सीएमआईई के अनुसार, श्रम शक्ति का स्तर अभी भी महामारी से पहले के स्तर तक नहीं पहुंच पाया है।
नवीनतम अनुमानों के अनुसार भारत में बेरोजगारों की संख्या 5 करोड़ से अधिक है। यह महामारी के पहले वर्ष यानि 2020 के दौरान पहुंची उच्च बेरोज़गारी से कुछ ही कम है, जब देश ने कई किस्म के लॉकडाउन और अर्थव्यवस्था को बंद होते देखा था। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) द्वारा किए तैयार किए गए ये अनुमान, कंसल्टेंसी द्वारा किए गए आवधिक नमूना सर्वेक्षणों से लिए गए हैं। बेरोजगारों की संख्या में दोनों शामिल हैं, जो सक्रिय रूप से नौकरी की तलाश कर रहे हैं और जो काम करना चाहते हैं लेकिन काम की उपलब्धता की कमी या निराशा के कारण बस वे तुरंत रोज़गार नहीं ढूंढ रहे हैं।
जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में दिखाया गया है, जिसे सीएमआईई डेटा से तैयार किया गया है, 2022 में भारत की श्रम शक्ति अभी भी पूर्व-महामारी के स्तर से कम है। 2019 में, श्रम शक्ति का अनुमान 44.2 करोड़ था। यह महामारी के पहले वर्ष में नाटकीय रूप से कम हो गई थी और तब से रिकवरी की तरफ जा रही है। नवंबर 2022 में इसे करीब 43.7 करोड़ आँका गया था।
श्रम शक्ति को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया गया है जो काम कर रहे हैं और साथ ही वे जो बिना नौकरी के हैं, लेकिन काम करने के इच्छुक भी हैं। बाद की श्रेणी में वे लोग शामिल हैं जो सक्रिय रूप से काम की तलाश कर रहे हैं और वे भी जो सर्वेक्षण के समय नौकरी की तलाश नहीं कर रहे थे लेकिन काम मिल जाए तो काम करने के इच्छुक भी हैं। इसलिए, भारत की श्रम शक्ति में वृद्धि जितनी नौकरी पाने वालों की वजह से है उसमें वास्तव में बेरोजगारों की फौज का भी बड़ा योगदान है।
विशाल बेरोज़गारी
पिछले कई वर्षों से भारत में लगातार उच्च बेरोजगारी दर देखी जा रही है। 2019 में यह औसतन 7.4 प्रतिशत, 2020 में 10 प्रतिशत से अधिक औसत थी (पहले लॉकडाउन में 25 प्रतिशत से अधिक सहित), और फिर 2021 में यह लगभग 7.8 प्रतिशत तक आ गई थी और वर्तमान में यानि नवंबर में लगभग 7.5 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया था। ये मासिक दरें हैं जिनका औसत पूरे वर्ष के दौरान निकाला जाता है।
हालांकि, नौकरी चाहने वालों के लिए स्थिति गंभीर और चिंताजनक है क्योंकि दिसंबर में, सीएमआईई के 30-दिवसीय मूविंग एवरेज डेटा में दिखाया गया है कि 1 दिसंबर में यह दर लगभग 8.2 फीसदी से बढ़कर 16 दिसंबर तक 9.3 फीसदी हो गई थी। शहरी बेरोजगारी विशेष रूप से चिंताजनक है। 16 दिसंबर को शहरी क्षेत्रों में 30-दिवसीय मूविंग एवरेज 9.7 प्रतिशत थी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह लगभग 9 प्रतिशत थी। एक साल पहले दिसंबर 2021 में देश की बेरोजगारी दर 7.9 प्रतिशत थी।
नौकरियों का ठहराव
नवंबर 2022 के अंत में देश में रोज़गारशुदा व्यक्तियों की कुल संख्या लगभग 40.18 करोड़ आंकी गई थी। तीन साल पहले नवंबर 2019 के अंत में यह संख्या 40.3 करोड़ थी। महामारी के वर्ष 2020 में, यह 39.4 करोड़ थी, जो 2021 में थोड़ा बढ़कर 40.27 करोड़ हो गई थी। इसका मतलब है कि रोज़गारशुदा व्यक्तियों की संख्या पिछले तीन वर्षों से 40 करोड़ के आसपास घूम रही है।
ये संख्याएँ नरेंद्र मोदी सरकार पर एक गंभीर आरोप है – कि बढ़ती जनसंख्या के साथ हर साल बढ़ती बेरोजगारों की संख्या के बावजूद, यदि कोई नई नौकरियां उपलब्ध नहीं हैं, तो यह सरकार के बार-बार रोजगार पैदा करने के दावों की विफलता को पूरी तरह से दर्शाता है। 2014 के आम चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी ने, हर साल 2 करोड़ नौकरियों का वादा किया था – उस वादे को इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया गया है, जो 'अच्छे दिन' के वादे के साथ पड़ा हुआ है।
गहरी चुप्पी
