हिन्दू रक्षा समिति के तत्वावधान में 22 अगस्त, 2024 को निकाली गई जिस आक्रोश रैली में मुसलमानों को टारगेट करके हिंसक नारेबाजी की गई>
बनारस। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में मुसलमानों को निशाना बनाकर हिंसा के लिए भड़काने वाली उत्तेजक नारेबाज़ी की गई, जिसका वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। यह सब सिगरा थाने से कुछ ही दूरी पर हुआ।
हिन्दू रक्षा समिति के तत्वावधान में 22 अगस्त, 2024 को निकाली गई जिस आक्रोश रैली में मुसलमानों को टारगेट करके हिंसक नारेबाजी की गई, उसमें शहर दक्षिण से विधायक नीलकंठ तिवारी समेत बीजेपी के कई नेता नजर आ रहे हैं। रैली में पुलिस भी थी। मुस्लिमों को निशाना बनाकर हिंसक नारेबाजी करने वालों के खिलाफ पुलिस ने आज तक कोई कार्रवाई नहीं की।
बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार के विरोध में बीजेपी के अनुषांगिक संगठन हिन्दू रक्षा समिति के सौजन्य से बनारस में आक्रोश रैलियां निकाली गईं थी। एक रैली बीजेपी के सिगरा के गुलाबबाग क्षेत्रीय कार्यालय से निकाली गई, तो दूसरी टाउनहाल मैदान से। शहर के विभिन्न इलाकों से कई और रैलियां निकाली गईं जो रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर पहुंचीं।
बाद में शाम करीब साढ़े चार बजे सिगरा स्थित भारत माता मंदिर के लिए आक्रोश रैली निकाली गई। जिस रैली का वीडियो वायरल हो रहा है उसमें बनारस के शहर दक्षिणी के विधायक नीलकंठ तिवारी शामिल थे और बीजेपी के कई अन्य कद्दावर नेता भी।
इस रैली में युवाओं का हुजूम मुसलमानों के खिलाफ हिंसक नारेबाजी करते हुए दिख रहा है। मुसलमानों को निशाना बनाकर उन्हें काटने की धमकी दी जा रही है और उन्हें राम-राम कहने की हिदायत भी दी जा रही है। यह वाकया 22 अगस्त 2024 का है, जिसका वीडियो जमकर वायरल हो रहा है।
बांग्लादेश में हिन्दुओं के साथ हिंसा के विरोध में निकाली जाने वाली आक्रोश रैली को सफल बनाने के लिए 21 अगस्त 2024 को पिपलानी कटरा स्थित एक बैंक्वेट हॉल में बनारस के व्यापार संगठनों की बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें साड़ी, जरी, दवा, रेडीमेड कपड़े, गल्ला, सर्राफा, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि उत्पादों के प्रतिष्ठान गुरुवार को बंद रखने का निर्णय हुआ था।
बीजेपी से जुड़े दर्जन भर व्यापार मंडलों ने इस मुद्दे पर एकजुट होकर आक्रोश रैली में शामिल होने और दुकानों को बंद रखने पर सहमति जताई थी। बैठक में शामिल वाराणसी व्यापार मंडल काशी प्रांत के अध्यक्ष प्रमोद अग्रहरि, महानगर उद्योग व्यापार समिति के अध्यक्ष प्रेम मिश्रा, वाराणसी व्यापार मंडल के अध्यक्ष अजीत सिंह बग्गा, काशी व्यापार प्रतिनिधि मंडल के अध्यक्ष राकेश जैन, वाराणसी नगर उद्योग व्यापार मंडल के अध्यक्ष संजीव सिंह बिल्लू, अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के महानगर अध्यक्ष राकेश जैन ने बनारस बंद पर सहमति जताई थी।
बनारस में बीजेपी से जुड़े व्यापारी संगठनों के आह्वान के बावजूद दुकानदारों ने अपने प्रतिष्ठान बंद नहीं रखे। सिर्फ सप्तसागर दवा मंडी और हड़हासराय इलाके में कुछ दुकानें बंद रहीं।
आक्रोश रैली में व्यापारियों की तादाद कम, हुल्लड़ मचाने वाले ज्यादा नजर आए। आक्रोश रैली में सिर्फ बीजेपी के कुछ नेता और कार्यकर्ता ही जुटे। बनारस के आम जनसमुदाय ने इसमें न हिस्सा लिया और न ही कोई प्रतिक्रिया दी।
हिन्दू रक्षा समिति की आक्रोश रैली में राज्यमंत्री दयाशंकर मिश्र दयालू भी शामिल हुए। बाद में उन्होंने बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार के विरोध में एक्स हैंडल पर अपनी तस्वीर के साथ फोटो भी शेयर की। बीजेपी के क्षेत्रीय अध्यक्ष दिलीप पटेल ने भी एक्स हैंडल पर आक्रोश रैली का जिक्र करते हुए अपनी तस्वीर पोस्ट की है।
उधर, आक्रोश रैली में मुसलमानों के खिलाफ हिंसक नारेबाजी करने का वीडियो वायरल होने के बावजूद बनारस कमिश्नरेट पुलिस चुप्पी साधे हुए है। गुनहगारों को पकड़ने में वो इसलिए भी दिलचस्पी नहीं दिखा रही है, क्योंकि हुल्लड़ मचाते और हिंसक नारेबाजी करते युवाओं के हुजूम में बीजेपी विधायक नीलकंठ तिवारी और पार्टी के कई नेताओं के चेहरे साफ-साफ दिखाई दे रहे हैं।
हिन्दू आक्रोश रैली के चलते शहर घंटों जाम से कराहता रहा। खास बात यह है कि आक्रोश रैली में सिगरा थाने की पुलिस के अलावा अन्य थानों के जवान भी मौजूद थे, लेकिन उनकी भूमिका मूकदर्शक की रही।
क्या है वीडियो में
