"वो रेहान था... इसलिए बनारस के दशाश्वमेध घाट पर होना उसका गुनाह बन गया" जानवरों की तरह पीटा और कुचल दी मासूमियत-ग्राउंड रिपोर्ट

Written by विजय विनीत | Published on: April 29, 2025
रेहान नई सड़क स्थित एक लेडीज़ सूट की दुकान 'नाज़ फैब्रिक्स' में काम करता था। सोमवार की शाम, जब काम से थोड़ा समय मिला, तो वह दशाश्वमेध घाट पर गंगा किनारे कुछ क्षणों की राहत लेने पहुंचा। आरती का समय था और वह शांतिपूर्वक वहां बैठा रहा। तभी लगभग 7:30 बजे, आठ-दस युवकों का एक झुंड वहां आया। उन्होंने उसका नाम पूछा, और जैसे ही 'मोहम्मद रेहान' सुनाई दिया, जैसे किसी ने भीतर छिपे हिंसक पशुओं को खुली छूट दे दी। 



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस के प्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट पर जहां हर शाम गंगा आरती के स्वर गूंजते हैं, वहीं 28 अप्रैल की शाम उस भक्ति को एक मासूम की चीखों ने थाम दिया। घाट पर बैठे सैकड़ों श्रद्धालु जब दीप प्रज्वलित कर रहे थे, उसी वक़्त गंगा किनारे सुकून की तलाश में पहुंचा 16 वर्षीय मोहम्मद रेहान, अपने नाम की कीमत चुका रहा था।

कोई सवाल नहीं, कोई चेतावनी नहीं, सिर्फ़ नाम पूछा गया और जब जवाब में "रेहान" निकला, तब नफ़रत ने इंसानियत की चादर फाड़ दी। पहलगाम आतंकी हमले की आड़ में एक नाबालिग पर ज़ुल्म की ऐसी इन्तिहा हुई कि घाट की पवित्रता शर्मसार हो गई। रेहान को घसीटा गया, पीटा गया जैसे वो इंसान नहीं, कोई सज़ायाफ्ता अपराधी हो। उसकी उंगलियां तोड़ने की कोशिश की गईं और नाख़ून भी उखाड़ने का प्रयास किया गया। उसकी मासूमियत को पैरों तले कुचल दिया गया। जिस घाट से सदियों से मोक्ष की कामना जुड़ी है, वहीं एक किशोर की पहचान को लेकर ऐसा बर्ताव, इस शहर की आत्मा से सवाल कर रहा है। क्या अब बनारस की धरती पर नाम भी 'गुनाह' हो गया है?

रेहान नई सड़क स्थित एक लेडीज़ सूट की दुकान 'नाज़ फैब्रिक्स' में काम करता था। सोमवार की शाम, जब काम से थोड़ा समय मिला, तो वह दशाश्वमेध घाट पर गंगा किनारे कुछ क्षणों की राहत लेने पहुंचा। आरती का समय था और वह शांतिपूर्वक वहां बैठा रहा। तभी लगभग 7:30 बजे, आठ-दस युवकों का एक झुंड वहां आया। उन्होंने उसका नाम पूछा, और जैसे ही 'मोहम्मद रेहान' सुनाई दिया, जैसे किसी ने भीतर छिपे हिंसक पशुओं को खुली छूट दे दी। 

तोड़ दीं बर्बरता की सारी सीमाएं

“मुस्लिम हो?” पूछने के बाद जो कुछ हुआ, वह रूह को कंपा देने वाला था। उसे घसीटकर एक मंदिर के कमरे में ले जाकर बंद कर दिया गया। वहां डेढ़ घंटे तक उस पर बर्बरता की सारी सीमाएं तोड़ दी गईं। उसकी उंगलियां उमेठ दी गईं। हाथ के नाखून उखाड़ने की कोशिश की गई, रॉड और लाठियों से उसकी देह को नीला कर दिया गया।

दालमंडी की तंग गलियों में रहने वाला यह लड़का मेहनतकश था। वह अपने माता-पिता का हाथ बंटाने के लिए छोटी उम्र में ही दुकान पर काम करने लगा था। शायद उसने कभी सोचा भी नहीं होगा कि गंगा के घाट पर बैठना उसके जीवन की सबसे भयावह शाम में बदल जाएगा। रेहान चीखता-चिल्लाता रहा, गिड़गिड़ाता रहा, “भाई, मुझे जाने दो… मैंने कुछ नहीं किया।” लेकिन हमलावरों की आंखों में उसकी धार्मिक पहचान ही अपराध बन चुकी थी। वे बार-बार चीखते, “तुझे यहीं मार डालेंगे…” और बारी-बारी से उस पर लाठियां बरसाते रहे।