दरअसल, हाल के दिनों में नौकरियों के मोर्चे पर सन्नाटा छाया हुआ है। पीएम मोदी का आखिरी बड़ा वादा वह था जब, जून 2022 में उन्होने घोषणा की थी कि 18 महीने में सरकारी पदों की 10 लाख रिक्तियों को भरा जाएगा। उसके बाद, अक्टूबर में, पीएम ने घोषणा की कि यह प्रक्रिया शुरू हो गई है क्योंकि उन्होंने रोज़गार मेले में 75,000 लोगों को नियुक्ति पत्र दिए थे। अपने संबोधन में, मोदी ने कहा कि बुनियादी ढांचा से जुड़ी परियोजनाएं जरूर रोजगार पैदा करेंगी और एमएसएमई (मध्यम, लघु और सूक्ष्म उद्यम) क्षेत्र में स्वरोजगार पैदा करने में दिए जाने वाला कर्ज़ भी भूमिका निभाएगा। अप्रत्याशित रूप से, तथ्य यह है कि तथाकथित बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने और एमएसएमई को ऋण देने से गंभीर बेरोजगारी दर में सेंध नहीं लग पा रही है, जिसे पहले पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया था।
इसके अलावा, नींव का पत्थर रखते वक़्त या परियोजनाओं का उद्घाटन करते समय कुछ रस्मी बयानों के अलावा, नौकरियां पैदा करने के बारे में ज्यादा बात नहीं की जाती है। रोजगार देने के वादों की पहले की ऊर्जा और आकर्षण - चाहे कागज पर ही क्यों न हो – अब गायब होते जा रहे हैं।
विडंबना
यह है कि राज्य विधानसभाओं के लिए हाल के चुनावों के दौरान किए गए सर्वेक्षणों से पता चला है कि महंगाई के साथ-साथ बेरोजगारी मतदाताओं की सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है। यह समझ में आता है, क्योंकि ये दो आर्थिक संकट, पहला महामारी के माध्यम से और बाद में तथाकथित 'रिकवरी' की अवधि में, दोनों ने लोगों को लगातार परेशान किया है। हालांकि, इन तमाम चिंताओं के बावजूद, पीएम मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार, बेरोजगारी पर ध्यान देने के बजाय – बड़े आनंद पूर्वक मंदिर नवीनीकरण परियोजनाओं के उद्घाटन से लेकर राजमार्गों, हवाई अड्डों और आवर्तनशील जी-20 अध्यक्ष बनने को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रही है।
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नवीनतम अनुमानों के अनुसार भारत में बेरोजगारों की संख्या 5 करोड़ से अधिक है। यह महामारी के पहले वर्ष यानि 2020 के दौरान पहुंची उच्च बेरोज़गारी से कुछ ही कम है, जब देश ने कई किस्म के लॉकडाउन और अर्थव्यवस्था को बंद होते देखा था। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) द्वारा किए तैयार किए गए ये अनुमान, कंसल्टेंसी द्वारा किए गए आवधिक नमूना सर्वेक्षणों से लिए गए हैं। बेरोजगारों की संख्या में दोनों शामिल हैं, जो सक्रिय रूप से नौकरी की तलाश कर रहे हैं और जो काम करना चाहते हैं लेकिन काम की उपलब्धता की कमी या निराशा के कारण बस वे तुरंत रोज़गार नहीं ढूंढ रहे हैं।
जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में दिखाया गया है, जिसे सीएमआईई डेटा से तैयार किया गया है, 2022 में भारत की श्रम शक्ति अभी भी पूर्व-महामारी के स्तर से कम है। 2019 में, श्रम शक्ति का अनुमान 44.2 करोड़ था। यह महामारी के पहले वर्ष में नाटकीय रूप से कम हो गई थी और तब से रिकवरी की तरफ जा रही है। नवंबर 2022 में इसे करीब 43.7 करोड़ आँका गया था।
श्रम शक्ति को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया गया है जो काम कर रहे हैं और साथ ही वे जो बिना नौकरी के हैं, लेकिन काम करने के इच्छुक भी हैं। बाद की श्रेणी में वे लोग शामिल हैं जो सक्रिय रूप से काम की तलाश कर रहे हैं और वे भी जो सर्वेक्षण के समय नौकरी की तलाश नहीं कर रहे थे लेकिन काम मिल जाए तो काम करने के इच्छुक भी हैं। इसलिए, भारत की श्रम शक्ति में वृद्धि जितनी नौकरी पाने वालों की वजह से है उसमें वास्तव में बेरोजगारों की फौज का भी बड़ा योगदान है।
विशाल बेरोज़गारी
