22 मई से 24 मई के बीच श्रीनगर में जी-20 के “टूरिज्म वर्किंग ग्रुप” की तीसरी बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में चीन, सऊदी अरब, इंडोनेशिया, मिस्र और ओमान जैसे देश शामिल नहीं हुए। क्या है इसके पीछे के कारण और पाकिस्तान इसे कैसे अपनी कूटनीतिक जीत बता रहा?
फ़ोटो साभार: PTI
भारत इस वर्ष जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है। इसी सिलसिले में जम्मू और कश्मीर के श्रीनगर से लेकर केरल के कुमरकम तक और गुजरात के कच्छ का रण से लेकर नागालैंड तक, देश के लगभग तमाम राज्यों और शहरों में जी-20 से संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन लगातार हो रहा है। इसी कड़ी में 22 मई से 24 मई के बीच जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में जी-20 के “टूरिज्म वर्किंग ग्रुप” की तीसरी बैठक आयोजित की गई थी।
अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद पहली बार जम्मू और कश्मीर में इतने बड़े पैमाने के किसी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस आयोजन में चीन, सऊदी अरब, तुर्किए, इंडोनेशिया, मिस्र और ओमान शामिल नहीं हुए। क्या है पूरा मामला और इन तमाम देशों के श्रीनगर में हुए आयोजन में न शामिल होने के पीछे क्या वजहें हैं? और इन देशों के श्रीनगर बैठक में शामिल न होने पर पाकिस्तान इसे अपनी कूटनीतिक जीत कैसे बता रहा है?
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, भारत की अध्यक्षता में विभिन्न मुद्दों पर जी-20 समूह की 200 से अधिक बैठकें देश के लगभग सभी स्थानों पर बीते कुछ महीनों से हो रही हैं और आने वाले दिनों में भी होती रहेंगी। इसी जी-20 समूह से संबंधित बैठकों में से एक बैठक श्रीनगर में प्रस्तावित हुई थी और जिसका आयोजन बीते दिनों हुआ। श्रीनगर में “टूरिज्म वर्किंग ग्रुप” की बैठक में जी-20 देशों व यूरोपीय संघ के अलावा भारत ने बांग्लादेश, मिस्र, मॉरीशस, नीदरलैंड, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और संयुक्त अरब अमीरात को अतिथि देशों के रूप में आमंत्रित किया था। लेकिन चीन, सऊदी अरब और इंडोनेशिया, जो जी-20 देशों के समूह का हिस्सा हैं, ने इस बैठक में पूरी तरह से भाग नहीं लिया या अपने निचले स्तर के प्रतिनिधियों को बैठक में भेजा। चीन ने तो आधिकारिक रूप से इस बैठक का बॉयकोट किया। इसके अलावा अतिथि देशों में शामिल मिस्र और ओमान भी बैठक में शामिल नहीं हुए।
इन देशों के बैठक में शामिल न होने के पीछे क्या हैं कारण?
उक्त देशों द्वारा श्रीनगर में संपन्न हुई जी-20 “टूरिज्म वर्किंग ग्रुप” की बैठक में शामिल न होने के पीछे कई कारण हैं। पहला कारण यह है कि पाकिस्तान इसे एक विवादित क्षेत्र मानता है और चीन इस मुद्दे पर खुलकर पाकिस्तान का समर्थन भी करता है। यह चीन द्वारा श्रीनगर में संपन्न हुई बैठक का बहिष्कार करने का एक कारण हो सकता है।
हालांकि पाकिस्तान को समर्थन देने के अलावा चीन के अपने भी हित हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर ईस्ट एशियन स्टडीज़ में चीन और भारत की सुरक्षा और राजनीति पर शोध कर रहे अजय कुमार मंडल का मानना है कि “चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, चीन की “सुरक्षा” के मुद्दे को अपनी विदेश नीति में सबसे महत्वपूर्ण स्थान दे रहे हैं। इसके अलावा पाकिस्तान के साथ अपने सामरिक संबंधों को कायम रखते हुए चीन भारत के साथ संतुलन साधने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल करता रहा है। शायद यही वजह है कि वह कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ खुलकर इस हद तक प्रतिक्रिया दे रहे हैं।”
