों का इस्तेमाल किया है।
इन तस्वीरों का उपयोग पहचान सत्यापन के लिए फेशियल रिकग्निशन में किया गया। यह प्रक्रिया ‘T App Folio’ नामक एक ऐप पर की गई, जो ड्राइविंग लाइसेंस नवीनीकरण और पेंशनभोगियों के लिए जीवन प्रमाण पत्र जैसी सरकारी सेवाएं दूरस्थ रूप से उपलब्ध कराने के लिए बनाया गया है।
श्रीनिवास के अनुसार, संभव है कि राज्य सरकार को EPIC डेटा 2015 में तेलंगाना में आधार और मतदाता पहचान पत्र (वोटर आईडी) को जोड़ने की प्रक्रिया के दौरान मिला हो।
उन्होंने यह भी संभावना जताई कि यह डेटा 2020 में मतदाता पहचान के लिए किए गए फेशियल रिकग्निशन पायलट प्रोजेक्ट से लिया गया हो। उस समय भी इस प्रोजेक्ट की वैधता पर डिजिटल अधिकार कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाए थे।
श्रीनिवास का तर्क है कि चाहे जो भी परिस्थिति रही हो, EPIC तस्वीरों का फेशियल रिकग्निशन के लिए इस्तेमाल करना कानूनी रूप से गलत है। उन्होंने कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और उससे संबंधित नियमों के अनुसार चुनाव अधिकारियों को मतदाता सूची केवल “निर्वाचन संबंधी उद्देश्यों” के लिए इकट्ठा करने और बनाए रखने की अनुमति है।
श्रीनिवास ने अपनी शिकायत में लिखा, “ये प्रावधान राज्य सरकारों के साथ डेटा साझा करने या चेहरे की पहचान (फेशियल रिकग्निशन) के लिए इसके इस्तेमाल की अनुमति नहीं देते। इस प्रकार की कार्रवाई स्पष्ट रूप से अवैध है।” उनका कहना है कि यह प्रक्रिया निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के पुट्टास्वामी फैसले का उल्लंघन करती है।
श्रीनिवास का आरोप है कि सरकार ने इस डेटा का उपयोग केवल चुनाव तक सीमित न रखकर अन्य उद्देश्यों के लिए भी किया है।
अपनी शिकायत के समर्थन में उन्होंने राज्य सरकार की एक प्रेजेंटेशन भी जमा की है। यह दस्तावेज फरवरी 2023 में सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा तैयार किया गया था। इसमें दिखाया गया है कि सरकार की फेशियल रिकग्निशन प्रणाली, जिसे रियल-टाइम डिजिटल ऑथेंटिकेशन ऑफ आइडेंटिटी (RTDAI) कहा जाता है, ने पहचान सत्यापन के लिए मतदाता सूची की तस्वीरों और विवरणों का इस्तेमाल किया।
यह प्रणाली पेंशन से संबंधित सेवाओं के लिए T Folio ऐप पर लागू की गई, जिससे पेंशनभोगी बिना सरकारी कार्यालय जाए अपनी पहचान सत्यापित कर सकते हैं। यह ऐप पूरी तरह से तेलंगाना सरकार के स्वामित्व और नियंत्रण में है।
प्रेजेंटेशन में यह भी बताया गया कि सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने 2020 में कॉम्पल्ली नगरपालिका चुनावों के दौरान मतदाता पहचान के लिए फेशियल रिकग्निशन का एक पायलट प्रोजेक्ट चलाया था। यह तकनीक राज्य सरकार के ही एक विभाग ने विकसित की थी। श्रीनिवास को यह प्रेजेंटेशन एक सरकारी प्रशिक्षण संस्थान की वेबसाइट पर मिला।
तेलंगाना ने निर्वाचन आयोग के एक कार्यक्रम के तहत आधार नंबर को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ना शुरू किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे 2015 में रोक दिया। हालांकि, अप्रैल 2018 में आंध्र प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा निर्वाचन आयोग को लिखे एक पत्र से पता चलता है कि उस समय तक लगभग 1.83 करोड़ मतदाताओं (कुल का करीब 71%) के आधार नंबर पहले ही उनके मतदाता पहचान पत्र से जोड़े जा चुके थे।
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द न्यूज मिनट की रिपोर्ट के अनुसार, डिजिटलीकरण पर शोध करने वाले और डिजिटल गोपनीयता अधिकारों के पक्षधर श्रीनिवास कोडाली ने सरकारी दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा है कि तेलंगाना सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने चेहरे की पहचान के लिए EPIC तस्वीरों का इस्तेमाल किया है।