पिछले कई वर्षों से भारत में लगातार उच्च बेरोजगारी दर देखी जा रही है। 2019 में यह औसतन 7.4 प्रतिशत, 2020 में 10 प्रतिशत से अधिक औसत थी (पहले लॉकडाउन में 25 प्रतिशत से अधिक सहित), और फिर 2021 में यह लगभग 7.8 प्रतिशत तक आ गई थी और वर्तमान में यानि नवंबर में लगभग 7.5 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया था। ये मासिक दरें हैं जिनका औसत पूरे वर्ष के दौरान निकाला जाता है।
हालांकि, नौकरी चाहने वालों के लिए स्थिति गंभीर और चिंताजनक है क्योंकि दिसंबर में, सीएमआईई के 30-दिवसीय मूविंग एवरेज डेटा में दिखाया गया है कि 1 दिसंबर में यह दर लगभग 8.2 फीसदी से बढ़कर 16 दिसंबर तक 9.3 फीसदी हो गई थी। शहरी बेरोजगारी विशेष रूप से चिंताजनक है। 16 दिसंबर को शहरी क्षेत्रों में 30-दिवसीय मूविंग एवरेज 9.7 प्रतिशत थी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह लगभग 9 प्रतिशत थी। एक साल पहले दिसंबर 2021 में देश की बेरोजगारी दर 7.9 प्रतिशत थी।
नौकरियों का ठहराव
नवंबर 2022 के अंत में देश में रोज़गारशुदा व्यक्तियों की कुल संख्या लगभग 40.18 करोड़ आंकी गई थी। तीन साल पहले नवंबर 2019 के अंत में यह संख्या 40.3 करोड़ थी। महामारी के वर्ष 2020 में, यह 39.4 करोड़ थी, जो 2021 में थोड़ा बढ़कर 40.27 करोड़ हो गई थी। इसका मतलब है कि रोज़गारशुदा व्यक्तियों की संख्या पिछले तीन वर्षों से 40 करोड़ के आसपास घूम रही है।
ये संख्याएँ नरेंद्र मोदी सरकार पर एक गंभीर आरोप है – कि बढ़ती जनसंख्या के साथ हर साल बढ़ती बेरोजगारों की संख्या के बावजूद, यदि कोई नई नौकरियां उपलब्ध नहीं हैं, तो यह सरकार के बार-बार रोजगार पैदा करने के दावों की विफलता को पूरी तरह से दर्शाता है। 2014 के आम चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी ने, हर साल 2 करोड़ नौकरियों का वादा किया था – उस वादे को इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया गया है, जो 'अच्छे दिन' के वादे के साथ पड़ा हुआ है।
गहरी चुप्पी
दरअसल, हाल के दिनों में नौकरियों के मोर्चे पर सन्नाटा छाया हुआ है। पीएम मोदी का आखिरी बड़ा वादा वह था जब, जून 2022 में उन्होने घोषणा की थी कि 18 महीने में सरकारी पदों की 10 लाख रिक्तियों को भरा जाएगा। उसके बाद, अक्टूबर में, पीएम ने घोषणा की कि यह प्रक्रिया शुरू हो गई है क्योंकि उन्होंने रोज़गार मेले में 75,000 लोगों को नियुक्ति पत्र दिए थे। अपने संबोधन में, मोदी ने कहा कि बुनियादी ढांचा से जुड़ी परियोजनाएं जरूर रोजगार पैदा करेंगी और एमएसएमई (मध्यम, लघु और सूक्ष्म उद्यम) क्षेत्र में स्वरोजगार पैदा करने में दिए जाने वाला कर्ज़ भी भूमिका निभाएगा। अप्रत्याशित रूप से, तथ्य यह है कि तथाकथित बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने और एमएसएमई को ऋण देने से गंभीर बेरोजगारी दर में सेंध नहीं लग पा रही है, जिसे पहले पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया था।
इसके अलावा, नींव का पत्थर रखते वक़्त या परियोजनाओं का उद्घाटन करते समय कुछ रस्मी बयानों के अलावा, नौकरियां पैदा करने के बारे में ज्यादा बात नहीं की जाती है। रोजगार देने के वादों की पहले की ऊर्जा और आकर्षण - चाहे कागज पर ही क्यों न हो – अब गायब होते जा रहे हैं।
विडंबना
यह है कि राज्य विधानसभाओं के लिए हाल के चुनावों के दौरान किए गए सर्वेक्षणों से पता चला है कि महंगाई के साथ-साथ बेरोजगारी मतदाताओं की सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है। यह समझ में आता है, क्योंकि ये दो आर्थिक संकट, पहला महामारी के माध्यम से और बाद में तथाकथित 'रिकवरी' की अवधि में, दोनों ने लोगों को लगातार परेशान किया है। हालांकि, इन तमाम चिंताओं के बावजूद, पीएम मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार, बेरोजगारी पर ध्यान देने के बजाय – बड़े आनंद पूर्वक मंदिर नवीनीकरण परियोजनाओं के उद्घाटन से लेकर राजमार्गों, हवाई अड्डों और आवर्तनशील जी-20 अध्यक्ष बनने को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रही है।
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