तमाम दावों के बावजूद भारत में भ्रष्टाचार बढ़ गया है। भ्रष्टाचार की रैंकिंग तैयार करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की 180 देशों की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में 2023 में भ्रष्टाचार पहले से बढ़ गया है। सोमवार यानी 30 जनवरी को जारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत की रैंकिंग आठ स्थान गिर गई है। करप्शन परसेप्शन इंडेक्स (CPI) में भारत 2023 में 93वें स्थान पर आ गया है, जबकि एक साल पहले 2022 में भारत 85वें स्थान पर था। भ्रष्टाचार सूचकांक में भारत की रैंकिग का गिरना, अमृतकाल में देश के भ्रष्टाचार मुक्त होने के दावों पर भी एक बड़ा सवाल है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 के लिए भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक (CPI) में भारत 180 देशों में से 93वें स्थान पर है। इस सूचकांक में सार्वजनिक क्षेत्र के भ्रष्टाचार के अनुमानित स्तर के आधार पर देशों को सूचीबद्ध किया जाता है। इस सूचकांक में डेनमार्क को शीर्ष पर रखा गया है, उसके बाद फिनलैंड, न्यूजीलैंड और नॉर्वे हैं।
करप्शन परसेप्शन इंडेक्स (CPI) के लिए ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के विशेषज्ञ हर देश के पब्लिक सेक्टर में भ्रष्टाचार का आकलन करते हैं। इसके बाद हर देश को शून्य से एक सौ के बीच स्कोर दिया जाता है। जिस देश में जितना ज्यादा भ्रष्टाचार, उसे उतना कम स्कोर दिया जाता है। इसी आधार पर इंडेक्स में रैंकिंग निर्धारित होती है। मंगलवार को जारी की गई 2023 की रिपोर्ट में भारत का स्कोर 39 निर्धारित किया गया है। 2022 में यह स्कोर 40 था। सिर्फ एक नंबर के कम होने से भारत 8 पायदान नीचे चला गया है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के भी अनुसार, सूचकांक 0 से 100 के पैमाने का उपयोग करता है, जहां 0 अत्यधिक भ्रष्ट है और 100 बहुत साफ है। साल 2023 में भारत का कुल स्कोर 39 था, जबकि 2022 में यह 40 था। 2022 में भारत की रैंक 85 थी। एशियाई देशों में सिंगापुर 83 अंक प्राप्त कर शीर्ष पर रहा और कुल देशों की सूची में यह पांचवें स्थान पर रहा।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत (39) में स्कोर में इतना कम उतार-चढ़ाव दिखता है कि किसी भी महत्वपूर्ण बदलाव पर कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है। हालांकि, चुनावों से पहले भारत में नागरिक स्थान में और कमी देखी जा रही है, जिसमें एक (दूरसंचार) विधेयक का पारित होना भी शामिल है, जो मौलिक अधिकारों के लिए ‘गंभीर खतरा’ हो सकता है।’ रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिमी यूरोप और यूरोपीय यूनियन शीर्ष स्कोरिंग क्षेत्र बने रहे, इस साल इसका क्षेत्रीय औसत स्कोर गिरकर 65 हो गया, क्योंकि नियंत्रण और संतुलन कमजोर हो गए और राजनीतिक अखंडता खत्म हो गई। इसमें कहा गया है कि दक्षिण एशिया में पाकिस्तान (133वीं रैंक) और श्रीलंका (115वीं रैंक) दोनों अपने-अपने कर्ज के बोझ और आगामी राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, सूचकांक में सबसे नीचे म्यांमार (162), अफगानिस्तान (162) और उत्तर कोरिया (172) शामिल हैं। सबसे कम 11 अंक के साथ सोमालिया 180वें स्थान पर है। रिपोर्ट के मुताबिक चीन 76वें और पाकिस्तान 133 नंबर पर है। वहीं, डेनमार्क एक नंबर पर है, जहां सबसे कम भ्रष्टाचार है और सोमालिया 180 देशों की सूची में सबसे नीचे है।
भ्रष्टाचार एजेंडे पर ही नहीं!
