छात्र संगठन भगत सिंह छात्र एकता मंच और फोरम अगेंस्ट कॉरपोरेटाइज़ेशन एंड मिलिटराइज़ेशन के सदस्यों का आरोप है कि उनसे जुड़े करीब छह लोगों और नजरिया पत्रिका में काम करने वाले एक छात्र को एक आईएएस अधिकारी की बेटी से जुड़े मामले में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने बिना किसी उचित प्रक्रिया के हिरासत में लिया और उन्हें टॉर्चर किया।

प्रतीकात्मक तस्वीर; साभार : न्यूजक्लिक
दिल्ली स्थित छात्र संगठन भगत सिंह छात्र एकता मंच (बीएससीईएम) और फोरम अगेंस्ट कॉरपोरेटाइज़ेशन एंड मिलिटरीज़ेशन (एफएसीएएम) के सदस्यों ने आरोप लगाया है कि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उनके कम से कम छह सदस्यों और नजरिया पत्रिका से जुड़े एक व्यक्ति को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए हिरासत में लिया और उनके साथ मारपीट की।
19 से 26 वर्ष की उम्र के इन युवाओं ने आरोप लगाया है कि एक आईएएस अधिकारी की बेटी के ठिकाने के संबंध में पूछताछ के बहाने, दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 9 जुलाई से 21 जुलाई के बीच उन्हें गंभीर शारीरिक और मानसिक यातनाएं दीं।
जबरन हिरासत में लिया
बीएससीईएम से जुड़े गुरकीरत (20), गौरव (23) और गौरांग (24) को दिल्ली पुलिस ने कथित रूप से 9 जुलाई को दोपहर लगभग 3:30 बजे बेर सराय इलाके से हिरासत में लिया। इन युवाओं ने द वायर को बताया कि उन्हें बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के, सादे कपड़ों में मौजूद पुलिसकर्मियों ने जबरन हिरासत में लिया।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने इन छात्रों और कार्यकर्ताओं को राजधानी के अलग-अलग इलाकों से हिरासत में लिया था।
दो दिन बाद, 11 जुलाई को, एफएसीएएम से जुड़े एहतेमाम (26) और लक्षिता उर्फ बादल (21) को दिल्ली में दोपहर लगभग 1 बजे हिरासत में लिया गया।
प्रोफेसर और सामाजिक कार्यकर्ता सम्राट को 12 जुलाई को हरियाणा स्थित उनके आवास से हिरासत में लिया गया, जबकि नजरिया पत्रिका से जुड़े रुद्र को 19 जुलाई को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उठाया गया।
हिरासत को लेकर बीएससीईएम के सदस्य गुरकीरत ने द वायर को बताया, “9 जुलाई को मैं, गौरव और गौरांग दिल्ली के बेर सराय में रुद्र के घर से कुछ किताबें लेने गए थे। दोपहर करीब साढ़े तीन बजे सादे कपड़ों में तीन-चार पुलिसकर्मी वहां पहुंचे और हमसे पूछताछ करने लगे। उन्होंने कहा, ‘तुम छात्र नहीं, आतंकवादी हो। तुम्हें हमारे साथ कार्यालय चलना होगा।’” गुरकीरत ने आगे बताया, “हमने इसका विरोध किया और उनसे वॉरंट और पुलिस पहचान पत्र दिखाने को कहा। इस पर एक अधिकारी ने अपना पहचान पत्र दिखाया और कहा, ‘अब तुम्हें चलना ही होगा।’”
गुरकीरत ने आरोप लगाया कि जब उन्होंने इसका हिरासत का विरोध किया, तो एक पुलिसकर्मी ने गौरव और गौरांग को पांच-छह थप्पड़ मारे। उन्होंने बताया, “एक पुलिसवाले ने मुझे धक्का दिया और धमकाया भी। उसने कहा, ‘मुझे फर्क नहीं पड़ता कि तुम लड़की हो।’ इसके बाद उन्होंने एक महिला कॉन्स्टेबल को बुलाया और मुझे जबरदस्ती पुलिस वाहन में बैठा दिया।”
एफएसीएएम की सदस्य लक्षिता ने भी अपनी हिरासत के बारे में बताया, “मैं 11 जुलाई को सुबह लगभग 11 बजे अहमदाबाद से दिल्ली पहुंची। दोपहर 1 बजे कुछ पुलिसकर्मी मेरे घर आए और मुझे तथा मेरे मित्र एहतेमाम को जबरन एक गाड़ी में बैठा लिया। उन्होंने हमारे फोन, लैपटॉप और iPad जब्त कर लिए और जैसे ही हम गाड़ी में बैठे, सभी डिवाइस एयरोप्लेन मोड में डाल दिए। हमें यह नहीं बताया गया कि हमें कहां ले जाया जा रहा है।”