भारत सरकार द्वारा कश्मीर को जी-20 की बैठक का हिस्सा बनाए जाने के बाद से ही पाकिस्तान भारत के इस फैसले के खिलाफ वैश्विक पटल पर अपनी आवाज़ उठा रहा था। उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई भी चहुंओर यहां आयोजित होने वाले कार्यक्रम को लेकर बेवजह छींटाकशी कर रही थी। पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पाकिस्तानी विदेश विभाग ने ‘चीन से लेकर बाकी तमाम देशों से अनुरोध किया था कि वह कश्मीर जैसे विवादित जगह पर बैठक में शामिल होकर अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन न करें।’
गौरतलब हो कि चीन के अलावा बैठक में हिस्सा नहीं लेने वाले अन्य देशों में से किसी ने भी आधिकारिक तौर पर बयान जारी कर श्रीनगर में हुई बैठक के खिलाफ कुछ भी नहीं कहा है। ऐसे में इन देशों की गैरमौजूदगी के कारणों के पीछे पाकिस्तान का हाथ या कुछ और कहना सही नहीं होगा।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, संगठन और निरस्त्रीकरण केंद्र में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत अभिषेक श्रीवास्तव का मानना है कि “बैठक में शामिल न होने के पीछे इन देशों के कई कारण हैं।” उनका मानना है कि “चीन को छोड़कर जब बाकी किसी भी देश ने आधिकारिक तौर पर न शामिल होने के कारणों के बारे में कुछ कहा नहीं है तो इसके पीछे के कारणों पर यह कहना कि इसके पीछे पाकिस्तान का हाथ है सही नहीं है। पाकिस्तान अभी ऐसी स्थिति में नहीं है कि वह किसी पर दबाव बना सके। पाकिस्तान अनुरोध कर सकता है, पर अभी बिना किसी आधिकारिक बयान के यह कहना जल्दबाजी होगी कि इन देशों के न आने के पीछे पाकिस्तान का हाथ है।”
इन देशों के द्वारा बैठक में शामिल न होने के पीछे क्या पाकिस्तान की कोई गुटबंदी है। इस सवाल के जवाब में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में स्थित पश्चिम एशियाई अध्ययन केंद्र में कार्यरत प्रोफेसर महेंद्र प्रताप राणा कहते हैं कि “इसके पीछे पाकिस्तान की कोई गुटबंदी नहीं है। हां, इन देशों के न शामिल होने के पीछे पाकिस्तान एक कारक हो सकता है पर इसके पीछे यह कहना की पूरी तरह से पाकिस्तान है कतई सही नहीं है।”
प्रोफेसर महेंद्र प्रताप राणा इन देशों के न शामिल होने के पीछे के कारणों पर बात करते हुए कहते हैं कि “श्रीनगर में हुई बैठक में इन देशों के शामिल न होने के लिए भारत की आंतरिक राजनीति काफी हद तक जिम्मेदार है।” उनका मानना है कि “हमें हर मामले में ‘पाकिस्तान-पाकिस्तान’ खोजने के बजाए अपने गिरेबान में भी झांक कर देखना चाहिए। भारत में जिस तरह कि राजनीति हालिया समय में हो रही है उसका खमियाज़ा हमें आने वाले समय में देखने को मिलेगा।”
अजय कुमार मंडल भी भारत की आंतरिक राजनीति के सवाल पर कहते हैं कि “भारत को अपनी आंतरिक राजनीति से ऊपर उठकर जी-20 जैसे अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए। ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन केवल देश के चुनाव और देश की जनता को ध्यान में रखकर नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि भाग लेने वाले देशों के हितों को ध्यान में रखते हुए ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए।” वह आगे कहते हैं कि “चीन का बैठक में न शामिल होना उन्हें बहुत हद तक समझ आता है पर मिस्र का या ओमान या सऊदी अरब का और इंडोनेशिया का न शामिल होना तो उन्हें बिल्कुल समझ नहीं आता है। देश के नीति-निर्माताओं को इस बात का ख्याल रखना चाहिए।”
पाकिस्तान इसे अपनी कूटनीतिक जीत क्यों बता रहा?
