साधो, यदि कहा जाए कि स्वस्थ और बेहतर समाज किसे कहा जाए तो मन में सबसे पहले क्या आता है ?
मैंने कहीं पढ़ा था- समाज कितना प्रोग्रेसिव और सभ्य है यह देखना है तो उस समाज मे महिलाओं की स्थिति को देखिए। यह मुझे ठीक लगा। किसी समाज को आंकने का यह बेहतर तरीका है। मसलन उस समाज मे पितृसत्ता का कितना नाश हुआ है। महिलाएं कितनी स्वतंत्र हैं, खाने-पीने, कपड़े पहनने से लेकर घूमने फिरने की कितनी स्वतंत्रता है। खुद से निर्णय लेने की स्वतंत्रता, राजनीति में हिस्सेदारी, व्यवसाय में भागीदारी, यह सब ऐसी चीजें हैं जहाँ महिलाओं की संख्या अधिक है समाज बेहतर दिखता है।
पर साधो जब हम इसे भारत के परिपेक्ष्य में देखते हैं और पिछले कुछ साल का आंकलन करते हैं तो स्थिति भयानक नजर आती है। साधो तुम्हें कुछ साल पहले हुई BHU की लड़कियों पर लाठीचार्ज की घटना याद है? जाने दीजिए पुराना हो गया। थोड़ा नए में आते हैं। वह JNU वाली घटना तो याद ही होगी न जब कुछ लोग लाठी डंडे लेकर कैम्पस में घुस गए और वहां छात्र छात्राओं पर हमले किये? छात्र संघ अध्यक्ष आइशी घोष का फटा सिर तो याद ही होगा ? अच्छा और याद दिलाता हूं। कश्मीर की आसिफा याद है साधो ? अरे वही जब बलात्कारियों के समर्थन में कुछ लोग रैली निकाल रहे थे। यह तो याद ही होगा। क्योंकि साधो दुनिया के हजारों साल के इतिहास में यह इकलौती घटना है जब बलात्कारियों के लिए कोई रैली निकली हो।
एक और बताता हूँ। उन्नाव का विधायक सेंगर किसे नहीं याद होगा। सत्ता पक्ष ने उसके कारनामों पर मिट्टी डालने का रिकॉर्ड बना दिया। पर भला हो सोशल मीडिया का जहां लगातार उन्नाव की बेटी के लिए आवाज उठती रही और मजबूरन सेंगर को पार्टी ने पार्टी से निष्कासित किया। लेकिन तबतक बहुत देर हो चुकी थी। उस बेटी ने अपने बाप को खो दिया था।
साधो मैं तुम्हें अब हाल फिलहाल की घटनाओं की याद दिलाता हूं। जामिया मिलिया कॉलेज में छात्राओं पर हुई बर्बरता को बहुत दिन नहीं हुआ है। यह कौन लोग थे जो इतनी हिम्मत करके कैम्पस में घुसे। कैम्पस के वायरल हुए वीडियो दिल दहला देने वाले थे।
एक और याद दिलाता हूं। हाथरस रेप केस को अभी साल भर भी नहीं हुए हैं। किस तरह आरोपियों को बचाने के लिए पुलिस अपने स्तर पर हर वो चीज कर गई जो सोचा भी न जा सकता। रातों रात किसी पीड़िता का दाह संस्कार उसके परिवार पर पहरा बिठा देने के बाद कर देने की भयानक घटना को कौन भूल सकता है। उस मामले को कवर करने गए पत्रकार सिद्दीकी कप्पन अब भी जेल में हैं।
साधो, तुम कहोगे कि यह सब मैं क्यों याद दिला रहा हूँ। दरअसल साधो हाल ही में एक ऐसी घटना सामने आई है जिसने दिमाग को पूरी तरीके से फ्रीज कर दिया। ऐसी घटना जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। सुल्ली डील नामक ऐप बनाकर उसपर सोशल मीडिया पर एक्टिव महिलाओं की जानकारी और फ़ोटो नीलामी के लिए डाल दिये गए। इसमें अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं की जानकारियां और फोटो ही थीं। आप सोचिये आप एक महिला को जानते हैं जो सामाजिक और राजनीतिक रूप से सोशल मीडिया पर एक्टिव है और एक दिन पता चले कि एक ऐप के जरिये उनकी जानकारी और फोटो लोगों तक पैसे के लिए बेची जा रही हो तो मन कितना व्यथित होगा !