लक्षिता ने आगे बताया, “हमारे खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई है, लेकिन हमें उसकी कोई प्रति नहीं दी गई। जब मुझे पूछताछ के लिए नोटिस मिला -जो पुलिस ने ऑनलाइन भेजा था - तो उसमें केवल एफआईआर नंबर दर्ज था, लेकिन एफआईआर में मेरे खिलाफ लगाए गए विशिष्ट आरोपों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई।”
‘थाने नहीं ले जाया गया’
हिरासत में लिए गए कार्यकर्ताओं के अनुसार, दिल्ली पुलिस उन्हें किसी आधिकारिक थाने में नहीं ले गई। द वायर से बातचीत में छात्रों ने दावा किया कि उन्हें राजधानी के न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी इलाके में स्थित एक अज्ञात स्थान पर रखा गया था।
अलग-अलग दिनों में अलग-अलग जगहों से उठाए गए सभी सात लोगों को इसी जगह पर रखा गया।
गुरकीरत और लक्षिता ने दावा किया कि जिस स्थान पर उन्हें रखा गया वह 'कोई सामान्य पुलिस स्टेशन नहीं', बल्कि एक बड़ा बंगला था। उन्हें बताया गया कि यह स्थान दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल का कार्यालय है।
टॉर्चर, पूछताछ, धमकियां और उत्पीड़न
छात्रों और कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि हिरासत के बाद पुलिस द्वारा की गई पूछताछ दरअसल उनके प्रति उत्पीड़न और शारीरिक एवं मानसिक यातना का एक तरीका था।
कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि गुरकीरत को डराने के उद्देश्य से पुलिस ने गौरव और गौरांग को उसके सामने निर्वस्त्र कर दिया और चमड़े के कोड़े से उनके तलवों पर बेरहमी से पीटा।
गुरकीरत ने बताया कि, ‘वे हमें एक कमरे में ले गए जहां से हम शीशे से अगले कमरे में हो रही गतिविधियों को देख सकते थे। वहां पुलिस अधिकारी ने मेरे दोस्तों गौरव और गौरांग को बुलाया, उनके कपड़े उतारे और उन्हें एक ठंडी स्टील की मेज पर लिटा दिया। फिर, चमड़े की बेल्ट से अधिकारियों ने उनके पैरों के तलवों पर बार-बार कोड़े मारे। वे उन्हें पीटते और खड़े होने के लिए कहते और जब वे खड़े नहीं हो पाते तो वे उन्हें फिर से पीटते।’
गुरकीरत ने कहा, “यह किसी जांच या पूछताछ प्रक्रिया का हिस्सा नहीं था बल्कि मुझे डराने और यह दिखाने के लिए किया गया था कि मेरे साथ क्या हो सकता है। इसके बाद, वे मुझे भी उसी कमरे में ले गए और मेरे साथ भी वैसा ही व्यवहार किया।”
गुरकीरत के पूरे कपड़े नहीं उतारे गए, लेकिन सादे कपड़ों में मौजूद महिला पुलिसकर्मियों ने उन्हें प्रताड़ित किया और चमड़े की बेल्ट से उनके पैरों पर मारा। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इससे पहले पुलिसकर्मियों ने उन्हें थप्पड़ मारे और उनके बाल खींचे।
द वायर से बात करते हुए छात्रों और कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि आखिर में उन्हें ‘कागज के कई खाली पन्नों और झूठे बयानों’ पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया, यहां तक कि उन्हें पढ़ने की भी इजाजत नहीं दी गई।
दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज्म के छात्र गौरव ने द वायर से अपनी आठ दिनों के टॉर्चर के बारे में बताया। गौरव बिहार के नवादा स्थित अपने गृहनगर लौट चुके हैं।
उन्होंने बताया, “गुरकीरत, गौरांग और मुझे 9 जुलाई को बेर सराय से उठाया गया था। पहले तीन दिनों तक पुलिस ने हमें बुरी तरह प्रताड़ित किया। वे हमें रात के डेढ़ से दो बजे तक जगाते और पूछताछ कक्ष में ले जाते। वहां वे हमें पूरी तरह से नंगा कर जमीन पर लिटा देते और बेल्ट व डंडों से मारते।”
