अब तक ये कानून मुख्य रूप से हिंदू, जैन, सिख और बीफ न खाने वाले समुदायों के इलाकों में या किसी भी मंदिर या वैष्णव मठ के 5 किमी के दायरे में गोमांस और गोमांस उत्पादों की खरीद-बिक्री पर रोक लगाता था।
साभार : पीटीआई
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने बुधवार को राज्य में सार्वजनिक रूप से गोमांस खाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा की जिसमें रेस्तरां और सामुदायिक समारोह भी शामिल हैं।
यह निर्णय कैबिनेट बैठक में लिया गया। इस बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए सरमा ने दावा किया कि यह कदम कांग्रेस नेताओं के कुछ हालिया बयानों पर चर्चा के बाद उठाया गया, जिन्होंने भाजपा पर मुस्लिम बहुल सीट समागुरी में बीफ से मतदाताओं को लुभाने का आरोप लगाया था। इस सीट को भाजपा ने पिछले महीने उपचुनाव में जीता लिया।
इस निर्णय के अनुसार, किसी भी होटल, रेस्तरां या सामुदायिक समारोहों में गोमांस नहीं परोसा जा सकता है। सीएम के अनुसार, इसके प्रावधान मौजूदा असम मवेशी संरक्षण अधिनियम, 2021 में जोड़े जाएंगे।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, असम में वर्तमान में कानून “मुख्य रूप से हिंदू, जैन, सिख और बीफ न खाने वाले अन्य समुदायों के क्षेत्रों में या किसी भी मंदिर या वैष्णव मठ के 5 किलोमीटर के दायरे में बीफ और बीफ उत्पादों की बिक्री और खरीद पर रोक लगाता है।
सरमा ने बुधवार को मीडिया से कहा, “पिछले कुछ दिनों में कांग्रेस अध्यक्ष भूपेन बोरा और पार्टी नेता रकीबुल हुसैन अलग-अलग जगहों पर बीफ को लेकर नाखुशी जाहिर करते रहे हैं और लोगों को यह बताते रहे हैं कि वे भी बीफ नहीं चाहते हैं। हमने आज की कैबिनेट बैठक में उनके बयानों पर बिंदुवार चर्चा की और हमने देखा कि बीफ पर हमारा मौजूदा कानून काफी मजबूत है, लेकिन इसमें इस बात का प्रावधान नहीं है कि सामुदायिक समारोहों या होटलों या रेस्तरां में बीफ खाया जा सकता है या नहीं।”
उन्होंने कहा, "हम अपने अधिनियम में इन पंक्तियों पर नए प्रावधान डालेंगे और मुझे लगता है कि ये प्रावधान हमारे अधिनियम को मजबूत करेंगे और रकीबुल हुसैन और भूपेन बोरा की मांगों को आगे बढ़ाएंगे। इसलिए, हमें उम्मीद है कि कांग्रेस हमारा समर्थन करेगी।"
असम मवेशी संरक्षण अधिनियम कानून शुरू में सभी मवेशियों (गाय, बैल, भैंस) पर लागू होना था। कानून बनने से पहले भैंसों को परिभाषा से हटा दिया गया था। हालांकि यह किसी भी परिस्थिति में गाय के वध पर रोक लगाता है, वहीं अन्य मवेशियों का वध उपयुक्त प्रमाण पत्र के तहत किया जा सकता है।
पिछले महीने भाजपा के दिप्लू रंजन सरमा ने कांग्रेस के तंजील हुसैन को समागुरी में 24,501 मतों से हराया था। कांग्रेस के लिए यह हार एक बड़ा झटका था। तंजील के पिता और पार्टी के दिग्गज रकीबुल हुसैन ने इस साल की शुरुआत में लोकसभा के लिए चुने जाने से पहले लगातार पांच बार इस सीट पर कब्जा किया था।
इस हार के बाद रकीबुल ने उत्तर और ऊपरी असम के विभिन्न हिस्सों का दौरा किया और आरोप लगाया कि सरमा और भाजपा ने गोमांस की पेशकश और बंगाली मुस्लिम मतदाताओं को बरगलाकर कर हिंदुत्व के साथ विश्वासघात किया है जिसका वे दावा करते हैं। लखीमपुर के रंगनाडी में असम कांग्रेस प्रमुख भूपेन बोरा की मौजूदगी में बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह "जातीय असमिया समुदायों" के साथ भी विश्वासघात है जो उत्तर और ऊपरी असम में रहते हैं और सरमा को दोहरे चेहरे वाला बताया।