चीन, सऊदी अरब, इंडोनेशिया, मिस्र और ओमान के जी-20 “टूरिज्म वर्किंग ग्रुप” की बैठक में शामिल नहीं होने पर पाकिस्तान इसे अपनी जीत बता रहा है। पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ब्रीफिंग में, वहां के विदेश सचिव डॉ असद मजीद ने कहा कि “सऊदी अरब, चीन, तुर्किए और इंडोनेशिया जैसे महत्वपूर्ण देशों द्वारा श्रीनगर में कार्यक्रम से दूर रहने के फैसले ने पाकिस्तान के (कश्मीर) रुख को सही ठहराया है और दिखाया है कि दुनिया घाटी की विवादित स्थिति को पहचानती है।”
हालांकि पाकिस्तान की “कूटनीतिक जीत” के सवाल पर अभिषेक श्रीवास्तव कहते हैं कि “पाकिस्तान के द्वारा ऐसा कहना कि इन देशों का श्रीनगर में आयोजित हुई बैठक में न शामिल होना उसकी “कूटनीतिक जीत” है यह ‘अपने मुंह मियां मिट्ठू’ बनने जैसा है।” वह कहते हैं कि “मुझे नहीं लगता है कि इन देशों के द्वारा बैठक में नहीं शामिल होने के पीछे पाकिस्तान कोई कारक है। चीन के अपने कारण है और बाकी देश जैसे ओमान या मिस्र या बाकी देश जो शामिल नहीं हुए हैं उनके अपने-अपने कारण होंगे। पाकिस्तान अभी इस स्थिति में ही नहीं है कि वह किसी के ऊपर कोई दबाव बना कर उस देश से कोई काम करवा पाए।”
दरअसल यहां गौर करने वाली बात यह है कि केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जी-20 से जुड़े कार्यक्रम का आयोजन कर वैश्विक स्तर पर भारत यह संदेश देना चाहता था कि यहां स्थिति सामान्य है। इसके साथ ही यहां इस कार्यक्रम का आयोजन कर केंद्र सरकार का मकसद धरती के स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर के पर्यटन को भी बढ़ावा देना था। भारत सरकार ने श्रीनगर में जी-20 की “टूरिज्म वर्किंग ग्रुप” की बैठक का सफलतापूर्वक आयोजन कर वैश्विक स्तर पर संदेश देने में सफल हुआ है। लेकिन 19 देशों और यूरोपीय संघ के जी-20 समूह में 4 देशों चीन, सऊदी अरब, तुर्किए और इंडोनेशिया का हिस्सा न लेना भारत के लिए चिंता का विषय है। इन चार देशों के अलावा मिस्र और ओमान ने भी जी-20 समूह में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराई है, जिसे भारत ने अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था, यह भारत सरकार की कूटनीति पर सवाल खड़े करता है।
चीन ने तो आधिकारिक तौर पर एक बयान जारी कर कहा था कि ‘चीन विवादित क्षेत्र पर किसी भी तरह की जी-20 बैठक का दृढ़ता से विरोध करता है’। चीन कश्मीर को विवादित क्षेत्र मानता रहा है और ऐसे में उसका “टूरिज्म वर्किंग ग्रुप” की बैठक में नहीं शामिल होना समझ में आता है। चीन के अलावा तुर्किए ने भी आर्टिकल 370 के समर्थन में खुल कर पाकिस्तान का समर्थन किया था, ऐसे में तुर्किए का भी बैठक में शामिल नहीं होना बहुत हद तक समझ में आता है। लेकिन श्रीनगर में हुई बैठक में सऊदी अरब, इंडोनेशिया, मिस्र और ओमान की अनुपस्थिति हाल के दिनों में भारत सरकार की चल रही कूटनीतिक नीतियों पर सवालिया निशान खड़ा करती है।
गौरतलब हो कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद सऊदी अरब ने पाकिस्तान का समर्थन न करते हुए भारत सरकार के इस फैसले को उसका आंतरिक मामला करार दिया था। वहीं, इस साल मिस्र के साथ हमारे संबंध पहले के मुकाबले कई गुना बेहतर हुए हैं। मिस्र से इसी वर्ष द्विपक्षीय संबंधों को “रणनीतिक साझेदारी” के रूप में बेहतर बनाने में भारत सफल हुआ है और ऐसे में मिस्र का श्रीनगर में संपन्न हुई बैठक में शामिल न होना एक बड़ा सवाल खड़ा करती है। वहीं, ओमान और इंडोनेशिया से भी हमारे संबंध अच्छे हैं और ऐसे में श्रीनगर में हुई बैठक में इन देशों का शामिल नहीं होने का फैसला चौंकाने वाला है।
क्या यह भारत की कूटनीति कि विफलता है?
