क्या ईशान और आकाश आनंद बसपा के अस्त हो रहे सूरज को फिर से नया प्रकाश दे सकेंगे। दूसरी ओर सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या मायावती ने आकाश आनंद को किनारे करने का मन बना लिया है?
फोटो साभार : टीवी9 भारतवर्ष 'एक्स'
"यह उत्तर प्रदेश में खिसकते जनाधार को बचाए रखने की नई कवायद है या फिर भतीजे ईशान आनंद की राजनीतिक पारी के बहाने ये बताने की की कोशिश कि बसपा बूढ़ी नहीं हो रही है, बल्कि उसके पास नेतृत्व करने वाले नए युवा नेताओं की ऊर्जा है। ईशान को लांच करने को जहां मायावती की दलित समाज के युवाओं को जोड़ने की कवायद माना जा रहा है। तो वहीं राजनीति के जानकार इसे आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद की दलित युवाओं में बढ़ती पकड़ को थामने की कोशिश भी करार दे रहे हैं। बड़ा सवाल है कि क्या ईशान और आकाश आनंद बसपा के अस्त हो रहे सूरज को फिर से नया प्रकाश दे सकेंगे। दूसरी ओर सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या मायावती ने आकाश आनंद को किनारे करने का मन बना लिया है? क्योंकि आकाश आनंद को मायावती ने जिस जिम्मेदारी के साथ सियासी मैदान में उतारा था, वह उस पर पूरी तरह खरे नहीं उतर पाए, खासकर पार्टी के खिसकते जनाधार को रोकने में। आखिर मायावती सोच क्या रही है?"
जी हां, आकाश के बाद अब ईशान आनंद राजनीति में एंट्री करेंगे? बुआ मायावती के साथ पहली बार मंच पर नजर आए ईशान आनंद 26 साल के हैं और आकाश आनंद से 4 साल छोटे है। ईशान आनंद मायावती के भाई आनंद कुमार के छोटे बेटे हैं। ईशान ने स्कूली शिक्षा नोएडा के समर वैली स्कूल और जेनेसिस ग्लोबल स्कूल से हासिल की है। उसके बाद उन्होंने लंदन से लीगल स्टडीज की पढ़ाई पूरी की है। और फिलहाल वह बिजनेस संभाल रहे हैं। कहा जा रहा है कि वह राजनीति में भाई आकाश आनंद का हाथ बंटा सकते हैं। हालांकि, बसपा सुप्रीमो मायावती ने स्पष्ट किया कि वे ईशान को परिवार के अन्य सदस्यों के साथ लेकर आई थीं क्योंकि वे जन्मदिन के मौके पर उनसे मिलना चाहते थे, लेकिन बीएसपी में भी एक धडा इसे ईशान के लिए “राजनीतिक इंटर्नशिप” की शुरुआत मान रहा है। इन अटकलों को हवा तब मिल गई जब ईशान दूसरे दिन भी मायावती के साथ नजर आए।
मौका 3 दिन पहले लखनऊ में बसपा प्रमुख मायावती के जन्मदिन का था। पहली बार आकाश के साथ उनके छोटे भाई ईशान आनंद भी सार्वजनिक मंच पर हाथ में पेन डायरी लिए दिखे। इससे उस समय चौंक गए जब उन्होंने उत्तर प्रदेश इकाई की समीक्षा बैठक में मायावती के दूसरे भतीजे ईशान आनंद को देखा.