उन्होंने आगे बताया, “17 जुलाई को रिहाई के दिन हमें कई दस्तावेजों पर दस्तखत करने को कहा गया, जिनमें से कुछ खाली कागज थे। हमें धमकी दी जा रही थी कि अगर हमने हस्ताक्षर नहीं किए, तो हमें रिहा नहीं किया जाएगा।”
जब उनसे पूछताछ के दौरान पूछे गए सवालों के बारे में पूछा गया, तो लक्षिता, गौरव, गुरकीरत और एहतेमाम ने बताया कि सबसे पहला और सबसे बार-बार दोहराया गया सवाल आईएएस अधिकारी अर्चना वर्मा की बेटी, वालिका, के बारे में था।
पुलिस लगातार पूछती रही, ‘वालिका कहां है?’ वे बार-बार ऐसे सवाल करते थे जैसे, ‘वह घर से क्यों गई?’ और क्या किसी ने उसे ‘भागने’ में मदद की थी।
लक्षिता और गुरकीरत ने दावा किया कि सात बंदियों में से एहतेमाम को सबसे गंभीर और अमानवीय यातना का सामना करना पड़ा। उनका आरोप है कि जामिया मिलिया इस्लामिया से पढ़ाई करने वाले एफएसीएएम के वकील-कार्यकर्ता एहतेमाम को उनकी ‘मुस्लिम पहचान’ के कारण जानबूझकर ज्यादा क्रूरता और अमानवीय व्यवहार का सामना करना पड़ा।
उन्होंने कहा कि उन्हें लगातार पीटा गया और ‘मुल्ला’ और ‘कटवा’ जैसे इस्लामोफोबिक गालियों का सामना करना पड़ा।
लक्षिता ने दावा किया कि पुलिस ने उनके और एहतेमाम के रिश्ते को ‘लव जिहाद’ के कथित पहलू से जोड़ने की भी कोशिश की। यह एक ऐसा नैरेटिव है जिसे दक्षिणपंथी समूह अक्सर इस्तेमाल करते हैं, जिसमें मुस्लिम पुरुषों पर हिंदू (गैर-मुस्लिम) महिलाओं को प्यार और शादी का वादा करके उनका धर्मांतरण कराने का झूठा आरोप लगाया जाता है।
लक्षिता और गुरकीरत ने दावा किया कि उन्हें लगातार प्रताड़ित किए जाने का मुख्य कारण एक वरिष्ठ नौकरशाह आईएएस अधिकारी अर्चना वर्मा और उनकी बेटी वालिका वर्मा के बीच एक ‘व्यक्तिगत विवाद’ है।
कुछ बंदियों के अनुसार, हरियाणा के जिंदल विश्वविद्यालय से कानून स्नातक और नजरिया पत्रिका की संपादकीय सदस्य 24 वर्षीय वालिका ने अपनी मां के साथ वैचारिक मतभेदों के कारण अपना घर छोड़ दिया था और दिल्ली के बेर सराय में स्वतंत्र रूप से रह रही थी।
गुरकीरत ने कहा, “हमें नहीं पता कि वालिका कहां है। उसके अपनी मां से वैचारिक मतभेद थे और वह घर छोड़कर चली गई थी। लेकिन पुलिस हमारे पीछे पड़ी है और हमें बेरहमी से प्रताड़ित कर रही है। पूछताछ के दौरान उन्होंने बार-बार यही सवाल दोहराया कि वालिका कहां है।”
लक्षिता ने बताया कि उन्हें अभी तक एफआईआर की कॉपी नहीं मिली है, जबकि उन्हें मिले नोटिस में उसका नंबर लिखा था। उन्हें उन आरोपों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है जो उन पर लगाए गए हैं।
उन्होंने कहा, “एक एफआईआर दर्ज हो गई है। मुझे एक ऑनलाइन नोटिस भी मिला है, जिसके तहत मुझे जांच के लिए बुलाया गया है। लेकिन पुलिस हमें उस एफआईआर की कोई प्रति नहीं दे रही है और कोई अन्य जानकारी भी उपलब्ध नहीं करा रही है। पुलिस लगातार कह रही थी, ‘अगर तुम दिल्ली आओगे, तो हम तुम्हें गिरफ्तार कर लेंगे।’”
उन्होंने आगे बताया कि पुलिस का जो नोटिस उन्हें मिला, वह 20 जुलाई को उनके माता-पिता के मोबाइल नंबर पर ऑनलाइन भेजा गया था।
अभिभावकों को बुलाया गया
इस पूरे मामले में हिरासत में लिए गए छात्रों के अभिभावकों को भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है। लक्षिता और गुरकीरत दोनों ने बताया कि उनके अभिभावकों को दिल्ली बुलाया गया और बच्चों को रिहा कराने के लिए उनसे जबरन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवाए गए।
