यात्री सुरक्षा पर बड़ा सवाल: 4 साल में ट्रेन से पशु टकराने की 49 हजार घटनाएं

Written by Navnish Kumar | Published on: April 11, 2023
"बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, चार सालों में ट्रेन से मवेशियों के टकराने की 49 हजार से भी ज्यादा घटनाएं हुई है। 2022 में सर्वाधिक 13,160 मवेशी, ट्रेन से टकराए है जो 2019 के मुकाबले 24 प्रतिशत ज्यादा है। यात्री सुरक्षा के लिहाज से यह बड़ा सवाल है जिसका हल सरकार ट्रैक फेंसिंग में ढूंढ रही है।"



दरअसल बीबीसी ने आरटीआई में रेल मंत्रालय से पूछा था कि आख़िर कितनी बार ट्रेन मवेशियों से टकराई है और इसकी मरम्मत में सरकार को कितना खर्च उठाना पड़ा है। सरकार से मिले डाटा के मुताबिक़, भारतीय रेलवे के 9 ज़ोन में पिछले चार वर्षों में 49,000 से अधिक मवेशी ट्रेन के रास्ते में आए और टकरा गए। 2022 में ट्रेन-मवेशियों के टकराने की कुल 13,160 घटनाएं हुईं। ये 2019 के मुक़ाबले 24 प्रतिशत ज़्यादा हैं। 2019 में 10,609 मवेशी ट्रेनों से टकराए थे। यही नहीं, उत्तर मध्य रेलवे में ऐसी करीब 4,500 घटनाएं हुईं जो 2022 में सभी ज़ोन में सबसे अधिक संख्या है। यही नहीं, 'मवेशियों के मारे जाने' की संख्या में भी साल दर साल उछाल दर्ज किया जा रहा है।

भारतीय रेलवे जहां वंदे भारत जैसी हाई स्पीड ट्रेनों को देश में रेल यात्रा के 'नए और आधुनिक दौर' के तौर पर पेश कर रही है वहीं, इन ट्रेनों को लेकर उन्होंने अक्सर कहा है, "ये उस भारत का प्रतीक है जो तेज़ बदलाव के रास्ते पर चल पड़ा है।" देश में अहमदाबाद मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन शुरू करने का काम भी तेज़ी से चल रहा है। लेकिन भारत के रेल मार्गों पर दौड़ने वाली वंदे भारत जैसी आधुनिक ट्रेनों का मवेशियों से टकराना कितनी बड़ी समस्या है? क्या इनसे यात्रियों की सुरक्षा ख़तरे में पड़ती है और क्या इसके चलते ट्रैक और ट्रेनों की मरम्मत का ख़र्च काफ़ी बढ़ जाता है? के उत्तर भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन की अधिकतम रफ़्तार 160 किलोमीटर प्रतिघंटा है। ये ट्रेन कई बार मवेशियों से टकराई है। इसकी वजह से ट्रेन के तय समय में देरी और नुक़सान दोनों हुए हैं।

वंदे भारत के आगे आईं गाय- भैसें

30 सितंबर 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधीनगर और मुंबई के बीच वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाई थी। छह अक्टूबर को मुंबई से गांधीनगर के रास्ते में वंदे भारत ट्रेन की गुजरात के अहमदाबाद में वटवा और मणिनगर रेलवे स्टेशनों के बीच भैंसों से टक्कर हो गई। अगले ही दिन सात अक्टूबर को एक बार फ़िर से गुजरात में आणंद के पास फ़िर से एक गाय वंदे भारत ट्रेन से टकरा गई। इसी वंदे भारत ट्रेन की तीसरी टक्कर 29 अक्टूबर को गुजरात में अतुल स्टेशन के पास हुई। जिससे ट्रेन 15 मिनट के लिए लेट हो गई।

बीबीसी को आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, 2022 में ट्रेन-मवेशियों के टकराने की कुल 13,160 घटनाएं हुईं। ये 2019 के मुक़ाबले 24 प्रतिशत ज़्यादा हैं। 2019 में 10,609 मवेशी ट्रेनों से टकराए थे। भारतीय रेलवे के नौ ज़ोन में पिछले चार वर्षों में 49,000 से अधिक मवेशी ट्रेन के रास्ते में टकराए। 

भारतीय रेलवे को कितना नुकसान हुआ?