रेहान बताता है, "उन्होंने हमें इतनी बेरहमी से पीटा कि कपड़े फट गए, शरीर लहूलुहान हो गया। जब मैं बेहोश हो गया, तो मुझे सीढ़ियों पर फेंककर भाग निकले।” किसी तरह होश में आने के बाद वह किसी तरह घिसटता हुआ अपनी नानी के घर दालमंडी पहुंचा। इसके बाद परिजन उसे लेकर दशाश्वमेध थाने गए, जहां से रेहान को कबीरचौरा स्थित मंडलीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। जब हम अस्पताल पहुंचे, तो रेहान बेसुध पड़ा था। सिर से खून बह रहा था, आंखें सूज चुकी थीं, शरीर जगह-जगह नीला पड़ चुका था।"

रेहान के पिता मोहम्मद सलीम का चेहरा ग़ुस्से और ग़म से तप रहा था। वे रोते हुए बोले, "मेरा बेटा तो काम पर गया था... किसी से दुश्मनी नहीं थी। उसका गुनाह बस इतना था कि वो मुसलमान है? उसे सिर्फ इसलिए मारा गया क्योंकि उसका नाम रेहान था। शिवम गुप्ता, सुशांत मिश्रा और हनुमान यादव ने हमारे बेटे को जान से मारने की नीयत से पीटा। इन हमलावरों से हमारा कोई व्यक्तिगत संबंध नहीं था। यह हमला सिर्फ हमारे बेटे पर नहीं, पूरे समाज पर है।" उन्होंने यह भी कहा कि यह हमला संभवतः कश्मीर की किसी घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप किया गया हो। सलीम ने तीन नामजद और कुछ अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज कराई है और वे अब न्याय की मांग कर रहे हैं।

पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में

घटना के बाद थाना परिसर में जुटी भीड़ में गुस्सा साफ झलक रहा था। परिजनों और स्थानीय लोगों ने पुलिस पर लीपापोती का आरोप लगाया और कहा, "पुलिस इस पूरे मामले को ‘आपसी विवाद’ बताकर दबाना चाह रही है।” वहीं, शहर के मुफ्ती मौलाना बातिन ने इसे धार्मिक नफरत से प्रेरित कृत्य करार दिया और दोषियों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की। दशाश्वमेध घाट पर मौजूद दुकानदारों से जब हमने बात करने की कोशिश की, तो अधिकतर ने कंधे उचकाकर चुप्पी साध ली। सभी ने रटा-रटाया जवाब ये वाक्य दोहराया, “हमें कुछ नहीं पता।"

मोहम्मद रेहान को मंडलीय अस्पताल के वार्ड नंबर-दो में बेड नंबर 18 पर भर्ती कराया गया है। इस वार्ड के बाहर पुलिस के दो जवान मुश्तैदी से पहरे पर तैनात हैं। पूछताछ के बाद ही किसी को मिलने की अनुमति दी जा रही है। बेड के पास कोने में बैठीं उसकी मां शबाना बानो की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे। वे कुछ बोल नहीं रही थीं, शायद इसलिए कि उन्हें लगा, शब्द उनके दर्द के लिए बहुत छोटे हैं।

रेहान उनका इकलौता बेटा है। उससे बड़ी बेटी सदफ (18) इंटर पास है और छोटी बेटी सीफा (10) तीसरी कक्षा में पढ़ती है। रेहान के पिता मोहम्मद सलीम ट्राली चलाते हैं। सलीम के चार भाई-शफीक, मुन्ना, गुड्डू और कमील भी इसी पेशे से जुड़े हैं। ये सभी पड़ाव क्षेत्र की पुरानी चौरहट कॉलोनी में एक ही घर में रहते हैं। घर की सीमित आमदनी में मदद करने के लिए सलीम ने रेहान को उसकी नानी कनीज फातिमा के पास दालमंडी भेज दिया था, ताकि वह वहीं रहकर कुछ कमाई कर सके।