लक्षिता ने कहा, “पुलिस ने हमारे अभिभावकों से लिखवाया और दस्तखत करवाए कि यदि वे हमें वापस दिल्ली भेजेंगे, तो पुलिस हमें गिरफ्तार कर लेगी। इसी डर के कारण मेरे अभिभावक मुझे किसी से बात करने नहीं दे रहे हैं और घर पर ही रहने का दबाव बना रहे हैं।”
अन्य छात्रों के अभिभावक भी अपने बच्चों को घर वापस ले गए और उन्हें किसी भी तरह की कानूनी या सार्वजनिक कार्रवाई से दूर रखा।
इस भयावह हिरासत के बाद एहतेमाम फिलहाल अपने परिवार के साथ लखनऊ में हैं।
द वायर से बात करते हुए उन्होंने कहा, “पुलिस ने मुझे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। पूछताछ के दौरान वे मुझसे बार-बार पूछते रहे कि वालिका कहां है, जिसका मुझे कोई पता नहीं था। उन्होंने मुझे ‘मुल्ला’ कहा और कहा कि वे मेरी दोस्त लक्षिता के साथ ‘लव जिहाद’ का मामला बनाएंगे। इसके अलावा, उन्होंने मेरे घर पर हथियार रखने की धमकी दी और कहा कि वे मेरे माता-पिता को हथियारों की तस्करी के आरोप में गिरफ्तार कर लेंगे।”
उन्होंने दावा किया कि रिहाई के समय पुलिस ने उनका सामान वापस नहीं किया।
उन्होंने आगे कहा, ‘पुलिस ने मेरा फोन, बटुआ, बार एसोसिएशन का पहचान पत्र, आधार कार्ड, पैन कार्ड और सबसे जरूरी बात, उन्होंने मेरे फ्लैट की चाबियां भी नहीं लौटाईं, जो उन्होंने शुरू में मुझसे ली थीं।’
सात कैदियों में रुद्र सबसे काम उम्र सिर्फ 19 साल के हैं। वह दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में पढ़ते हैं और नजरिया पत्रिका के लिए वालिका के साथ काम कर रहे थे।
रुद्र 19 जुलाई को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए आखिरी व्यक्ति थे, जिन्हें उस समय गिरफ्तार किया गया जब पहले हिरासत में लिए गए कुछ अन्य लोगों को पहले ही रिहा कर दिया गया था।
9 जुलाई को छात्र कार्यकर्ताओं की हिरासत से लेकर 18 जुलाई तक नजरिया मैगजीन ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम और अपनी वेबसाइट पर उनकी रिहाई की लगातार मांग की। हालांकि, उनके फेसबुक पेज पर आखिरी पोस्ट 18 जुलाई को थी।
19 जुलाई को रुद्र की हिरासत के बाद किसी भी प्लेटफॉर्म पर कोई और पोस्ट नहीं किया गया।
हिरासत में लिए गए छात्रों को 16 जुलाई से 21 जुलाई के बीच कई चरणों में रिहा किया गया। आठ दिनों की हिरासत के बाद, सबसे पहले 16 जुलाई की रात को गुरकीरत को रिहा किया गया। उनकी रिहाई के बाद ही बाहरी दुनिया को इस मामले और अन्य छात्रों की हिरासत के बारे में ठोस जानकारी प्राप्त हुई।
अगले दिन, 17 जुलाई को लक्षिता, गौरव और गौरांग को रिहा कर दिया गया। एहतेमाम, जिन्हें सबसे गंभीर शारीरिक और मानसिक यातनाएं झेलनी पड़ी थीं, 18 जुलाई को रिहा हुए। सम्राट, जिन्हें हरियाणा में गिरफ्तार किया गया था, 19 जुलाई को रिहा किए गए। अंत में, रुद्र, जिन्हें सबसे आखिरी में हिरासत में लिया गया था, 21 जुलाई को रिहा किए गए।
यह पहली बार नहीं है जब बीएससीईएम के छात्रों को हिरासत में लिया गया हो।
पिछले साल मई में लोकसभा चुनाव के दौरान, बीएससीईएम ने दिल्ली में दीवारों पर पेंटिंग बनाकर चुनाव बहिष्कार का आह्वान किया था। इसी क्रम में, संगठन की दो छात्राएं, लक्षिता और उत्तरा, एक परीक्षा के बाद कॉलेज से बाहर निकलते समय पुलिस द्वारा हिरासत में ली गई थीं।
कुछ महीने पहले, बीएससीईएम से जुड़े छात्रों ने आरोप लगाया था कि जेएनयू में बस्तर में अत्याचारों को दर्शाने वाली एक दीवार पेंटिंग के बाद, चार सदस्यों गौरव, गौरांग, किरण और राहुल को दिल्ली के वसंत विहार पुलिस स्टेशन में 15 घंटे तक अवैध रूप से हिरासत में रखा गया, जहां उनके साथ कथित तौर पर मारपीट भी की गई।