इन आरोपों पर सरमा ने कुछ नहीं किया, बल्कि इसके बजाय सीएम ने रविवार को हुसैन की टिप्पणियों को पलट दिया। उन्होंने कहा, उनकी सरकार राज्य में गोमांस प्रतिबंध लगाने के लिए तैयार है, अगर कांग्रेस इसकी मांग करती है।
इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट किया था कि असम कांग्रेस नेतृत्व का एक वर्ग इस लाइन से असहज था और उसे उम्मीद थी कि भाजपा इसका इस्तेमाल उनके खिलाफ कर सकती है। सरमा की घोषणा के बाद कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी मुश्किल स्थिति में थी।
नेता ने कहा, "ये बातें बोलकर हम इसी स्थिति में आ गए हैं। पार्टी अध्यक्ष को सांसद [धुबरी के सांसद रकीबुल] के इन बयानों का समर्थन करने की कोई जरूरत नहीं थी। हमें सांप्रदायिक मामलों से दूर रहना चाहिए। अब हिंदू मतदाताओं का एक वर्ग खुश होगा, जबकि मुस्लिम दोनों से नाखुश होंगे। यह सरमा का सिर्फ एक राजनीतिक बयान है।"
ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के महासचिव अमीनुल इस्लाम ने भी इसे "राजनीतिक ड्रामा" कहा।
उन्होंने कहा, "हम कैबिनेट के इस फैसले की निंदा करते हैं, यह पूरी तरह से व्यक्तिगत मामला है जो राज्य की लगभग 40 प्रतिशत आबादी को प्रभावित करता है... सीएम ने कांग्रेस को झटका देने के लिए एक मुद्दा ढूंढ लिया और उस पर कूद पड़े और पंचायत चुनावों और 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले एक राजनीतिक खेल खेलने की कोशिश कर रहे हैं। गाय भाजपा का क्षेत्र है, उन्होंने इसे क्यों उठाया और भाजपा से इस मुद्दे को छीनने की कोशिश की।" 2011 की जनगणना के अनुसार, असम की 34.22 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है जबकि 3.74 प्रतिशत ईसाई हैं।
साभार : पीटीआई
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने बुधवार को राज्य में सार्वजनिक रूप से गोमांस खाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा की जिसमें रेस्तरां और सामुदायिक समारोह भी शामिल हैं।
यह निर्णय कैबिनेट बैठक में लिया गया। इस बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए सरमा ने दावा किया कि यह कदम कांग्रेस नेताओं के कुछ हालिया बयानों पर चर्चा के बाद उठाया गया, जिन्होंने भाजपा पर मुस्लिम बहुल सीट समागुरी में बीफ से मतदाताओं को लुभाने का आरोप लगाया था। इस सीट को भाजपा ने पिछले महीने उपचुनाव में जीता लिया।
इस निर्णय के अनुसार, किसी भी होटल, रेस्तरां या सामुदायिक समारोहों में गोमांस नहीं परोसा जा सकता है। सीएम के अनुसार, इसके प्रावधान मौजूदा असम मवेशी संरक्षण अधिनियम, 2021 में जोड़े जाएंगे।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, असम में वर्तमान में कानून “मुख्य रूप से हिंदू, जैन, सिख और बीफ न खाने वाले अन्य समुदायों के क्षेत्रों में या किसी भी मंदिर या वैष्णव मठ के 5 किलोमीटर के दायरे में बीफ और बीफ उत्पादों की बिक्री और खरीद पर रोक लगाता है।
सरमा ने बुधवार को मीडिया से कहा, “पिछले कुछ दिनों में कांग्रेस अध्यक्ष भूपेन बोरा और पार्टी नेता रकीबुल हुसैन अलग-अलग जगहों पर बीफ को लेकर नाखुशी जाहिर करते रहे हैं और लोगों को यह बताते रहे हैं कि वे भी बीफ नहीं चाहते हैं। हमने आज की कैबिनेट बैठक में उनके बयानों पर बिंदुवार चर्चा की और हमने देखा कि बीफ पर हमारा मौजूदा कानून काफी मजबूत है, लेकिन इसमें इस बात का प्रावधान नहीं है कि सामुदायिक समारोहों या होटलों या रेस्तरां में बीफ खाया जा सकता है या नहीं।”
