अनंतनाग: लोकसभा चुनाव की तारीख़ बदली, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने ‘साज़िश’ क़रार दिया

Written by जहांगीर अली | Published on: May 1, 2024
अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट के लिए मतदान की तारीख 7 मई से बदलकर 25 मई कर दी गई है। निर्वाचन आयोग के इस फैसले को 'दुर्भाग्यपूर्ण' बताते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने आरोप लगाया कि यह खानाबदोश गुज्जर-बकरवाल आबादी को मताधिकार से वंचित करने की साज़िश है। यह समुदाय अमूमन मई के अंत तक सालाना प्रवास पर जाता है।


अनंतनाग निर्वाचन क्षेत्र में नेशनल कॉन्फ्रेंस की एक रैली। (फोटो साभार: X/@JKNC_)

श्रीनगर: भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में कुछ राजनीतिक दलों के कड़े विरोध के बावजूद अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट के लिए मतदान की तारीख में बदलाव कर दिया है। इस क्षेत्र में पहले तीसरे चरण के तहत 7 मई को चुनाव होने थे, जिसे अब छठे चरण (25 मई) तक के लिए टाल दिया गया है।

चुनाव आयोग का ये फैसला ऐसे समय में सामने आया है, जब इस निर्वाचन क्षेत्र के महत्वपूर्ण मतदाता- आदिवासी गुज्जर और बकरवाल समुदाय के लोग अपने सलाना प्रवास के लिए पीर पंजाल की पहाड़ियों की ओर जाने को तैयार हैं। इस समुदाय की यहां अच्छी-खासी आबादी है, जो मतदान के लिहाज से बेहद अहमियत रखती है। अब चुनाव की तारीख टलने से इनके वोट देने की स्थिति पर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं।

चुनाल आयोग के इस फैसले को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताते हुए जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने आरोप लगाया कि यह ‘खानाबदोश गुज्जर-बकरवाल आबादी को मताधिकार से वंचित करने की साजिश’ है, जो उनकी पार्टी के उम्मीदवार वरिष्ठ आदिवासी नेता मियां अल्ताफ लार्वी के लिए एक महत्वपूर्ण वोट बैंक है।

अब्दुल्ला ने द वायर से कहा, ‘भारतीय जनता पार्टी अच्छी तरह से जानती है कि ये आदिवासी लोग अपने पशुओं के साथ (25 मई तक) ऊंचे चरागाहों पर चले जाएंगे। वे यह भी जानते हैं कि ये आदिवासी लोग किसे वोट देते हैं। चुनाव आयोग को ऐसा नहीं होने देना चाहिए था।’

मालूम हो कि इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ साइंटिफिक रिसर्च के जर्नल ऑफ ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंस की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में गुज्जर और बकरवाल समूह तीसरा सबसे बड़ा समुदाय हैं, जो कुल आबादी का 8।1 प्रतिशत हिस्सा है।

दोनों आदिवासी समूह मुख्य रूप से जम्मू के पुंछ (40।12%) और राजौरी (33।19%) जिले और कश्मीर घाटी के अनंतनाग और कुलगाम जिलों (8।3%) में केंद्रित हैं, जो एक साथ नवगठित अनंतनाग-राजौरी लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हैं।

चुनाव आयोग ने मंगलवार (30 अप्रैल) को एक विशेष गजट अधिसूचना में कहा कि अनंतनाग-राजौरी निर्वाचन क्षेत्र में मतदान तीसरे चरण में 7 मई की जगह, अब छठे चरण में 25 मई को होगा। यह सीट 2022 में जम्मू-कश्मीर परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी।

आयोग की ये अधिसूचना सत्तारूढ़ भाजपा और चार अन्य राजनीतिक दल, जिन्हें व्यापक तौर पर भाजपा के सहयोगी के रूप में देखा जाता है, के प्रत्यावेदन के बाद सामने आई। आवेदन देने वालों में दो स्वतंत्र उम्मीदवार भी शामिल थे, जिन्होंने अन्य कारणों के साथ ही खराब मौसम के चलते प्रत्याशियों की मतदाताओं तक पहुंच का हवाला देते हुए चुनाव को स्थगित करने के लिए आयोग से संपर्क किया था।

भाजपा और अन्य दलों के आह्वान पर आयोग ने पिछले सप्ताह जम्मू-कश्मीर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) पीके पोले और मुख्य सचिव अटल डुलो से निर्वाचन क्षेत्र में ‘सड़क की स्थिति, मौसम और पहुंच संबंधी बाधाओं’ पर रिपोर्ट मांगी थी।

