बनारस शहर में बढ़ती सांप्रदायिकता का गहरा असर पड़ा है। हिंदू राष्ट्रवाद की बढ़ती राजनीति और ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद ने इस इलाके की सामाजिक संरचना को हिला कर रख दिया है।
बनारस। हथकरघे के पास बैठे तलत महमूद के माथे से पसीने की एक बूंद गिरती है, जब वह अपनी स्थिति को समझाने के लिए रुकते हैं। 39 वर्षीय महमूद, बनारस के मदनपुरा इलाके में रहते हैं। पिछड़े डेढ़ दशक से वह अपने हाथ से बनारसी साड़ियां बुनते हैं। महमूद कहते हैं, "ज्ञानवापी का मसला जब से उछाला जा रहा है, तब से हमेशा धुकधुकी लगी रहती है। क्या पता कब क्या हो जाए और हमें अपने हथकरघे को बंद करना पड़े? पिछले 25 साल से बनारसी साड़ियों में मंदी का दौर चल रहा है। हाल के कुछ सालों में हमारा काम कभी भी इतना ठप नहीं हुआ, जितना आज हो गया है।"
महमूद बनारस शहर के कुछ बचे-खुचे उन बुनकरों में शामिल हैं जो हाथ से साड़ियां बुनते हैं। वाराणसी, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट और हिंदुओं के लिए धार्मिक महत्व का शहर माना जाता है, पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्थित है। इस शहर में भगवान शिव का मंदिर है तो सारनाथ में प्राचीन बौद्ध स्थल भी है। इसी शहर में मध्यकालीन युग की तमाम मस्जिदें भी हैं। पिछले दो-तीन सालों में यह शहर बढ़ते सांप्रदायिकता से बुरी तरह प्रभावित हुआ है, जिसमें देशभर में बढ़ती हिंदू राष्ट्रवादी राजनीति और मध्यकालीन ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रहे कानूनी विवाद ने इस क्षेत्र की सामाजिक संरचना पर गहरा असर डाला है।
इस सब के बीच, वाराणसी अब भी अपने विश्व प्रसिद्ध बुनकरों के एक बड़े समुदाय के लिए जाना जाता है, जो शानदार ब्रोकेड कपड़े बुनते हैं, जिन्हें आमतौर पर 'बनारसी' कहा जाता है। बनारसी रेशमी साड़ियों की बुनकरी का विस्तर 16वीं से 17वीं सदी के बीच हुआ। इधर बीच, बनारस शहर में बढ़ती सांप्रदायिकता का गहरा असर पड़ा है। हिंदू राष्ट्रवाद की बढ़ती राजनीति और ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद ने इस इलाके की सामाजिक संरचना को हिला कर रख दिया है।
सांप्रदायिकता का संकट
20वीं सदी तक बनारसी साड़ियां शादियों और खास मौकों का हिस्सा हुआ करती थीं। साल 1980 के बाद से पावरलूम मशीनों ने हथकरघा बुनकरों का काम छीनना शुरू कर दिया। सस्ते नकली रेशम और चीनी धागों ने असली रेशम की जगह ले ली, जिससे महमूद जैसे बुनकरों की मुश्किलें बढ़ गईं। रही-सही कसर सांप्रदायिकता ने पूरी कर दी। यह दर्द सिर्फ महमूद का नहीं, बल्कि बनारस के उन सभी मुस्लिम बुनकर फनकारों का है जो सांप्रदायिक वजहों से नए तरह के संकट से गुजर रहे हैं। महमूद जैसे कारीगर इस बदलाव को अपनी आंखों से देख रहे हैं, और उनके लिए यह सिर्फ काम का नुकसान नहीं है, बल्कि उनकी विरासत भी धीरे-धीरे खत्म हो रही है।
महमूद मदनपुरा में जिस जगह बनारसी साड़ियों की बुनाई उससे कुछ ही दूरी पर है रेवड़ी तालाब। इसी मोहल्ले में पिछले हफ्ते प्रेम कुमार मांझी नामक एक युवक ने मुस्लिम समुदाय के लोगों पर ताबड़-तोड़ हमले शुरू कर दिए। शाम को वह फावड़ा लेकर पहुंचा और धर्म विशेष के लोगों का जिक्र करते हुए उसने कहा कि मैं किसी को जिंदा नहीं छोड़ूंगा। उसके बाद सरेराह एक-एक कर पांच मुस्लिमों पर फावड़े से हमला करते हुए उन्हें लहूलुहान कर दिया। घटना से गुस्साये सैकड़ों लोगों ने भेलूपुर थाने पहुंच कर हंगामा शुरू कर दिया। समूची स्थिति दंगे की थी और स्थानीय लोगों ने धैर्य का परिचय देते हुए बात आगे बढ़ने से रोक दिया। आरोपी नेपाल के डांगरा जिला के मोरंग गांव का रहने वाला है। वह बनारस क्यों और किस वजह से पहुंचा, इस बारे में पुलिस ने अभी तक स्थिति साफ नहीं की है।
रेवड़ी तालाब के मोहम्मद अजीम कुरैशी कहते हैं, "मेरे भाई अंसार अहमद (55) अपने घर के नीचे मुर्गा की दुकान में कुर्सी पर बैठे थे। उसी दौरान फावड़ा लेकर आए युवक ने उनके सिर पर हमला बोल दिया और वह बुरी तरह जख्मी हो गए। इसके बाद कुछ दूरी पर खड़े मिर्जापुर के डिगिया निवासी शाहिद पर भी उसने फावड़े से हमला किया। फिर उसने नई बस्ती, रामापुरा के इश्तियाक अहमद, अरशद जमाल और नागपुर निवासी तनवीर अशरफ पर हावड़े से हमला किया, जिससे अफरातफरी मच गई। बाद में लोगों ने फावड़ा लिए हुए युवक को घेर लिया। सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस ने फावड़ा लिए हुए युवक को गिरफ्तार कर लिया।"
