लखनऊ। उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों में मेडिकल सिस्टम को राम भरोसे बताने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर शीर्ष अदालत ने रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि उच्च न्यायालय के आदेश को किसी फैसले के तौर पर नहीं बल्कि एक सलाह के नजरिए से देखा जाना चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने हाईकोर्ट के उस फैसले पर भी रोक लगा दी है, जिसमें हर गांव में दो एम्बुलेंस और आईसीयू की सुविधा उपलब्ध कराने का आदेश दिया गया था।
हाई कोर्ट की ओर से इस इन्फ्रास्ट्रक्चर को तैयार करने के लिए एक महीने का समय दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार ने कहा कि राज्य में 97,000 गांव हैं और एक महीने की समय सीमा तक लागू करना असंभव है। ऐसे में इस फैसले पर रोक लगाई जानी चाहिए। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट पर भी तल्ख टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालयों को ऐसे आदेश जारी करने से बचना चाहिए, जिन्हें लागू नहीं किया जा सकता।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 17 मई को जारी आदेश में कहा था कि उत्तर प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह से राम भरोसे है। इस पर रोक लगाते हुए सुप्रीम की वैकेशन बेंच ने कहा कि उच्च न्यायालयों को ऐसे किसी भी आदेश को पारित करने से बचना चाहिए, जिन्हें लागू करना मुमकिन न हो। बता दें कि एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने यह बात कही थी। इसके अलावा मेरठ के एक अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में 64 साल के संतोष कुमार का भी मामला उठा था। जांच रिपोर्ट के मुताबिक डॉक्टर मृतक की पहचान नहीं कर पाए थे और अज्ञात के तौर पर ही उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया था।
हाई कोर्ट की ओर से इस इन्फ्रास्ट्रक्चर को तैयार करने के लिए एक महीने का समय दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार ने कहा कि राज्य में 97,000 गांव हैं और एक महीने की समय सीमा तक लागू करना असंभव है। ऐसे में इस फैसले पर रोक लगाई जानी चाहिए। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट पर भी तल्ख टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालयों को ऐसे आदेश जारी करने से बचना चाहिए, जिन्हें लागू नहीं किया जा सकता।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 17 मई को जारी आदेश में कहा था कि उत्तर प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह से राम भरोसे है। इस पर रोक लगाते हुए सुप्रीम की वैकेशन बेंच ने कहा कि उच्च न्यायालयों को ऐसे किसी भी आदेश को पारित करने से बचना चाहिए, जिन्हें लागू करना मुमकिन न हो। बता दें कि एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने यह बात कही थी। इसके अलावा मेरठ के एक अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में 64 साल के संतोष कुमार का भी मामला उठा था। जांच रिपोर्ट के मुताबिक डॉक्टर मृतक की पहचान नहीं कर पाए थे और अज्ञात के तौर पर ही उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया था।