पर यह हुआ। उस देश में हुआ जहां पर प्रधानमंत्री जी महत्वपूर्ण नारा ' बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का लगाते हैं। सोचने वाली बात यह है कि यह कौन लोग हैं जो इस तरह की कायराना हरकत करते हुए जरा भी नहीं घबराते। क्या इन्हें सत्ता, प्रशासन, समाज का जरा भी डर नहीं होता? अगर होता तो यह ऐसा कैसे कर पाते? और सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात इतनी बड़ी घटना के बाद अभीतक माननीय प्रधानमंत्री जी का न तो ट्वीट आया और न ही उन्होंने इसे लेकर कहीं कोई बयान दिया। शिखर धवन के अंगूठे में चोट आ जाने पर प्रधानमंत्री आहत हो जाते हैं और ट्विटर पर इस बात के लिए चिंता जाहिर करते हैं।पर ऐप वाली घटना पर कहीं कुछ न सुनाई दिया। लगता है साधो उन्होंने अपनी प्राथमिकताएँ तय कर रखी हैं।
प्रधानमंत्री के अलावा देश में इतने सांसद हैं। महिला आयोग है। महिला सांसद हैं, सुप्रीम कोर्ट और उसके जज हैं। मगर किसी ने इसपर ढंग से कुछ बोलना उचित नहीं समझा।
साधो, हम जिस समाज मे रहते हैं, इसकी कंडीशनिंग जिस तरह से की गई है, ऐसे समाज मे महिलाओं तक मोबाइल पहुंच पाना भी किसी क्रांति से कम नहीं है। मोबाइल हाथ आने के बाद सोशल मीडिया इस्तेमाल करना, अपनी बातें रखना, तर्क वितर्क करना, सामाजिक मुद्दों, राजनीतिक मुद्दों पर लंबे लेख लिखना यहां तक पहुंचने में भी उन्हें कम संघर्ष नहीं करना पड़ता। मैं कितनी ही महिलाओं को जानता हूँ जिन्हें आम जीवन में यह कहकर कई अंकल फादर नुमा व्यक्ति ने चुप करा दिया कि तुम लड़की हो चुप रहो बहस मत करो। उन्ही लड़कियों महिलाओं ने सोशल मीडिया और अंकल फादर टाइप लोगों को बहस में अपने तर्कों से चारों खाने चित कर दिया।
साधो, बोलती ,लिखती, अपने अधिकारों के लिए लड़ती लड़कियां सबको चुभती हैं। CAA NRC प्रोटेस्ट के दौरान हमने देखा कि किस तरह जगह जगह महिलाये, उनमें भी अधिकतर मुस्लिम महिलाएं प्रोटेस्ट का आयोजन कर उसे ढंग से संचालित कर रही थी। नारे लगाती महिलाएं, मंच से एकता और भाईचारे के नारे लगाती युवतियां भविष्य के लिए नए द्वार खोल रही थीं। यही सब बातें हैं साधो जो कट्टरपंथी टाइप की सोच वालों जो जंचती नहीं और दोनों तरफ़ के कट्टरपंथियों में खलबली मचा देती हैं जिसकी कुंठा सुल्ली डील जैसे ऐप के रूप में निकलकर आती है।
पर साधो, निहायत ही घटिया हरकत करने वाले यह नहीं देख पाते कि उनकी इस हरकत से बोलने लिखने वाली महिलाओं पर फर्क नहीं पड़ने वाला। इस बात की पुष्टि 12 जुलाई रात आठ बजे जब #speek-against-sullideal ट्विटर पर नंबर 1 पर लगातार ट्रेंड करता रहा उससे हो गई।
मीडिया में सुल्ली डील ऐप का मामला भले ही नदारद रहा हो। पर सोशल मीडिया पर जिस तरह से लगातार महिलाओं और कुछ जागरूक लोगों के लिखने बोलने से यह मुद्दा बना हुआ है यह प्रशासन और सुस्त पड़ी सरकार के लिए सोचने का विषय है। बोलती लड़कियां , इस विषय पर लिखती लिखती लड़कियां इंतजार में हैं कि प्रशासन की तरफ से इसपर कार्यवाही का रिजल्ट कब निकलता है।
साधो, प्रशासनिक कार्यवाही तो कुछ अबतक समझ नहीं आई। भविष्य में क्या कार्यवाही होगी- हम देखेंगे।
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उर्दू अदब का जातिवादी चरित