घायलों में अंसार और शाहिद की हालत गंभीर है, जबकि तीन अन्य को प्राथमिक उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई। घटना को देखते हुए एहतियातन रेवड़ी तालाब इलाके में पुलिस और पीएसी के जवान तैनात किए गए हैं। अभियुक्त प्रेम कुमार मांझी एक हफ्ते पहले नेपाल से बनारस आया था। कई दिन से वह भारत के अलग-अलग राज्यों में घूम रहा था। बनारस कमिश्नरेट पुलिस ने जांच के बाद घिसा-पिटा जवाब दिया कि युवक मानसिक रूप से बीमार है। हमले में पांच लोगों को फावड़ा लगा, जिनमें से चार को ज्यादा चोट लगी है। अंसार अहमद और मोहम्मद शाहीद की हालत अभी तक चिंताजनक बनी हुई है।
हमले के पीछे बड़ी साजिश
ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव सैयद मोहम्मद यासीन इस घटना को दूसरे परिप्रेक्ष में देखते हैं। वह कहते हैं, "रेवड़ी तालाब की वारदात कोई साधारण घटना नहीं है। इसके पीछे के निहितार्थ कुछ और हैं। कुछ लोग बनारस में सांप्रदायिकता का जहर घोलना चाहते हैं। इस शहर में दंगा कराने की कई बार साजिशें रची गईं, लेकिन गंगा-जमुनी तहजीब में गहरी आस्था रखने वालों ने सांप्रदायिक ताकतों के खतरनाक मंसूबों को सफल नहीं होने दिए। सांप्रदायिकता का जहर घोलने वाली ताकतें संभवतः बनारसी साड़ी उद्योग और इससे जुड़े कारीगरों को भुखमरी की कगार पर खड़ा करने के लिए काफी दिनों लगातार कोशिशें कर रहे हैं।"
यासीन कहते हैं, "बनारस के सिगरा थाने से कुछ ही दूरी पर हिन्दू रक्षा समिति के तत्वावधान में 22 अगस्त, 2024 को निकाली गई आक्रोश रैली में मुसलमानों को टारगेट करके हिंसक नारेबाजी की गई। इस रैली का नेतृत्व शहर दक्षिण से विधायक नीलकंठ तिवारी समेत बीजेपी के कई नेता कर रहे थे। रैली में पुलिस भी थी। मुस्लिमों को निशाना बनाकर हिंसक नारेबाजी करने वालों के खिलाफ पुलिस ने आज तक कोई कार्रवाई नहीं की। इस रैली में युवाओं का हुजूम मुसलमानों के खिलाफ हिंसक नारेबाजी करते हुए दिख रहा है। मुसलमानों को निशाना बनाकर उन्हें काटने की धमकी दी जा रही थी और उन्हें राम-राम कहने की हिदायत भी दी जा रही थी।"
"हिन्दूवादी संगठनों के लोग चाहते हैं कि हम अपना धैर्य खो दें और जिससे वो फायदा उठा सकें। बनारसियों को उकसाने की यह कोई नई घटना नहीं है। अब से पहले यहां बहुत कुछ हो चुका है। आखिर हम कितनी मर्तबा पुलिस अफसरों को आगाह करते रहेंगे? हम कुछ बोल देंगे तो वो अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे, इसलिए चुप होकर आराजकतत्वों का नंगा-नाच देख रहे हैं।"
क्यों चुप्पी साध लेती है पुलिस?
यासीन की बातों में काफी दम नजर आता है। आक्रोश रैली में मुसलमानों के खिलाफ हिंसक नारेबाजी का वीडियो वायरल होने के बावजूद बनारस कमिश्नरेट पुलिस अभी तक चुप्पी साधे हुए है। गुनहगारों को पकड़ने में वो इसलिए भी दिलचस्पी नहीं दिखा रही है, क्योंकि हुल्लड़ मचाते और हिंसक नारेबाजी करते युवाओं के हुजूम में बीजेपी विधायक नीलकंठ तिवारी और पार्टी के कई नेताओं के चेहरे साफ-साफ दिखाई दे रहे हैं। इन वीडियो में कई लोग "जब मु&*#….काटे जाएंगे, राम-राम चिल्लाएंगे" नारा लगाते हुए दिख रहे हैं। नारा लगाने के साथ ये लोग हाथ से काटने का इशारा भी कर रहे हैं। कुछ लोग इस वीडियो को ट्विटर, फ़ेसबुक और व्हाट्सऐप पर शेयर कर रहे हैं।
हालांकि बाद में बीजेपी विधायक नीलकंठ तिवारी ने सफाई दी और कहा, "वीडियो में दिख रहे लोगों को न तो मैं जानता हूं, न तो इनमें से किसी से मिला हूं और न तो इन्हें बुलाया गया था। अगर यह वीडियो सही है, तो इसमें शामिल लोगों के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई हो। मैं इन युवाओं से पहले नहीं मिला। मैं यह भी नहीं जानता कि किसने उत्तेजक नारेबाज़ी को रिकॉर्ड किया था। यदि वीडियो असत्य है तो इसे सोशल मीडिया में शेयर करने वालों के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई की जाए।"
मोहम्मद यासीन कहते हैं, "बनारस में कभी नंगी तलवारें लहराई जाती हैं तो कभी मुसलमानों को एलानिया तौर पर गालियां दी जाती हैं और अपशब्द बोले जाते हैं और हिंसक नारे लगाए जाते हैं। हमें लगता है कि हमलावर मोहरा रहा होगा। असली मंशा शहर में दंगा कराने की रही होगी। अब तो बनारस में कुछ भी संभव है। कोई तथाकथित संत श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के गेट पर बैठकर मुस्लिम समुदाय के लोगों को खुलेआम गालियां देता है। कई बार पुलिस को लिखित शिकायत दे चुके हैं, लेकिन आरोपितों के खिलाफ आजतक कोई कार्रवाई नहीं हुई। नंगी तलवारें भांजने और धार्मिक उन्माद पैदा करने के लिए नारे लगाने वालों के खिलाफ एक्शन लेने से पुलिस के हाथ क्यों कांप रहे हैं और योगी सरकार की पुलिस इस मामले में क्यों सोई हुई है?"