मायावती की प्रेस कांफ्रेंस के दौरान साइड में तीन कुर्सियां लगाई गई थीं। पार्टी के राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद और महासचिव सतीश चंद्र मिश्र के बगल में उनको जगह दी गई। प्रेस कांफ्रेंस से पहले मायावती ने आते ही दोनों भाइयों को बुलाया और अपना आशीर्वाद दिया। इससे सवाल उठना लाजिमी है कि क्या आकाश के बाद अब ईशान भी राजनीति में एंट्री करेंगे? वह कब तक और कितना सक्रिय होंगे? इसके पीछे पार्टी की मंशा क्या है? हालांकि, मायावती ने स्पष्ट किया कि वे ईशान को परिवार के अन्य सदस्यों के साथ लेकर आई थीं क्योंकि वे जन्मदिन के मौके पर उनसे मिलना चाहते थे, लेकिन बीएसपी में एक वर्ग इसे ईशान के लिए “राजनीतिक इंटर्नशिप” की शुरुआत मान रहा है।
पार्टी सूत्र बताते हैं “जब हम सभी ने बहन जी के जन्मदिन के कार्यक्रम में ईशान को देखा, तो लगा कि वे केवल उन्हें बधाई देने आए हैं, लेकिन अब राज्य समीक्षा बैठक में उनकी उपस्थिति राजनीतिक लग रही है। हालांकि, बहन जी ने (कुछ भी) घोषणा नहीं की, लेकिन पार्टी कार्यकर्ता इसे उनकी राजनीतिक ट्रेनिंग की शुरुआत मान रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पार्टी पदाधिकारियों में इसे लेकर चर्चा रही। एक बीएसपी नेता ने बताया कि ईशान की मौजूदगी इसलिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि “सभी जानते हैं कि बहन जी की बैठक में उनकी सहमति के बिना कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता। बीएसपी नेता ने कहा, ईशान भी किसी अन्य बीएसपी कार्यकर्ता की तरह डायरी और पेन लेकर आए थे। इसलिए, इसका मतलब साफ है कि उन्हें पार्टी में आधिकारिक रूप से शामिल करने की कोई योजना है। हो सकता है, बाद में इसकी घोषणा हो।
इससे पहले आकाश आनंद भी इसी तरह 2017 में मायावती के साथ नजर आए थे। सहारनपुर हिंसा के दौरान मायावती जब वहां गई थीं, तो आकाश आनंद सबसे पहले उनके साथ नजर आए थे। उसके बाद 2017 में ही पार्टी की एक बैठक में वह नजर आए थे। उनका मायावती ने सभी से परिचय कराया था। तब से लगातार वह आकाश को राजनीति के लिए तैयार करती रहीं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उनको पहले राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और फिर राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर बनाया। साथ ही उनको अपना उत्तराधिकारी भी घोषित किया। यूपी से बाहर के राज्यों में उनको संगठन की जिम्मेदारी दी और कई राज्यों में चुनाव की अगुवाई का जिम्मा दिया। उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में कई सभाएं कीं। युवाओं को उनकी शैली काफी रिझा रही थी। हालांकि, इस बीच एक आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद उनकी सभाएं रोक दी गईं। उनको अपने उत्तराधिकारी और पार्टी के राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर पद से हटा दिया। लोकसभा चुनाव के बाद उनको फिर से दोनों पदों पर बहाल कर दिया। उसी तरह अब ईशान भी पहली बार सार्वजनिक मंच पर दिखे हैं। इससे ये अटकलें तेज हो गई हैं कि क्या वो भी भाई के साथ राजनीति में उतरेंगे? ये चर्चाएं इसलिए भी तेज हैं क्योंकि, पिछले कुछ समय से मायावती का दलित वोट उनसे छिटक रहा है और पार्टी के भविष्य पर बड़ा सवालिया निशान लगा हुआ है। ऐसे में दलित युवाओं को आकर्षित कर पार्टी की जमीन तैयार करने को लेकर पार्टी के भीतर मंथन तेज है कि यदि दो युवा चेहरे पार्टी की राजनीति को आगे बढ़ाते हैं तो उम्मीद जगा सकते हैं? लेकिन क्या यही सच है? आखिर बसपा सुप्रीमो क्या सोच रही हैं?।
भतीजों के लिए नई भूमिका?