रेहान नाज फैब्रिक्स में लेडीज़ सूट बेचता था, जिसके एवज में उसे हर महीने साढ़े सात हजार रुपये बतौर पगार मिला करती थी। उसने बताया, "मैं रोज दोपहर को दुकान जाता था और शाम को लौट आता था। 28 अप्रैल को दुकान में सन्नाटा था, ग्राहक नहीं थे। सोचा घाट पर जाकर थोड़ा सुकून मिल जाए। बस वही मेरी सबसे बड़ी भूल बन गई। घाट पर बैठा ही था कि अचानक हमला हो गया।"

रेहान की बातों में डर, असहायता और अनकही पीड़ा साफ झलकती है। उसकी कांपती आवाज़, फटी पसलियों और सूजे चेहरे के पीछे एक सवाल लगातार गूंजता है, “क्या सिर्फ नाम की वजह से मेरी जान की कीमत इतनी सस्ती हो गई?” रेहान की आंखों में अब सिर्फ एक सवाल है, "क्या मैं गंगा के किनारे सिर्फ इसलिए नहीं बैठ सकता, क्योंकि मैं रेहान हूं?"

मंडलीय अस्पताल में रेहान की तीमारदारी में लगे उसके मित्र सगीर ने कहा, "शहर में डर का माहौल है, खासकर अल्पसंख्यक समुदाय में। यह सिर्फ एक घटना नहीं, एक समाज का आईना है। जिस वाराणसी को धर्मों की गंगा-जमुनी तहज़ीब का शहर कहा जाता था, वहीं अब धर्म पूछकर लोगों को पीटा जा रहा है। इस पूरी घटना ने न सिर्फ बनारस जैसे सहिष्णु कहे जाने वाले शहर की आत्मा को झकझोरा है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि जब सांप्रदायिक नफरत घाटों तक पहुंच जाए, तो फिर गंगा किसके पाप धोएगी? "

कानूनी कार्रवाई पर उठते सवाल 

पुलिस ने रेहान की तहरीर पर कार्रवाई करते हुए तीन आरोपियों—शिवम गुप्ता, सुशांत मिश्रा और हनुमान यादव के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज कर ली है। इनके विरुद्ध भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धारा 115(2) और धारा 191 के तहत मुकदमा कायम किया गया है। पहली धारा हत्या के प्रयास (Attempt to Murder) की है, जबकि दूसरी धारा दंगे से संबंधित है।

हालांकि, एफआईआर में गाली-गलौज, सांप्रदायिक उन्माद भड़काने या नफरत फैलाने जैसी गंभीर धाराएं शामिल नहीं की गई हैं, जो इस घटना की पृष्ठभूमि को देखते हुए कई सवाल खड़े करती हैं। यह वही बिंदु है, जहां से पुलिस की मंशा पर संदेह शुरू होता है। परिजनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि हमला योजनाबद्ध और सांप्रदायिक घृणा से प्रेरित था, तो फिर दंगे और हत्या के प्रयास से कहीं अधिक सटीक धाराएं लगाई जानी चाहिए थीं। बताया जा है कि हमलावर सत्तारूढ़ दल से जुड़े हैं। हालांकि सबरंग इंडिया इसकी पुष्टि नहीं करता है।



डीसीपी काशी ज़ोन गौरव बंसवाल ने बताया कि “मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच शुरू कर दी गई है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।” लेकिन यही ‘सख्ती’ अब तक धरातल पर नजर नहीं आ रही है। तीनों नामजद आरोपी फिलहाल फरार बताए जा रहे हैं और घटना के तीन दिन बीतने के बावजूद किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है।

स्थानीय लोगों का दावा है कि आरोपी खुलेआम अपने घरों में मौजूद हैं, लेकिन पुलिस उन्हें पकड़ने में ‘संविधानिक प्रक्रियाओं’ का हवाला देकर टालमटोल कर रही है। सामाजिक कार्यकर्ता अफरोज आलम कहते हैं, “अगर पीड़ित मुस्लिम न होता, तो क्या अब तक कार्रवाई इसी तरह ढीली रहती?”