पलायन की तैयारी
पहले भी हुई थी नारेबाज़ी
इससे पहले ‘हिन्दू युवा वाहिनी’ और ‘त्रिशक्ति सेवा फाउंडेशन’ ने हिन्दू नववर्ष की पूर्व संध्या पर 08 अप्रैल 2024 की शाम बनारस शहर के मैदागिन से जुलूस और शोभायात्रा निकाला था। इस जुलूस में शामिल ‘हियुवा’ से जुड़े कार्यकर्ता नंगी तलवारें भांज रहे थे और उस समय भी धार्मिक व उत्तेजक नारे लगाए गए थे। नंगी तलवारें भांजते और उत्तेजक नारे लगाते हुए भगवा गमछा डाले कार्यकर्ता श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के गेट नंबर-चार (ज्ञानवापी क्रासिंग) के पास पहुंचे तो वहां नारेबाजी तेज हो गई। जुलूस में शामिल लोगों का नारा था, "एक धक्का और दो-ज्ञानवापी तोड़ दो…।"
अजीब बात यह है कि पुलिस और खुफिया एजेंसियों के सामने काफी देर तक नारेबाजी, हंगामा और नंगी तलवारें भांजी जाती रहीं, लेकिन किसी ने ऐसा करने से रोकने की हिम्मत नहीं जुटाई। पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। हिन्दू युवा वाहिनी से जुड़े कई मनबढ़ युवकों ने 07 अप्रैल 2024 को श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के समीपवर्ती गोदौलिया चौराहे पर दशाश्वमेध थाने के एक दरोगा आनंद प्रकाश को लात-घूसों से पीटा, गाली-गलौच और धक्का-मुक्की की थी। भगवा गमछा डाले अराजकतत्वों ने दरोगा के सीने पर लगा बैज और कंधे पर लगे स्टार तक को नोच डाला था। साथ ही सरकारी गाड़ी को क्षतिग्रस्त कर दिया।
अचरज की बात यह रही कि पुलिस ने जिन पांच अभियुक्तों को संगीन धाराओं में गिरफ्तार किया था, उन्हें कुछ ही घंटों के अंदर थाने से ही छोड़ देना पड़ा। इससे पहले 02 जनवरी 2022 को बनारस के मुस्लिम बहुल क्षेत्र लल्लापुरा, कोयलाबाजार, ज्ञानवापी मोड़ समेत शहर के कई संवेदनशील इलाकों में ‘हिन्दू युवा वाहिनी’ के कार्यकर्ताओं ने अपत्तिजनक नारे लगाए थे। कुछ स्थानों पर नंगी तलवारें लहराई गईं, जिससे शहर में सनसनी फैल गई थी।
वो चाहते हैं धैर्य खो दें मुस्लिम
बनारस पुलिस की चुप्पी पर सवाल खड़ा होना लाजिमी है। इसकी बड़ी वजह यह है कि बनारस शहर में ज्यादातर जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। पुलिस चाहती तो हिंसक नारेबाजी और दंगा कराने की साजिश रचने वालों को सीसीटीवी फ़ुटेज और फ़ेशियल रिकॉग्नीशन सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल करके उन्हें बेनकाब कर सकती थी। बनारस में पीएनएन 24 न्यूज पोर्टल चलाने वाले के वरिष्ठ पत्रकार तारिक आजमी कहते हैं, “हाल के दिनों में बनारस में कहीं नंगी तलवारें भांजी गई तो कभी हिंसक नारेबाजी की गई, लेकिन पुलिस के कामकाज और उसकी जांच के तरीके हमेशा “हास्यास्पद और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना” ही रहे। उन्मादियों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई न किया जाना प्रशासन की अक्षमता को उजागर करता है।"
तारिक यह भी कहते हैं, "मुसलमानों को निशाना बनाकर हमला करना और उत्तेजक जयकारा लगाया जाना संविधान विरोधी कार्य है। इस मामले में धर्म, मूलवंश, भाषा, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, इत्यादि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता का संप्रवर्तन और आपसी सौहार्द्र के माहौल पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले कानूनों के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए। बोले गए या लिखे गए शब्दों या संकेतों के द्वारा विभिन्न धार्मिक, भाषाई या जातियों और समुदायों के बीच सौहार्द्र बिगाड़ना या शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएं पैदा करना संगीन अपराध की श्रेणी में आता है। इस तरह के मामलों में धारा 153ए आईपीसी के साथ अन्य संगीन धाराओं के तहत कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन पुलिस हर बार नई कहानियां गढ़कर मामले का पटाक्षेप कर देती है।"
ये है बीजेपी का पुराना खेल
वरिष्ठ पत्रकार राजीव मौर्य का कहना है, “जब धर्म और राजनीति को आपस में मिलाया जाता है, तो न्याय की सीमाएं धुंधली हो जाती हैं। हम सच बोलें तो हमें देशद्रोही करार दिया जाता है, जबकि वे कुछ भी कहें, तो उन पर कोई आंच नहीं आती। असलियत यह है कि बीजेपी को यूपी में चुनाव लड़ने का डर सता रहा है।"
राजीव बताते हैं कि, "सिर्फ धर्म ही ऐसा सहारा है जिसके बल पर बीजेपी अपनी राजनीतिक पकड़ बनाए रख सकती है। इसी कारण बनारस की आक्रोश रैली में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने वाले वक्तव्य दिए गए। यह सब बीजेपी के नेताओं और प्रमुख चेहरों की उपस्थिति में उनके इशारे पर हुआ।"
"उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक बार आगरा में खुले मंच से कहा था कि जो बंटेंगे, वो कटेंगे। इसका नतीजा यह हुआ कि बनारस में बीजेपी के समर्थक कभी हिंसक नारे लगाते हैं, तो कभी तलवारें लहराते हैं। साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे थे, तब उन्होंने धर्म और विकास दोनों की बात की थी। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद ज्ञानवापी मस्जिद के मुद्दे पर कई मुकदमे दायर किए गए। बीजेपी आज भी 1980 के दशक में आरएसएस द्वारा तैयार किए गए एजेंडे पर ही चल रही है, लेकिन जनता समय-समय पर इन पुराने मुद्दों को भूल जाती है। धर्म बीजेपी के लिए वही संजीवनी है, जिसके सहारे वह राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत करती रही है। असल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए बनारस में जानबूझकर हिंसक नारेबाजी कराई जाती है। डबल इंजन की बीजेपी सरकार में न तो कानून के रक्षक सुरक्षित हैं, न ही आम लोग।"
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी को लगता है कि बीजेपी के लोग यह भूल गए हैं कि बनारस कबीर और नजीर का शहर है। इस शहर की गंगा-जमुनी तहजीब को जिस तरह मसला जा रहा है उसके दूरगामी नजीजे भयावह हो सकते हैं। वह कहते हैं, "मुसलमानों को निशाना बनाकर हमला करना, कभी इस समुदाय के लोगों को सरेआम गालिया देना, हिंसक नारे लगाना यूं ही संभव नहीं है। यह सोची–समझी राजनीति का नतीजा है। मुस्लिम समुदाय के लोगों को पहले काटने की धमकी दी गई और अब उसे अंजाम दे दिया गया। बीजेपी चाहे लाख कोशिश कर ले, बनारस के अमनपसंद लोग इस शहर को दंगे में झुलसने नहीं देंगे।"
"धार्मिक उन्माद फैलाना भाजपा का पुराना एजेंडा रहा है। बनारस में भड़काऊ नारेबाजी व विवादित भाषण बीजेपी और उनके अनुषांगिक संगठनों की सोची-समझी साजिश का नतीजा है। सभी को मालूम है कि हरिद्वार की धर्म संसद में भाजपाई संतों ने जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खिलाफ जहर उगला तब भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। जब भी कोई चुनाव नजदीक आता है, हिन्दू आतंकवाद सामने आने लगता है। यूपी में विधानसभा की कई सीटों पर उप चुनाव होने वाला है और योगी सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। जिस सूबे के मुखिया धार्मिक ताने-बाने में हों, उनके अनुषांगिक संगठन के लोग हिंसक नारेबाजी कर रहे हैं और कोई फावड़े से हमला करता है इसके अंदर सांप्रदायिकता छिपी हो तो यह कोई हैरत की बात नहीं है।"
महंत राजेंद्र कहते हैं, "बनारस का हर आदमी जानता है कि हिंसा और समुदाय विशेष के लोगों के खिलाफ हिंसक नारेबाजी से आतंक का संदेश निकलता है, अहिंसा का नहीं। सनातन हिन्दू धर्म में उग्रवाद के लिए कोई जगह नहीं है, लेकिन सियासी मुनाफे के लिए यूपी में हर तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। असामाजिक तत्व तेज़ी से मुख्यधारा बन रहे हैं और वो घोर नफ़रत से भरे और सांप्रदायिक भाषण देने में सक्षम हैं। हाल के दिनों में बनारस में जितनी भी घटनाएं हुई हैं उससे बदतर कुछ भी नही हो सकता है। यह सब एक तरह से नरसंहार का सीधा आह्वान है। बीजेपी हिन्दुस्तान के मुसलमानों के अंदर जानबूझकर दहशत पैदा कर रही है। इसके जरिये वो अपने आठ साल के नाकारेपन को ढंकने की कोशिश कर रही है। समाज को गुमराह करके इसीलिए नफरत के बीज बो रही है ताकि उसकी फसल उप चुनाव में काटी जा सके।"
साड़ी कारोबार पर असर
बनारस जिस तरह से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें की जा रही हैं उसका सीधा असर यहां के साड़ी कारोबार पर पड़ रहा है। साल 2007 में वस्त्र मंत्रालय के तहत वस्त्र समिति द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, "अधिकांश बुनकर गृहस्थ मुस्लिम हैं। उनके साथ काम करने वाले कारीगर हिंदू और मुस्लिम दोनों हैं। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि "लगभग 70 फीसदी बिनकारी बनारस शहर में होती है और जिनमें सर्वाधिक 90 फीसदी मुस्लिम हैं।"
बनारस के बुनकर समुदाय के नेता, सरदार मकबूल हसन कहते हैं, "बनारस में कम से कम दो लाख पावरलूम हैं, और इनमें से लगभग 70 फीसदी श्रमिक मुस्लिम हैं। जब से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार आई है, बुनकरों के लिए बनाई गई कई योजनाओं को बंद कर दिया गया है, जैसे बुनकरों के आईडी कार्ड, जो हमें बहूदी फंड तक पहुंचने की अनुमति देते थे। यह हमारी बेटियों की शादी कराने में भी मदद करती थी।"
इस बीच, 26 वर्षीय तबस्सुम, जो बनारसी सिल्क की बुनाई में लगी महिलाओं में से हैं। उनका कहना है कि, "नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) जैसी नीतियों ने उनके जीवन को और कठिन बना दिया है। महिलाओं की भागीदारी बुनाई समुदाय में लगभग 20 से 22 प्रतिशत है। हाल के दिनों में बार-बार मुसलमानों को धमकाए जाने से हर समय चिंता बनी रहती है। यही वजह है कि हमारे समुदाय (मुस्लिम) के तमाम बुनकर बनारस छोड़कर दूसरे राज्यों में जा रहे हैं। बनारसी साड़ियों की बुनाई हमारे लिए केवल आजीविका नहीं, बल्कि जीवन की लय है। बनारस में जो कुछ हो रहा है उससे न तो कोई लाभदायक भविष्य दिखता है और न ही सांप्रदायिक सद्भाव। अगर यह लय टूट गई, तो हम सभी का जीवन बिखर जाएगा। "