द वायर ने दिल्ली पुलिस से टिप्पणी के लिए संपर्क किया, लेकिन फोन पर संपर्क नहीं हो पाया. वेबसाइट के अनुसार, इसने दिल्ली पुलिस के आधिकारिक ईमेल pro@delhipolice.gov.in पर भी संपर्क किया है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर; साभार : न्यूजक्लिक
दिल्ली स्थित छात्र संगठन भगत सिंह छात्र एकता मंच (बीएससीईएम) और फोरम अगेंस्ट कॉरपोरेटाइज़ेशन एंड मिलिटरीज़ेशन (एफएसीएएम) के सदस्यों ने आरोप लगाया है कि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उनके कम से कम छह सदस्यों और नजरिया पत्रिका से जुड़े एक व्यक्ति को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए हिरासत में लिया और उनके साथ मारपीट की।
19 से 26 वर्ष की उम्र के इन युवाओं ने आरोप लगाया है कि एक आईएएस अधिकारी की बेटी के ठिकाने के संबंध में पूछताछ के बहाने, दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 9 जुलाई से 21 जुलाई के बीच उन्हें गंभीर शारीरिक और मानसिक यातनाएं दीं।
जबरन हिरासत में लिया
बीएससीईएम से जुड़े गुरकीरत (20), गौरव (23) और गौरांग (24) को दिल्ली पुलिस ने कथित रूप से 9 जुलाई को दोपहर लगभग 3:30 बजे बेर सराय इलाके से हिरासत में लिया। इन युवाओं ने द वायर को बताया कि उन्हें बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के, सादे कपड़ों में मौजूद पुलिसकर्मियों ने जबरन हिरासत में लिया।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने इन छात्रों और कार्यकर्ताओं को राजधानी के अलग-अलग इलाकों से हिरासत में लिया था।
दो दिन बाद, 11 जुलाई को, एफएसीएएम से जुड़े एहतेमाम (26) और लक्षिता उर्फ बादल (21) को दिल्ली में दोपहर लगभग 1 बजे हिरासत में लिया गया।
प्रोफेसर और सामाजिक कार्यकर्ता सम्राट को 12 जुलाई को हरियाणा स्थित उनके आवास से हिरासत में लिया गया, जबकि नजरिया पत्रिका से जुड़े रुद्र को 19 जुलाई को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उठाया गया।
हिरासत को लेकर बीएससीईएम के सदस्य गुरकीरत ने द वायर को बताया, “9 जुलाई को मैं, गौरव और गौरांग दिल्ली के बेर सराय में रुद्र के घर से कुछ किताबें लेने गए थे। दोपहर करीब साढ़े तीन बजे सादे कपड़ों में तीन-चार पुलिसकर्मी वहां पहुंचे और हमसे पूछताछ करने लगे। उन्होंने कहा, ‘तुम छात्र नहीं, आतंकवादी हो। तुम्हें हमारे साथ कार्यालय चलना होगा।’” गुरकीरत ने आगे बताया, “हमने इसका विरोध किया और उनसे वॉरंट और पुलिस पहचान पत्र दिखाने को कहा। इस पर एक अधिकारी ने अपना पहचान पत्र दिखाया और कहा, ‘अब तुम्हें चलना ही होगा।’”
गुरकीरत ने आरोप लगाया कि जब उन्होंने इसका हिरासत का विरोध किया, तो एक पुलिसकर्मी ने गौरव और गौरांग को पांच-छह थप्पड़ मारे। उन्होंने बताया, “एक पुलिसवाले ने मुझे धक्का दिया और धमकाया भी। उसने कहा, ‘मुझे फर्क नहीं पड़ता कि तुम लड़की हो।’ इसके बाद उन्होंने एक महिला कॉन्स्टेबल को बुलाया और मुझे जबरदस्ती पुलिस वाहन में बैठा दिया।”
एफएसीएएम की सदस्य लक्षिता ने भी अपनी हिरासत के बारे में बताया, “मैं 11 जुलाई को सुबह लगभग 11 बजे अहमदाबाद से दिल्ली पहुंची। दोपहर 1 बजे कुछ पुलिसकर्मी मेरे घर आए और मुझे तथा मेरे मित्र एहतेमाम को जबरन एक गाड़ी में बैठा लिया। उन्होंने हमारे फोन, लैपटॉप और iPad जब्त कर लिए और जैसे ही हम गाड़ी में बैठे, सभी डिवाइस एयरोप्लेन मोड में डाल दिए। हमें यह नहीं बताया गया कि हमें कहां ले जाया जा रहा है।”