श्रीनगर में हुई “टूरिज्म वर्किंग ग्रुप” की बैठक में उक्त देशों का शामिल न होना कई सवाल तो खड़े करता है और इस विषय पर हमारे विदेश नीति में शामिल नीति-निर्माताओं व राजनयिकों को जरूर सोचना चाहिए पर इसे भारत कि कूटनीतिक विफलता कहना अतिश्योक्ति होगी। यह बात सही है कि उक्त देश श्रीनगर में हुई बैठक में शामिल नहीं हुए हैं पर इसे यह कहना कि इससे इन देशों और भारत के रिश्ते कमजोर हो गए हैं या शामिल न होने के पीछे रिश्तों में दरार थी, किसी भी रूप में सही नहीं लगता है। अजय कुमार मंडल कहते हैं कि “इसे कूटनीतिक विफलता कहना ज़्यादती है परंतु यह सोच का विषय जरूर है, खासकर मिस्र और इंडोनेशिया के विषय में।” उनका मानना है कि “चीन और तुर्किए का श्रीनगर में हुई बैठक में न शामिल होना उन्हें कोई अचरज में नहीं डालता है बल्कि मिस्र जिससे हमारे संबंध बीते सालों में लगातार बेहतर हुए हैं, उसके अलावा इंडोनेशिया व ओमान उसका न शामिल होना हमारी कूटनीति पर एक प्रश्नचिन्ह जरूर लगता है।”
अजय इस सवाल पर बात करते हुए आगे कहते हैं कि “अगर भारत ने श्रीनगर में “टूरिज्म वर्किंग ग्रुप” की बैठक के बजाय आर्थिक क्षेत्र से संबंधित मुद्दे जैसे अधिक महत्वपूर्ण मुद्दे पर बैठक बुलाई होती, तब शायद इन देशों के लिए इसमें भाग न लेने का निर्णय ले पाना कठिन होता।”
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
फ़ोटो साभार: PTI
भारत इस वर्ष जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है। इसी सिलसिले में जम्मू और कश्मीर के श्रीनगर से लेकर केरल के कुमरकम तक और गुजरात के कच्छ का रण से लेकर नागालैंड तक, देश के लगभग तमाम राज्यों और शहरों में जी-20 से संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन लगातार हो रहा है। इसी कड़ी में 22 मई से 24 मई के बीच जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में जी-20 के “टूरिज्म वर्किंग ग्रुप” की तीसरी बैठक आयोजित की गई थी।
अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद पहली बार जम्मू और कश्मीर में इतने बड़े पैमाने के किसी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस आयोजन में चीन, सऊदी अरब, तुर्किए, इंडोनेशिया, मिस्र और ओमान शामिल नहीं हुए। क्या है पूरा मामला और इन तमाम देशों के श्रीनगर में हुए आयोजन में न शामिल होने के पीछे क्या वजहें हैं? और इन देशों के श्रीनगर बैठक में शामिल न होने पर पाकिस्तान इसे अपनी कूटनीतिक जीत कैसे बता रहा है?
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, भारत की अध्यक्षता में विभिन्न मुद्दों पर जी-20 समूह की 200 से अधिक बैठकें देश के लगभग सभी स्थानों पर बीते कुछ महीनों से हो रही हैं और आने वाले दिनों में भी होती रहेंगी। इसी जी-20 समूह से संबंधित बैठकों में से एक बैठक श्रीनगर में प्रस्तावित हुई थी और जिसका आयोजन बीते दिनों हुआ। श्रीनगर में “टूरिज्म वर्किंग ग्रुप” की बैठक में जी-20 देशों व यूरोपीय संघ के अलावा भारत ने बांग्लादेश, मिस्र, मॉरीशस, नीदरलैंड, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और संयुक्त अरब अमीरात को अतिथि देशों के रूप में आमंत्रित किया था। लेकिन चीन, सऊदी अरब और इंडोनेशिया, जो जी-20 देशों के समूह का हिस्सा हैं, ने इस बैठक में पूरी तरह से भाग नहीं लिया या अपने निचले स्तर के प्रतिनिधियों को बैठक में भेजा। चीन ने तो आधिकारिक रूप से इस बैठक का बॉयकोट किया। इसके अलावा अतिथि देशों में शामिल मिस्र और ओमान भी बैठक में शामिल नहीं हुए।
इन देशों के बैठक में शामिल न होने के पीछे क्या हैं कारण?