सोशल मीडिया पर इस प्रदर्शन से जुड़े कई वीडियो शेयर किए जा रहे हैं। इन वीडियो में कई लोग ‘जब मु&*#….काटे जाएंगे, राम-राम चिल्लाएंगे’ नारा लगाते हुए दिख रहे हैं। नारा लगाने के साथ ये लोग हाथ से काटने का इशारा भी कर रहे हैं। कुछ लोग इस वीडियो को ट्विटर, फ़ेसबुक और व्हाट्सऐप पर शेयर कर रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी विधायक नीलकंठ तिवारी कहते हैं, “वीडियो में दिख रहे लोगों को न तो मैं जानता हूं, न तो इनमें से किसी से मिला हूं और न तो इन्हें बुलाया गया था। अगर यह वीडियो सही है तो इसमें शामिल लोगों के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई हो। यदि वीडियो असत्य है तो इसे सोशल मीडिया में शेयर करने वालों के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई की जाए।”
आक्रोश रैली में शामिल रहे एक हिंदूवादी नेता ने जनचौक से नाम न छापने की शर्त पर बताया कि युवाओं के एक समूह ने उत्तेजक नारेबाज़ी की। उन्होंने कहा, “युवाओं का जो समूह नारेबाज़ी करते हुए दिख रहा है, इनमें से ज्यादातर युवक शहर के ही थे और वो बीजेपी से जुड़े रहे होंगे। मैं इन युवाओं से पहले नहीं मिला। मैं यह भी नहीं जानता कि किसने उत्तेजक नारेबाज़ी को रिकॉर्ड किया था। वीडियो में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि कम उम्र के युवा नारा लगा रहे थे कि जब मु&*#…काटे जाएंगे, राम राम चिल्लाएंगे, इसके अलावा हिंदुस्तान में रहना होगा तो जय श्रीराम कहना होगा के भी नारे लगे रहे थे जिसमें कई लोग शामिल थे।”
पहले भी हुई थी नारेबाजी
इससे पहले हिन्दू युवा वाहिनी और त्रिशक्ति सेवा फाउंडेशन ने हिन्दू नववर्ष की पूर्व संध्या पर 08 अप्रैल 2024 की शाम बनारस शहर के मैदागिन से जुलूस और शोभायात्रा निकाला था। इस जुलूस में शामिल हियुवा से जुड़े कार्यकर्ता नंगी तलवारें भांज रहे थे और उस समय भी धार्मिक व उत्तेजक नारे लगाए गए थे। नंगी तलवारें भांजते और उत्तेजक नारे लगाते हुए भगवा गमछा डाले कार्यकर्ता शाम करीब 8.15 बजे श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के गेट नंबर-चार (ज्ञानवापी क्रासिंग) के पास पहुंचे तो वहां नारेबाजी तेज हो गई। जुलूस में शामिल लोगों का नारा था, “एक धक्का और दो-ज्ञानवापी तोड़ दो…।” मजे की बात यह है कि पुलिस और खुफिया एजेंसियों के सामने काफी देर तक नारेबाजी, हंगामा और नंगी तलवारें भांजी जाती रही, लेकिन किसी ने ऐसा करने से रोकने की हिम्मत नहीं जुटाई। पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही।
हिन्दू युवा वाहिनी से जुड़े कई मनबढ़ युवकों ने 07 अप्रैल 2024 को श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के समीपवर्ती गोदौलिया चौराहे पर दशाश्वमेध थाने के एक दरोगा आनंद प्रकाश को लात-घूसों से पीटा, गाली-गलौच और धक्का-मुक्की की थी। भगवा गमछा डाले अराजकतत्वों ने दरोगा का बैच और स्टार तक नोच डाला था। साथ ही सरकारी गाड़ी को क्षतिग्रस्त कर दिया।
घटना के समय लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बनारस पुलिस वाहनों की चेकिंग कर रही थी। दरोगा का गुनाह सिर्फ इतना था कि उसने पूछताछ की नीयत से भगवा गमछा पहने युवकों की बाइक रोक दी थी। मीडिया में यह मुद्दा उठता तो दरोगा आनंद प्रकाश की लात-घूसों से जमकर पिटाई करने वाले नितीश सिंह, नितेश नरसिंघानी, राहुल सिंह, सन्नी गुप्ता, गप्पू सिंह और 15 अज्ञात के खिलाफ आईपीसी की धारा 147 (दंगा करना), 332, 353 (पब्लिक सर्वेंट को अपना काम करने से रोकना), 307 (हत्या के इरादे से नुकसान पहुंचाना), 504 (किसी को अपराध के लिए उकसाना), 506 (आपराधिक धमकी देना), 427 (व्यक्ति को तंग करने के लिए उसकी किसी भी वस्तु का 50 रुपये से ज्यादा का नुकसान करना) के तहत मामला दर्ज किया। अचरज की बात यह रही कि पुलिस ने जिन पांच अभियुक्तों को संगीन धाराओं में गिरफ्तार किया था, उन्हें कुछ ही घंटों के अंदर थाने से ही छोड़ देना पड़ा।
इससे पहले 02 जनवरी 2022 को बनारस के मुस्लिम बहुल क्षेत्र लल्लापुरा, कोयलाबाजार, ज्ञानवापी मोड़ समेत शहर के कई संवेदनशील इलाकों में हिन्दू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने अपत्तिजनक नारे लगाए थे। कुछ स्थानों पर नंगी तलवारें लहराई गईं, जिससे शहर में सनसनी फैल गई थी। उस समय भी प्रबुद्धजनों का कहना था कि हिन्दू युवा वाहिनी के मुखिया यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रहे हैं। अगर इस संगठन को उन्होंने भंग कर दिया है तो किसके इशारे पर शोभायात्रा निकाली गई और जुलूस भी। चुनाव के वक्त नंगी तलवारों को लहराने का मतलब क्या था?
पुलिस पर उठ रहे हैं सवाल
हिंसक नारेबाज़ी के वीडियो सामने आने के बाद बनारस कमिश्नरेट पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं। जिस समय ये नारेबाज़ी की जा रही थी, पुलिस के जवान वहां तैनात थे। किसी पुलिसकर्मी ने इन युवाओं को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया। सवाल उठ रहा है कि दिल्ली पुलिस मुसलमानों के ख़िलाफ़ हुई इस हिंसक नारेबाज़ी के प्रति उदासीन क्यों है?
ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने एक बार फिर हिंसक नारेबाजी के खिलाफ आरोपितों पर कोई कार्रवाई नहीं किए जाने पर आक्रोश जताया है। संस्था के संयुक्त सचिव सैयद मोहम्मद यासीन कहते हैं, “बनारस शहर में कभी नंगी तलवारे भांजी जाती हैं तो कभी हिंसक नारे लगाए जाते हैं। कोई तथाकथित संत श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के गेट पर बैठकर मुस्लिम समुदाय को खुलेआम गालियां देता है। कई कई बार पुलिस को लिखित शिकायत दे चुके हैं, लेकिन आरोपितों के खिलाफ आजतक कोई कार्रवाई नहीं हुई। नंगी तलवारें भांजने और धार्मिक उन्माद पैदा करने के लिए नारे लगाने वालों के खिलाफ एक्शन लेने से पुलिस के हाथ क्यों कांप रहे हैं और योगी सरकार की पुलिस इस मामले में क्यों सोई हुई नजर आ रही है।”
22 अगस्त 2024 को निकाले गई आक्रोश रैली का जिक्र करते हुए मोहम्मद यासीन ने जनचौक से कहा, “मु&*# काटे जाएंगे, राम-राम चिल्लाएंगे का धमकी भरा नारेबाजी के पीछे सरकार और प्रशासन की मंशा बनारस शहर को दंगे की आग में झोंकने की है। यही वजह है कि कुछ लोग जानबूझकर हिंसक कदम उठा रहे हैं ताकि मुस्लिम समुदाय आक्रोशित होकर सड़क पर उतरे और बनारस में उनका वोटबैंक मजबूत हो जाए। 22 अगस्त की हिंसक नारेबाजी के बाद बनारस के मुसलमानों और सभी शांतिप्रिय लोगों में डर पैदा हुआ है। बनारस पुलिस को इस आयोजन का संज्ञान लेना चाहिए था और इसे रोकना चाहिए था। अब पुलिस को इसके आयोजकों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करनी चाहिए।”
वो चाहते हैं धैर्य खो दें मुस्लिम
“हिन्दूवादी संगठनों के लोग चाहते हैं कि हम अपना धैर्य खो दें और जिससे वो फायदा उठा सकें। बनारसियों को उकसाने की यह कोई नई घटना नहीं है। अब से पहले यहां बहुत कुछ हो चुका है। आखिर हम कितनी मर्तबा पुलिस अफसरों को आगाह करते रहेंगे। हम कुछ बोल देंगे तो वो अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे, इसलिए चुप होकर आराजक तत्वों का नंगा-नाच देख रहे हैं।”
बनारस पुलिस की चुप्पी पर सवाल खड़ा होना लाजिमी है। इसकी बड़ी वजह यह है कि बनारस शहर में ज्यादातर जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। पुलिस चाहती तो हिंसक नारेबाजी करने वालों की पहचान के लिए सीसीटीवी फ़ुटेज और फ़ेशियल रिकॉग्नीशन सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल करके उन्हें बेनकाब कर सकती थी। पुलिस के अफसरों ने इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया। सोशल मीडिया पर इस घटना के अलग-अलग कोण से लिए गए कई वीडियो मौजूद हैं जिनमें हाथ के इशारे के साथ मुसलमानों को काटे जाने के नारे लगाते हुए लोगों के चेहरे साफ़ दिख रहे हैं।
बनारस में पीएनएन 24 न्यूज पोर्टल चलाने वाले के वरिष्ठ पत्रकार तारिक आजमी कहते हैं, ” हिन्दू आक्रोश रैली में हिंसक नारेबाज़ी सिगरा थाने के नजदीक हुई। जिस स्थान सिगरा में जिस स्थान से ये रैली निकाली गई, वो ऐसा स्थान नहीं है जहां नारेबाजी और प्रदर्शन किया जाए। मुझे ये नारेबाज़ी बहुत खतरनाक लगी। पुलिस वहां मौजूद थी, जैसे कि प्रदर्शनों में होती ही है लेकिन कोई कुछ नहीं बोल रहा था। आक्रोश रैली में की गई नारेबाजी बहुत भयावह थी। अगर स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती तब तो शहर जल रहा होता? अचरज की बात यह है कि हिंसक नारेबाजी करने वालों के साथ बीजेपी विधायक नीलकंठ तिवारी भी चल रहे थे। वो चाहते तो उन्हें ऐसा करने से रोक सकते थे।”
पत्रकार आजमी कहते हैं, “मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा के लिए भड़काने वाली नारेबाज़ी पर अल्पसंख्यक आयोग और खुफिया एजेंसियों को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए। अल्पसंख्यक आयोग को खुद पुलिस से पूछना चाहिए कि हिंसक नारेबाज़ी करने वालों की पहचान अब तक क्यों नहीं की गई? अल्पसंख्यक आयोग को यह भी पूछना चाहिए कि बनारस की कमिश्नरेट पुलिस भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या-क्या क़दम उठाने जा रही है? हाल के दिनों में बनारस में कही नंगी तलवारें भांजी गई तो कभी हिंसक नारेबाजी की गई, लेकिन पुलिस के कामकाज और उसकी जांच के तरीके हमेशा “हास्यास्पद और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना” ही रहे।”
सोची-समझी साज़िश
उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष हरिशंकर सिंह कहते हैं, “भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। सभी धर्मावलंबियों को समान रूप से रहने का अधिकर है। तलवार लहराने और विवादित भाषणबाजी की घटना समुदायों के बीच शत्रुता फैलाने से संबंधित है। इस तरह के मामलों में कम से कम तीन साल तक के कारावास का प्रावधान है। उन्मादियों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई न किया जाना प्रशासन की अक्षमता को उजागर करता है। हियुवा के जुलूस में तलवार लहराने की घटना देख की एकता-अखंडता और शांति-सद्भावना के लिए ख़तरा है। उन्माद फैलाने की छूट किसी को नहीं दी जानी चाहिए। शांति और सद्भाव तो पुलिस के रवैये से तय होता है।”
“हिंसक नारेबाजी की घटना बनरस के सिगरा इलाके में हुई और इलाकाई थाना पुलिस को शरारतीतत्वों को तत्काल गिरफ़्तार कर लेना चाहिए था, जिन्होंने शहर में हिंसक नारेबाजी की थी। अगर सख्ती के साथ कार्रवाई की जाती है तो यह दूसरे लोगों के लिए भी एक सबक़ होता, लेकिन पुलिस की चुप्पी बता रही है कि वह आने वाली सुनामी का इंतजार कर रही है। सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध करता हूं कि वह इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना को स्वतः संज्ञान में ले।”
