उत्तर प्रदेश में पर्यावरण बचाने के नाम पर वन विभाग का बड़ा घोटाला उजागर हुआ है। घोटाला भी गजब है। प्रदेश के प्रधान महालेखाकार के अनुसार वन विभाग ने पिछले तीन सालों में पौधरोपण के लिए गड्ढे खोदने व अन्य संबंधित कामों में जिन जेसीबी और ट्रैक्टरों का इस्तेमाल करना दिखाया है, हकीकत में वो मोपेड, मोटरसाइकिल और स्कूटर निकले हैं।
अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017, 2018 और 2019 के मार्च माह के वाउचरों का ऑडिट किया गया। ये वाउचर 16 वन प्रभागों (डिवीजन) इटावा, लखनऊ, इलाहाबाद, दुधवा नेशनल पार्क पलिया, ललितपुर, हमीरपुर, गोरखपुर, संतकबीरनगर, कतर्नियाघाट, कानपुर देहात, झांसी, प्रतापगढ़, गोंडा, लखीमपुर नॉर्थ खीरी, बस्ती और आजमगढ़ के हैं। इसके तहत पौधरोपण और पौधों की सुरक्षा के लिए गड्ढे व खाई खोदने, मिट्टी का कार्य, पौधों व गोबर का परिवहन, ईटों का काम और पौधों को पानी देने का काम किया गया। इन कामों के लिए ट्रैक्टर और जेसीबी लगाई गईं।
बिल वाउचर में इन कथित जेसीबी और ट्रैक्टर के नंबर भी दिए गए हैं। ऑडिट में जब इन वाहनों के नंबरों की जांच उप्र परिवहन विभाग के रिकॉर्ड से की गई, तो ये नंबर ट्रैक्टर और जेसीबी के बजाय मोटर साइकिल, जीप, स्कूटर और मोपेड के मिले। एक माह के ऑडिट में इस तरह के 662 वाउचर पकड़ में आए हैं। इनके माध्यम से 1.07 करोड़ रुपये का गबन किया गया है।
वन विभाग के ही अधिकारियों का कहना है कि अगर प्रदेश के सभी 84 प्रभागों की तीन साल (36 माह) की जांच करा ली जाए, तो मिट्टी के इस तरह के कामों में ही अरबों के करीब घपला निकलेगा। यानि आंकड़ा देखकर हर कोई दांतों तले उंगली दबा लेंगे।
शासन ने वन मुख्यालय से पूरे प्रकरण में रिपोर्ट मांगी है तो महकमे में खलबली मच गई है। यही नहीं, इससे पूर्व अलीगढ़ ज़िले में भी वन विभाग में करोड़ों का बड़ा घोटाला सामने आ चुका है।
अलीगढ़ में पौधरोपण, पौध खरीद, खाद, जिप्सम खरीद और गड्ढा खुदान व भरान में करोड़ों के घपले के आरोप हैं। वन विभाग की पौधशालाओं में उगाई पौध के आंकड़ों तक में गड़बड़ी मिली हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार लखनऊ, कानपुर की वन विभाग की टीम व प्रदेश की आर्थिक अपराध शाखा आदि की जांच में वन विभाग में 2017-18, 18-19 तथा 19-20 में हुए पौधरोपण एवं नर्सरी विकास की जांच में खैर, इगलास, अतरौली व अलीगढ़ रेंज में 22 करोड़ से ज्यादा के घपले के आरोप हैं। जिसे लेकर डीएफओ व वन संरक्षक सहित कई कर्मचारियों पर कार्रवाई भी हुई है।
धरती को हरा-भरा करने को जिम्मेदार वन विभाग, एक ओर जहां कागजों में पौधरोपण कर हरियाली बढ़ाने के झूठे व भ्रामक दावे करने में लगा है। वहीं, पर्यावरण बचाने के नाम पर करोड़ों के वारे न्यारे करने में भी जुटा है।
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव अशोक चौधरी कहते हैं कि वन विभाग भ्रष्टाचार का डिपो है। पौधरोपण में तो घपला है ही, इनके लगाए 20 प्रतिशत पौधे ही मुश्किल से सरवाइव कर (जीवित रह) पाते हैं। जो भी हर साल होने वाला एक बड़ा घोटाला है। चौधरी कहते हैं। वनाश्रित आदिवासी समाज को जोड़े बिना वन विभाग का 'पौधरोपण कार्यक्रम' सफल नहीं हो सकता है।
वर्तमान में भी असम से लेकर यमुना तक का करीब दो हजार किलोमीटर का तराई का जो फारेस्ट है। वह पूरा प्लांटेशन टांगिया पद्धति पर वनाश्रित आदिवासी व टांगिया काश्तकारों द्वारा लगाया गया था। टांगिया किसान, पौधे लगाने के तीन साल तक उनके बीच में खेती करने का काम करते थे जिससे जहां राष्ट्रीय उत्पादन बढ़ता था वहीं, पौधों की उचित देखभाल से पूरा का पूरा शत प्रतिशत प्लांटेशन कामयाब होता था। 1980 में वन संरक्षण कानून आने के बाद से वन विभाग, पर्यावरण बचाने के नाम पर केवल लूट करने का ही काम कर रहा है। स्कूटर-मोपेड या अलीगढ़ पौधरोपण व नर्सरी घोटाला तो इस बड़े गोरखधंधे की महज एक बानगी भर हैं।
अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017, 2018 और 2019 के मार्च माह के वाउचरों का ऑडिट किया गया। ये वाउचर 16 वन प्रभागों (डिवीजन) इटावा, लखनऊ, इलाहाबाद, दुधवा नेशनल पार्क पलिया, ललितपुर, हमीरपुर, गोरखपुर, संतकबीरनगर, कतर्नियाघाट, कानपुर देहात, झांसी, प्रतापगढ़, गोंडा, लखीमपुर नॉर्थ खीरी, बस्ती और आजमगढ़ के हैं। इसके तहत पौधरोपण और पौधों की सुरक्षा के लिए गड्ढे व खाई खोदने, मिट्टी का कार्य, पौधों व गोबर का परिवहन, ईटों का काम और पौधों को पानी देने का काम किया गया। इन कामों के लिए ट्रैक्टर और जेसीबी लगाई गईं।
बिल वाउचर में इन कथित जेसीबी और ट्रैक्टर के नंबर भी दिए गए हैं। ऑडिट में जब इन वाहनों के नंबरों की जांच उप्र परिवहन विभाग के रिकॉर्ड से की गई, तो ये नंबर ट्रैक्टर और जेसीबी के बजाय मोटर साइकिल, जीप, स्कूटर और मोपेड के मिले। एक माह के ऑडिट में इस तरह के 662 वाउचर पकड़ में आए हैं। इनके माध्यम से 1.07 करोड़ रुपये का गबन किया गया है।
वन विभाग के ही अधिकारियों का कहना है कि अगर प्रदेश के सभी 84 प्रभागों की तीन साल (36 माह) की जांच करा ली जाए, तो मिट्टी के इस तरह के कामों में ही अरबों के करीब घपला निकलेगा। यानि आंकड़ा देखकर हर कोई दांतों तले उंगली दबा लेंगे।
शासन ने वन मुख्यालय से पूरे प्रकरण में रिपोर्ट मांगी है तो महकमे में खलबली मच गई है। यही नहीं, इससे पूर्व अलीगढ़ ज़िले में भी वन विभाग में करोड़ों का बड़ा घोटाला सामने आ चुका है।
अलीगढ़ में पौधरोपण, पौध खरीद, खाद, जिप्सम खरीद और गड्ढा खुदान व भरान में करोड़ों के घपले के आरोप हैं। वन विभाग की पौधशालाओं में उगाई पौध के आंकड़ों तक में गड़बड़ी मिली हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार लखनऊ, कानपुर की वन विभाग की टीम व प्रदेश की आर्थिक अपराध शाखा आदि की जांच में वन विभाग में 2017-18, 18-19 तथा 19-20 में हुए पौधरोपण एवं नर्सरी विकास की जांच में खैर, इगलास, अतरौली व अलीगढ़ रेंज में 22 करोड़ से ज्यादा के घपले के आरोप हैं। जिसे लेकर डीएफओ व वन संरक्षक सहित कई कर्मचारियों पर कार्रवाई भी हुई है।
धरती को हरा-भरा करने को जिम्मेदार वन विभाग, एक ओर जहां कागजों में पौधरोपण कर हरियाली बढ़ाने के झूठे व भ्रामक दावे करने में लगा है। वहीं, पर्यावरण बचाने के नाम पर करोड़ों के वारे न्यारे करने में भी जुटा है।
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव अशोक चौधरी कहते हैं कि वन विभाग भ्रष्टाचार का डिपो है। पौधरोपण में तो घपला है ही, इनके लगाए 20 प्रतिशत पौधे ही मुश्किल से सरवाइव कर (जीवित रह) पाते हैं। जो भी हर साल होने वाला एक बड़ा घोटाला है। चौधरी कहते हैं। वनाश्रित आदिवासी समाज को जोड़े बिना वन विभाग का 'पौधरोपण कार्यक्रम' सफल नहीं हो सकता है।
वर्तमान में भी असम से लेकर यमुना तक का करीब दो हजार किलोमीटर का तराई का जो फारेस्ट है। वह पूरा प्लांटेशन टांगिया पद्धति पर वनाश्रित आदिवासी व टांगिया काश्तकारों द्वारा लगाया गया था। टांगिया किसान, पौधे लगाने के तीन साल तक उनके बीच में खेती करने का काम करते थे जिससे जहां राष्ट्रीय उत्पादन बढ़ता था वहीं, पौधों की उचित देखभाल से पूरा का पूरा शत प्रतिशत प्लांटेशन कामयाब होता था। 1980 में वन संरक्षण कानून आने के बाद से वन विभाग, पर्यावरण बचाने के नाम पर केवल लूट करने का ही काम कर रहा है। स्कूटर-मोपेड या अलीगढ़ पौधरोपण व नर्सरी घोटाला तो इस बड़े गोरखधंधे की महज एक बानगी भर हैं।