जी हां, भ्रष्टाचार अवधारणा सूचकांक में भारत एक साल में 8 अंक गिरा है लेकिन यह खबर मीडिया की सुर्खियों में उस तरह से नहीं आई है, जैसा दस साल पहले होता था। तत्कालीन यूपीए सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का नैरेटिव बनाने में अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल (टीआई) की रिपोर्टों ने बड़ी भूमिका निभाई थी। लेकिन अब जबकि अंतरराष्ट्रीय सूचकांक में गिर कर भारत फिर लगभग दस साल पहले जितने ही स्थान पर पहुंच गया है, तब इसको लेकर शायद ही कोई शोरगुल है। गौरतलब है कि 2012 में भारत टीआई सूचकांक में 94वें नंबर पर था। ताजा जारी 2023 के सूचकांक में वह 93वें स्थान पर है। यानी भारत को आज लगभग उतना ही भ्रष्ट देश समझा जा रहा है, जितना 12 साल पहले समझा गया था। खास है कि ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल की जो कसौटियां आज हैं, वही दस साल पहले भी थीं। प्रश्न है कि अगर इन कसौटियों पर तैयार भ्रष्टाचार सूचकांक से उभरी सूरत को लेकर तत्कालीन (कांग्रेस) सरकार की जैसी भ्रष्ट छवि बनी थी, तो आज वैसा ही क्यों नहीं हो रहा है?
संभवतः इसका एक कारण राजनीतिक कथानक तैयार करने के माध्यमों पर सत्ता पक्ष का कसता गया शिकंजा है। साथ ही सिविल सोसायटी के संगठन या तो अपने राजनीतिक रुझानों की वजह से चुप हो गए हैं, या फिर वे इतने भयभीत हैं कि वे उन्हीं मुद्दों पर अब नहीं बोलते, जिनको लेकर एक समय वे अतिशय वाचाल होते थे। जबकि इस दौरान देश में पारदर्शिता और धुंधली हुई है। इसके बावजूद इस पर समाज आंदोलित नहीं है, तो यह भारतीय समाज पर एक प्रतिकूल टिप्पणी है। कुछ भी हो अमृतलाल में भ्रष्टाचार का बढ़ना एक बड़ा सवाल है।
अमृतकाल में भ्रष्टाचार मुक्त होने के दावों पर सवाल
प्रधानमंत्री मोदी के साथ पूरी बीजेपी लगातार कांग्रेस सहित सभी विपक्षी पार्टियों को भ्रष्टाचार की जननी करार देती रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हाल में ही विधानसभा चुनावों के दौरान राजस्थान और छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी सभी सभाओं में तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों और सरकार को भ्रष्टाचारी बताया था। वर्ष 2023 में 15 अगस्त को 77वें स्वाधीनता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले से पिछली सरकारों के भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण और परिवारवाद को देश का सबसे बड़ा दुश्मन बताया था और गृहमंत्री अमित शाह ने सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का जवाब देते हुए संसद में दिए गए चुनावी भाषण में भी इसे दुहराया था। पर इस सरकार और बीजेपी की परंपरा के अनुरूप नारों से आगे हकीकत में कुछ नहीं होता, और यही तथ्य इस इंडेक्स से भी जाहिर होता है।
Related:
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 के लिए भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक (CPI) में भारत 180 देशों में से 93वें स्थान पर है। इस सूचकांक में सार्वजनिक क्षेत्र के भ्रष्टाचार के अनुमानित स्तर के आधार पर देशों को सूचीबद्ध किया जाता है। इस सूचकांक में डेनमार्क को शीर्ष पर रखा गया है, उसके बाद फिनलैंड, न्यूजीलैंड और नॉर्वे हैं।
करप्शन परसेप्शन इंडेक्स (CPI) के लिए ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के विशेषज्ञ हर देश के पब्लिक सेक्टर में भ्रष्टाचार का आकलन करते हैं। इसके बाद हर देश को शून्य से एक सौ के बीच स्कोर दिया जाता है। जिस देश में जितना ज्यादा भ्रष्टाचार, उसे उतना कम स्कोर दिया जाता है। इसी आधार पर इंडेक्स में रैंकिंग निर्धारित होती है। मंगलवार को जारी की गई 2023 की रिपोर्ट में भारत का स्कोर 39 निर्धारित किया गया है। 2022 में यह स्कोर 40 था। सिर्फ एक नंबर के कम होने से भारत 8 पायदान नीचे चला गया है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के भी अनुसार, सूचकांक 0 से 100 के पैमाने का उपयोग करता है, जहां 0 अत्यधिक भ्रष्ट है और 100 बहुत साफ है। साल 2023 में भारत का कुल स्कोर 39 था, जबकि 2022 में यह 40 था। 2022 में भारत की रैंक 85 थी। एशियाई देशों में सिंगापुर 83 अंक प्राप्त कर शीर्ष पर रहा और कुल देशों की सूची में यह पांचवें स्थान पर रहा।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत (39) में स्कोर में इतना कम उतार-चढ़ाव दिखता है कि किसी भी महत्वपूर्ण बदलाव पर कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है। हालांकि, चुनावों से पहले भारत में नागरिक स्थान में और कमी देखी जा रही है, जिसमें एक (दूरसंचार) विधेयक का पारित होना भी शामिल है, जो मौलिक अधिकारों के लिए ‘गंभीर खतरा’ हो सकता है।’ रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिमी यूरोप और यूरोपीय यूनियन शीर्ष स्कोरिंग क्षेत्र बने रहे, इस साल इसका क्षेत्रीय औसत स्कोर गिरकर 65 हो गया, क्योंकि नियंत्रण और संतुलन कमजोर हो गए और राजनीतिक अखंडता खत्म हो गई। इसमें कहा गया है कि दक्षिण एशिया में पाकिस्तान (133वीं रैंक) और श्रीलंका (115वीं रैंक) दोनों अपने-अपने कर्ज के बोझ और आगामी राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, सूचकांक में सबसे नीचे म्यांमार (162), अफगानिस्तान (162) और उत्तर कोरिया (172) शामिल हैं। सबसे कम 11 अंक के साथ सोमालिया 180वें स्थान पर है। रिपोर्ट के मुताबिक चीन 76वें और पाकिस्तान 133 नंबर पर है। वहीं, डेनमार्क एक नंबर पर है, जहां सबसे कम भ्रष्टाचार है और सोमालिया 180 देशों की सूची में सबसे नीचे है।
भ्रष्टाचार एजेंडे पर ही नहीं!