एडवोकेट सिंह यह भी कहते हैं, “उत्तेजक जयकारा लगाया जाना संविधान विरोधी कार्य है। इस मामले में धर्म, मूलवंश, भाषा, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, इत्यादि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता का संप्रवर्तन और आपसी सौहार्द्र के माहौल पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले कानूनों के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए। भारतीय कानून में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि बोले गए या लिखे गए शब्दों या संकेतों के द्वारा विभिन्न धार्मिक, भाषाई या जातियों और समुदायों के बीच सौहार्द्र बिगाड़ना या शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएं पैदा करना संगीन अपराध की श्रेणी में आता है। इस तरह के मामलों में धारा 153ए आईपीसी के साथ अन्य संगीन धाराओं के तहत कार्रवाई होनी चाहिए। अगर आरोपितों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती है तो माना जाएगा कि राजनीतिक दबाव में काम कर रही है। जिस रैली में हिंसक नारे लगाए गए हैं उनकी ऑडियो क्लिपें सार्वजनिक हो चुकी हैं। पुलिस को वीडियो और फोटोग्राफ का सत्यापन करते हुए तत्काल एक्शन लेना चाहिए।”
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय बीजेपी सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहते हैं, “पिछले आठ सालों से बीजेपी यूपी की सत्ता में है। ऐसे में उसके कार्यकर्ताओं को हिंसक नारेबाजी कर आतंक फैलाने की जरूरत क्यों पड़ रही है। जिन लोगों ने जनता का कोई काम नहीं किया है, वह सोच रहे हैं किस मुंह से जनता का सामना करेंगे? सबसे अच्छा उपाय यही है कि धर्म की चादर ओढ़ लीजिए, तो कोई नहीं बोलेगा। हिन्दू समाज के कुछ लोग बोलेंगे भी तो लोग यही कहेंगे देखिए धर्म के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं। इस समय जनता की असली समस्या बेरोज़गारी, महंगाई, स्वास्थ्य है, लेकिन इन मुद्दों पर सत्तारूढ़ दल का कोई नेता बात नहीं करना चाहता। विकास के झूठ को धर्म की चाशनी में लपेट कर लोगों को परोसने की कोशिश की जा रही है। भाजपा और उसके अनुषांगिक संगठनों का पुराना एजेंडा तो यही है।”
ये बीजेपी का पुराना अंदाज
वरिष्ठ पत्रकार राजीव मौर्य कहते हैं, “जब आप धर्म और राजनीति का घालमेल करते हैं तो इंसाफ की लकीरें धुंधली पड़ने लगती हैं। हम बोलेंगे तो राष्ट्रद्रोही हो जाएंगे और वो कुछ भी बोल देंगे तो उनका बाल बांका भी नहीं होगा। नंगा सच यह है कि भाजपा यूपी में चुनाव लड़ने से ही डर रही है। सिर्फ धर्म ही ऐसी संजीवनी है जिसके दम पर वो सियासत में अपनी पकड़ मजबूत बना सकते हैं। इसीलिए बनारस की आक्रोश रैली में मुसलमानों को काटने का टाइमबम फोड़े गए। यह सब कुछ बीजेपी के जनप्रतिनिधियों और कद्दावर नेताओं की मौजूदगी में उनके इशारे पर हो रहा है।”
“यूपी के मुखिया मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आगरा में खुलेआम यह भाषण दिया था कि जो बंटेंगे वो कटेंगे। इसी परिणति है कि बनारस में बीजेपी के कार्यकर्ता और नेता कभी हिंसक नारेबाजी करते हैं तो कभी नंगी तलवारें लहराते हैं। साल 2014 में मोदी जब चुनाव लड़ रहे थे तब उन्होंने धर्म और विकास की बात की थी। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनाने के बाद अदालत में ज्ञानवापी मस्जिद की ज़मीन के लिए के लिए ताबड़तोड़ मुकदमें दाखिल गए गए। भाजपा तो साल 1980 के दशक में आरएसएस के बनाए हुए एजेंडे पर चल रही है। जनता है कि वो आरएसएस के पुराने एजेंडों को भूल जाती है। बीजेपी के लिए धर्म संजीवनी की तरह है जिसके दम वह सियासत में खम ठोंकती आ रही है। मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए बनारस में जानबूझकर हिंसक नारेबाजी कराई जाती डबल इंजन की भाजपा सरकार में न कानून के रखवाले भी सुरक्षित हैं और न ही आम जनता।”
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी को लगता है कि बीजेपी के लोग यह भूल गए हैं कि बनारस कबीर और नजीर का शहर है। इस शहर की गंगा-जमुनी तहजीब को जिस तरह मसला जा रहा है उसके दूरगामी नजीजे भयावह हो सकते हैं। वह कहते हैं, “आतंक फैलाने वाली रैली में हिंसक नारेबाजी के वीडियो क्लिप जानबूझकर वायरल किए जा रहे हैं।”
दुनिया की धार्मिक और सांस्कृति राजधानी बनारस में यह सब क्यों किया जा रहा है? इसके जवाब में पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी कहते हैं, “धार्मिक उन्माद फैलाना भाजपा का पुराना एजेंडा रहा है। बनारस में भड़काऊ नारेबाजी व विवादित भाषण बीजेपी और उनके अनुषांगिक संगठनों की सोची-समझी साजिश का नतीजा है। सभी को मालूम है कि हरिद्वार की धर्म संसद में भाजपाई संतों ने जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खिलाफ जहर उगला तब भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।”
ये रास्ता आतंकवाद का है
राजेंद्र तिवारी कहते हैं, “जब भी कोई चुनाव नजदीक आता है, हिन्दू आतंकवाद सामने आने लगता है। यूपी में विधानसभा की कई सीटों पर उप चुनाव होने वाला है और योगी सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। जिस सूबे के मुखिया धार्मिक ताने-बाने में हों, उनके अनुषांगिक संगठन के लोग हिंसक नारेबाजी कर रहे हैं तो यह कोई हैरत की बात नहीं है। गनीमत है कि अभी वो नारे ही लगा रहे हैं। हर कोई जानता है कि हिंसक नारों से आतंक का संदेश निकलता है, अहिंसा का नहीं। हमें लगता है कि अगर वो असाल्ट राइफल-एके 47 और एके 56 लेकर चलेंगे तब भी बोलने वाला कोई नहीं होगा। सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने के लिए बनारस में जिस तरीके और जिस तंत्र का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह रास्ता आतंकवाद का है। सनातन हिन्दू धर्म में उग्रवाद के लिए कोई जगह नहीं है, लेकिन सियासी मुनाफे के लिए यूपी में हर तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।”
