वाराणसी: गरीब-मजदूरों के लिए आफत साबित हो रहा G-20 समिट, ठेला, गुमटी, पटरी, रेहड़ी वालों का रोजगार छिना

Written by sabrang india | Published on: April 18, 2023

जिलाधिकारी को ज्ञापन देने जातीं महिलाएं

बनारस के राजघाट स्थित किला कोहना की बस्तियां उजड़ने के कगार पर हैं। इन बस्तियों में अधिकांश दलित, ओबीसी, माइनॉरिटी के लोग रहते हैं। इन बस्तियों को उजाड़ने का नोटिस प्रशासन ने भेजा है। यह सब किया जा रहा है जी-20 की मीटिंग को लेकर।

दरअसल, बनारस में 17 से 19 अप्रैल के बीच जी-20 की मीटिंग हो रही है। इसी को लेकर  शहर, विशेषकर सड़कों और इसके आसपास के इलाकों को साफ-सुथरा कर और बिजली लाइटों-झालरों की रोशनी में नहा दिया गया है। इसके लिए सड़क के किनारे, चौराहे और आसपास के एरिया में ठेला, गुमटी, पटरी, रेहड़ी लगाने वाले हजारों लोगों को अपनी रोजी-रोटी से हाथ धोना पड़ा है। विदित हो कि वाराणसी में जी-20 की बैठक 17 अप्रैल से 19 अप्रैल तक होनी है।


स्थानीय निवासियों का ज्ञापन

इस बैठक की कीमत जिन लोगों को अपने घर गंवाकर चुकानी है उनमें अधिकांश निम्न आय वर्ग के लोग हैं। सबरंग इंडिया ने मौके पर पहुंचकर लोगों से बात की तो महिलाएं व पुरुष अपनी आगामी संभावित स्थिति को लेकर बेहद चिंतित नजर आए। अपने घर बचाने के लिए लोगों ने डीएम को भी ज्ञापन सौंपा लेकिन उनकी बातों पर कोई सुनवाई होती नजर नहीं आई। प्रशासन द्वारा बस्तियां उजाड़ने का समय जो निर्धारित किया गया था वह 15 अप्रैल था, वह तो बीत गया है लेकिन खतरा अभी पूरी तरह से टला नहीं है। 



तकरीबन पांच दिन पहले आदमपुर चौकी स्थित राजघाट पानी टंकी के समीप किला कोहना की बस्ती में उत्तर रेलवे वाराणसी ने चुपके से एक नोटिस चस्पा कर दी। नोटिस में यहां रहने वाले 200 से ज्यादा परिवारों के घर-माकन और निवास को अवैध बताते हुए बस्ती छोड़कर जाने कहा गया है। अन्यथा, बुलडोजर से ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की जाएगी।



वाराणसी जिला मुख्यालय से करीब 15 किमी दूर राजघाट पानी टंकी से लगी किला कोहना बस्ती है, जो नगर निगम के वार्ड नंबर पांच में आती है। बेदखली की नोटिस चस्पा होने के बाद से पीड़ितों में नाराजगी और चेहरे पर उदासी छाई हुई है। शहर में जी-20 की धूम और चकाचौंध पर गरीबों की बेबसी, उत्पीड़न और खुर्द-बुर्द होते जीवन के आहाट का दर्द एक सियाह धब्बे की तरह है। लोगों का कहना है कि गरीबों को उजाड़ कर या भगाकर शहर का विकास नहीं किया जा सकता है। संवैधानिक दायरे में हमलोगों के लिए पुनर्वास की व्यवस्था कर विकास करें। 

सबरंग संवाददाता ने यहां बस्ती का दौरा कर लोगों का हाल जानना चाहा तो वे सिर्फ बेवस और उद्वेलित नजर आए। बेदखली के नोटिस से उनके  चेहरे पर उदासी और भविष्य की चिंता साफ देखी जा सकती थी। सबरंग संवाददाता ने बताया कि शहर को लाइट, फूलों आदि से चमका दिया गया है लेकिन जैसे ही मुख्य शहर से अंदर की ओर किसी गांव या बस्ती की तरफ जाएंगे तो सड़कें खस्ताहाल नजर आती हैं। 

बिना इजाजत लिए घरों की रंगाई
हमारे संवाददाता ने बताया कि सड़क के किनारे जो भी घर हैं उन्हें बिना इजाजत लिए ही एक ही कलर से पोत दिया गया है। इसके बाद ज्यादती तब होती है जब चूना लगाकर लोगों से पैसा मांगा जाता है। लोग परेशान हैं। 

रात में बिजली फुल, दिन में गुल
यहां सड़कों पर लाइट का खास प्रबंध किया गया है। शाम होते ही शहर भर की सड़कें लाइटों से जगमग हो जाती हैं। रात की चकाचौंध दिनभर की बिजली कटौती के ऐवज में की जाती है। सारा दिन लाइट नहीं आती। इंटरनेट की फाइबर लाइनें आदि उखाड़ दी गई हैं जिससे ऑनलाइन काम करने वाले परेशान हैं। ज्यादातर ऑफिसों ने अपने कर्मचारियों को काम पर आने से मना कर दिया है क्योंकि इंटरनेट ही नहीं है। 

न्यूजक्लिक की रिपोर्ट के मुताबिक, किला कोहना बस्ती की ज्यादातर औरतें अपने घरों में हाथ में ब्रश लेकर कपड़ों पर पुली (रेशा) लगाने का काम करती नजर आती हैं। नियोक्ताओं ने इन औरतों की मजदूरी, दाम और मुनाफ़े की जो व्यवस्था तय की है वह न्यूनतम मजदूरी का ज्यादातर हिस्सा हड़प लेने वाली है। गैर-संगठित महिला श्रमिक इनकी सबसे आसान शिकार हैं। इस बस्ती में भीषण गंदगी, खुली नालियां, घर के सामने बहता मल-जल, सूखे हैंडपंप व नल तत्काल दिखने वाली चीजें हैं। यकीनन मजदूरों की हर बस्ती में ऐसे ही दृश्य दिखते हैं। वह ऐसे माहौल में रहते ही हैं जहां सफाई और स्वास्थ्य उनके लिए कोई मायने नहीं रखता। गंदगी में रहना उनकी मजबूरी होती है। राजघाट की जिस बस्ती को उत्तर रेलवे अवैध बता रहा है वहां कई लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर भी मिले हैं। बड़ा सवाल यह है कि जिस बस्ती में सालों पुराना कब्रिस्तान हो, सदियों पुराना किला हो वह जमीन रेलवे की कैसे हो सकती है? उत्तर रेलवे ने बस्ती में जो हुक्मनाम चस्पा कराया है उस पर किसी अफसर का दस्तखत और मुहर क्यों नहीं है? नोटिस गुपचुप तरीके से क्यों चस्पा कराई गई? आखिर कौन सी वजह है कि रेलवे के अधिकारी इस मुद्दे पर जुबान खोलने के लिए तैयार नहीं है?

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