जानकारों के अनुसार भी, पार्टी का दलित आधार छिटकने की चर्चाओं को खारिज करने के लिए मायावती उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले अपने दोनों भतीजों को ज़िम्मेदारी देने की योजना बना रही हैं। दिप्रिंट के अनुसार, बीएसपी के एक वरिष्ठ राज्य पदाधिकारी ने बताया “हमारी पार्टी के लिए 2027 के यूपी चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हैं। हमें अपने कार्यकर्ताओं को एकजुट करना होगा और उन्हें यह उम्मीद देनी होगी कि हम ये चुनाव जीत सकते हैं। इसके लिए पार्टी में नया जोश भरना होगा। आकाश का समर्थन करने के लिए हमें किसी ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत है जिस पर आलाकमान का भरोसा हो। इसमें क्या गलत है? राहुल गांधी को प्रियंका का समर्थन है; मुलायम सिंह को शिवपाल का समर्थन है, राजनाथ के दोनों बेटे बीजेपी यूपी इकाई में काम कर रहे हैं…फिर बहन जी इस बारे में क्यों नहीं सोच सकतीं? अगर वे ईशान को कोई ज़िम्मेदारी देती हैं, तो पार्टी कैडर इसका स्वागत करेगा।” खास है कि पिछले साल मई में मायावती ने आकाश को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी और पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक के पद से हटा दिया था, यह कहते हुए कि उन्हें ऐसी महत्वपूर्ण भूमिकाएं संभालने से पहले “परिपक्व” होना होगा। इसके बाद अगले महीने बीएसपी सुप्रीमो ने यू-टर्न लिया और लोकसभा चुनावों में अपनी पार्टी का खाता न खोल पाने के बाद आकाश को पद पर फिर से बहाल कर दिया।
राजनीतिक विश्लेषक भी हैं हैरान
राजनीतिक विश्लेषक शिल्प शिखा सिंह, अशोक चौधरी आदि की लंबी फेहरिस्त है जो हैरान हैं और जिनके अनुसार, बसपा सुप्रीमो मायावती के इस कदम का अंदाज़ा लगाना आसान नहीं है, लेकिन अब उनकी पार्टी को 2027 के चुनावों से पहले एक गंभीर बदलाव की योजना की ज़रूरत है क्योंकि पार्टी का प्रदर्शन लगातार गिर रहा है। लखनऊ के गिरि इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज में सहायक प्रोफेसर ने दिप्रिंट से कहा, “वे अपने दूसरे भतीजे को शामिल करती हैं या नहीं, यह उनकी मर्ज़ी है; इससे भी ज्यादा ज़रूरी है कि जमीन पर उनकी सक्रियता हो। राजनीति में अब कैडर हर जगह परिवार के शीर्ष सदस्यों को स्वीकार करते हैं, लेकिन बीएसपी के मामले में पार्टी के अभियान की कहानी में सुधार की ज़रूरत है।” खास है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में बीएसपी को सिर्फ 2.07 प्रतिशत वोट मिले थे। 2022 के यूपी चुनावों में इसने सिर्फ एक सीट जीती और उत्तरी राज्य में कुल वोटों का सिर्फ 12.9 प्रतिशत ही हासिल किया।
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"यह उत्तर प्रदेश में खिसकते जनाधार को बचाए रखने की नई कवायद है या फिर भतीजे ईशान आनंद की राजनीतिक पारी के बहाने ये बताने की की कोशिश कि बसपा बूढ़ी नहीं हो रही है, बल्कि उसके पास नेतृत्व करने वाले नए युवा नेताओं की ऊर्जा है। ईशान को लांच करने को जहां मायावती की दलित समाज के युवाओं को जोड़ने की कवायद माना जा रहा है। तो वहीं राजनीति के जानकार इसे आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद की दलित युवाओं में बढ़ती पकड़ को थामने की कोशिश भी करार दे रहे हैं। बड़ा सवाल है कि क्या ईशान और आकाश आनंद बसपा के अस्त हो रहे सूरज को फिर से नया प्रकाश दे सकेंगे। दूसरी ओर सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या मायावती ने आकाश आनंद को किनारे करने का मन बना लिया है? क्योंकि आकाश आनंद को मायावती ने जिस जिम्मेदारी के साथ सियासी मैदान में उतारा था, वह उस पर पूरी तरह खरे नहीं उतर पाए, खासकर पार्टी के खिसकते जनाधार को रोकने में। आखिर मायावती सोच क्या रही है?"
