छात्र कार्यकर्ताओं को एक हफ्ते तक अवैध रूप से हिरासत में रखकर दिल्ली पुलिस ने दी यातना: मानवाधिकार संगठन का आरोप

Written by sabrang india | Published on: July 19, 2025
“ये कार्रवाइयां न केवल नागरिक स्वतंत्रताओं और लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला हैं, बल्कि ये संवैधानिक, वैधानिक और अंतरराष्ट्रीय कानूनी सुरक्षा उपायों का घोर उल्लंघन भी हैं।”


साभार : मकतूब

दिल्ली की नागरिक संस्थाओं ने विभिन्न छात्र कार्यकर्ताओं की अवैध हिरासत को लेकर गंभीर चिंता जताई है। इनमें से कई ने दिल्ली पुलिस पर प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है।

द कैंपेन अगेंस्ट स्टेट रिप्रेशन (CASR) ने एक बयान जारी कर हाल ही में दिल्ली और आस-पास के इलाकों में लोकतांत्रिक कार्यकर्ताओं के साथ हो रही “अवैध अपहरण, जबरन गायब किए जाने और हिरासत में प्रताड़ना की घटनाओं” पर गहरी चिंता जताते हुए कड़ी निंदा व्यक्त की है।

मकतूब की रिपोर्ट के अनुसार, बयान में कहा गया है, “ये कार्रवाइयां न केवल नागरिक स्वतंत्रताओं और लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला हैं, बल्कि ये संवैधानिक, वैधानिक और अंतरराष्ट्रीय कानूनी सुरक्षा उपायों का घोर उल्लंघन भी हैं।”

कार्यकर्ताओं के अनुसार, 9 जुलाई को भगत सिंह छात्र एकता मंच से जुड़े गुरकीरत, गौरव और गौरांग को बिना किसी सूचना के उठाया गया।

CASR ने अपने बयान में कहा, “यह बीएनएसएस (BNSS) की धारा 35 और 36 का पूरी तरह उल्लंघन है। बिना उनके परिवार या कानूनी सलाहकार को सूचित किए इन लोगों को न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी पुलिस स्टेशन में हिरासत में रखा गया।”

11 जुलाई को एहतमाम-उल-हक़ और बादल नाम के कार्यकर्ताओं को भी इसी तरह दिल्ली से उठा लिया गया। वहीं, बिना स्थानीय प्रशासन की जानकारी के और दिल्ली पुलिस के क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर मनोवैज्ञानिक और समाजसेवी सम्राट सिंह को हरियाणा के यमुनानगर स्थित उनके घर से उठा लिया गया।

CASR ने कहा, “इनमें से किसी भी हिरासत में संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत आवश्यक कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया, जो यह गारंटी देता है कि गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी दी जाए और उसे अपनी पसंद के वकील से परामर्श और बचाव का अधिकार मिले। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय 'डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1997)' में निर्धारित दिशानिर्देशों का भी उल्लंघन किया गया— न तो गिरफ्तारी मेमो तैयार किए गए, न ही परिवारों को सूचित किया गया और न ही हिरासत में लिए गए लोगों को कानूनी सलाहकार तक पहुंचने की अनुमति दी गई।”

मकतूब ने गिरफ्तार किए गए कार्यकर्ताओं के दोस्तों से बात की। उन्होंने बताया कि दिल्ली पुलिस ने न केवल उन्हें पीटा, बल्कि चुप रहने की धमकी भी दी। उनके परिवार के सदस्यों को भी बुलाया गया, जिसके बाद अधिकतर लोगों को रिहा कर दिया गया, सिवाय हक़ के। हक़ अभी भी पुलिस हिरासत में हैं। वहीं, एक कार्यकर्ता बादल को स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वह दिल्ली में कदम न रखें।

बादल के एक करीबी मित्र ने मकतूब को बताया, “पुलिस उन्हें ‘अर्बन नक्सल’ कह रही है और उन पर केस दर्ज किया जा रहा है। बादल के पिता से एक कागज पर हस्ताक्षर करवाए गए, जिसमें पुलिस ने उन्हें भविष्य में दिल्ली न आने की शर्त रखी। यह उनकी गरिमा का स्पष्ट उल्लंघन है। इतना ही नहीं, पुलिस ने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ सांप्रदायिक अपशब्दों का भी इस्तेमाल किया।”

CASR ने अपने बयान में गंभीर आरोप लगाते हुए कहा, “हिरासत में रहते हुए कार्यकर्ताओं को ऐसी यातनाएं दी गईं जो सीधे तौर पर संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन हैं। उन्हें नग्न कर पीटा गया, बिजली के झटके दिए गए, और अपमानजनक व्यवहार किया गया— यहां तक कि उनके सिर शौचालय के कमोड में डुबोए गए। पुलिस ने भयानक यौन हिंसा की धमकियां भी दीं, विशेष रूप से महिला कार्यकर्ताओं को कहा गया कि लोहे की रॉड से उनके साथ बलात्कार किया जाएगा। यह डराने-धमकाने की रणनीति भारतीय कानून और अंतरराष्ट्रीय संधियों दोनों के तहत यौन हिंसा की श्रेणी में आती है।”

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