लक्षिता ने आगे बताया, “हमारे खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई है, लेकिन हमें उसकी कोई प्रति नहीं दी गई। जब मुझे पूछताछ के लिए नोटिस मिला -जो पुलिस ने ऑनलाइन भेजा था - तो उसमें केवल एफआईआर नंबर दर्ज था, लेकिन एफआईआर में मेरे खिलाफ लगाए गए विशिष्ट आरोपों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई।”
‘थाने नहीं ले जाया गया’
हिरासत में लिए गए कार्यकर्ताओं के अनुसार, दिल्ली पुलिस उन्हें किसी आधिकारिक थाने में नहीं ले गई। द वायर से बातचीत में छात्रों ने दावा किया कि उन्हें राजधानी के न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी इलाके में स्थित एक अज्ञात स्थान पर रखा गया था।
अलग-अलग दिनों में अलग-अलग जगहों से उठाए गए सभी सात लोगों को इसी जगह पर रखा गया।
गुरकीरत और लक्षिता ने दावा किया कि जिस स्थान पर उन्हें रखा गया वह 'कोई सामान्य पुलिस स्टेशन नहीं', बल्कि एक बड़ा बंगला था। उन्हें बताया गया कि यह स्थान दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल का कार्यालय है।
टॉर्चर, पूछताछ, धमकियां और उत्पीड़न
छात्रों और कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि हिरासत के बाद पुलिस द्वारा की गई पूछताछ दरअसल उनके प्रति उत्पीड़न और शारीरिक एवं मानसिक यातना का एक तरीका था।
कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि गुरकीरत को डराने के उद्देश्य से पुलिस ने गौरव और गौरांग को उसके सामने निर्वस्त्र कर दिया और चमड़े के कोड़े से उनके तलवों पर बेरहमी से पीटा।
गुरकीरत ने बताया कि, ‘वे हमें एक कमरे में ले गए जहां से हम शीशे से अगले कमरे में हो रही गतिविधियों को देख सकते थे। वहां पुलिस अधिकारी ने मेरे दोस्तों गौरव और गौरांग को बुलाया, उनके कपड़े उतारे और उन्हें एक ठंडी स्टील की मेज पर लिटा दिया। फिर, चमड़े की बेल्ट से अधिकारियों ने उनके पैरों के तलवों पर बार-बार कोड़े मारे। वे उन्हें पीटते और खड़े होने के लिए कहते और जब वे खड़े नहीं हो पाते तो वे उन्हें फिर से पीटते।’
गुरकीरत ने कहा, “यह किसी जांच या पूछताछ प्रक्रिया का हिस्सा नहीं था बल्कि मुझे डराने और यह दिखाने के लिए किया गया था कि मेरे साथ क्या हो सकता है। इसके बाद, वे मुझे भी उसी कमरे में ले गए और मेरे साथ भी वैसा ही व्यवहार किया।”
गुरकीरत के पूरे कपड़े नहीं उतारे गए, लेकिन सादे कपड़ों में मौजूद महिला पुलिसकर्मियों ने उन्हें प्रताड़ित किया और चमड़े की बेल्ट से उनके पैरों पर मारा। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इससे पहले पुलिसकर्मियों ने उन्हें थप्पड़ मारे और उनके बाल खींचे।
द वायर से बात करते हुए छात्रों और कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि आखिर में उन्हें ‘कागज के कई खाली पन्नों और झूठे बयानों’ पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया, यहां तक कि उन्हें पढ़ने की भी इजाजत नहीं दी गई।
दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज्म के छात्र गौरव ने द वायर से अपनी आठ दिनों के टॉर्चर के बारे में बताया। गौरव बिहार के नवादा स्थित अपने गृहनगर लौट चुके हैं।
उन्होंने बताया, “गुरकीरत, गौरांग और मुझे 9 जुलाई को बेर सराय से उठाया गया था। पहले तीन दिनों तक पुलिस ने हमें बुरी तरह प्रताड़ित किया। वे हमें रात के डेढ़ से दो बजे तक जगाते और पूछताछ कक्ष में ले जाते। वहां वे हमें पूरी तरह से नंगा कर जमीन पर लिटा देते और बेल्ट व डंडों से मारते।”
उन्होंने आगे बताया, “17 जुलाई को रिहाई के दिन हमें कई दस्तावेजों पर दस्तखत करने को कहा गया, जिनमें से कुछ खाली कागज थे। हमें धमकी दी जा रही थी कि अगर हमने हस्ताक्षर नहीं किए, तो हमें रिहा नहीं किया जाएगा।”