अब चुनाव आयोग ने मतदान की तारीख में बदलाव की घोषणा करते हुए इसी रिपोर्ट को आधार बनाया है।

आयोग ने कहा कि उससे कुछ राजनीतिक दलों ने संचार और कनेक्टिविटी की प्राकृतिक बाधाओं के कारण चुनाव प्रचार में आने वाली चुनौतियों को लेकर मतदान की तारीख बदलने का आग्रह किया था, जिसके बाद आयोग ने ये फैसला किया है, क्योंकि ये बाधाएं चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिए उचित अवसरों की कमी के समान है।

अपनी नई अधिसूचना में आयोग ने कहा कि ‘जमीनी स्थिति का विश्लेषण’ करने और जम्मू-कश्मीर प्रशासन की रिपोर्ट देखने के बाद जन प्रतिनिधित्व की धारा 56, अधिनियम, 1951। के तहत मतदान की तारीख को संशोधित किया गया है।

उधर, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) दोनों ने श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग से वैकल्पिक सड़क की ओर इशारा करते हुए चुनाव टालने के लिए ‘कनेक्टिविटी’ के तर्क को खारिज कर दिया है। ये सड़क अनंतनाग-राजौरी के दो अलग-अलग क्षेत्रों को जोड़ती है।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, भाजपा का मानना है कि घटते हुए गुज्जर और बकरवाल वोट नेशनल कॉन्फ्रेंसऔर पीडीपी के बीच बंट सकते हैं। इसके पीछे बड़ी वजह है कि हाल ही में पहाड़ी भाषी लोगों के विकास के लिए यहां उन्हें आदिवासी का दर्जा दिया गया है, जिनकी आबादी 56 प्रतिशत से अधिक है। इन लोगों का पुंछ और राजौरी जिलों में समीकरण भाजपा की सहयोगी सहयोगी और ‘अपनी पार्टी’ के उम्मीदवार जफर इकबाल मन्हास के पक्ष में हो सकता है।

गौरतलब है कि अपनी पार्टी और सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (पीसी) उन पांच राजनीतिक दलों में शामिल थीं, जिन्होंने मतदान की तारीख टालने के लिए चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया था। हालांकि भाजपा और पीसी ने इस निर्वाचन क्षेत्र से कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है।

पहले ऐसी खबरें थीं कि अगर निर्वाचन आयोग ने चुनाव स्थगित कर दिया और निर्वाचन क्षेत्र के लिए नए कार्यक्रम की घोषणा की गई, तो भाजपा भी इस निर्वाचन क्षेत्र से अपना उम्मीदवार खड़ा कर सकती है, लेकिन नई अधिसूचना ने उस संभावना को खारिज कर दिया है।

इस अधिसूचना में कहा गया है कि पिछली अधिसूचना संख्या 464/ईपीएस/2024(3), दिनांक 12 अप्रैल, 2024 की बाकी सामग्री, जिसके तहत 19 अप्रैल अनंतनाग-राजौरी लोकसभा क्षेत्र के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने की आखिरी तारीख थी, इसमें कोई बदलाव नहीं होगा।

इससे पहले अपनी अधिसूचना में आयोग ने कहा था कि जम्मू संभाग के कुछ हिस्सों को कश्मीर घाटी के साथ विलय करके इस क्षेत्र को फिर से बनाया गया है और यह क्षेत्र 7 मई को लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में मतदान करेगा।

चुनाव में कंगन विधानसभा क्षेत्र से पांच बार के विधायक नेशनल कॉन्फ्रेंस के अल्ताफ, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती और पहाड़ी राजनेता मन्हास के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होने की उम्मीद है।

गुलाम नबी आज़ाद की नवगठित पार्टी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी ने घोषणा की थी कि पूर्व कांग्रेस नेता निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे। लेकिन बाद में उन्होंने एक चैंकाने वाले कदम में अपनी नई पार्टी बनाने की प्रतिबद्धताओं का हवाला देते हुए अपने चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर दी। इसके बाद इस सीट से एक वकील सलीम पारे को मैदान में उतारा गया।

यहां मुकाबले की अहम दावेदार नेशनल कॉन्फ्रेंस का मानना ​​​​है कि चुनाव की तारीख में बदलाव से अल्ताफ की जीत की संभावनाओं पर असर पड़ सकता है। महबूबा ने भी इसका विरोध करते हुए इस तरह के कदम की तुलना 1987 की धांधली से करते हुए चेतावनी दी थी कि मतदान को स्थगित करने का कोई भी प्रयास ‘चुनाव की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाएगा।’

माना जाता है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव ने 1990 के दशक की शुरुआत में सशस्त्र विद्रोह को जन्म दिया था।

साभार: द वायर

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