जी हां, आकाश के बाद अब ईशान आनंद राजनीति में एंट्री करेंगे? बुआ मायावती के साथ पहली बार मंच पर नजर आए ईशान आनंद 26 साल के हैं और आकाश आनंद से 4 साल छोटे है। ईशान आनंद मायावती के भाई आनंद कुमार के छोटे बेटे हैं। ईशान ने स्कूली शिक्षा नोएडा के समर वैली स्कूल और जेनेसिस ग्लोबल स्कूल से हासिल की है। उसके बाद उन्होंने लंदन से लीगल स्टडीज की पढ़ाई पूरी की है। और फिलहाल वह बिजनेस संभाल रहे हैं। कहा जा रहा है कि वह राजनीति में भाई आकाश आनंद का हाथ बंटा सकते हैं। हालांकि, बसपा सुप्रीमो मायावती ने स्पष्ट किया कि वे ईशान को परिवार के अन्य सदस्यों के साथ लेकर आई थीं क्योंकि वे जन्मदिन के मौके पर उनसे मिलना चाहते थे, लेकिन बीएसपी में भी एक धडा इसे ईशान के लिए “राजनीतिक इंटर्नशिप” की शुरुआत मान रहा है। इन अटकलों को हवा तब मिल गई जब ईशान दूसरे दिन भी मायावती के साथ नजर आए।
मौका 3 दिन पहले लखनऊ में बसपा प्रमुख मायावती के जन्मदिन का था। पहली बार आकाश के साथ उनके छोटे भाई ईशान आनंद भी सार्वजनिक मंच पर हाथ में पेन डायरी लिए दिखे। इससे उस समय चौंक गए जब उन्होंने उत्तर प्रदेश इकाई की समीक्षा बैठक में मायावती के दूसरे भतीजे ईशान आनंद को देखा.
मायावती की प्रेस कांफ्रेंस के दौरान साइड में तीन कुर्सियां लगाई गई थीं। पार्टी के राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद और महासचिव सतीश चंद्र मिश्र के बगल में उनको जगह दी गई। प्रेस कांफ्रेंस से पहले मायावती ने आते ही दोनों भाइयों को बुलाया और अपना आशीर्वाद दिया। इससे सवाल उठना लाजिमी है कि क्या आकाश के बाद अब ईशान भी राजनीति में एंट्री करेंगे? वह कब तक और कितना सक्रिय होंगे? इसके पीछे पार्टी की मंशा क्या है? हालांकि, मायावती ने स्पष्ट किया कि वे ईशान को परिवार के अन्य सदस्यों के साथ लेकर आई थीं क्योंकि वे जन्मदिन के मौके पर उनसे मिलना चाहते थे, लेकिन बीएसपी में एक वर्ग इसे ईशान के लिए “राजनीतिक इंटर्नशिप” की शुरुआत मान रहा है।
पार्टी सूत्र बताते हैं “जब हम सभी ने बहन जी के जन्मदिन के कार्यक्रम में ईशान को देखा, तो लगा कि वे केवल उन्हें बधाई देने आए हैं, लेकिन अब राज्य समीक्षा बैठक में उनकी उपस्थिति राजनीतिक लग रही है। हालांकि, बहन जी ने (कुछ भी) घोषणा नहीं की, लेकिन पार्टी कार्यकर्ता इसे उनकी राजनीतिक ट्रेनिंग की शुरुआत मान रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पार्टी पदाधिकारियों में इसे लेकर चर्चा रही। एक बीएसपी नेता ने बताया कि ईशान की मौजूदगी इसलिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि “सभी जानते हैं कि बहन जी की बैठक में उनकी सहमति के बिना कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता। बीएसपी नेता ने कहा, ईशान भी किसी अन्य बीएसपी कार्यकर्ता की तरह डायरी और पेन लेकर आए थे। इसलिए, इसका मतलब साफ है कि उन्हें पार्टी में आधिकारिक रूप से शामिल करने की कोई योजना है। हो सकता है, बाद में इसकी घोषणा हो।
इससे पहले आकाश आनंद भी इसी तरह 2017 में मायावती के साथ नजर आए थे। सहारनपुर हिंसा के दौरान मायावती जब वहां गई थीं, तो आकाश आनंद सबसे पहले उनके साथ नजर आए थे। उसके बाद 2017 में ही पार्टी की एक बैठक में वह नजर आए थे। उनका मायावती ने सभी से परिचय कराया था। तब से लगातार वह आकाश को राजनीति के लिए तैयार करती रहीं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उनको पहले राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और फिर राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर बनाया। साथ ही उनको अपना उत्तराधिकारी भी घोषित किया। यूपी से बाहर के राज्यों में उनको संगठन की जिम्मेदारी दी और कई राज्यों में चुनाव की अगुवाई का जिम्मा दिया। उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में कई सभाएं कीं। युवाओं को उनकी शैली काफी रिझा रही थी। हालांकि, इस बीच एक आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद उनकी सभाएं रोक दी गईं। उनको अपने उत्तराधिकारी और पार्टी के राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर पद से हटा दिया। लोकसभा चुनाव के बाद उनको फिर से दोनों पदों पर बहाल कर दिया। उसी तरह अब ईशान भी पहली बार सार्वजनिक मंच पर दिखे हैं। इससे ये अटकलें तेज हो गई हैं कि क्या वो भी भाई के साथ राजनीति में उतरेंगे? ये चर्चाएं इसलिए भी तेज हैं क्योंकि, पिछले कुछ समय से मायावती का दलित वोट उनसे छिटक रहा है और पार्टी के भविष्य पर बड़ा सवालिया निशान लगा हुआ है। ऐसे में दलित युवाओं को आकर्षित कर पार्टी की जमीन तैयार करने को लेकर पार्टी के भीतर मंथन तेज है कि यदि दो युवा चेहरे पार्टी की राजनीति को आगे बढ़ाते हैं तो उम्मीद जगा सकते हैं? लेकिन क्या यही सच है? आखिर बसपा सुप्रीमो क्या सोच रही हैं?।
भतीजों के लिए नई भूमिका?