जब उनसे पूछताछ के दौरान पूछे गए सवालों के बारे में पूछा गया, तो लक्षिता, गौरव, गुरकीरत और एहतेमाम ने बताया कि सबसे पहला और सबसे बार-बार दोहराया गया सवाल आईएएस अधिकारी अर्चना वर्मा की बेटी, वालिका, के बारे में था।
पुलिस लगातार पूछती रही, ‘वालिका कहां है?’ वे बार-बार ऐसे सवाल करते थे जैसे, ‘वह घर से क्यों गई?’ और क्या किसी ने उसे ‘भागने’ में मदद की थी।
लक्षिता और गुरकीरत ने दावा किया कि सात बंदियों में से एहतेमाम को सबसे गंभीर और अमानवीय यातना का सामना करना पड़ा। उनका आरोप है कि जामिया मिलिया इस्लामिया से पढ़ाई करने वाले एफएसीएएम के वकील-कार्यकर्ता एहतेमाम को उनकी ‘मुस्लिम पहचान’ के कारण जानबूझकर ज्यादा क्रूरता और अमानवीय व्यवहार का सामना करना पड़ा।
उन्होंने कहा कि उन्हें लगातार पीटा गया और ‘मुल्ला’ और ‘कटवा’ जैसे इस्लामोफोबिक गालियों का सामना करना पड़ा।
लक्षिता ने दावा किया कि पुलिस ने उनके और एहतेमाम के रिश्ते को ‘लव जिहाद’ के कथित पहलू से जोड़ने की भी कोशिश की। यह एक ऐसा नैरेटिव है जिसे दक्षिणपंथी समूह अक्सर इस्तेमाल करते हैं, जिसमें मुस्लिम पुरुषों पर हिंदू (गैर-मुस्लिम) महिलाओं को प्यार और शादी का वादा करके उनका धर्मांतरण कराने का झूठा आरोप लगाया जाता है।
लक्षिता और गुरकीरत ने दावा किया कि उन्हें लगातार प्रताड़ित किए जाने का मुख्य कारण एक वरिष्ठ नौकरशाह आईएएस अधिकारी अर्चना वर्मा और उनकी बेटी वालिका वर्मा के बीच एक ‘व्यक्तिगत विवाद’ है।
कुछ बंदियों के अनुसार, हरियाणा के जिंदल विश्वविद्यालय से कानून स्नातक और नजरिया पत्रिका की संपादकीय सदस्य 24 वर्षीय वालिका ने अपनी मां के साथ वैचारिक मतभेदों के कारण अपना घर छोड़ दिया था और दिल्ली के बेर सराय में स्वतंत्र रूप से रह रही थी।
गुरकीरत ने कहा, “हमें नहीं पता कि वालिका कहां है। उसके अपनी मां से वैचारिक मतभेद थे और वह घर छोड़कर चली गई थी। लेकिन पुलिस हमारे पीछे पड़ी है और हमें बेरहमी से प्रताड़ित कर रही है। पूछताछ के दौरान उन्होंने बार-बार यही सवाल दोहराया कि वालिका कहां है।”
लक्षिता ने बताया कि उन्हें अभी तक एफआईआर की कॉपी नहीं मिली है, जबकि उन्हें मिले नोटिस में उसका नंबर लिखा था। उन्हें उन आरोपों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है जो उन पर लगाए गए हैं।
उन्होंने कहा, “एक एफआईआर दर्ज हो गई है। मुझे एक ऑनलाइन नोटिस भी मिला है, जिसके तहत मुझे जांच के लिए बुलाया गया है। लेकिन पुलिस हमें उस एफआईआर की कोई प्रति नहीं दे रही है और कोई अन्य जानकारी भी उपलब्ध नहीं करा रही है। पुलिस लगातार कह रही थी, ‘अगर तुम दिल्ली आओगे, तो हम तुम्हें गिरफ्तार कर लेंगे।’”
उन्होंने आगे बताया कि पुलिस का जो नोटिस उन्हें मिला, वह 20 जुलाई को उनके माता-पिता के मोबाइल नंबर पर ऑनलाइन भेजा गया था।
अभिभावकों को बुलाया गया
इस पूरे मामले में हिरासत में लिए गए छात्रों के अभिभावकों को भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है। लक्षिता और गुरकीरत दोनों ने बताया कि उनके अभिभावकों को दिल्ली बुलाया गया और बच्चों को रिहा कराने के लिए उनसे जबरन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवाए गए।
लक्षिता ने कहा, “पुलिस ने हमारे अभिभावकों से लिखवाया और दस्तखत करवाए कि यदि वे हमें वापस दिल्ली भेजेंगे, तो पुलिस हमें गिरफ्तार कर लेगी। इसी डर के कारण मेरे अभिभावक मुझे किसी से बात करने नहीं दे रहे हैं और घर पर ही रहने का दबाव बना रहे हैं।”