मोहम्मद रेहान के चाचा शफीक सवाल करते हैं, “पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज, चश्मदीद गवाहों की बात क्यों नहीं जोड़ी? क्या इसलिए कि इससे पूरा मामला सांप्रदायिक रूप ले सकता है? दशाश्वमेध घाट जैसे संवेदनशील स्थान पर यदि किसी धार्मिक पहचान के आधार पर हमला होता है और पुलिस उसे सामान्य दंगे की श्रेणी में डाल देती है। इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर साबित किया है कि ‘न्याय’ अब भी बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक की लकीरों में बंटा हुआ है, जहां पीड़ित की आस्था ही तय करती है कि उसे त्वरित न्याय मिलेगा या प्रतीक्षा करनी होगी।”

घाटों पर लगे थे ‘प्रतिबंध' के पोस्टर

जनवरी 2022 में वाराणसी के पंचगंगा, मणिकर्णिका, दशाश्वमेध, रामघाट से लेकर अस्सी घाट तक विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल की ओर से विवादित पोस्टर लगाए गए थे, जिनमें साफ तौर पर “ग़ैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित” लिखा था। इन पोस्टरों को लेकर दो वीडियो भी सामने आए थे, जिनमें बजरंग दल के काशी संयोजक निखिल त्रिपाठी उर्फ रुद्र और विहिप के मंत्री राजन गुप्ता ने सार्वजनिक रूप से गैर-हिंदू समुदाय को गंगा घाटों और मंदिरों से दूर रहने की धमकी दी थी। उस वक्त निखिल त्रिपाठी ने कहा था, “यह पोस्टर नहीं, चेतावनी है। गंगा कोई पिकनिक स्पॉट नहीं है। जो विधर्मी यहां घुसता है, उसे हम खुद पकड़कर पुलिस को सौंपेंगे।”



वहीं राजन गुप्ता का बयान था, “यह संदेश है कि गैर-हिंदू घाटों और मंदिरों से दूर रहें। हम उन्हें खदेड़ने का काम करेंगे।” इस खुलेआम सांप्रदायिक बयानबाज़ी के बावजूद किसी तरह की आपराधिक कार्रवाई नहीं हुई। जल पुलिस पोस्टरों को खुरचवाती रही, लेकिन किसी नेता पर केस नहीं दर्ज किया गया।

इस घटना के बाद गंगा-जमुनी तहज़ीब को बचाने की आवाज़ें जरूर उठीं। महामृत्युंजय मंदिर से जुड़े किशन दीक्षित ने कहा कि, "काशी में सभी धर्मों के लोग एक-दूसरे की आस्था का सम्मान करते हैं। इस तरह के पोस्टर समाज को बांटने वाले हैं।" समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मनोज राय धूपचंडी ने इसे भाजपा की राजनीतिक चाल बताया और कहा, "गंगा और घाट सार्वजनिक संपत्ति हैं, इन्हें किसी समुदाय की जागीर नहीं बनाया जा सकता।"

वर्तमान घटना में वही पृष्ठभूमि 

बनारस में जो नदी आठों पहर अमनपसंद लोगों के पांव पखारती रही है, उस गंगा के आंचल में अब मोहम्मद रेहान पर दशाश्वमेध घाट के पास जानलेवा हमला, केवल एक आपराधिक वारदात नहीं, बल्कि उसी "घोषित सांप्रदायिक वातावरण" की परिणति माना जा रहा है। नामजद एफआईआर दर्ज होने के बावजूद आरोपियों की गिरफ्तारी न होना और सांप्रदायिक घृणा से प्रेरित भाषण देने वाले नेताओं के खिलाफ अब तक कोई ठोस कार्रवाई न होना, यह बताता है कि घृणा अब संगठित है और उसका बचाव भी सत्ता के चुप्पी से किया जा रहा है।

काशी विश्वनाथ मंदिर के नेमी दर्शनार्थी वैभव कुमार त्रिपाठी कहते हैं, "गंगा-जमुनी तहजीब को जीने वाले शायर नजीर बनारसी की नज्म "सोएंगे तेरी गोद में एक दिन मरके, हम दम भी जो तोड़ेंगे तेरा दम भर के, हमने तो नमाजें भी पढ़ी हैं अक्सर, गंगा तेरे पानी से वजू करके... " आज भी हर बनारसी के जुबां पर तैरती रहती है। नजीर ऐसे शायर थे जिनकी लेखनी का एक-एक शब्द काशी की रूह को थामे हुए था। उन्होंने जब भी कोई शेर गढ़ा, देश को सलामी दे गया। देश के बंटवारे का दर्द जिनकी रुबाइयां बनीं, हिंदू-मुसलमान में फर्क को तार-तार करना जिनकी इबादत थी। नजीर साहब ने मजहबी बंदिशों को कभी ठोकर मारी, तो कभी गंगा घाटों पर मंदिरों के साए में थकान उतारकर उन्मादी ताकतों को उनकी हद दिखाई।"