उन्होंने कहा, "हम अपने अधिनियम में इन पंक्तियों पर नए प्रावधान डालेंगे और मुझे लगता है कि ये प्रावधान हमारे अधिनियम को मजबूत करेंगे और रकीबुल हुसैन और भूपेन बोरा की मांगों को आगे बढ़ाएंगे। इसलिए, हमें उम्मीद है कि कांग्रेस हमारा समर्थन करेगी।"
असम मवेशी संरक्षण अधिनियम कानून शुरू में सभी मवेशियों (गाय, बैल, भैंस) पर लागू होना था। कानून बनने से पहले भैंसों को परिभाषा से हटा दिया गया था। हालांकि यह किसी भी परिस्थिति में गाय के वध पर रोक लगाता है, वहीं अन्य मवेशियों का वध उपयुक्त प्रमाण पत्र के तहत किया जा सकता है।
पिछले महीने भाजपा के दिप्लू रंजन सरमा ने कांग्रेस के तंजील हुसैन को समागुरी में 24,501 मतों से हराया था। कांग्रेस के लिए यह हार एक बड़ा झटका था। तंजील के पिता और पार्टी के दिग्गज रकीबुल हुसैन ने इस साल की शुरुआत में लोकसभा के लिए चुने जाने से पहले लगातार पांच बार इस सीट पर कब्जा किया था।
इस हार के बाद रकीबुल ने उत्तर और ऊपरी असम के विभिन्न हिस्सों का दौरा किया और आरोप लगाया कि सरमा और भाजपा ने गोमांस की पेशकश और बंगाली मुस्लिम मतदाताओं को बरगलाकर कर हिंदुत्व के साथ विश्वासघात किया है जिसका वे दावा करते हैं। लखीमपुर के रंगनाडी में असम कांग्रेस प्रमुख भूपेन बोरा की मौजूदगी में बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह "जातीय असमिया समुदायों" के साथ भी विश्वासघात है जो उत्तर और ऊपरी असम में रहते हैं और सरमा को दोहरे चेहरे वाला बताया।
इन आरोपों पर सरमा ने कुछ नहीं किया, बल्कि इसके बजाय सीएम ने रविवार को हुसैन की टिप्पणियों को पलट दिया। उन्होंने कहा, उनकी सरकार राज्य में गोमांस प्रतिबंध लगाने के लिए तैयार है, अगर कांग्रेस इसकी मांग करती है।
इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट किया था कि असम कांग्रेस नेतृत्व का एक वर्ग इस लाइन से असहज था और उसे उम्मीद थी कि भाजपा इसका इस्तेमाल उनके खिलाफ कर सकती है। सरमा की घोषणा के बाद कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी मुश्किल स्थिति में थी।
नेता ने कहा, "ये बातें बोलकर हम इसी स्थिति में आ गए हैं। पार्टी अध्यक्ष को सांसद [धुबरी के सांसद रकीबुल] के इन बयानों का समर्थन करने की कोई जरूरत नहीं थी। हमें सांप्रदायिक मामलों से दूर रहना चाहिए। अब हिंदू मतदाताओं का एक वर्ग खुश होगा, जबकि मुस्लिम दोनों से नाखुश होंगे। यह सरमा का सिर्फ एक राजनीतिक बयान है।"
ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के महासचिव अमीनुल इस्लाम ने भी इसे "राजनीतिक ड्रामा" कहा।
उन्होंने कहा, "हम कैबिनेट के इस फैसले की निंदा करते हैं, यह पूरी तरह से व्यक्तिगत मामला है जो राज्य की लगभग 40 प्रतिशत आबादी को प्रभावित करता है... सीएम ने कांग्रेस को झटका देने के लिए एक मुद्दा ढूंढ लिया और उस पर कूद पड़े और पंचायत चुनावों और 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले एक राजनीतिक खेल खेलने की कोशिश कर रहे हैं। गाय भाजपा का क्षेत्र है, उन्होंने इसे क्यों उठाया और भाजपा से इस मुद्दे को छीनने की कोशिश की।" 2011 की जनगणना के अनुसार, असम की 34.22 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है जबकि 3.74 प्रतिशत ईसाई हैं।