“बीजेपी के अनुषांगिक संगठन हिन्दू रक्षा समित के लोग किन लोगों को काटने की धमकी दे रहे हैं। अभी मुसलमानों और ईसाइयों को डराया जा रहा है और आगे चलकर सिखों व जैनियों को भी धमकाया जाएगा। अभी जो कट्टरता है, वो सरकारी शह पाकर बड़ा होगी और आगे बढ़ जाएगी। जब एक खास तबके को उग्रवाद का जहर पिलाया जाएगा तो अयोध्या की तरह न जाने कितने पूजा स्थलों का सफाया हो जाएगा। हमें तो लगता है कि यह सब सियासी मुनाफे के लिए तय रणनीति के तहत दुर्भावना का संदेश फैलाया जा रहा है।”
पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी यह भी कहते हैं, “आक्रोश रैली बहाने हिन्दुओं को उकसाना सामान्य बात नहीं है। कोई भी सभ्य समाज असहिष्णु भाषण बर्दाश्त नहीं करता। मुस्लिम बहुल इलाके लल्लापुरा से रैली निकालकर भड़काऊ नारेबाजी को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। यह समय चौंकने का नहीं, बल्कि सक्रिय रूप से कट्टरवाद का मुक़ाबला करने का है। मुस्लिम समुदाय के लोगों को काटने की धमकी देने और योगी सरकार के आंखें मूंद लेने की हम कड़ी निंदा करते हैं। असामाजिक तत्व तेज़ी से मुख्यधारा बन रहे हैं और वो घोर नफ़रत भरे और सांप्रदायिक भाषण देने में सक्षम हैं। पुलिस, राज्य और केंद्र सरकार की यह परीक्षा है और हम देखेंगे कि आयोजकों के ख़िलाफ़ क्या कार्रवाई की जाती है? हमने जो देखा और सुना, उससे बदतर कोई नफ़रत भरा भाषण नहीं हो सकता था। एक तरह से यह नरसंहार का सीधा आह्वान है।”
तिवारी यह भी कहते हैं, “बीजेपी के खुराफाती और घटिया विदेश नीति के चलते विदेशों में हिन्दुओं पर हमले हो रहे हैं। इस मामले में बनारस के सांसद एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक भी बयान नहीं आना इस बात को तस्दीक करता है कि बीजेपी की विदेश नीति पूरी तरह फ्लाप है और बंगाल कांड के लिए जिम्मेदार बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ऐसी महिला हैं जिसे दुनिया का कोई देश संरक्षण देने के लिए तैयार नहीं है। दूसरी ओर, बीजेपी हिन्दुस्तान के मुसलमानों के अंदर जानबूझकर दहशत पैदा कर रही है। इसके जरिये वो अपने आठ साल के नाकारेपन को ढंकने की कोशिश कर रही है। समाज को गुमराह करके इसलिए नफरत के बीज बो रही है ताकि उसकी फसल उप चुनाव में काटी जा सके।”
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं )
बनारस। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में मुसलमानों को निशाना बनाकर हिंसा के लिए भड़काने वाली उत्तेजक नारेबाज़ी की गई, जिसका वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। यह सब सिगरा थाने से कुछ ही दूरी पर हुआ।
हिन्दू रक्षा समिति के तत्वावधान में 22 अगस्त, 2024 को निकाली गई जिस आक्रोश रैली में मुसलमानों को टारगेट करके हिंसक नारेबाजी की गई, उसमें शहर दक्षिण से विधायक नीलकंठ तिवारी समेत बीजेपी के कई नेता नजर आ रहे हैं। रैली में पुलिस भी थी। मुस्लिमों को निशाना बनाकर हिंसक नारेबाजी करने वालों के खिलाफ पुलिस ने आज तक कोई कार्रवाई नहीं की।
बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार के विरोध में बीजेपी के अनुषांगिक संगठन हिन्दू रक्षा समिति के सौजन्य से बनारस में आक्रोश रैलियां निकाली गईं थी। एक रैली बीजेपी के सिगरा के गुलाबबाग क्षेत्रीय कार्यालय से निकाली गई, तो दूसरी टाउनहाल मैदान से। शहर के विभिन्न इलाकों से कई और रैलियां निकाली गईं जो रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर पहुंचीं।
बाद में शाम करीब साढ़े चार बजे सिगरा स्थित भारत माता मंदिर के लिए आक्रोश रैली निकाली गई। जिस रैली का वीडियो वायरल हो रहा है उसमें बनारस के शहर दक्षिणी के विधायक नीलकंठ तिवारी शामिल थे और बीजेपी के कई अन्य कद्दावर नेता भी।
इस रैली में युवाओं का हुजूम मुसलमानों के खिलाफ हिंसक नारेबाजी करते हुए दिख रहा है। मुसलमानों को निशाना बनाकर उन्हें काटने की धमकी दी जा रही है और उन्हें राम-राम कहने की हिदायत भी दी जा रही है। यह वाकया 22 अगस्त 2024 का है, जिसका वीडियो जमकर वायरल हो रहा है।
बांग्लादेश में हिन्दुओं के साथ हिंसा के विरोध में निकाली जाने वाली आक्रोश रैली को सफल बनाने के लिए 21 अगस्त 2024 को पिपलानी कटरा स्थित एक बैंक्वेट हॉल में बनारस के व्यापार संगठनों की बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें साड़ी, जरी, दवा, रेडीमेड कपड़े, गल्ला, सर्राफा, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि उत्पादों के प्रतिष्ठान गुरुवार को बंद रखने का निर्णय हुआ था।
बीजेपी से जुड़े दर्जन भर व्यापार मंडलों ने इस मुद्दे पर एकजुट होकर आक्रोश रैली में शामिल होने और दुकानों को बंद रखने पर सहमति जताई थी। बैठक में शामिल वाराणसी व्यापार मंडल काशी प्रांत के अध्यक्ष प्रमोद अग्रहरि, महानगर उद्योग व्यापार समिति के अध्यक्ष प्रेम मिश्रा, वाराणसी व्यापार मंडल के अध्यक्ष अजीत सिंह बग्गा, काशी व्यापार प्रतिनिधि मंडल के अध्यक्ष राकेश जैन, वाराणसी नगर उद्योग व्यापार मंडल के अध्यक्ष संजीव सिंह बिल्लू, अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के महानगर अध्यक्ष राकेश जैन ने बनारस बंद पर सहमति जताई थी।
बनारस में बीजेपी से जुड़े व्यापारी संगठनों के आह्वान के बावजूद दुकानदारों ने अपने प्रतिष्ठान बंद नहीं रखे। सिर्फ सप्तसागर दवा मंडी और हड़हासराय इलाके में कुछ दुकानें बंद रहीं।
आक्रोश रैली में व्यापारियों की तादाद कम, हुल्लड़ मचाने वाले ज्यादा नजर आए। आक्रोश रैली में सिर्फ बीजेपी के कुछ नेता और कार्यकर्ता ही जुटे। बनारस के आम जनसमुदाय ने इसमें न हिस्सा लिया और न ही कोई प्रतिक्रिया दी।
हिन्दू रक्षा समिति की आक्रोश रैली में राज्यमंत्री दयाशंकर मिश्र दयालू भी शामिल हुए। बाद में उन्होंने बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार के विरोध में एक्स हैंडल पर अपनी तस्वीर के साथ फोटो भी शेयर की। बीजेपी के क्षेत्रीय अध्यक्ष दिलीप पटेल ने भी एक्स हैंडल पर आक्रोश रैली का जिक्र करते हुए अपनी तस्वीर पोस्ट की है।
उधर, आक्रोश रैली में मुसलमानों के खिलाफ हिंसक नारेबाजी करने का वीडियो वायरल होने के बावजूद बनारस कमिश्नरेट पुलिस चुप्पी साधे हुए है। गुनहगारों को पकड़ने में वो इसलिए भी दिलचस्पी नहीं दिखा रही है, क्योंकि हुल्लड़ मचाते और हिंसक नारेबाजी करते युवाओं के हुजूम में बीजेपी विधायक नीलकंठ तिवारी और पार्टी के कई नेताओं के चेहरे साफ-साफ दिखाई दे रहे हैं।
हिन्दू आक्रोश रैली के चलते शहर घंटों जाम से कराहता रहा। खास बात यह है कि आक्रोश रैली में सिगरा थाने की पुलिस के अलावा अन्य थानों के जवान भी मौजूद थे, लेकिन उनकी भूमिका मूकदर्शक की रही।
क्या है वीडियो में
सोशल मीडिया पर इस प्रदर्शन से जुड़े कई वीडियो शेयर किए जा रहे हैं। इन वीडियो में कई लोग ‘जब मु&*#….काटे जाएंगे, राम-राम चिल्लाएंगे’ नारा लगाते हुए दिख रहे हैं। नारा लगाने के साथ ये लोग हाथ से काटने का इशारा भी कर रहे हैं। कुछ लोग इस वीडियो को ट्विटर, फ़ेसबुक और व्हाट्सऐप पर शेयर कर रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी विधायक नीलकंठ तिवारी कहते हैं, “वीडियो में दिख रहे लोगों को न तो मैं जानता हूं, न तो इनमें से किसी से मिला हूं और न तो इन्हें बुलाया गया था। अगर यह वीडियो सही है तो इसमें शामिल लोगों के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई हो। यदि वीडियो असत्य है तो इसे सोशल मीडिया में शेयर करने वालों के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई की जाए।”
आक्रोश रैली में शामिल रहे एक हिंदूवादी नेता ने जनचौक से नाम न छापने की शर्त पर बताया कि युवाओं के एक समूह ने उत्तेजक नारेबाज़ी की। उन्होंने कहा, “युवाओं का जो समूह नारेबाज़ी करते हुए दिख रहा है, इनमें से ज्यादातर युवक शहर के ही थे और वो बीजेपी से जुड़े रहे होंगे। मैं इन युवाओं से पहले नहीं मिला। मैं यह भी नहीं जानता कि किसने उत्तेजक नारेबाज़ी को रिकॉर्ड किया था। वीडियो में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि कम उम्र के युवा नारा लगा रहे थे कि जब मु&*#…काटे जाएंगे, राम राम चिल्लाएंगे, इसके अलावा हिंदुस्तान में रहना होगा तो जय श्रीराम कहना होगा के भी नारे लगे रहे थे जिसमें कई लोग शामिल थे।”
पहले भी हुई थी नारेबाजी
इससे पहले हिन्दू युवा वाहिनी और त्रिशक्ति सेवा फाउंडेशन ने हिन्दू नववर्ष की पूर्व संध्या पर 08 अप्रैल 2024 की शाम बनारस शहर के मैदागिन से जुलूस और शोभायात्रा निकाला था। इस जुलूस में शामिल हियुवा से जुड़े कार्यकर्ता नंगी तलवारें भांज रहे थे और उस समय भी धार्मिक व उत्तेजक नारे लगाए गए थे। नंगी तलवारें भांजते और उत्तेजक नारे लगाते हुए भगवा गमछा डाले कार्यकर्ता शाम करीब 8.15 बजे श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के गेट नंबर-चार (ज्ञानवापी क्रासिंग) के पास पहुंचे तो वहां नारेबाजी तेज हो गई। जुलूस में शामिल लोगों का नारा था, “एक धक्का और दो-ज्ञानवापी तोड़ दो…।” मजे की बात यह है कि पुलिस और खुफिया एजेंसियों के सामने काफी देर तक नारेबाजी, हंगामा और नंगी तलवारें भांजी जाती रही, लेकिन किसी ने ऐसा करने से रोकने की हिम्मत नहीं जुटाई। पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही।
हिन्दू युवा वाहिनी से जुड़े कई मनबढ़ युवकों ने 07 अप्रैल 2024 को श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के समीपवर्ती गोदौलिया चौराहे पर दशाश्वमेध थाने के एक दरोगा आनंद प्रकाश को लात-घूसों से पीटा, गाली-गलौच और धक्का-मुक्की की थी। भगवा गमछा डाले अराजकतत्वों ने दरोगा का बैच और स्टार तक नोच डाला था। साथ ही सरकारी गाड़ी को क्षतिग्रस्त कर दिया।
घटना के समय लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बनारस पुलिस वाहनों की चेकिंग कर रही थी। दरोगा का गुनाह सिर्फ इतना था कि उसने पूछताछ की नीयत से भगवा गमछा पहने युवकों की बाइक रोक दी थी। मीडिया में यह मुद्दा उठता तो दरोगा आनंद प्रकाश की लात-घूसों से जमकर पिटाई करने वाले नितीश सिंह, नितेश नरसिंघानी, राहुल सिंह, सन्नी गुप्ता, गप्पू सिंह और 15 अज्ञात के खिलाफ आईपीसी की धारा 147 (दंगा करना), 332, 353 (पब्लिक सर्वेंट को अपना काम करने से रोकना), 307 (हत्या के इरादे से नुकसान पहुंचाना), 504 (किसी को अपराध के लिए उकसाना), 506 (आपराधिक धमकी देना), 427 (व्यक्ति को तंग करने के लिए उसकी किसी भी वस्तु का 50 रुपये से ज्यादा का नुकसान करना) के तहत मामला दर्ज किया। अचरज की बात यह रही कि पुलिस ने जिन पांच अभियुक्तों को संगीन धाराओं में गिरफ्तार किया था, उन्हें कुछ ही घंटों के अंदर थाने से ही छोड़ देना पड़ा।
इससे पहले 02 जनवरी 2022 को बनारस के मुस्लिम बहुल क्षेत्र लल्लापुरा, कोयलाबाजार, ज्ञानवापी मोड़ समेत शहर के कई संवेदनशील इलाकों में हिन्दू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने अपत्तिजनक नारे लगाए थे। कुछ स्थानों पर नंगी तलवारें लहराई गईं, जिससे शहर में सनसनी फैल गई थी। उस समय भी प्रबुद्धजनों का कहना था कि हिन्दू युवा वाहिनी के मुखिया यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रहे हैं। अगर इस संगठन को उन्होंने भंग कर दिया है तो किसके इशारे पर शोभायात्रा निकाली गई और जुलूस भी। चुनाव के वक्त नंगी तलवारों को लहराने का मतलब क्या था?
पुलिस पर उठ रहे हैं सवाल
हिंसक नारेबाज़ी के वीडियो सामने आने के बाद बनारस कमिश्नरेट पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं। जिस समय ये नारेबाज़ी की जा रही थी, पुलिस के जवान वहां तैनात थे। किसी पुलिसकर्मी ने इन युवाओं को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया। सवाल उठ रहा है कि दिल्ली पुलिस मुसलमानों के ख़िलाफ़ हुई इस हिंसक नारेबाज़ी के प्रति उदासीन क्यों है?
ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने एक बार फिर हिंसक नारेबाजी के खिलाफ आरोपितों पर कोई कार्रवाई नहीं किए जाने पर आक्रोश जताया है। संस्था के संयुक्त सचिव सैयद मोहम्मद यासीन कहते हैं, “बनारस शहर में कभी नंगी तलवारे भांजी जाती हैं तो कभी हिंसक नारे लगाए जाते हैं। कोई तथाकथित संत श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के गेट पर बैठकर मुस्लिम समुदाय को खुलेआम गालियां देता है। कई कई बार पुलिस को लिखित शिकायत दे चुके हैं, लेकिन आरोपितों के खिलाफ आजतक कोई कार्रवाई नहीं हुई। नंगी तलवारें भांजने और धार्मिक उन्माद पैदा करने के लिए नारे लगाने वालों के खिलाफ एक्शन लेने से पुलिस के हाथ क्यों कांप रहे हैं और योगी सरकार की पुलिस इस मामले में क्यों सोई हुई नजर आ रही है।”
22 अगस्त 2024 को निकाले गई आक्रोश रैली का जिक्र करते हुए मोहम्मद यासीन ने जनचौक से कहा, “मु&*# काटे जाएंगे, राम-राम चिल्लाएंगे का धमकी भरा नारेबाजी के पीछे सरकार और प्रशासन की मंशा बनारस शहर को दंगे की आग में झोंकने की है। यही वजह है कि कुछ लोग जानबूझकर हिंसक कदम उठा रहे हैं ताकि मुस्लिम समुदाय आक्रोशित होकर सड़क पर उतरे और बनारस में उनका वोटबैंक मजबूत हो जाए। 22 अगस्त की हिंसक नारेबाजी के बाद बनारस के मुसलमानों और सभी शांतिप्रिय लोगों में डर पैदा हुआ है। बनारस पुलिस को इस आयोजन का संज्ञान लेना चाहिए था और इसे रोकना चाहिए था। अब पुलिस को इसके आयोजकों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करनी चाहिए।”
वो चाहते हैं धैर्य खो दें मुस्लिम
“हिन्दूवादी संगठनों के लोग चाहते हैं कि हम अपना धैर्य खो दें और जिससे वो फायदा उठा सकें। बनारसियों को उकसाने की यह कोई नई घटना नहीं है। अब से पहले यहां बहुत कुछ हो चुका है। आखिर हम कितनी मर्तबा पुलिस अफसरों को आगाह करते रहेंगे। हम कुछ बोल देंगे तो वो अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे, इसलिए चुप होकर आराजक तत्वों का नंगा-नाच देख रहे हैं।”
बनारस पुलिस की चुप्पी पर सवाल खड़ा होना लाजिमी है। इसकी बड़ी वजह यह है कि बनारस शहर में ज्यादातर जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। पुलिस चाहती तो हिंसक नारेबाजी करने वालों की पहचान के लिए सीसीटीवी फ़ुटेज और फ़ेशियल रिकॉग्नीशन सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल करके उन्हें बेनकाब कर सकती थी। पुलिस के अफसरों ने इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया। सोशल मीडिया पर इस घटना के अलग-अलग कोण से लिए गए कई वीडियो मौजूद हैं जिनमें हाथ के इशारे के साथ मुसलमानों को काटे जाने के नारे लगाते हुए लोगों के चेहरे साफ़ दिख रहे हैं।
बनारस में पीएनएन 24 न्यूज पोर्टल चलाने वाले के वरिष्ठ पत्रकार तारिक आजमी कहते हैं, ” हिन्दू आक्रोश रैली में हिंसक नारेबाज़ी सिगरा थाने के नजदीक हुई। जिस स्थान सिगरा में जिस स्थान से ये रैली निकाली गई, वो ऐसा स्थान नहीं है जहां नारेबाजी और प्रदर्शन किया जाए। मुझे ये नारेबाज़ी बहुत खतरनाक लगी। पुलिस वहां मौजूद थी, जैसे कि प्रदर्शनों में होती ही है लेकिन कोई कुछ नहीं बोल रहा था। आक्रोश रैली में की गई नारेबाजी बहुत भयावह थी। अगर स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती तब तो शहर जल रहा होता? अचरज की बात यह है कि हिंसक नारेबाजी करने वालों के साथ बीजेपी विधायक नीलकंठ तिवारी भी चल रहे थे। वो चाहते तो उन्हें ऐसा करने से रोक सकते थे।”
पत्रकार आजमी कहते हैं, “मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा के लिए भड़काने वाली नारेबाज़ी पर अल्पसंख्यक आयोग और खुफिया एजेंसियों को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए। अल्पसंख्यक आयोग को खुद पुलिस से पूछना चाहिए कि हिंसक नारेबाज़ी करने वालों की पहचान अब तक क्यों नहीं की गई? अल्पसंख्यक आयोग को यह भी पूछना चाहिए कि बनारस की कमिश्नरेट पुलिस भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या-क्या क़दम उठाने जा रही है? हाल के दिनों में बनारस में कही नंगी तलवारें भांजी गई तो कभी हिंसक नारेबाजी की गई, लेकिन पुलिस के कामकाज और उसकी जांच के तरीके हमेशा “हास्यास्पद और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना” ही रहे।”
सोची-समझी साज़िश
उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष हरिशंकर सिंह कहते हैं, “भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। सभी धर्मावलंबियों को समान रूप से रहने का अधिकर है। तलवार लहराने और विवादित भाषणबाजी की घटना समुदायों के बीच शत्रुता फैलाने से संबंधित है। इस तरह के मामलों में कम से कम तीन साल तक के कारावास का प्रावधान है। उन्मादियों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई न किया जाना प्रशासन की अक्षमता को उजागर करता है। हियुवा के जुलूस में तलवार लहराने की घटना देख की एकता-अखंडता और शांति-सद्भावना के लिए ख़तरा है। उन्माद फैलाने की छूट किसी को नहीं दी जानी चाहिए। शांति और सद्भाव तो पुलिस के रवैये से तय होता है।”
“हिंसक नारेबाजी की घटना बनरस के सिगरा इलाके में हुई और इलाकाई थाना पुलिस को शरारतीतत्वों को तत्काल गिरफ़्तार कर लेना चाहिए था, जिन्होंने शहर में हिंसक नारेबाजी की थी। अगर सख्ती के साथ कार्रवाई की जाती है तो यह दूसरे लोगों के लिए भी एक सबक़ होता, लेकिन पुलिस की चुप्पी बता रही है कि वह आने वाली सुनामी का इंतजार कर रही है। सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध करता हूं कि वह इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना को स्वतः संज्ञान में ले।”
एडवोकेट सिंह यह भी कहते हैं, “उत्तेजक जयकारा लगाया जाना संविधान विरोधी कार्य है। इस मामले में धर्म, मूलवंश, भाषा, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, इत्यादि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता का संप्रवर्तन और आपसी सौहार्द्र के माहौल पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले कानूनों के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए। भारतीय कानून में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि बोले गए या लिखे गए शब्दों या संकेतों के द्वारा विभिन्न धार्मिक, भाषाई या जातियों और समुदायों के बीच सौहार्द्र बिगाड़ना या शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएं पैदा करना संगीन अपराध की श्रेणी में आता है। इस तरह के मामलों में धारा 153ए आईपीसी के साथ अन्य संगीन धाराओं के तहत कार्रवाई होनी चाहिए। अगर आरोपितों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती है तो माना जाएगा कि राजनीतिक दबाव में काम कर रही है। जिस रैली में हिंसक नारे लगाए गए हैं उनकी ऑडियो क्लिपें सार्वजनिक हो चुकी हैं। पुलिस को वीडियो और फोटोग्राफ का सत्यापन करते हुए तत्काल एक्शन लेना चाहिए।”
