यूपी: गौशाला की बदहाल स्थिति को लेकर रिपोर्ट प्रकाशित करने पर पत्रकारों के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द

Written by sabrang india | Published on: May 20, 2025
जौनपुर में एक गौशाला की बदहाल स्थिति पर रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद पत्रकारों के ख़िलाफ़ ग्राम प्रधान ने केस दर्ज करवाया था।


फोटो : द वायर (स्पेशल अरेंजमेंट)

पिछले महीने उत्तर प्रदेश में जौनपुर की एससी-एसटी अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन करते हुए चार पत्रकारों पर दर्ज फर्जी मुकदमे को रद्द कर दिया। मामला दो साल पुराना है। जौनपुर जिले के पेसारा गांव की एक गौशाला की बदहाल स्थिति और मरणासन्न गौवंशों पर रिपोर्ट प्रकाशित करने के बाद ग्राम प्रधान चंदा देवी ने चार पत्रकारों पर गंभीर धाराओं में केस दर्ज करवाया था। पत्रकार पंकज सिंह, आदर्श मिश्रा, अरविंद यादव और विनोद कुमार के खिलाफ पुलिस ने 24 मार्च 2023 को केस दर्ज किया था।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर 2024 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा था, ‘केराकत कोतवाली पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर प्रताड़ना और द्वेष से प्रेरित थी, इसलिए इसे रद्द किया जाता है।’ साथ ही कोर्ट ने यूपी पुलिस को फटकार लगाई थी और राज्य सरकार से भी रिपोर्ट मांगी थी।

रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट के आदेश की कॉपी एससी-एसटी कोर्ट जौनपुर तक पहुंचने और वहां से अंतिम आदेश जारी होने में छह महीने का समय लगा। 17 अप्रैल 2025 को एससी-एसटी कोर्ट के न्यायाधीश अनिल कुमार यादव ने हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन करते हुए मुकदमे को रद्द करने का आदेश दिया।

मामला एससी-एसटी कोर्ट में जाने की वजह?

इस मामले की शिकायतकर्ता चंदा देवी दलित थीं इसलिए मामला विशेष एससी-एसटी कोर्ट में स्थानांतरित किया गया। गौरतलब है कि पत्रकार विनोद कुमार स्वयं दलित हैं, बावजूद इसके एफआईआर में उन्हें यादव (पिछड़ी जाति) बताया गया और उनके खिलाफ एससी-एसटी एक्ट समेत पांच गंभीर धाराएं लगाई गईं।

21 मार्च 2023 को इन पत्रकारों ने पेसारा गांव की एक अस्थायी गौशाला में मरणासन्न गायों और वहां की बदहाल स्थिति पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। यह रिपोर्ट जौनपुर के स्थानीय समाचार पत्र 'तेजस टुडे' में छपी थी, जिसके संवाददाता विनोद कुमार हैं।

रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद ग्राम प्रधान चंदा देवी ने नाराज़गी व्यक्त करते हुए चार पत्रकारों और एक अन्य व्यक्ति के खिलाफ 24 मार्च को एफआईआर दर्ज कराई। शिकायत में आरोप लगाया गया कि 21 मार्च 2023 की सुबह लगभग 7 बजे वे सभी पेसारा गांव की गौशाला में जबरन प्रवेश कर गए और वहां मौजूद 115 मवेशियों को परेशान किया, जिससे मवेशी घबरा कर इधर-उधर दौड़ने लगे और आवाज निकालने लगे।

एफआईआर में उल्लेख किया गया कि जब ग्राम प्रधान अपने पति के साथ गौशाला पहुंचीं और आरोपियों से बिना अनुमति प्रवेश करने का कारण पूछा तो आरोपियों ने कथित रूप से उन्हें जातिसूचक अपशब्द कहे और मवेशियों का वीडियो रिकॉर्ड किया। एफआईआर के अनुसार, आरोपियों पर यह भी आरोप लगाया गया कि उन्होंने वह वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड न करने के बदले 20,000 रुपये की मांग की।

पुलिस की कार्रवाई को लेकर सवाल

स्थानीय पत्रकारों ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कई बार वरिष्ठ अधिकारियों से शिकायत की लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई। आखिरकार 3 अप्रैल 2023 को पत्रकारों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

हाईकोर्ट ने पाया कि संबंधित एफआईआर दुर्भावनापूर्ण मंशा से दर्ज की गई थी और यह निष्पक्ष पत्रकारिता पर सीधा हमला था। अदालत ने जौनपुर की केराकत कोतवाली में दर्ज एफआईआर को निराधार मानते हुए उसे रद्द कर दिया, साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार भी लगाई।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा, 'न्यायालय ने पाया कि यह एफआईआर केवल इस उद्देश्य से दर्ज कराई गई थी ताकि अपीलकर्ताओं (पत्रकारों) पर दबाव डालकर सोशल मीडिया पर अपलोड किए गए गौशाला के वीडियो को हटवाया जा सके। अतः यह प्राथमिकी विधिक प्रक्रिया का स्पष्ट दुरुपयोग है।

पत्रकार अरविंद यादव ने द वायर हिंदी से बातचीत में बताया, ‘हमने सिर्फ सच्चाई दिखाई थी। बावजूद इसके हमारे खिलाफ गंभीर धाराओं में केस दर्ज किया गया।’

पत्रकार दीप नारायण सिंह ने मुकदमे के रद्द होने को सत्य की जीत बताया। उन्होंने कहा, 'यदि सिस्टम की खामियों को उजागर करने पर मुकदमे दर्ज किए जाएंगे, तो फिर सच दिखाने का साहस कौन करेगा? ऐसा रवैया तानाशाही की निशानी है।

सेनापुर गांव के निवासी पत्रकार विनोद कुमार ने कहा, 'मैं दलित हूं, इसके बावजूद एफआईआर में मुझे यादव जाति का बताकर मेरे खिलाफ एससी-एसटी एक्ट समेत कई गंभीर धाराएं लगाई गईं। मेरी आर्थिक स्थिति खराब है, जिसके कारण पुलिसिया उत्पीड़न का डर हमेशा बना रहा।

हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने के बाद उन्हें राहत मिली। विनोद ने कहा, ‘कोर्ट ने परीक्षण में पाया कि मुकदमा फर्जी है और उसे रद्द कर दिया गया।’

अब विनोद कुमार एससी-एसटी आयोग और प्रेस परिषद में मानहानि का मामला उठाने की तैयारी कर रहे हैं। वे कहते हैं, 'ताकि भविष्य में किसी पत्रकार को ऐसी पीड़ा का सामना न करना पड़े।

पुलिस की कार्यशैली पर नाराजगी

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने के पुलिस के रवैये पर नाराजगी व्यक्त की थी। कोर्ट ने कहा था कि उत्तर प्रदेश पुलिस थानों में मनमाने तरीके से एफआईआर दर्ज कर रही है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की इस सख्त टिप्पणी का असर अब तक जमीनी स्तर पर नजर नहीं आ रहा है।

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