अन्य छात्रों के अभिभावक भी अपने बच्चों को घर वापस ले गए और उन्हें किसी भी तरह की कानूनी या सार्वजनिक कार्रवाई से दूर रखा।
इस भयावह हिरासत के बाद एहतेमाम फिलहाल अपने परिवार के साथ लखनऊ में हैं।
द वायर से बात करते हुए उन्होंने कहा, “पुलिस ने मुझे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। पूछताछ के दौरान वे मुझसे बार-बार पूछते रहे कि वालिका कहां है, जिसका मुझे कोई पता नहीं था। उन्होंने मुझे ‘मुल्ला’ कहा और कहा कि वे मेरी दोस्त लक्षिता के साथ ‘लव जिहाद’ का मामला बनाएंगे। इसके अलावा, उन्होंने मेरे घर पर हथियार रखने की धमकी दी और कहा कि वे मेरे माता-पिता को हथियारों की तस्करी के आरोप में गिरफ्तार कर लेंगे।”
उन्होंने दावा किया कि रिहाई के समय पुलिस ने उनका सामान वापस नहीं किया।
उन्होंने आगे कहा, ‘पुलिस ने मेरा फोन, बटुआ, बार एसोसिएशन का पहचान पत्र, आधार कार्ड, पैन कार्ड और सबसे जरूरी बात, उन्होंने मेरे फ्लैट की चाबियां भी नहीं लौटाईं, जो उन्होंने शुरू में मुझसे ली थीं।’
सात कैदियों में रुद्र सबसे काम उम्र सिर्फ 19 साल के हैं। वह दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में पढ़ते हैं और नजरिया पत्रिका के लिए वालिका के साथ काम कर रहे थे।
रुद्र 19 जुलाई को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए आखिरी व्यक्ति थे, जिन्हें उस समय गिरफ्तार किया गया जब पहले हिरासत में लिए गए कुछ अन्य लोगों को पहले ही रिहा कर दिया गया था।
9 जुलाई को छात्र कार्यकर्ताओं की हिरासत से लेकर 18 जुलाई तक नजरिया मैगजीन ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम और अपनी वेबसाइट पर उनकी रिहाई की लगातार मांग की। हालांकि, उनके फेसबुक पेज पर आखिरी पोस्ट 18 जुलाई को थी।
19 जुलाई को रुद्र की हिरासत के बाद किसी भी प्लेटफॉर्म पर कोई और पोस्ट नहीं किया गया।
हिरासत में लिए गए छात्रों को 16 जुलाई से 21 जुलाई के बीच कई चरणों में रिहा किया गया। आठ दिनों की हिरासत के बाद, सबसे पहले 16 जुलाई की रात को गुरकीरत को रिहा किया गया। उनकी रिहाई के बाद ही बाहरी दुनिया को इस मामले और अन्य छात्रों की हिरासत के बारे में ठोस जानकारी प्राप्त हुई।
अगले दिन, 17 जुलाई को लक्षिता, गौरव और गौरांग को रिहा कर दिया गया। एहतेमाम, जिन्हें सबसे गंभीर शारीरिक और मानसिक यातनाएं झेलनी पड़ी थीं, 18 जुलाई को रिहा हुए। सम्राट, जिन्हें हरियाणा में गिरफ्तार किया गया था, 19 जुलाई को रिहा किए गए। अंत में, रुद्र, जिन्हें सबसे आखिरी में हिरासत में लिया गया था, 21 जुलाई को रिहा किए गए।
यह पहली बार नहीं है जब बीएससीईएम के छात्रों को हिरासत में लिया गया हो।
पिछले साल मई में लोकसभा चुनाव के दौरान, बीएससीईएम ने दिल्ली में दीवारों पर पेंटिंग बनाकर चुनाव बहिष्कार का आह्वान किया था। इसी क्रम में, संगठन की दो छात्राएं, लक्षिता और उत्तरा, एक परीक्षा के बाद कॉलेज से बाहर निकलते समय पुलिस द्वारा हिरासत में ली गई थीं।
कुछ महीने पहले, बीएससीईएम से जुड़े छात्रों ने आरोप लगाया था कि जेएनयू में बस्तर में अत्याचारों को दर्शाने वाली एक दीवार पेंटिंग के बाद, चार सदस्यों गौरव, गौरांग, किरण और राहुल को दिल्ली के वसंत विहार पुलिस स्टेशन में 15 घंटे तक अवैध रूप से हिरासत में रखा गया, जहां उनके साथ कथित तौर पर मारपीट भी की गई।
द वायर ने दिल्ली पुलिस से टिप्पणी के लिए संपर्क किया, लेकिन फोन पर संपर्क नहीं हो पाया. वेबसाइट के अनुसार, इसने दिल्ली पुलिस के आधिकारिक ईमेल pro@delhipolice.gov.in पर भी संपर्क किया है।
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