उक्त देशों द्वारा श्रीनगर में संपन्न हुई जी-20 “टूरिज्म वर्किंग ग्रुप” की बैठक में शामिल न होने के पीछे कई कारण हैं। पहला कारण यह है कि पाकिस्तान इसे एक विवादित क्षेत्र मानता है और चीन इस मुद्दे पर खुलकर पाकिस्तान का समर्थन भी करता है। यह चीन द्वारा श्रीनगर में संपन्न हुई बैठक का बहिष्कार करने का एक कारण हो सकता है।
हालांकि पाकिस्तान को समर्थन देने के अलावा चीन के अपने भी हित हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर ईस्ट एशियन स्टडीज़ में चीन और भारत की सुरक्षा और राजनीति पर शोध कर रहे अजय कुमार मंडल का मानना है कि “चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, चीन की “सुरक्षा” के मुद्दे को अपनी विदेश नीति में सबसे महत्वपूर्ण स्थान दे रहे हैं। इसके अलावा पाकिस्तान के साथ अपने सामरिक संबंधों को कायम रखते हुए चीन भारत के साथ संतुलन साधने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल करता रहा है। शायद यही वजह है कि वह कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ खुलकर इस हद तक प्रतिक्रिया दे रहे हैं।”
भारत सरकार द्वारा कश्मीर को जी-20 की बैठक का हिस्सा बनाए जाने के बाद से ही पाकिस्तान भारत के इस फैसले के खिलाफ वैश्विक पटल पर अपनी आवाज़ उठा रहा था। उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई भी चहुंओर यहां आयोजित होने वाले कार्यक्रम को लेकर बेवजह छींटाकशी कर रही थी। पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पाकिस्तानी विदेश विभाग ने ‘चीन से लेकर बाकी तमाम देशों से अनुरोध किया था कि वह कश्मीर जैसे विवादित जगह पर बैठक में शामिल होकर अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन न करें।’
गौरतलब हो कि चीन के अलावा बैठक में हिस्सा नहीं लेने वाले अन्य देशों में से किसी ने भी आधिकारिक तौर पर बयान जारी कर श्रीनगर में हुई बैठक के खिलाफ कुछ भी नहीं कहा है। ऐसे में इन देशों की गैरमौजूदगी के कारणों के पीछे पाकिस्तान का हाथ या कुछ और कहना सही नहीं होगा।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, संगठन और निरस्त्रीकरण केंद्र में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत अभिषेक श्रीवास्तव का मानना है कि “बैठक में शामिल न होने के पीछे इन देशों के कई कारण हैं।” उनका मानना है कि “चीन को छोड़कर जब बाकी किसी भी देश ने आधिकारिक तौर पर न शामिल होने के कारणों के बारे में कुछ कहा नहीं है तो इसके पीछे के कारणों पर यह कहना कि इसके पीछे पाकिस्तान का हाथ है सही नहीं है। पाकिस्तान अभी ऐसी स्थिति में नहीं है कि वह किसी पर दबाव बना सके। पाकिस्तान अनुरोध कर सकता है, पर अभी बिना किसी आधिकारिक बयान के यह कहना जल्दबाजी होगी कि इन देशों के न आने के पीछे पाकिस्तान का हाथ है।”
इन देशों के द्वारा बैठक में शामिल न होने के पीछे क्या पाकिस्तान की कोई गुटबंदी है। इस सवाल के जवाब में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में स्थित पश्चिम एशियाई अध्ययन केंद्र में कार्यरत प्रोफेसर महेंद्र प्रताप राणा कहते हैं कि “इसके पीछे पाकिस्तान की कोई गुटबंदी नहीं है। हां, इन देशों के न शामिल होने के पीछे पाकिस्तान एक कारक हो सकता है पर इसके पीछे यह कहना की पूरी तरह से पाकिस्तान है कतई सही नहीं है।”
प्रोफेसर महेंद्र प्रताप राणा इन देशों के न शामिल होने के पीछे के कारणों पर बात करते हुए कहते हैं कि “श्रीनगर में हुई बैठक में इन देशों के शामिल न होने के लिए भारत की आंतरिक राजनीति काफी हद तक जिम्मेदार है।” उनका मानना है कि “हमें हर मामले में ‘पाकिस्तान-पाकिस्तान’ खोजने के बजाए अपने गिरेबान में भी झांक कर देखना चाहिए। भारत में जिस तरह कि राजनीति हालिया समय में हो रही है उसका खमियाज़ा हमें आने वाले समय में देखने को मिलेगा।”
अजय कुमार मंडल भी भारत की आंतरिक राजनीति के सवाल पर कहते हैं कि “भारत को अपनी आंतरिक राजनीति से ऊपर उठकर जी-20 जैसे अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए। ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन केवल देश के चुनाव और देश की जनता को ध्यान में रखकर नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि भाग लेने वाले देशों के हितों को ध्यान में रखते हुए ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए।” वह आगे कहते हैं कि “चीन का बैठक में न शामिल होना उन्हें बहुत हद तक समझ आता है पर मिस्र का या ओमान या सऊदी अरब का और इंडोनेशिया का न शामिल होना तो उन्हें बिल्कुल समझ नहीं आता है। देश के नीति-निर्माताओं को इस बात का ख्याल रखना चाहिए।”
पाकिस्तान इसे अपनी कूटनीतिक जीत क्यों बता रहा?
चीन, सऊदी अरब, इंडोनेशिया, मिस्र और ओमान के जी-20 “टूरिज्म वर्किंग ग्रुप” की बैठक में शामिल नहीं होने पर पाकिस्तान इसे अपनी जीत बता रहा है। पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ब्रीफिंग में, वहां के विदेश सचिव डॉ असद मजीद ने कहा कि “सऊदी अरब, चीन, तुर्किए और इंडोनेशिया जैसे महत्वपूर्ण देशों द्वारा श्रीनगर में कार्यक्रम से दूर रहने के फैसले ने पाकिस्तान के (कश्मीर) रुख को सही ठहराया है और दिखाया है कि दुनिया घाटी की विवादित स्थिति को पहचानती है।”
हालांकि पाकिस्तान की “कूटनीतिक जीत” के सवाल पर अभिषेक श्रीवास्तव कहते हैं कि “पाकिस्तान के द्वारा ऐसा कहना कि इन देशों का श्रीनगर में आयोजित हुई बैठक में न शामिल होना उसकी “कूटनीतिक जीत” है यह ‘अपने मुंह मियां मिट्ठू’ बनने जैसा है।” वह कहते हैं कि “मुझे नहीं लगता है कि इन देशों के द्वारा बैठक में नहीं शामिल होने के पीछे पाकिस्तान कोई कारक है। चीन के अपने कारण है और बाकी देश जैसे ओमान या मिस्र या बाकी देश जो शामिल नहीं हुए हैं उनके अपने-अपने कारण होंगे। पाकिस्तान अभी इस स्थिति में ही नहीं है कि वह किसी के ऊपर कोई दबाव बना कर उस देश से कोई काम करवा पाए।”
दरअसल यहां गौर करने वाली बात यह है कि केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जी-20 से जुड़े कार्यक्रम का आयोजन कर वैश्विक स्तर पर भारत यह संदेश देना चाहता था कि यहां स्थिति सामान्य है। इसके साथ ही यहां इस कार्यक्रम का आयोजन कर केंद्र सरकार का मकसद धरती के स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर के पर्यटन को भी बढ़ावा देना था। भारत सरकार ने श्रीनगर में जी-20 की “टूरिज्म वर्किंग ग्रुप” की बैठक का सफलतापूर्वक आयोजन कर वैश्विक स्तर पर संदेश देने में सफल हुआ है। लेकिन 19 देशों और यूरोपीय संघ के जी-20 समूह में 4 देशों चीन, सऊदी अरब, तुर्किए और इंडोनेशिया का हिस्सा न लेना भारत के लिए चिंता का विषय है। इन चार देशों के अलावा मिस्र और ओमान ने भी जी-20 समूह में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराई है, जिसे भारत ने अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था, यह भारत सरकार की कूटनीति पर सवाल खड़े करता है।
चीन ने तो आधिकारिक तौर पर एक बयान जारी कर कहा था कि ‘चीन विवादित क्षेत्र पर किसी भी तरह की जी-20 बैठक का दृढ़ता से विरोध करता है’। चीन कश्मीर को विवादित क्षेत्र मानता रहा है और ऐसे में उसका “टूरिज्म वर्किंग ग्रुप” की बैठक में नहीं शामिल होना समझ में आता है। चीन के अलावा तुर्किए ने भी आर्टिकल 370 के समर्थन में खुल कर पाकिस्तान का समर्थन किया था, ऐसे में तुर्किए का भी बैठक में शामिल नहीं होना बहुत हद तक समझ में आता है। लेकिन श्रीनगर में हुई बैठक में सऊदी अरब, इंडोनेशिया, मिस्र और ओमान की अनुपस्थिति हाल के दिनों में भारत सरकार की चल रही कूटनीतिक नीतियों पर सवालिया निशान खड़ा करती है।
गौरतलब हो कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद सऊदी अरब ने पाकिस्तान का समर्थन न करते हुए भारत सरकार के इस फैसले को उसका आंतरिक मामला करार दिया था। वहीं, इस साल मिस्र के साथ हमारे संबंध पहले के मुकाबले कई गुना बेहतर हुए हैं। मिस्र से इसी वर्ष द्विपक्षीय संबंधों को “रणनीतिक साझेदारी” के रूप में बेहतर बनाने में भारत सफल हुआ है और ऐसे में मिस्र का श्रीनगर में संपन्न हुई बैठक में शामिल न होना एक बड़ा सवाल खड़ा करती है। वहीं, ओमान और इंडोनेशिया से भी हमारे संबंध अच्छे हैं और ऐसे में श्रीनगर में हुई बैठक में इन देशों का शामिल नहीं होने का फैसला चौंकाने वाला है।
क्या यह भारत की कूटनीति कि विफलता है?
श्रीनगर में हुई “टूरिज्म वर्किंग ग्रुप” की बैठक में उक्त देशों का शामिल न होना कई सवाल तो खड़े करता है और इस विषय पर हमारे विदेश नीति में शामिल नीति-निर्माताओं व राजनयिकों को जरूर सोचना चाहिए पर इसे भारत कि कूटनीतिक विफलता कहना अतिश्योक्ति होगी। यह बात सही है कि उक्त देश श्रीनगर में हुई बैठक में शामिल नहीं हुए हैं पर इसे यह कहना कि इससे इन देशों और भारत के रिश्ते कमजोर हो गए हैं या शामिल न होने के पीछे रिश्तों में दरार थी, किसी भी रूप में सही नहीं लगता है। अजय कुमार मंडल कहते हैं कि “इसे कूटनीतिक विफलता कहना ज़्यादती है परंतु यह सोच का विषय जरूर है, खासकर मिस्र और इंडोनेशिया के विषय में।” उनका मानना है कि “चीन और तुर्किए का श्रीनगर में हुई बैठक में न शामिल होना उन्हें कोई अचरज में नहीं डालता है बल्कि मिस्र जिससे हमारे संबंध बीते सालों में लगातार बेहतर हुए हैं, उसके अलावा इंडोनेशिया व ओमान उसका न शामिल होना हमारी कूटनीति पर एक प्रश्नचिन्ह जरूर लगता है।”
अजय इस सवाल पर बात करते हुए आगे कहते हैं कि “अगर भारत ने श्रीनगर में “टूरिज्म वर्किंग ग्रुप” की बैठक के बजाय आर्थिक क्षेत्र से संबंधित मुद्दे जैसे अधिक महत्वपूर्ण मुद्दे पर बैठक बुलाई होती, तब शायद इन देशों के लिए इसमें भाग न लेने का निर्णय ले पाना कठिन होता।”
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)