मोदी सरकार पिछले दिनों कृषि से जुड़े तीन कानून लाई है। सरकार इन्हें किसान हितैषी बता रही है जबकि खुद किसान इनका विरोध कर रहे हैं। पंजाब में करीब 60 दिन से किसानों का विरोध जारी है। इसके बावजूद मोदी सरकार इसका संज्ञान नहीं ले रही। इसे देखते हुए अखिल भारतीय किसान सभा सहित श्रमिक संगठन सीटू आदि 500 संगठनों ने आज 26 नवंबर से विशाल प्रदर्शन करने का ऐलान किया है। बीजेपी शासित सरकारें व दिल्ली सरकार किसानों को दिल्ली आने से रोकने का भरसक प्रयास कर रही हैं।

नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार के विवादित कृषि कानूनों, बिजली कानून- 2020 के खिलाफ 26 और 27 नवंबर को दिल्ली में प्रदर्शन के लिए किसानों का ‘दिल्ली चलो’ आंदोलन शुरू हो गया है। प्रदर्शन में शामिल होने के लिए पंजाब के हजारों किसान दिल्ली के लिए निकल पड़े हैं, जिन्हें रोकने के लिए हरियाणा सरकार ने सभी सीमाओं को सील कर भारी पुलिस बल की तैनाती की है।
इसके अलावा पंजाब से करीब दो लाख से अधिक किसान, मजदूर और महिलाएं दिल्ली कूच करने के लिए तैयार हैं। भारतीय किसान यूनियन एकता उगराहां के जोगिंदर सिंह उगराहां ने बताया कि किसान संगठनों ने सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं। उन्होंने बताया कि पंजाब से 960 बसें, 2400 ट्रैक्टर-ट्रालियां, 20 पानी के टैंकर और 23 अन्य वाहन इस काफिले में शामिल होंगे। किसान नेता ने आरोप लगाया है कि दिल्ली के लिए रवाना की गई राशन से लदीं 40 ट्रालियों को हरियाणा सरकार ने बार्डर पर रोक लिया है।
दरअसल पंजाब से किसानों के बड़े पैमाने पर दिल्ली कूच की तैयारी को देखते हुए हरियाणा सरकार ने इसे विफल करने के लिए पंजाब और दिल्ली से लगने वाली सीमाओं पर भारी पुलिस बल की तैनाती की है। तमाम रास्तों पर नाका लगाकर रास्ता बंद कर दिया गया है। सोमवार रात से ही कई किसान और मजदूर नेताओं की गिरफ्तारी जारी है, जिससे किसानों की नाराजगी और बढ़ गई है।
सिरसा में पंजाब सीमा के नजदीक किसान प्रदर्शन करते हुए पहुंच गए हैं। अंबाला के मोहड़ा में भारी संख्या में किसान जुटे हुए हैं। कुरुक्षेत्र में दिल्ली कूच के लिए पहुंचे किसानों को पुलिस ने बैरिकेड लगाकर रोकने की कोशिश की, लेकिन नहीं मानने पर सर्दी में किसानों पर वाटर कैनन का इस्तेमाल किया गया है।
बुधवार को हरियाणा अपने ही किसानों को दिल्ली मार्च करने से रोकने में विफल रहा। राज्य की सड़कों पर लगाए गए बैरिकेड्स और वाटर कैनन को किनारे करते राज्य के हजारों किसान दिल्ली के नजदीक पहुंच गए। इन लोगों ने रात में करनाल और सोनीपत में डेरा डाला। इन किसानों ने आज अपनी यात्रा फिर से शुरू करने की योजना बनाई है।
सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर के नेतृत्व में मध्य प्रदेश से दिल्ली की ओर कूच कर रहे किसानों और किसान विरोधी प्रदर्शनकारियों के एक काफिले को उत्तर प्रदेश के अधिकारियों ने आगरा के पास रोक दिया है और मेधा पाटकर को गिरफ्तार कर लिया है।
दिल्ली पुलिस ने बुधवार को पहले ही ट्वीट कर कहा कि विभिन्न किसान संगठनों से प्राप्त सभी अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया गया है और आयोजकों को पहले ही सूचित कर दिया गया है। ट्वीट में लिखा गया है, "कृपया कोरोनोवायरस में दिल्ली में कोई सभा न करने में दिल्ली पुलिस के साथ सहयोग सुनिश्चित करें, ऐसा करने में विफल रहने पर कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी।"
अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने कई ट्वीट कर किसानों को रोके जाने पर अपना विरोध और गुस्सा जाहिर किया है। उन्होंने लिखा है, "पंजाब के किसानों को शांतिपूर्ण तरीके से लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करने से रोककर, केंद्र सरकार 1980 की घटना दोहरा रही है जब अकालियों को विरोध करने के लिए दिल्ली में प्रवेश करने से रोका गया था।" उन्होंने लिखा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय को इसमें दखल देना चाहिए कि अन्नदाता को किसी भी सूरत में पीड़ित या परेशान नहीं किया जाना चाहिए।