"सुबह-ए-बनारस में सूरज की लालिमा के साथ अपनी सांसों को आवाज़ बनाकर शहनाई के जरिए रंग भरने वाले बिस्मिल्लाह खां को गंगा का किनारा आज भी ढूंढता है। बनारस में जो नदी आठों पहर अमनपसंद लोगों का पांव पखारती रही है, उस गंगा के आंचल में मुस्लिम किशोर के साथ जानवरों की तरह सलूक किया जाना जुल्म और ज्यादती की इंतिहा है। फिरकपसंद ताकतें अपनी काली काली कारगुजारियों से प्रसिद्ध शायर नजीर बनारसी और शहनाई सम्राट विस्मिल्लाह खां की गंगा-जमुनी तहजीब को तार-तार करने पर उतारू हो गई हैं।"

वैभव यह भी कहते हैं, "कश्मीर के पहलगांव में जिन आतंकवादियों ने नाम और धर्म पूछकर गोली मारी वहीं ज्ञान की नगरी काशी में नाम और मजहब के आधार पर मुस्लिम किशोर की पिटाई गई। आखिर समूचा हिन्दुस्तान इन दोनों घटनाओं में कैसे अंतर करेगा? क्या यह घटना सभ्य समाज पर गहरा प्रश्नचिह्न नहीं लगाती? गंगा के घाटों की इज्जत, लगाव और मुहब्बत हर बनारसी और हर मजहब के दिलों में है। घाटों पर आने-जाने से रोकना और मारपीट करना कानून जुर्म और अपराध है।"

वरिष्ठ पत्रकार और अचूक रणनीति के संपादक विनय मौर्य कहते हैं, "चुनाव और सरकारें तो आती-जाती रहेंगी, लेकिन बनारस की जो तहजीबी रवायत है उसकी आत्मा पर खरोंच लगाना तकलीफदेह है। रेहान के साथ मारपीट और पिछली घटनाओं को देखें तो उससे साफ जाहिर होता है कि यह सब चुनाव और वोट के मद्देनजर योजनाबद्ध तरीके से कराया जा रहा है और इस घृणित कृत्य के लिए सत्तारूढ़ दल साफ-साफ जिम्मेदार है। साथ ही वो लोग भी जिम्मेदार हैं जो नफरत की राजनीति और महजबी बंटवारे में यकीन रखते है। हमें लगता है कि फिरकापरस्त ताकतें चुनावी पराजय के खौफ से पूरे मुल्क और समाज को अंधेरी सुरंग में फंसाने की कोशिश में हैं। इत्मिनानबख्स बात यह है कि बनारस के लोग फिरकापरस्तों को लगातार खारिज करते जा रहे हैं।"

विनय कहते हैं, "हमें लगता है कि नफरत फैलाने और बनारस के अमनो-अमान को बिगाड़ने की गहरी साजिश रची जा रही है। गंगा के जिन घाटों पर मीर और गालिब बैठे हों और एक लंबा वक्त गुजारा हो, दुनिया के चर्चित शायर नजीर बनारस की कलाम में जिस गंगा के पानी की पाकीजगगी का जिक्र हुआ हो वहां वैमनस्यता पैदा करना कहां तक उचित है? धार्मिक आधार पर गंगा घाटों पर मारपीट किया जाना अथवा आने-जाने की पाबंदी के पोस्टरों को चस्पा किया जाना काशी के शानदार इतिहास के लिए शर्मनाक है। अभियुक्तों का अभी तक पकड़ा नहीं जाना, पुलिस और प्रशासन की नीयत पर भी सवालिया निशान खड़ा करता है।"