दिसंबर 2021 में देश के रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने संसद में पूछे एक सवाल के लिखित जवाब में ट्रेन की मवेशियों से टक्कर रोकने को उठाए जा रहे क़दमों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इसमें बाड़ या पटरियों के साथ बाउंड्री बनाना, प्रमुख शहरों के ट्रेन रूटों को सुधारना और मवेशियों को बार-बार चारा और खाना मिलने की संभावना वाले क्षेत्रों से कचरा हटाना और पटरियों के करीब उगी हरी घास, झाड़ियों की छंटाई करने जैसे क़दम शामिल हैं। अहम बात ये है कि रेल मंत्री ने कहा कि इन घटनाओं में रेलवे को कोई वित्तीय नुकसान नहीं हुआ।

लेकिन बीबीसी को रेलवे से मिले आरटीआई जवाबों से पता चलता है कि उत्तर रेलवे और दक्षिण-मध्य रेलवे के दोनों ज़ोन ने 2022 में मिल कर पटरियों और ट्रेनों की मरम्मत पर एक करोड़ 30 लाख रुपये से अधिक खर्च किए। जिसमे उत्तरी रेलवे ने ही एक करोड़ 28 लाख रुपया खर्च किया।

ऐसी घटनाओं से कितना है ख़तरा?

मवेशियों से रेलवे ट्रैक पर होने वाली टक्करों में ज़्यादा नुकसान वंदे भारत ट्रेन के इंजन के नोज़ कवर का होता है जो मवेशियों के टकराने पर टूट जाते हैं। फाइबर प्लास्टिक से बने होने के बावजूद, तेज़ गति से होने वाली टक्करों में यह नोज़ कवर क्षतिग्रस्त हो जाते हैं लेकिन इन्हें आसानी से बदला जा सकता है।

29 अक्टूबर 2022 में पश्चिम रेलवे ने ट्वीट कर जानकारी दी, "कैटल-रन-ओवर की घटनाओं ने रेल यातायात पर असर डाला है, जिससे रेल दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है, जिसमें ट्रेन का पटरी से उतरना भी शामिल है। यह यात्रियों की सुरक्षा को भी ख़तरे में डालता है और रेल यातायात को बाधित कर सकता है और रेल संपत्ति को नुकसान पहुंचा सकता है।" लेकिन रेलवे के एक पूर्व सीनियर अधिकारी राकेश चोपड़ा कहते हैं, "पहले ट्रेन इतनी तेज़ गति से नहीं चलती थीं। यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इस तरह की घटनाओं से ट्रेन के पटरी से उतरने की संभावना बढ़ जाती है और यात्रियों की सुरक्षा ख़तरे में पड़ जाती है।"

सज़ा और जुर्माने के प्रावधान?

रेलवे अधिनियम 1989 के तहत, मवेशियों के मालिकों को "जानबूझकर किए गए कार्यों या चूकों के लिए दंडित किया जा सकता है जो रेल यात्रियों की सुरक्षा को खतरे में डालते हैं।" दोषी पाए जाने पर मवेशी मालिकों को एक साल की सज़ा और जुर्माना भी हो सकता है। मवेशी मालिकों पर अनाधिकार प्रवेश और अनाधिकार प्रवेश को ना रोकने के लिए मुक़दमा भी किया जा सकता है और दोषी पाए जाने पर छह महीने की सज़ा और 1000 रुपए तक जुर्माना भी हो सकता है। 

आरटीआई जवाब से मिली जानकारी से पता चलता है कि पश्चिम रेलवे ने 2019-2022 के दौरान जानवरों के मालिकों के ख़िलाफ़ कुल 191 मामले दर्ज़ किए और 9100 रुपये का जुर्माना लगाया है।

क्या फेंसिंग है इकलौता समाधान?

23 जनवरी, 2023 को पोस्ट किए गए एक ट्वीट के अनुसार पश्चिम रेलवे मुंबई-अहमदाबाद सेक्शन पर मवेशियों की ट्रेन से टकराने वाली घटनाओं को रोकने और बेहतर यातायात के लिए लगभग 622 किलोमीटर लंबी "मेटल बीम फेंस" का निर्माण कर रही है। ट्वीट के मुताबिक़ सभी टेंडर जारी हो चुके हैं और काम तेज़ी से चल रहा है। ट्रैक को फेंस करने के बारे में रेलवे के पूर्व अधिकारी राकेश चोपड़ा आगे कहते हैं, "रेलवे की पटरियों पर बैरिकेडिंग-बाड़ लगाना समस्या का एक आसान समाधान नहीं है और रेलवे भी यह जानता है। अगर हम ऐसी घटनाओं को रोकना चाहते हैं तो हमें कुछ अलग सोचना होगा।"