इस बीच, केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों का विरोध कर रहे और उसे निरस्त करने की मांग कर रहे किसानों को दूसरे दौर की वार्ता के लिए 3 दिसंबर को फिर से वार्त्ता के लिए बुलाया है। पिछले महीने किसानों के साथ पहली बैठक में कृषि मंत्री और राज्यमंत्री के अनुपस्थित रहने पर किसानों ने मीटिंग का बहिष्कार किया था। इस आंदोलन को किसानों के 500 संगठनों का समर्थन प्राप्त है।

नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार के विवादित कृषि कानूनों, बिजली कानून- 2020 के खिलाफ 26 और 27 नवंबर को दिल्ली में प्रदर्शन के लिए किसानों का ‘दिल्ली चलो’ आंदोलन शुरू हो गया है। प्रदर्शन में शामिल होने के लिए पंजाब के हजारों किसान दिल्ली के लिए निकल पड़े हैं, जिन्हें रोकने के लिए हरियाणा सरकार ने सभी सीमाओं को सील कर भारी पुलिस बल की तैनाती की है।
इसके अलावा पंजाब से करीब दो लाख से अधिक किसान, मजदूर और महिलाएं दिल्ली कूच करने के लिए तैयार हैं। भारतीय किसान यूनियन एकता उगराहां के जोगिंदर सिंह उगराहां ने बताया कि किसान संगठनों ने सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं। उन्होंने बताया कि पंजाब से 960 बसें, 2400 ट्रैक्टर-ट्रालियां, 20 पानी के टैंकर और 23 अन्य वाहन इस काफिले में शामिल होंगे। किसान नेता ने आरोप लगाया है कि दिल्ली के लिए रवाना की गई राशन से लदीं 40 ट्रालियों को हरियाणा सरकार ने बार्डर पर रोक लिया है।
दरअसल पंजाब से किसानों के बड़े पैमाने पर दिल्ली कूच की तैयारी को देखते हुए हरियाणा सरकार ने इसे विफल करने के लिए पंजाब और दिल्ली से लगने वाली सीमाओं पर भारी पुलिस बल की तैनाती की है। तमाम रास्तों पर नाका लगाकर रास्ता बंद कर दिया गया है। सोमवार रात से ही कई किसान और मजदूर नेताओं की गिरफ्तारी जारी है, जिससे किसानों की नाराजगी और बढ़ गई है।
सिरसा में पंजाब सीमा के नजदीक किसान प्रदर्शन करते हुए पहुंच गए हैं। अंबाला के मोहड़ा में भारी संख्या में किसान जुटे हुए हैं। कुरुक्षेत्र में दिल्ली कूच के लिए पहुंचे किसानों को पुलिस ने बैरिकेड लगाकर रोकने की कोशिश की, लेकिन नहीं मानने पर सर्दी में किसानों पर वाटर कैनन का इस्तेमाल किया गया है।
बुधवार को हरियाणा अपने ही किसानों को दिल्ली मार्च करने से रोकने में विफल रहा। राज्य की सड़कों पर लगाए गए बैरिकेड्स और वाटर कैनन को किनारे करते राज्य के हजारों किसान दिल्ली के नजदीक पहुंच गए। इन लोगों ने रात में करनाल और सोनीपत में डेरा डाला। इन किसानों ने आज अपनी यात्रा फिर से शुरू करने की योजना बनाई है।
सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर के नेतृत्व में मध्य प्रदेश से दिल्ली की ओर कूच कर रहे किसानों और किसान विरोधी प्रदर्शनकारियों के एक काफिले को उत्तर प्रदेश के अधिकारियों ने आगरा के पास रोक दिया है और मेधा पाटकर को गिरफ्तार कर लिया है।
दिल्ली पुलिस ने बुधवार को पहले ही ट्वीट कर कहा कि विभिन्न किसान संगठनों से प्राप्त सभी अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया गया है और आयोजकों को पहले ही सूचित कर दिया गया है। ट्वीट में लिखा गया है, "कृपया कोरोनोवायरस में दिल्ली में कोई सभा न करने में दिल्ली पुलिस के साथ सहयोग सुनिश्चित करें, ऐसा करने में विफल रहने पर कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी।"
अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने कई ट्वीट कर किसानों को रोके जाने पर अपना विरोध और गुस्सा जाहिर किया है। उन्होंने लिखा है, "पंजाब के किसानों को शांतिपूर्ण तरीके से लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करने से रोककर, केंद्र सरकार 1980 की घटना दोहरा रही है जब अकालियों को विरोध करने के लिए दिल्ली में प्रवेश करने से रोका गया था।" उन्होंने लिखा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय को इसमें दखल देना चाहिए कि अन्नदाता को किसी भी सूरत में पीड़ित या परेशान नहीं किया जाना चाहिए।
इस बीच, केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों का विरोध कर रहे और उसे निरस्त करने की मांग कर रहे किसानों को दूसरे दौर की वार्ता के लिए 3 दिसंबर को फिर से वार्त्ता के लिए बुलाया है। पिछले महीने किसानों के साथ पहली बैठक में कृषि मंत्री और राज्यमंत्री के अनुपस्थित रहने पर किसानों ने मीटिंग का बहिष्कार किया था। इस आंदोलन को किसानों के 500 संगठनों का समर्थन प्राप्त है।