बनारस के बुनकरों के शब्दों में गहराई से बसा दर्द और निराशा झलकती है। उनके मन में हमेशा एक ही सवाल कौंधता रहता है कि क्या बनारसी साड़ी की शान को बचाया जा सकेगा? क्या सांप्रदायिक सद्भाव वापस लौटेगा, और क्या उनकी कला फिर से उसी शिखर पर पहुंच सकेगी जहां कभी वह थी? सांप्रदायिक ताकतों के खुराफातों और तमाम ऊंच-नीच के बावजूद बनारस बुनकरों को उम्मीद की एक नई किरण दिखती है कि सांप्रदायिकता के बादल जरूर छंटेंगे। तब बनारस की गलियों में फिर से सांप्रदायिक सौहार्द्र की धूप खिलेगी, जिसमें महमूद और तबस्सुम जैसे बुनकरों की मेहनत की रोशनी जरूर चमकेगी।
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
बनारस। हथकरघे के पास बैठे तलत महमूद के माथे से पसीने की एक बूंद गिरती है, जब वह अपनी स्थिति को समझाने के लिए रुकते हैं। 39 वर्षीय महमूद, बनारस के मदनपुरा इलाके में रहते हैं। पिछड़े डेढ़ दशक से वह अपने हाथ से बनारसी साड़ियां बुनते हैं। महमूद कहते हैं, "ज्ञानवापी का मसला जब से उछाला जा रहा है, तब से हमेशा धुकधुकी लगी रहती है। क्या पता कब क्या हो जाए और हमें अपने हथकरघे को बंद करना पड़े? पिछले 25 साल से बनारसी साड़ियों में मंदी का दौर चल रहा है। हाल के कुछ सालों में हमारा काम कभी भी इतना ठप नहीं हुआ, जितना आज हो गया है।"
महमूद बनारस शहर के कुछ बचे-खुचे उन बुनकरों में शामिल हैं जो हाथ से साड़ियां बुनते हैं। वाराणसी, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट और हिंदुओं के लिए धार्मिक महत्व का शहर माना जाता है, पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्थित है। इस शहर में भगवान शिव का मंदिर है तो सारनाथ में प्राचीन बौद्ध स्थल भी है। इसी शहर में मध्यकालीन युग की तमाम मस्जिदें भी हैं। पिछले दो-तीन सालों में यह शहर बढ़ते सांप्रदायिकता से बुरी तरह प्रभावित हुआ है, जिसमें देशभर में बढ़ती हिंदू राष्ट्रवादी राजनीति और मध्यकालीन ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रहे कानूनी विवाद ने इस क्षेत्र की सामाजिक संरचना पर गहरा असर डाला है।
इस सब के बीच, वाराणसी अब भी अपने विश्व प्रसिद्ध बुनकरों के एक बड़े समुदाय के लिए जाना जाता है, जो शानदार ब्रोकेड कपड़े बुनते हैं, जिन्हें आमतौर पर 'बनारसी' कहा जाता है। बनारसी रेशमी साड़ियों की बुनकरी का विस्तर 16वीं से 17वीं सदी के बीच हुआ। इधर बीच, बनारस शहर में बढ़ती सांप्रदायिकता का गहरा असर पड़ा है। हिंदू राष्ट्रवाद की बढ़ती राजनीति और ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद ने इस इलाके की सामाजिक संरचना को हिला कर रख दिया है।
सांप्रदायिकता का संकट
20वीं सदी तक बनारसी साड़ियां शादियों और खास मौकों का हिस्सा हुआ करती थीं। साल 1980 के बाद से पावरलूम मशीनों ने हथकरघा बुनकरों का काम छीनना शुरू कर दिया। सस्ते नकली रेशम और चीनी धागों ने असली रेशम की जगह ले ली, जिससे महमूद जैसे बुनकरों की मुश्किलें बढ़ गईं। रही-सही कसर सांप्रदायिकता ने पूरी कर दी। यह दर्द सिर्फ महमूद का नहीं, बल्कि बनारस के उन सभी मुस्लिम बुनकर फनकारों का है जो सांप्रदायिक वजहों से नए तरह के संकट से गुजर रहे हैं। महमूद जैसे कारीगर इस बदलाव को अपनी आंखों से देख रहे हैं, और उनके लिए यह सिर्फ काम का नुकसान नहीं है, बल्कि उनकी विरासत भी धीरे-धीरे खत्म हो रही है।
महमूद मदनपुरा में जिस जगह बनारसी साड़ियों की बुनाई उससे कुछ ही दूरी पर है रेवड़ी तालाब। इसी मोहल्ले में पिछले हफ्ते प्रेम कुमार मांझी नामक एक युवक ने मुस्लिम समुदाय के लोगों पर ताबड़-तोड़ हमले शुरू कर दिए। शाम को वह फावड़ा लेकर पहुंचा और धर्म विशेष के लोगों का जिक्र करते हुए उसने कहा कि मैं किसी को जिंदा नहीं छोड़ूंगा। उसके बाद सरेराह एक-एक कर पांच मुस्लिमों पर फावड़े से हमला करते हुए उन्हें लहूलुहान कर दिया। घटना से गुस्साये सैकड़ों लोगों ने भेलूपुर थाने पहुंच कर हंगामा शुरू कर दिया। समूची स्थिति दंगे की थी और स्थानीय लोगों ने धैर्य का परिचय देते हुए बात आगे बढ़ने से रोक दिया। आरोपी नेपाल के डांगरा जिला के मोरंग गांव का रहने वाला है। वह बनारस क्यों और किस वजह से पहुंचा, इस बारे में पुलिस ने अभी तक स्थिति साफ नहीं की है।
रेवड़ी तालाब के मोहम्मद अजीम कुरैशी कहते हैं, "मेरे भाई अंसार अहमद (55) अपने घर के नीचे मुर्गा की दुकान में कुर्सी पर बैठे थे। उसी दौरान फावड़ा लेकर आए युवक ने उनके सिर पर हमला बोल दिया और वह बुरी तरह जख्मी हो गए। इसके बाद कुछ दूरी पर खड़े मिर्जापुर के डिगिया निवासी शाहिद पर भी उसने फावड़े से हमला किया। फिर उसने नई बस्ती, रामापुरा के इश्तियाक अहमद, अरशद जमाल और नागपुर निवासी तनवीर अशरफ पर हावड़े से हमला किया, जिससे अफरातफरी मच गई। बाद में लोगों ने फावड़ा लिए हुए युवक को घेर लिया। सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस ने फावड़ा लिए हुए युवक को गिरफ्तार कर लिया।"