जानकारों के अनुसार भी, पार्टी का दलित आधार छिटकने की चर्चाओं को खारिज करने के लिए मायावती उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले अपने दोनों भतीजों को ज़िम्मेदारी देने की योजना बना रही हैं। दिप्रिंट के अनुसार, बीएसपी के एक वरिष्ठ राज्य पदाधिकारी ने बताया “हमारी पार्टी के लिए 2027 के यूपी चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हैं। हमें अपने कार्यकर्ताओं को एकजुट करना होगा और उन्हें यह उम्मीद देनी होगी कि हम ये चुनाव जीत सकते हैं। इसके लिए पार्टी में नया जोश भरना होगा। आकाश का समर्थन करने के लिए हमें किसी ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत है जिस पर आलाकमान का भरोसा हो। इसमें क्या गलत है? राहुल गांधी को प्रियंका का समर्थन है; मुलायम सिंह को शिवपाल का समर्थन है, राजनाथ के दोनों बेटे बीजेपी यूपी इकाई में काम कर रहे हैं…फिर बहन जी इस बारे में क्यों नहीं सोच सकतीं? अगर वे ईशान को कोई ज़िम्मेदारी देती हैं, तो पार्टी कैडर इसका स्वागत करेगा।” खास है कि पिछले साल मई में मायावती ने आकाश को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी और पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक के पद से हटा दिया था, यह कहते हुए कि उन्हें ऐसी महत्वपूर्ण भूमिकाएं संभालने से पहले “परिपक्व” होना होगा। इसके बाद अगले महीने बीएसपी सुप्रीमो ने यू-टर्न लिया और लोकसभा चुनावों में अपनी पार्टी का खाता न खोल पाने के बाद आकाश को पद पर फिर से बहाल कर दिया।
राजनीतिक विश्लेषक भी हैं हैरान
राजनीतिक विश्लेषक शिल्प शिखा सिंह, अशोक चौधरी आदि की लंबी फेहरिस्त है जो हैरान हैं और जिनके अनुसार, बसपा सुप्रीमो मायावती के इस कदम का अंदाज़ा लगाना आसान नहीं है, लेकिन अब उनकी पार्टी को 2027 के चुनावों से पहले एक गंभीर बदलाव की योजना की ज़रूरत है क्योंकि पार्टी का प्रदर्शन लगातार गिर रहा है। लखनऊ के गिरि इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज में सहायक प्रोफेसर ने दिप्रिंट से कहा, “वे अपने दूसरे भतीजे को शामिल करती हैं या नहीं, यह उनकी मर्ज़ी है; इससे भी ज्यादा ज़रूरी है कि जमीन पर उनकी सक्रियता हो। राजनीति में अब कैडर हर जगह परिवार के शीर्ष सदस्यों को स्वीकार करते हैं, लेकिन बीएसपी के मामले में पार्टी के अभियान की कहानी में सुधार की ज़रूरत है।” खास है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में बीएसपी को सिर्फ 2.07 प्रतिशत वोट मिले थे। 2022 के यूपी चुनावों में इसने सिर्फ एक सीट जीती और उत्तरी राज्य में कुल वोटों का सिर्फ 12.9 प्रतिशत ही हासिल किया।
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