बोलती लड़कियां, अपने अधिकारों के लिए लड़ती औरतें पितृसत्ता वाली सोच के लोगों को क्यों चुभती हैं?्र
मैंने कहीं पढ़ा था- समाज कितना प्रोग्रेसिव और सभ्य है यह देखना है तो उस समाज मे महिलाओं की स्थिति को देखिए। यह मुझे ठीक लगा। किसी समाज को आंकने का यह बेहतर तरीका है। मसलन उस समाज मे पितृसत्ता का कितना नाश हुआ है। महिलाएं कितनी स्वतंत्र हैं, खाने-पीने, कपड़े पहनने से लेकर घूमने फिरने की कितनी स्वतंत्रता है। खुद से निर्णय लेने की स्वतंत्रता, राजनीति में हिस्सेदारी, व्यवसाय में भागीदारी, यह सब ऐसी चीजें हैं जहाँ महिलाओं की संख्या अधिक है समाज बेहतर दिखता है।
पर साधो जब हम इसे भारत के परिपेक्ष्य में देखते हैं और पिछले कुछ साल का आंकलन करते हैं तो स्थिति भयानक नजर आती है। साधो तुम्हें कुछ साल पहले हुई BHU की लड़कियों पर लाठीचार्ज की घटना याद है? जाने दीजिए पुराना हो गया। थोड़ा नए में आते हैं। वह JNU वाली घटना तो याद ही होगी न जब कुछ लोग लाठी डंडे लेकर कैम्पस में घुस गए और वहां छात्र छात्राओं पर हमले किये? छात्र संघ अध्यक्ष आइशी घोष का फटा सिर तो याद ही होगा ? अच्छा और याद दिलाता हूं। कश्मीर की आसिफा याद है साधो ? अरे वही जब बलात्कारियों के समर्थन में कुछ लोग रैली निकाल रहे थे। यह तो याद ही होगा। क्योंकि साधो दुनिया के हजारों साल के इतिहास में यह इकलौती घटना है जब बलात्कारियों के लिए कोई रैली निकली हो।
एक और बताता हूँ। उन्नाव का विधायक सेंगर किसे नहीं याद होगा। सत्ता पक्ष ने उसके कारनामों पर मिट्टी डालने का रिकॉर्ड बना दिया। पर भला हो सोशल मीडिया का जहां लगातार उन्नाव की बेटी के लिए आवाज उठती रही और मजबूरन सेंगर को पार्टी ने पार्टी से निष्कासित किया। लेकिन तबतक बहुत देर हो चुकी थी। उस बेटी ने अपने बाप को खो दिया था।
साधो मैं तुम्हें अब हाल फिलहाल की घटनाओं की याद दिलाता हूं। जामिया मिलिया कॉलेज में छात्राओं पर हुई बर्बरता को बहुत दिन नहीं हुआ है। यह कौन लोग थे जो इतनी हिम्मत करके कैम्पस में घुसे। कैम्पस के वायरल हुए वीडियो दिल दहला देने वाले थे।
एक और याद दिलाता हूं। हाथरस रेप केस को अभी साल भर भी नहीं हुए हैं। किस तरह आरोपियों को बचाने के लिए पुलिस अपने स्तर पर हर वो चीज कर गई जो सोचा भी न जा सकता। रातों रात किसी पीड़िता का दाह संस्कार उसके परिवार पर पहरा बिठा देने के बाद कर देने की भयानक घटना को कौन भूल सकता है। उस मामले को कवर करने गए पत्रकार सिद्दीकी कप्पन अब भी जेल में हैं।
साधो, तुम कहोगे कि यह सब मैं क्यों याद दिला रहा हूँ। दरअसल साधो हाल ही में एक ऐसी घटना सामने आई है जिसने दिमाग को पूरी तरीके से फ्रीज कर दिया। ऐसी घटना जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। सुल्ली डील नामक ऐप बनाकर उसपर सोशल मीडिया पर एक्टिव महिलाओं की जानकारी और फ़ोटो नीलामी के लिए डाल दिये गए। इसमें अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं की जानकारियां और फोटो ही थीं। आप सोचिये आप एक महिला को जानते हैं जो सामाजिक और राजनीतिक रूप से सोशल मीडिया पर एक्टिव है और एक दिन पता चले कि एक ऐप के जरिये उनकी जानकारी और फोटो लोगों तक पैसे के लिए बेची जा रही हो तो मन कितना व्यथित होगा !
पर यह हुआ। उस देश में हुआ जहां पर प्रधानमंत्री जी महत्वपूर्ण नारा ' बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का लगाते हैं। सोचने वाली बात यह है कि यह कौन लोग हैं जो इस तरह की कायराना हरकत करते हुए जरा भी नहीं घबराते। क्या इन्हें सत्ता, प्रशासन, समाज का जरा भी डर नहीं होता? अगर होता तो यह ऐसा कैसे कर पाते? और सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात इतनी बड़ी घटना के बाद अभीतक माननीय प्रधानमंत्री जी का न तो ट्वीट आया और न ही उन्होंने इसे लेकर कहीं कोई बयान दिया। शिखर धवन के अंगूठे में चोट आ जाने पर प्रधानमंत्री आहत हो जाते हैं और ट्विटर पर इस बात के लिए चिंता जाहिर करते हैं।पर ऐप वाली घटना पर कहीं कुछ न सुनाई दिया। लगता है साधो उन्होंने अपनी प्राथमिकताएँ तय कर रखी हैं।
प्रधानमंत्री के अलावा देश में इतने सांसद हैं। महिला आयोग है। महिला सांसद हैं, सुप्रीम कोर्ट और उसके जज हैं। मगर किसी ने इसपर ढंग से कुछ बोलना उचित नहीं समझा।
साधो, हम जिस समाज मे रहते हैं, इसकी कंडीशनिंग जिस तरह से की गई है, ऐसे समाज मे महिलाओं तक मोबाइल पहुंच पाना भी किसी क्रांति से कम नहीं है। मोबाइल हाथ आने के बाद सोशल मीडिया इस्तेमाल करना, अपनी बातें रखना, तर्क वितर्क करना, सामाजिक मुद्दों, राजनीतिक मुद्दों पर लंबे लेख लिखना यहां तक पहुंचने में भी उन्हें कम संघर्ष नहीं करना पड़ता। मैं कितनी ही महिलाओं को जानता हूँ जिन्हें आम जीवन में यह कहकर कई अंकल फादर नुमा व्यक्ति ने चुप करा दिया कि तुम लड़की हो चुप रहो बहस मत करो। उन्ही लड़कियों महिलाओं ने सोशल मीडिया और अंकल फादर टाइप लोगों को बहस में अपने तर्कों से चारों खाने चित कर दिया।
साधो, बोलती ,लिखती, अपने अधिकारों के लिए लड़ती लड़कियां सबको चुभती हैं। CAA NRC प्रोटेस्ट के दौरान हमने देखा कि किस तरह जगह जगह महिलाये, उनमें भी अधिकतर मुस्लिम महिलाएं प्रोटेस्ट का आयोजन कर उसे ढंग से संचालित कर रही थी। नारे लगाती महिलाएं, मंच से एकता और भाईचारे के नारे लगाती युवतियां भविष्य के लिए नए द्वार खोल रही थीं। यही सब बातें हैं साधो जो कट्टरपंथी टाइप की सोच वालों जो जंचती नहीं और दोनों तरफ़ के कट्टरपंथियों में खलबली मचा देती हैं जिसकी कुंठा सुल्ली डील जैसे ऐप के रूप में निकलकर आती है।
पर साधो, निहायत ही घटिया हरकत करने वाले यह नहीं देख पाते कि उनकी इस हरकत से बोलने लिखने वाली महिलाओं पर फर्क नहीं पड़ने वाला। इस बात की पुष्टि 12 जुलाई रात आठ बजे जब #speek-against-sullideal ट्विटर पर नंबर 1 पर लगातार ट्रेंड करता रहा उससे हो गई।
मीडिया में सुल्ली डील ऐप का मामला भले ही नदारद रहा हो। पर सोशल मीडिया पर जिस तरह से लगातार महिलाओं और कुछ जागरूक लोगों के लिखने बोलने से यह मुद्दा बना हुआ है यह प्रशासन और सुस्त पड़ी सरकार के लिए सोचने का विषय है। बोलती लड़कियां , इस विषय पर लिखती लिखती लड़कियां इंतजार में हैं कि प्रशासन की तरफ से इसपर कार्यवाही का रिजल्ट कब निकलता है।
साधो, प्रशासनिक कार्यवाही तो कुछ अबतक समझ नहीं आई। भविष्य में क्या कार्यवाही होगी- हम देखेंगे।
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