2022 में वंदे भारत ट्रेनों के साथ हुई टक्करों के बाद महाराष्ट्र में रेलवे सुरक्षा बल ने राज्य में संवेदनशील स्थानों के पास ग्राम प्रधानों को रोकने के मक़सद से नोटिस भी जारी किए हैं। रेलवे बोर्ड के पूर्व चेयरमैन अरुणेंद्र कुमार मानते हैं कि मवेशियों की टक्कर से बचने का एक बेहतर तरीका यह है कि रेलवे पटरियों के पास बसे लोगों के साथ काम करना और ऐसी घटनाओं को रोकने में उनकी भूमिका से अवगत कराना चाहिए।

वो कहते हैं, "मवेशी-ट्रेन टक्करों को रोकने के लिए हम जगह चिन्हित कर गाय-भैंस के लिए कॉरिडोर भी बना सकते हैं। रेलवे लाइन की फेंसिंग की जा सकती है, लेकिन साथ ही यह काफ़ी महंगा भी है।"

1000 किमी की बाउंड्री वॉल बनाएगा रेलवे

भारतीय रेलवे यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर कई नए बदलाव करता रहता है। आज तक की एक खबर के अनुसार, अब इसी कड़ी में रेलवे ने यात्रियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अगले 6 महीने के भीतर 1000 किलोमीटर रेलवे ट्रैक की घेराबंदी करने का फैसला किया है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ऐलान किया कि रेलवे अपने नेटवर्क के उन हिस्सों में 1,000 किमी की बाउंड्री वॉल बनाएगा, जहां मवेशियों के ट्रेनों से टकराने के अधिकतम मामले दर्ज किए गए हैं।

उत्तर मध्य रेलवे सबसे ज्यादा प्रभावित

आधिकारिक डेटा की मानें तो 2022 के अक्टूबर माह के पहले 9 दिन में करीब 200 ऐसे मामले सामने आए जहां मवेशियों की टक्कर से ट्रेनें प्रभावित हुईं। वहीं, साल पूरा होने तक 4500 ऐसे मामले सामने आ चुके हैं। वहीं, खास यह भी कि सबसे अधिक प्रभावित उत्तर मध्य रेलवे ज़ोन में 2020-21 में मवेशियों के टकराने के कुल 26,000 मामलों में से 6,500 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं।

'मवेशियों के मारे जाने' की संख्या में भी साल दर साल आ रहा उछाल

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले एक दशक में देश में ट्रेन से टक्कर में 'मवेशियों के मारे जाने' की संख्या में भी लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है, जो 2014-15 में लगभग 2,000-3,000 से बढ़कर 2017-18 में 14,000 से अधिक और 2019-20 में 27,046 हो गई है। महामारी वर्ष 2020-21 में यह संख्या घटकर 19,949 हो गई, लेकिन 2021-22 में फिर से वृद्धि देखी गई  और यह संख्या बढ़कर 26,142 हो गई है। कैग ने भी इन दुर्घटनाओं पर सवाल उठाए हैं। मसलन...

कैग ने भी जताई चिंता

खबरों के अनुसार, कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पिछले तीन वित्तीय वर्षों में ही 4 एशियाई शेरों और 73 हाथियों सहित 63,345 जानवरों की रेल से कटकर दर्दनाक मौत हो चुकी है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि साल 2010 में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और रेल मंत्रालय की ओर से हाथियों से जुड़े ट्रेन हादसों को रोकने के लिए एक संयुक्त सलाह जारी की गई थी। इसके बाद भी इतनी बड़ी संख्या में जानवरों के कटने पर चिंता जताई गई है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा, "10 साल बीत जाने के बाद भी नियमों और सलाह का पूरी तरह से पालन नहीं किया गया।" कैग ने कहा, "रेलवे इंजीनियरों के साथ किए गए संयुक्त निरीक्षण के दौरान संवेदनशील स्थानों पर बाड़ लगाने, साइनबोर्ड और निगरानी टावर दिखाई नहीं दिए। इसका मतलब यह है कि रेलवे प्रशासन की ओर से एशियाई शेरों की सुरक्षा के लिए कार्रवाई में कमी थी।"

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