एफआईआर-1


एफआईआर-2


एफआईआर-3

किसी की पेटेंट नहीं गंगा और घाट

काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत राजेंद्र तिवारी कहते हैं लगता है कि कुछ लोगों ने बनारस में गंगा और घाटों को पेटेंट करा लिया है। साल 2022 में विहिप और बजरंग दल वालों ने यहां भड़काऊ पोस्टर लगाए थे। ये लोग उन्हें गंगा से जुदा करना चाहते हैं, जो सदियों से इनकी गोद में पलते रहे हैं। वह कहते हैं, "गंगा घाटों पर धार्मिक आधार पर किसी के ऊपर जानलेवा हमला किया जाना सरासर गुंडागर्दी है। सिर्फ गंगा ही नहीं, पानी, औषधि, जंगल और सभी नदियों पर किसी भी समुदाय अथवा व्यक्ति विशेष का एकाधिकार संभव नहीं है। भाजपा नेता तब भागने लगते हैं, जब कोई संवैधानिक मामला फंसता है। तब वो यह कह देते हैं कि बजरंग दल, विहिप, आरएसएस से हमारा कोई लेना-देना नहीं है। भाजपा के पाले-पोशे गए लोग चुनाव के समय बनारस में ऐसी हरकत करते हैं। ऐसे लोगों के ऊपर दंगा-फसाद कराने और सामजिक समरसता को तार-तार करते हुए समाज को बांटने का जिम्मा रहता है।"

राजेंद्र तिवारी यह भी कहते हैं, "गंगा का अवतरण ही मानव कल्याण और जीव की रक्षा के लिए हुआ है। उस पर किसी भी वर्ग का एकाधिकार नहीं हो सकता है। यह संविधान और मानवाधिकार का उल्लंघन ही नहीं, एक तरह का राष्ट्रद्रोह है। नाम पूछकर धार्मिक आधार पर किसी के साथ मारपीट करने वालों को तत्काल गिरफ्तार किया जाना चाहिए। हमें लगता है कि असामाजिक तत्व सत्तारूढ़ दल के इशारे पर यह घृणित कार्य कर रहे हैं। हाल की घटनाओं से साफ जाहिर हो रहा है कि बिहार का चुनाव जैसे-जैसे करीब आएगा, ये लोग समाज को दंगे की आग में झोंकने का काम तेज कर देंगे। यह सिर्फ एक मामूली मारपीट नहीं, बल्कि बारूद बिछाने का काम चल रहा है। इस तरह की हरकतें ऐसा माहौल बना रही हैं, जिसमें बस माचिस की एक तिली दिखाने की जरूरत है।"

काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी ने इस प्रकरण को लेकर गहरी चिंता जताई और यह भी कहा कि "देश में बढ़ती वैचारिक कट्टरता और उन्माद का माहौल केवल सामाजिक सौहार्द ही नहीं, लोकतांत्रिक मूल्यों को भी चोट पहुंचा रहा है। अगर समय रहते चेतावनी को नहीं समझा गया तो परिणाम गंभीर हो सकते हैं। प्रदेश में शासन-प्रशासन का रवैया निष्पक्षता से दूर दिखाई देता है, और कानून व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं।"

"काशी जैसे सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील नगर में यदि सार्वजनिक धार्मिक स्थलों पर भय और हिंसा का वातावरण पनप रहा है, तो यह प्रशासन और समाज—दोनों के लिए एक गंभीर संकेत है।" वहीं पुलिस की ओर से केवल “जांच जारी है” जैसे औपचारिक बयान देकर अपने दायित्व की इतिश्री कर लेना, पीड़ित पक्ष को न्याय से वंचित रखने का प्रतीक बनता जा रहा है। अब समय आ गया है कि शासन-प्रशासन संवेदनशीलता, निष्पक्षता और सक्रियता के साथ स्थिति को संभाले, वरना सांस्कृतिक नगरी काशी की आत्मा पर स्थायी आघात हो सकता है।

बनारस के ठाठ, गंगा के घाट

बनारस में गंगा के किनारे 85 घाट हैं, दो करीब साढ़े चार किमी क्षेत्र में फैले हैं। एक दिन में हर घाट का पानी पीना अगर असंभव नहीं तो कठिन जरूर है। ये घाट ही बनारस की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान हैं। गंगा के तीरे बने ये ऐतिहासिक घाट, पुरातात्विक नजरिये से काफी अहमियत रखते हैं। अब से पहले कभी भी इन घाटों पर आडंबर, झूठ, छल और फरेब का जामा नहीं पहनाया गया था। दक्षिणी सिरे पर संत रविदास घाट पर गंगा और असी नदियों का संगम है तो उत्तरी छोर पर स्थित आदिकेशव घाट पर वरुणा, गंगा में मिलती है।