घायलों में अंसार और शाहिद की हालत गंभीर है, जबकि तीन अन्य को प्राथमिक उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई। घटना को देखते हुए एहतियातन रेवड़ी तालाब इलाके में पुलिस और पीएसी के जवान तैनात किए गए हैं। अभियुक्त प्रेम कुमार मांझी एक हफ्ते पहले नेपाल से बनारस आया था। कई दिन से वह भारत के अलग-अलग राज्यों में घूम रहा था। बनारस कमिश्नरेट पुलिस ने जांच के बाद घिसा-पिटा जवाब दिया कि युवक मानसिक रूप से बीमार है। हमले में पांच लोगों को फावड़ा लगा, जिनमें से चार को ज्यादा चोट लगी है। अंसार अहमद और मोहम्मद शाहीद की हालत अभी तक चिंताजनक बनी हुई है।
हमले के पीछे बड़ी साजिश
ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव सैयद मोहम्मद यासीन इस घटना को दूसरे परिप्रेक्ष में देखते हैं। वह कहते हैं, "रेवड़ी तालाब की वारदात कोई साधारण घटना नहीं है। इसके पीछे के निहितार्थ कुछ और हैं। कुछ लोग बनारस में सांप्रदायिकता का जहर घोलना चाहते हैं। इस शहर में दंगा कराने की कई बार साजिशें रची गईं, लेकिन गंगा-जमुनी तहजीब में गहरी आस्था रखने वालों ने सांप्रदायिक ताकतों के खतरनाक मंसूबों को सफल नहीं होने दिए। सांप्रदायिकता का जहर घोलने वाली ताकतें संभवतः बनारसी साड़ी उद्योग और इससे जुड़े कारीगरों को भुखमरी की कगार पर खड़ा करने के लिए काफी दिनों लगातार कोशिशें कर रहे हैं।"
यासीन कहते हैं, "बनारस के सिगरा थाने से कुछ ही दूरी पर हिन्दू रक्षा समिति के तत्वावधान में 22 अगस्त, 2024 को निकाली गई आक्रोश रैली में मुसलमानों को टारगेट करके हिंसक नारेबाजी की गई। इस रैली का नेतृत्व शहर दक्षिण से विधायक नीलकंठ तिवारी समेत बीजेपी के कई नेता कर रहे थे। रैली में पुलिस भी थी। मुस्लिमों को निशाना बनाकर हिंसक नारेबाजी करने वालों के खिलाफ पुलिस ने आज तक कोई कार्रवाई नहीं की। इस रैली में युवाओं का हुजूम मुसलमानों के खिलाफ हिंसक नारेबाजी करते हुए दिख रहा है। मुसलमानों को निशाना बनाकर उन्हें काटने की धमकी दी जा रही थी और उन्हें राम-राम कहने की हिदायत भी दी जा रही थी।"
"हिन्दूवादी संगठनों के लोग चाहते हैं कि हम अपना धैर्य खो दें और जिससे वो फायदा उठा सकें। बनारसियों को उकसाने की यह कोई नई घटना नहीं है। अब से पहले यहां बहुत कुछ हो चुका है। आखिर हम कितनी मर्तबा पुलिस अफसरों को आगाह करते रहेंगे? हम कुछ बोल देंगे तो वो अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे, इसलिए चुप होकर आराजकतत्वों का नंगा-नाच देख रहे हैं।"
क्यों चुप्पी साध लेती है पुलिस?
यासीन की बातों में काफी दम नजर आता है। आक्रोश रैली में मुसलमानों के खिलाफ हिंसक नारेबाजी का वीडियो वायरल होने के बावजूद बनारस कमिश्नरेट पुलिस अभी तक चुप्पी साधे हुए है। गुनहगारों को पकड़ने में वो इसलिए भी दिलचस्पी नहीं दिखा रही है, क्योंकि हुल्लड़ मचाते और हिंसक नारेबाजी करते युवाओं के हुजूम में बीजेपी विधायक नीलकंठ तिवारी और पार्टी के कई नेताओं के चेहरे साफ-साफ दिखाई दे रहे हैं। इन वीडियो में कई लोग "जब मु&*#….काटे जाएंगे, राम-राम चिल्लाएंगे" नारा लगाते हुए दिख रहे हैं। नारा लगाने के साथ ये लोग हाथ से काटने का इशारा भी कर रहे हैं। कुछ लोग इस वीडियो को ट्विटर, फ़ेसबुक और व्हाट्सऐप पर शेयर कर रहे हैं।
हालांकि बाद में बीजेपी विधायक नीलकंठ तिवारी ने सफाई दी और कहा, "वीडियो में दिख रहे लोगों को न तो मैं जानता हूं, न तो इनमें से किसी से मिला हूं और न तो इन्हें बुलाया गया था। अगर यह वीडियो सही है, तो इसमें शामिल लोगों के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई हो। मैं इन युवाओं से पहले नहीं मिला। मैं यह भी नहीं जानता कि किसने उत्तेजक नारेबाज़ी को रिकॉर्ड किया था। यदि वीडियो असत्य है तो इसे सोशल मीडिया में शेयर करने वालों के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई की जाए।"
मोहम्मद यासीन कहते हैं, "बनारस में कभी नंगी तलवारें लहराई जाती हैं तो कभी मुसलमानों को एलानिया तौर पर गालियां दी जाती हैं और अपशब्द बोले जाते हैं और हिंसक नारे लगाए जाते हैं। हमें लगता है कि हमलावर मोहरा रहा होगा। असली मंशा शहर में दंगा कराने की रही होगी। अब तो बनारस में कुछ भी संभव है। कोई तथाकथित संत श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के गेट पर बैठकर मुस्लिम समुदाय के लोगों को खुलेआम गालियां देता है। कई बार पुलिस को लिखित शिकायत दे चुके हैं, लेकिन आरोपितों के खिलाफ आजतक कोई कार्रवाई नहीं हुई। नंगी तलवारें भांजने और धार्मिक उन्माद पैदा करने के लिए नारे लगाने वालों के खिलाफ एक्शन लेने से पुलिस के हाथ क्यों कांप रहे हैं और योगी सरकार की पुलिस इस मामले में क्यों सोई हुई है?"
