वाराणसी में अदा की गई 'अगहनी जुमे की नमाज', 450 साल से जारी है यह परंपरा

Written by sabrang india | Published on: December 9, 2023
इस समय हिन्दू कैलेण्डर का माह अगहन चल रहा है, मगर यह भी खूब है कि बनारस में मुस्लिम इस महीने के पहले जुमे को नमाज अदा करके आस्था को मिल्लत का रूप देते हैं। शहर के पुराना पुल स्थित मस्जिद में मुस्लिम भाइयों ने 450 साल से भी ज्यादा पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए अगहनी जुमे की नमाज अदा की। माना जाता है कि अगहनी जुमे की नमाज पढने का दौर बादशाह अकबर के जमाने से चला आ रहा है। इस जुमे की नमाज की खास बात ये है की हिंदुस्तान में सिर्फ बनारस में ही यह नमाज अदा की जाती है।


अगहनी जुम्मे की नमाज अदा करते लोग, तस्वीर साभार: भास्कर

वाराणसी। 450 साल पहले, जब देश में सूखा ने बुरी तरह से लोगों को प्रभावित किया तब बुनकारी के क्षेत्र में भी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। इस मुश्किल समय में काशी के बुनकरों ने एक अद्वितीय प्रयास किया। उन्होंने पुराने पुल, पुल कोहना ईदगाह में अगहन महीने के जुमे में नमाज अदा की। इस नमाज की अदायगी के साथ ही, चमकीली बूंदें गिरीं और समृद्धि की किरणें फैलीं। यह नमाज अब हर साल अगहन माह के दूसरे जुमे को इस ईदगाह में मुल्क की तरक्की और खुशहाली के लिए पढ़ी जाती है, जिसमें हजारों बुनकर एकत्रित होते हैं। आज के दिन मुर्री (कारोबार) भी बंद रहती है।

सदियों से बुनकर बिरादरी निभा रही है परंपरा

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बुनकर तंजीम बाईसी, चौदवीं, बारवीं सभी से जुड़े लोग इस अगहनी जुमे की नमाज अदा करने उमड़ते हैं। मस्जिद परिसर में नमाज के बाद तंजीम बाईसी के सरदार मोईनुद्दीन अंसारी ने बताया कि यह बुनकर समाज की 450 साल से अधिक पुरानी परंपरा है। उस वक़्त जब देश में अकाल पड़ा और कारोबार ठप्प हो गए। लोग दाने-दाने को मोहताज हुए तो उस वक्त के लोगों ने इस ईदगाह में अगहनी जुमे की नमाज अदा की। अल्लाह की बारगाह में बारिश और मुल्क की तरक्की के लिए हाथ बलन्द किया तो उसने भी मायूस नहीं किया और जमकर बारिश हुई। तभी से यह परंपरा शुरू हुई और आज हम उसे निभाते आ रहे हैं।

रोजागर की दुश्वारियों पर होती है चर्चा

वहीं उन्होंने बताया कि आज के दिन हम लोग मुर्री (कारोबार) बंद रखते हैं। नमाज के बाद सभी तंजीमों के सरदार और सदस्य मिलकर बनारस के बुनकारी के कारोबार से जुड़े लोगों के साथ बैठकर कारोबार में हो रही दिक्कतों के बारे में चर्चा करते हैं और उसे कैसे हल किया जाए इसका सल्यूशन निकालते हैं। सभी सरदार अपनी-अपनी तंजीम का प्रतिनिधित्व करते हैं और समस्याओं को रखते हैं। इस बैठक की खास बात यह है कि इसमें मुल्क की तरक्की और खुशहाली के लिए दुआख्वानी के साथ ही साथ आगे की रणनीति भी बनाई जाती है। इस बैठक में जो फैसला होता है उसे सर्वसम्मति से माना जाता है।

ईदगाह पुलकोहना के आसपास होता है मेले जैसा नजारा

बनारस में ऐसा अक्सर देखा जाता है की कोई भी त्यौहार हो इसे हिन्दू मुस्लिम मिलकर मानते है। चाहे ईद हो या दिवाली या फिर होली, उसी तरह आज का ये तारीखी दिन भी हिन्दू मुस्लिम मिलकर मानते है। आज नमाज के दौरान हजारों के मजमे में कुछ ही देर में कई ट्रक गन्ने की बिक्री हो जाती है। ईदगाह पुलकोहना के आसपास मेले जैसे माहौल अगर है तो ये बुजुर्गों की देन है, न उन्होंने ऐसी परम्परा शुरू की होती और न ही हम लोग उनकी मिल्लत को आगे बढ़ा पाते।

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