गंगा महल घाट, रीवां घाट, तुलसी घाट, भदैनी घाट, जानकी घाट, माता आनंदमनयी घाट, बच्छराज घाट, जैन घाट, निषादराज घाट, पंचकोट घाट, चेत सिंह घाट, निरंजनी घाट, शिवाला घाट और हनुमान घाट को भला कौन नहीं जानता। यहां गंगा के किनारे कर्नाटक घाट है तो मैसूर घाट भी। हरिश्चंद्र घाट, लाली घाट, केदार घाट, चौकी घाट, क्षेमेश्वर घाट, मान सरोवर घाट के बारे में किंवदंती प्रचलित है कि यह मानसरोवर यात्रा जैसा फलदायी है। पांडेय घाट, चौसट्टी घाट, राणा महल घाट दंरभंगा घाट, मुसी घाट, शीतला घाट, दशाश्वमेध घाट, प्रयाग घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट, मान मंदिर घाट, वाराही घाट, त्रिपुरा भैरवी घाट, मीर घाट, ललिता घाट, मणिकर्णिका घाट, संकठा घाट, गंगा महल घाट, राम घाट, पंचगंगा घाट, दुर्गा घाट, ब्रह्मा घाट, हनुमान गढ़ी घाट, गाय घाट, त्रिलोचन घाट, प्रह्लाद घाट, रानी घाट, राजघाट, खिड़किया घाट सरीखे तमाम घाट आज भी अपनी ऐतिहासिक विरासत और भाईचारे की गवाही देते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार राजीव सिंह कहते हैं, "बनारस में गंगा घाटों के ऐसे ठेकेदार पैदा हो गए हैं जिन्हें इस शहर की तहजीब का ही पता नहीं है। बनारस में पैदा होने या पैदा होकर मर जाने से कोई बनारसी और गंगा पुत्र कहलाने का हक हासिल नहीं कर लेता है। बनारस में पैदा होना, बनारस में आकर बस जाना या फिर बनारसी बोली सीख लेना भी बनारसी होने का पुख्ता सबूत नहीं है। असली बनारसी वो है जिसके सीने में धड़कता हुआ दिल हो, जो बनारस से बाहर जाकर बेचैन रहता हो। बनारस गुंडों, लोफरों और दंगाइयों का शहर नहीं, यह उन लोगों का शहर है जो मन, वचन और कर्म से सांप्रदायिक सद्भाव में यकीन रखते हैं। बनारस की गंगा उन सभी लोगों की है जिसके मन में इस पवित्र नदी के प्रति ईमानदार और गहरी आस्था है।"

"काशी केवल एक शहर नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक चेतना की आत्मा है। यहां की हर गली, हर घाट, हर घंटाध्वनि में सहिष्णुता की परंपरा गूंजती रही है। लेकिन आज, जब इन घाटों पर जाति और धर्म पूछकर मारपीट करना नफरत बढ़ाने वाला कृत्य है। जब धर्म के नाम पर दूसरों को अपमानित और बहिष्कृत करने की मानसिकता खुलकर सामने आ रही है, तब यह केवल बनारस की समस्या नहीं रह जाती, यह पूरे देश की आत्मा पर चोट बन जाती है।"

राजीव यह भी कहते हैं, "जो गंगा सबको अपनाती है, जब वही "कुछ के लिए" सीमित की जाने लगे, तो यह संकेत है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं? यह समय आत्ममंथन का है-राजनीति, प्रशासन, समाज और धार्मिक नेतृत्व, सभी को यह सोचना होगा कि हम किस प्रकार का भारत गढ़ना चाहते हैं। दुखद यह है कि पीड़ित पक्ष अब भी न्याय की राह देख रहा है और जिम्मेदार संस्थाएं या तो मौन हैं या औपचारिकता निभा रही हैं। यह मौन केवल प्रशासनिक विफलता नहीं, सामाजिक असंवेदनशीलता का परिचायक भी है। काशी को बचाना है तो प्रेम, न्याय और संवेदना को फिर से घाटों की सीढ़ियों पर लौटाना होगा। नहीं तो वह समय दूर नहीं जब यह पवित्र शहर, धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना का केन्द्र न रहकर, ध्रुवीकरण की राजनीति का अखाड़ा बन जाएगा।"

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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