पलायन की तैयारी
पहले भी हुई थी नारेबाज़ी
इससे पहले ‘हिन्दू युवा वाहिनी’ और ‘त्रिशक्ति सेवा फाउंडेशन’ ने हिन्दू नववर्ष की पूर्व संध्या पर 08 अप्रैल 2024 की शाम बनारस शहर के मैदागिन से जुलूस और शोभायात्रा निकाला था। इस जुलूस में शामिल ‘हियुवा’ से जुड़े कार्यकर्ता नंगी तलवारें भांज रहे थे और उस समय भी धार्मिक व उत्तेजक नारे लगाए गए थे। नंगी तलवारें भांजते और उत्तेजक नारे लगाते हुए भगवा गमछा डाले कार्यकर्ता श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के गेट नंबर-चार (ज्ञानवापी क्रासिंग) के पास पहुंचे तो वहां नारेबाजी तेज हो गई। जुलूस में शामिल लोगों का नारा था, "एक धक्का और दो-ज्ञानवापी तोड़ दो…।"
अजीब बात यह है कि पुलिस और खुफिया एजेंसियों के सामने काफी देर तक नारेबाजी, हंगामा और नंगी तलवारें भांजी जाती रहीं, लेकिन किसी ने ऐसा करने से रोकने की हिम्मत नहीं जुटाई। पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। हिन्दू युवा वाहिनी से जुड़े कई मनबढ़ युवकों ने 07 अप्रैल 2024 को श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के समीपवर्ती गोदौलिया चौराहे पर दशाश्वमेध थाने के एक दरोगा आनंद प्रकाश को लात-घूसों से पीटा, गाली-गलौच और धक्का-मुक्की की थी। भगवा गमछा डाले अराजकतत्वों ने दरोगा के सीने पर लगा बैज और कंधे पर लगे स्टार तक को नोच डाला था। साथ ही सरकारी गाड़ी को क्षतिग्रस्त कर दिया।
अचरज की बात यह रही कि पुलिस ने जिन पांच अभियुक्तों को संगीन धाराओं में गिरफ्तार किया था, उन्हें कुछ ही घंटों के अंदर थाने से ही छोड़ देना पड़ा। इससे पहले 02 जनवरी 2022 को बनारस के मुस्लिम बहुल क्षेत्र लल्लापुरा, कोयलाबाजार, ज्ञानवापी मोड़ समेत शहर के कई संवेदनशील इलाकों में ‘हिन्दू युवा वाहिनी’ के कार्यकर्ताओं ने अपत्तिजनक नारे लगाए थे। कुछ स्थानों पर नंगी तलवारें लहराई गईं, जिससे शहर में सनसनी फैल गई थी।
वो चाहते हैं धैर्य खो दें मुस्लिम
बनारस पुलिस की चुप्पी पर सवाल खड़ा होना लाजिमी है। इसकी बड़ी वजह यह है कि बनारस शहर में ज्यादातर जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। पुलिस चाहती तो हिंसक नारेबाजी और दंगा कराने की साजिश रचने वालों को सीसीटीवी फ़ुटेज और फ़ेशियल रिकॉग्नीशन सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल करके उन्हें बेनकाब कर सकती थी। बनारस में पीएनएन 24 न्यूज पोर्टल चलाने वाले के वरिष्ठ पत्रकार तारिक आजमी कहते हैं, “हाल के दिनों में बनारस में कहीं नंगी तलवारें भांजी गई तो कभी हिंसक नारेबाजी की गई, लेकिन पुलिस के कामकाज और उसकी जांच के तरीके हमेशा “हास्यास्पद और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना” ही रहे। उन्मादियों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई न किया जाना प्रशासन की अक्षमता को उजागर करता है।"
तारिक यह भी कहते हैं, "मुसलमानों को निशाना बनाकर हमला करना और उत्तेजक जयकारा लगाया जाना संविधान विरोधी कार्य है। इस मामले में धर्म, मूलवंश, भाषा, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, इत्यादि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता का संप्रवर्तन और आपसी सौहार्द्र के माहौल पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले कानूनों के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए। बोले गए या लिखे गए शब्दों या संकेतों के द्वारा विभिन्न धार्मिक, भाषाई या जातियों और समुदायों के बीच सौहार्द्र बिगाड़ना या शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएं पैदा करना संगीन अपराध की श्रेणी में आता है। इस तरह के मामलों में धारा 153ए आईपीसी के साथ अन्य संगीन धाराओं के तहत कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन पुलिस हर बार नई कहानियां गढ़कर मामले का पटाक्षेप कर देती है।"
ये है बीजेपी का पुराना खेल
वरिष्ठ पत्रकार राजीव मौर्य का कहना है, “जब धर्म और राजनीति को आपस में मिलाया जाता है, तो न्याय की सीमाएं धुंधली हो जाती हैं। हम सच बोलें तो हमें देशद्रोही करार दिया जाता है, जबकि वे कुछ भी कहें, तो उन पर कोई आंच नहीं आती। असलियत यह है कि बीजेपी को यूपी में चुनाव लड़ने का डर सता रहा है।"
राजीव बताते हैं कि, "सिर्फ धर्म ही ऐसा सहारा है जिसके बल पर बीजेपी अपनी राजनीतिक पकड़ बनाए रख सकती है। इसी कारण बनारस की आक्रोश रैली में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने वाले वक्तव्य दिए गए। यह सब बीजेपी के नेताओं और प्रमुख चेहरों की उपस्थिति में उनके इशारे पर हुआ।"
"उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक बार आगरा में खुले मंच से कहा था कि जो बंटेंगे, वो कटेंगे। इसका नतीजा यह हुआ कि बनारस में बीजेपी के समर्थक कभी हिंसक नारे लगाते हैं, तो कभी तलवारें लहराते हैं। साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे थे, तब उन्होंने धर्म और विकास दोनों की बात की थी। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद ज्ञानवापी मस्जिद के मुद्दे पर कई मुकदमे दायर किए गए। बीजेपी आज भी 1980 के दशक में आरएसएस द्वारा तैयार किए गए एजेंडे पर ही चल रही है, लेकिन जनता समय-समय पर इन पुराने मुद्दों को भूल जाती है। धर्म बीजेपी के लिए वही संजीवनी है, जिसके सहारे वह राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत करती रही है। असल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए बनारस में जानबूझकर हिंसक नारेबाजी कराई जाती है। डबल इंजन की बीजेपी सरकार में न तो कानून के रक्षक सुरक्षित हैं, न ही आम लोग।"
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी को लगता है कि बीजेपी के लोग यह भूल गए हैं कि बनारस कबीर और नजीर का शहर है। इस शहर की गंगा-जमुनी तहजीब को जिस तरह मसला जा रहा है उसके दूरगामी नजीजे भयावह हो सकते हैं। वह कहते हैं, "मुसलमानों को निशाना बनाकर हमला करना, कभी इस समुदाय के लोगों को सरेआम गालिया देना, हिंसक नारे लगाना यूं ही संभव नहीं है। यह सोची–समझी राजनीति का नतीजा है। मुस्लिम समुदाय के लोगों को पहले काटने की धमकी दी गई और अब उसे अंजाम दे दिया गया। बीजेपी चाहे लाख कोशिश कर ले, बनारस के अमनपसंद लोग इस शहर को दंगे में झुलसने नहीं देंगे।"
"धार्मिक उन्माद फैलाना भाजपा का पुराना एजेंडा रहा है। बनारस में भड़काऊ नारेबाजी व विवादित भाषण बीजेपी और उनके अनुषांगिक संगठनों की सोची-समझी साजिश का नतीजा है। सभी को मालूम है कि हरिद्वार की धर्म संसद में भाजपाई संतों ने जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खिलाफ जहर उगला तब भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। जब भी कोई चुनाव नजदीक आता है, हिन्दू आतंकवाद सामने आने लगता है। यूपी में विधानसभा की कई सीटों पर उप चुनाव होने वाला है और योगी सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। जिस सूबे के मुखिया धार्मिक ताने-बाने में हों, उनके अनुषांगिक संगठन के लोग हिंसक नारेबाजी कर रहे हैं और कोई फावड़े से हमला करता है इसके अंदर सांप्रदायिकता छिपी हो तो यह कोई हैरत की बात नहीं है।"
महंत राजेंद्र कहते हैं, "बनारस का हर आदमी जानता है कि हिंसा और समुदाय विशेष के लोगों के खिलाफ हिंसक नारेबाजी से आतंक का संदेश निकलता है, अहिंसा का नहीं। सनातन हिन्दू धर्म में उग्रवाद के लिए कोई जगह नहीं है, लेकिन सियासी मुनाफे के लिए यूपी में हर तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। असामाजिक तत्व तेज़ी से मुख्यधारा बन रहे हैं और वो घोर नफ़रत से भरे और सांप्रदायिक भाषण देने में सक्षम हैं। हाल के दिनों में बनारस में जितनी भी घटनाएं हुई हैं उससे बदतर कुछ भी नही हो सकता है। यह सब एक तरह से नरसंहार का सीधा आह्वान है। बीजेपी हिन्दुस्तान के मुसलमानों के अंदर जानबूझकर दहशत पैदा कर रही है। इसके जरिये वो अपने आठ साल के नाकारेपन को ढंकने की कोशिश कर रही है। समाज को गुमराह करके इसीलिए नफरत के बीज बो रही है ताकि उसकी फसल उप चुनाव में काटी जा सके।"
साड़ी कारोबार पर असर
बनारस जिस तरह से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें की जा रही हैं उसका सीधा असर यहां के साड़ी कारोबार पर पड़ रहा है। साल 2007 में वस्त्र मंत्रालय के तहत वस्त्र समिति द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, "अधिकांश बुनकर गृहस्थ मुस्लिम हैं। उनके साथ काम करने वाले कारीगर हिंदू और मुस्लिम दोनों हैं। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि "लगभग 70 फीसदी बिनकारी बनारस शहर में होती है और जिनमें सर्वाधिक 90 फीसदी मुस्लिम हैं।"
बनारस के बुनकर समुदाय के नेता, सरदार मकबूल हसन कहते हैं, "बनारस में कम से कम दो लाख पावरलूम हैं, और इनमें से लगभग 70 फीसदी श्रमिक मुस्लिम हैं। जब से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार आई है, बुनकरों के लिए बनाई गई कई योजनाओं को बंद कर दिया गया है, जैसे बुनकरों के आईडी कार्ड, जो हमें बहूदी फंड तक पहुंचने की अनुमति देते थे। यह हमारी बेटियों की शादी कराने में भी मदद करती थी।"
इस बीच, 26 वर्षीय तबस्सुम, जो बनारसी सिल्क की बुनाई में लगी महिलाओं में से हैं। उनका कहना है कि, "नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) जैसी नीतियों ने उनके जीवन को और कठिन बना दिया है। महिलाओं की भागीदारी बुनाई समुदाय में लगभग 20 से 22 प्रतिशत है। हाल के दिनों में बार-बार मुसलमानों को धमकाए जाने से हर समय चिंता बनी रहती है। यही वजह है कि हमारे समुदाय (मुस्लिम) के तमाम बुनकर बनारस छोड़कर दूसरे राज्यों में जा रहे हैं। बनारसी साड़ियों की बुनाई हमारे लिए केवल आजीविका नहीं, बल्कि जीवन की लय है। बनारस में जो कुछ हो रहा है उससे न तो कोई लाभदायक भविष्य दिखता है और न ही सांप्रदायिक सद्भाव। अगर यह लय टूट गई, तो हम सभी का जीवन बिखर जाएगा। "
बनारस के बुनकरों के शब्दों में गहराई से बसा दर्द और निराशा झलकती है। उनके मन में हमेशा एक ही सवाल कौंधता रहता है कि क्या बनारसी साड़ी की शान को बचाया जा सकेगा? क्या सांप्रदायिक सद्भाव वापस लौटेगा, और क्या उनकी कला फिर से उसी शिखर पर पहुंच सकेगी जहां कभी वह थी? सांप्रदायिक ताकतों के खुराफातों और तमाम ऊंच-नीच के बावजूद बनारस बुनकरों को उम्मीद की एक नई किरण दिखती है कि सांप्रदायिकता के बादल जरूर छंटेंगे। तब बनारस की गलियों में फिर से सांप्रदायिक सौहार्द्र की धूप खिलेगी, जिसमें महमूद और तबस्सुम जैसे बुनकरों की मेहनत की रोशनी जरूर चमकेगी।
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)