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय बीजेपी सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहते हैं, “पिछले आठ सालों से बीजेपी यूपी की सत्ता में है। ऐसे में उसके कार्यकर्ताओं को हिंसक नारेबाजी कर आतंक फैलाने की जरूरत क्यों पड़ रही है। जिन लोगों ने जनता का कोई काम नहीं किया है, वह सोच रहे हैं किस मुंह से जनता का सामना करेंगे? सबसे अच्छा उपाय यही है कि धर्म की चादर ओढ़ लीजिए, तो कोई नहीं बोलेगा। हिन्दू समाज के कुछ लोग बोलेंगे भी तो लोग यही कहेंगे देखिए धर्म के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं। इस समय जनता की असली समस्या बेरोज़गारी, महंगाई, स्वास्थ्य है, लेकिन इन मुद्दों पर सत्तारूढ़ दल का कोई नेता बात नहीं करना चाहता। विकास के झूठ को धर्म की चाशनी में लपेट कर लोगों को परोसने की कोशिश की जा रही है। भाजपा और उसके अनुषांगिक संगठनों का पुराना एजेंडा तो यही है।”
ये बीजेपी का पुराना अंदाज
वरिष्ठ पत्रकार राजीव मौर्य कहते हैं, “जब आप धर्म और राजनीति का घालमेल करते हैं तो इंसाफ की लकीरें धुंधली पड़ने लगती हैं। हम बोलेंगे तो राष्ट्रद्रोही हो जाएंगे और वो कुछ भी बोल देंगे तो उनका बाल बांका भी नहीं होगा। नंगा सच यह है कि भाजपा यूपी में चुनाव लड़ने से ही डर रही है। सिर्फ धर्म ही ऐसी संजीवनी है जिसके दम पर वो सियासत में अपनी पकड़ मजबूत बना सकते हैं। इसीलिए बनारस की आक्रोश रैली में मुसलमानों को काटने का टाइमबम फोड़े गए। यह सब कुछ बीजेपी के जनप्रतिनिधियों और कद्दावर नेताओं की मौजूदगी में उनके इशारे पर हो रहा है।”
“यूपी के मुखिया मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आगरा में खुलेआम यह भाषण दिया था कि जो बंटेंगे वो कटेंगे। इसी परिणति है कि बनारस में बीजेपी के कार्यकर्ता और नेता कभी हिंसक नारेबाजी करते हैं तो कभी नंगी तलवारें लहराते हैं। साल 2014 में मोदी जब चुनाव लड़ रहे थे तब उन्होंने धर्म और विकास की बात की थी। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनाने के बाद अदालत में ज्ञानवापी मस्जिद की ज़मीन के लिए के लिए ताबड़तोड़ मुकदमें दाखिल गए गए। भाजपा तो साल 1980 के दशक में आरएसएस के बनाए हुए एजेंडे पर चल रही है। जनता है कि वो आरएसएस के पुराने एजेंडों को भूल जाती है। बीजेपी के लिए धर्म संजीवनी की तरह है जिसके दम वह सियासत में खम ठोंकती आ रही है। मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए बनारस में जानबूझकर हिंसक नारेबाजी कराई जाती डबल इंजन की भाजपा सरकार में न कानून के रखवाले भी सुरक्षित हैं और न ही आम जनता।”
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी को लगता है कि बीजेपी के लोग यह भूल गए हैं कि बनारस कबीर और नजीर का शहर है। इस शहर की गंगा-जमुनी तहजीब को जिस तरह मसला जा रहा है उसके दूरगामी नजीजे भयावह हो सकते हैं। वह कहते हैं, “आतंक फैलाने वाली रैली में हिंसक नारेबाजी के वीडियो क्लिप जानबूझकर वायरल किए जा रहे हैं।”
दुनिया की धार्मिक और सांस्कृति राजधानी बनारस में यह सब क्यों किया जा रहा है? इसके जवाब में पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी कहते हैं, “धार्मिक उन्माद फैलाना भाजपा का पुराना एजेंडा रहा है। बनारस में भड़काऊ नारेबाजी व विवादित भाषण बीजेपी और उनके अनुषांगिक संगठनों की सोची-समझी साजिश का नतीजा है। सभी को मालूम है कि हरिद्वार की धर्म संसद में भाजपाई संतों ने जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खिलाफ जहर उगला तब भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।”
ये रास्ता आतंकवाद का है
राजेंद्र तिवारी कहते हैं, “जब भी कोई चुनाव नजदीक आता है, हिन्दू आतंकवाद सामने आने लगता है। यूपी में विधानसभा की कई सीटों पर उप चुनाव होने वाला है और योगी सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। जिस सूबे के मुखिया धार्मिक ताने-बाने में हों, उनके अनुषांगिक संगठन के लोग हिंसक नारेबाजी कर रहे हैं तो यह कोई हैरत की बात नहीं है। गनीमत है कि अभी वो नारे ही लगा रहे हैं। हर कोई जानता है कि हिंसक नारों से आतंक का संदेश निकलता है, अहिंसा का नहीं। हमें लगता है कि अगर वो असाल्ट राइफल-एके 47 और एके 56 लेकर चलेंगे तब भी बोलने वाला कोई नहीं होगा। सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने के लिए बनारस में जिस तरीके और जिस तंत्र का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह रास्ता आतंकवाद का है। सनातन हिन्दू धर्म में उग्रवाद के लिए कोई जगह नहीं है, लेकिन सियासी मुनाफे के लिए यूपी में हर तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।”
“बीजेपी के अनुषांगिक संगठन हिन्दू रक्षा समित के लोग किन लोगों को काटने की धमकी दे रहे हैं। अभी मुसलमानों और ईसाइयों को डराया जा रहा है और आगे चलकर सिखों व जैनियों को भी धमकाया जाएगा। अभी जो कट्टरता है, वो सरकारी शह पाकर बड़ा होगी और आगे बढ़ जाएगी। जब एक खास तबके को उग्रवाद का जहर पिलाया जाएगा तो अयोध्या की तरह न जाने कितने पूजा स्थलों का सफाया हो जाएगा। हमें तो लगता है कि यह सब सियासी मुनाफे के लिए तय रणनीति के तहत दुर्भावना का संदेश फैलाया जा रहा है।”
पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी यह भी कहते हैं, “आक्रोश रैली बहाने हिन्दुओं को उकसाना सामान्य बात नहीं है। कोई भी सभ्य समाज असहिष्णु भाषण बर्दाश्त नहीं करता। मुस्लिम बहुल इलाके लल्लापुरा से रैली निकालकर भड़काऊ नारेबाजी को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। यह समय चौंकने का नहीं, बल्कि सक्रिय रूप से कट्टरवाद का मुक़ाबला करने का है। मुस्लिम समुदाय के लोगों को काटने की धमकी देने और योगी सरकार के आंखें मूंद लेने की हम कड़ी निंदा करते हैं। असामाजिक तत्व तेज़ी से मुख्यधारा बन रहे हैं और वो घोर नफ़रत भरे और सांप्रदायिक भाषण देने में सक्षम हैं। पुलिस, राज्य और केंद्र सरकार की यह परीक्षा है और हम देखेंगे कि आयोजकों के ख़िलाफ़ क्या कार्रवाई की जाती है? हमने जो देखा और सुना, उससे बदतर कोई नफ़रत भरा भाषण नहीं हो सकता था। एक तरह से यह नरसंहार का सीधा आह्वान है।”
तिवारी यह भी कहते हैं, “बीजेपी के खुराफाती और घटिया विदेश नीति के चलते विदेशों में हिन्दुओं पर हमले हो रहे हैं। इस मामले में बनारस के सांसद एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक भी बयान नहीं आना इस बात को तस्दीक करता है कि बीजेपी की विदेश नीति पूरी तरह फ्लाप है और बंगाल कांड के लिए जिम्मेदार बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ऐसी महिला हैं जिसे दुनिया का कोई देश संरक्षण देने के लिए तैयार नहीं है। दूसरी ओर, बीजेपी हिन्दुस्तान के मुसलमानों के अंदर जानबूझकर दहशत पैदा कर रही है। इसके जरिये वो अपने आठ साल के नाकारेपन को ढंकने की कोशिश कर रही है। समाज को गुमराह करके इसलिए नफरत के बीज बो रही है ताकि उसकी फसल उप चुनाव में काटी जा सके।”
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं )
साभार : जनचौक