इन तस्वीरों का उपयोग पहचान सत्यापन के लिए फेशियल रिकग्निशन में किया गया। यह प्रक्रिया ‘T App Folio’ नामक एक ऐप पर की गई, जो ड्राइविंग लाइसेंस नवीनीकरण और पेंशनभोगियों के लिए जीवन प्रमाण पत्र जैसी सरकारी सेवाएं दूरस्थ रूप से उपलब्ध कराने के लिए बनाया गया है।
श्रीनिवास के अनुसार, संभव है कि राज्य सरकार को EPIC डेटा 2015 में तेलंगाना में आधार और मतदाता पहचान पत्र (वोटर आईडी) को जोड़ने की प्रक्रिया के दौरान मिला हो।
उन्होंने यह भी संभावना जताई कि यह डेटा 2020 में मतदाता पहचान के लिए किए गए फेशियल रिकग्निशन पायलट प्रोजेक्ट से लिया गया हो। उस समय भी इस प्रोजेक्ट की वैधता पर डिजिटल अधिकार कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाए थे।
श्रीनिवास का तर्क है कि चाहे जो भी परिस्थिति रही हो, EPIC तस्वीरों का फेशियल रिकग्निशन के लिए इस्तेमाल करना कानूनी रूप से गलत है। उन्होंने कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और उससे संबंधित नियमों के अनुसार चुनाव अधिकारियों को मतदाता सूची केवल “निर्वाचन संबंधी उद्देश्यों” के लिए इकट्ठा करने और बनाए रखने की अनुमति है।
श्रीनिवास ने अपनी शिकायत में लिखा, “ये प्रावधान राज्य सरकारों के साथ डेटा साझा करने या चेहरे की पहचान (फेशियल रिकग्निशन) के लिए इसके इस्तेमाल की अनुमति नहीं देते। इस प्रकार की कार्रवाई स्पष्ट रूप से अवैध है।” उनका कहना है कि यह प्रक्रिया निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के पुट्टास्वामी फैसले का उल्लंघन करती है।
श्रीनिवास का आरोप है कि सरकार ने इस डेटा का उपयोग केवल चुनाव तक सीमित न रखकर अन्य उद्देश्यों के लिए भी किया है।
अपनी शिकायत के समर्थन में उन्होंने राज्य सरकार की एक प्रेजेंटेशन भी जमा की है। यह दस्तावेज फरवरी 2023 में सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा तैयार किया गया था। इसमें दिखाया गया है कि सरकार की फेशियल रिकग्निशन प्रणाली, जिसे रियल-टाइम डिजिटल ऑथेंटिकेशन ऑफ आइडेंटिटी (RTDAI) कहा जाता है, ने पहचान सत्यापन के लिए मतदाता सूची की तस्वीरों और विवरणों का इस्तेमाल किया।
यह प्रणाली पेंशन से संबंधित सेवाओं के लिए T Folio ऐप पर लागू की गई, जिससे पेंशनभोगी बिना सरकारी कार्यालय जाए अपनी पहचान सत्यापित कर सकते हैं। यह ऐप पूरी तरह से तेलंगाना सरकार के स्वामित्व और नियंत्रण में है।
प्रेजेंटेशन में यह भी बताया गया कि सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने 2020 में कॉम्पल्ली नगरपालिका चुनावों के दौरान मतदाता पहचान के लिए फेशियल रिकग्निशन का एक पायलट प्रोजेक्ट चलाया था। यह तकनीक राज्य सरकार के ही एक विभाग ने विकसित की थी। श्रीनिवास को यह प्रेजेंटेशन एक सरकारी प्रशिक्षण संस्थान की वेबसाइट पर मिला।
तेलंगाना ने निर्वाचन आयोग के एक कार्यक्रम के तहत आधार नंबर को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ना शुरू किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे 2015 में रोक दिया। हालांकि, अप्रैल 2018 में आंध्र प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा निर्वाचन आयोग को लिखे एक पत्र से पता चलता है कि उस समय तक लगभग 1.83 करोड़ मतदाताओं (कुल का करीब 71%) के आधार नंबर पहले ही उनके मतदाता पहचान पत्र से जोड़े जा चुके थे।
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