जी हां, भ्रष्टाचार अवधारणा सूचकांक में भारत एक साल में 8 अंक गिरा है लेकिन यह खबर मीडिया की सुर्खियों में उस तरह से नहीं आई है, जैसा दस साल पहले होता था। तत्कालीन यूपीए सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का नैरेटिव बनाने में अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल (टीआई) की रिपोर्टों ने बड़ी भूमिका निभाई थी। लेकिन अब जबकि अंतरराष्ट्रीय सूचकांक में गिर कर भारत फिर लगभग दस साल पहले जितने ही स्थान पर पहुंच गया है, तब इसको लेकर शायद ही कोई शोरगुल है। गौरतलब है कि 2012 में भारत टीआई सूचकांक में 94वें नंबर पर था। ताजा जारी 2023 के सूचकांक में वह 93वें स्थान पर है। यानी भारत को आज लगभग उतना ही भ्रष्ट देश समझा जा रहा है, जितना 12 साल पहले समझा गया था। खास है कि ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल की जो कसौटियां आज हैं, वही दस साल पहले भी थीं। प्रश्न है कि अगर इन कसौटियों पर तैयार भ्रष्टाचार सूचकांक से उभरी सूरत को लेकर तत्कालीन (कांग्रेस) सरकार की जैसी भ्रष्ट छवि बनी थी, तो आज वैसा ही क्यों नहीं हो रहा है?
संभवतः इसका एक कारण राजनीतिक कथानक तैयार करने के माध्यमों पर सत्ता पक्ष का कसता गया शिकंजा है। साथ ही सिविल सोसायटी के संगठन या तो अपने राजनीतिक रुझानों की वजह से चुप हो गए हैं, या फिर वे इतने भयभीत हैं कि वे उन्हीं मुद्दों पर अब नहीं बोलते, जिनको लेकर एक समय वे अतिशय वाचाल होते थे। जबकि इस दौरान देश में पारदर्शिता और धुंधली हुई है। इसके बावजूद इस पर समाज आंदोलित नहीं है, तो यह भारतीय समाज पर एक प्रतिकूल टिप्पणी है। कुछ भी हो अमृतलाल में भ्रष्टाचार का बढ़ना एक बड़ा सवाल है।
अमृतकाल में भ्रष्टाचार मुक्त होने के दावों पर सवाल
प्रधानमंत्री मोदी के साथ पूरी बीजेपी लगातार कांग्रेस सहित सभी विपक्षी पार्टियों को भ्रष्टाचार की जननी करार देती रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हाल में ही विधानसभा चुनावों के दौरान राजस्थान और छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी सभी सभाओं में तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों और सरकार को भ्रष्टाचारी बताया था। वर्ष 2023 में 15 अगस्त को 77वें स्वाधीनता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले से पिछली सरकारों के भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण और परिवारवाद को देश का सबसे बड़ा दुश्मन बताया था और गृहमंत्री अमित शाह ने सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का जवाब देते हुए संसद में दिए गए चुनावी भाषण में भी इसे दुहराया था। पर इस सरकार और बीजेपी की परंपरा के अनुरूप नारों से आगे हकीकत में कुछ नहीं होता, और यही तथ्य इस इंडेक्स से भी जाहिर होता है।
Related: